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उत्तर— विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओ में सिन्धु घाटी सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थान है; साथ ही साथ सिन्धु घाटी सभ्यता को भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता का गौरव प्राप्त है। यह सभ्यता एक नगरीय एवं विकसित, आर्थिक जगत की सभ्यता थी और इसके विकास में कृषि एवं आन्तरिक और बाह्य व्यापार का महत्वपूर्ण स्थान था। सिन्धु घाटी सभ्यता के नगर नियोजन, प्रबंधन, जल आपूर्ति एवं जल निकास, सड़क-मार्ग आदि विशेषताओं को देखा जाय तो हम पाते है कि उसके समकालीन सभ्यता सुमेरियन और क्रीट की सभ्यता से इसकी नगर-योजना काफी उत्कृष्ट और उन्नत अवस्था मे थी।
विस्तार:-
प्रारम्भ में इस सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो प्रकाश में आये, परन्तु पिछले अनेक वर्षों में विभिन्न स्थलों पर किये गए उत्खननों से इस सभ्यता के विस्तार की जानकारी मिलती है। इस सभ्यता से संबंधित स्थल बलूचिस्तान, सिन्ध, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सौराष्ट्र, काठियावाड़ प्रायद्वीप तथा गंगा घाटी में भी पाये गये है। इस सभ्यता का विस्तार उत्तर से दक्षिण करीब 1400 किमी0 तथा पश्चिम से पूर्व 1600 किमी0 तक था। यह सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है। यह विस्तार उत्तर में जम्मू से दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से उत्तर-पूर्व में मेरठ या सहारनपुर जिले तक विस्तृत था। इससे इस सभ्यता के विस्तारवादी स्वरूप का पता चलता है।
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इस प्रकार हम देखते है की सिन्धु घाटी सभ्यता कितने व्यापक स्तर पर विस्तृत एक नगरीय सभ्यता थी। हालांकि इस सभ्यता के अध्ययन का एक मात्र स्रोत पुरातात्विक स्रोत है। हमारे पास लिपि तो है लेकिन अभी तक इस लिपि को पढ़ा नही गया है।
हड़प्पा सभ्यता के नगर-योजना की आधार सामग्री हड़प्पा, मोहनजोदाड़ो, लोथल, कालीबंगा, चन्हूदाड़ो, सुत्कागेंडोर, धौलावीरा आदि नगरों से प्राप्त होती है। आराम्भ में विद्वानों का मानना था कि हड़प्पा सभ्यता के नगर-विन्यास में समानता थी लेकिन जैसे-जैसे हमने इस सभ्यता का अनुसंधान किया और इसका विस्तृत अध्ययन किया तो हमने देखा कि लोथल आमरी एवं कोटदीजि जैसे प्रमुख नगरो में असमानता के भी कुछ तत्व पाये गये है।
पुरातात्विक स्रोतों के आधार पर हड़प्पा सभ्यता के नगर-निर्माण-योजना का अध्ययन हम निम्नलिखित संदर्भो के आधार पर कर सकते है—
1* दो स्तरीय नगर:-
सिन्धु घाटी सभ्यता में दो-स्तरीय नगरो का प्रमाण मिलता है– दुर्ग या गढ़ी और निचला शहर। दुर्ग में शासक का निवास निवास स्थान तथा अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक भवन बने होते थे। निचले शहर में आवासीय भवन थे। हड़प्पा मोहनजोदाड़ो, लोथल, सुरकोटडा आदि स्थानों में गढ़ी तथा निचला शहर देखने को मिलता है। दोनो नगरो के बीच आवागमन नियंत्रित रहता था। उदाहरण स्वरूप कालीबंगा में दोनों नगरो के बीच आने जाने के सिर्फ दो ही मार्ग मिले है। मोहनजोदाड़ो में दोनों नगरो के बीच एक नहर थी, जिसे पार करके ही दुर्ग में प्रवेश किया जा सकता था। गढ़ी/दुर्ग ऊंचे चबूतरे पर बनाया जाता था, इसका बाढ़ एवं बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के प्रबंध के लिए ऐसा किया जाता था।
2* सड़क निर्माण एवं उसका प्रबंध:-
नगर बनाते समय आवागमन की सुविधा के लिए सड़को की समुचित व्यवस्था की गई थी। सम्पूर्ण नगर में सड़को एवं गलियों का जाल बिछा हुआ था। सड़के एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी। ये सड़के पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थी। मोहनजोदाड़ो का प्रमुख मार्ग 9.14 मीटर चौड़ा था। गालियां भी 3 मीटर चौड़ी थी। आश्चर्य की बात यह है कि ये सड़के मिट्टी की बनी हुई थी किन्तु मजबूत थी। सड़को की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सड़को के किनारे गड्ढ़े बने होते थे, जिनमे कूड़ा फेंक दिया जाता था। इस प्रकार पानी का जमाव रोकने के लिये सड़के किनारों से ढालुवां बनाई जाती थी, जिससे सड़को पर पानी का जमाव न हो सके।
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3* जल एवं नालीयों का प्रबंध:-
एक व्यापक एवं सुव्यवस्थित जल-निकास प्रणाली सिन्धु सभ्यता के नगरो की एक अनूठी विशेषता है। घरों के कमरों, रसोई घर, स्नानागार आदि की जल-निकास नालियां एक बड़ी नाली में मिलती थी और विभिन्न घरों से निकली ये नालियां अन्ततः एक सार्वजनिक नाली में मिलती थी। समय-समय पर इन नालियों की की सफाई होती थी। प्राचीन यूनान और मिस्र की तरह यहाँ के कुछ भवनों की ऊपरी मंजिलो पर से पानी नीचे लाने के लिए पकाई हुई मिट्टी की पाईपनुमा नालियां बनाई जाती थी। चन्हूदाड़ो के भवनों में ऐसी नालियां देखी गई है। इसी प्रकार कालीबंगा में लकड़ी की नाली पाई गई है। सिन्धु सभ्यता के निवासियों ने स्वच्छता के लिए नालियों के प्रबंध पर जितना अधिक ध्यान दिया, उतना प्राचीन काल मे अन्य किसी सभ्यता ने नही दिया। यह सिन्धु सभ्यता की एक विशिष्ट उपलब्धि मानी जा सकती है।
4* सफाई एवं रोशनी की व्यवस्था:-
सिन्धु घाटी सभ्यता की सफाई व्यवस्था उत्तम थी। तथा जगह-जगह पर कूड़ेदान लगे हुए थे। शाम को घरों के बाहर मिट्टी के दिये जलाये जाते थे। इस प्रकार देखा जाय तो सिन्धु सभ्यता अपनी सफाई व्यवस्था एवं रोशनी व्यवस्था में भी अदभुद दिखाई देती है।
5* ईंटे:-
सिन्धु सभ्यता के नगरो में समान अनुपात में बनी पकाई गई ईंटो का प्रयोग किया गया है। ईंटो के आकार में मानवीकरण दिखाई देता है। जो ईंटे सामान्यतः प्रयुक्त की गई, उनकी लंबाई, चौड़ाई व मोटाई के अनुसार अपने 4:2:1 के अनुपात के लिए विख्यात है। ‘L’ व ‘V’ आकार की ईंटे क्रमशः कोनो की चिनाई व कुँओं की चिनाई में प्रयुक्त होती थी।
6* भवन निर्माण योजना:-
सिन्धु सभ्यता के नगरो के उत्खनन से भवनों की निर्माण योजना भी स्पष्ट हो जाती है। इन नगरो के भवन योजनाबद्ध तरीके से बनाये गये थे। प्रत्येक घर के बीच मे एक आंगन होता था, जिसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। प्रत्येक भवन में रसोई घर, शौचालय एवं स्नानागार का प्रबंध रहता था। घरों में कुँओं एवं नालियों की भी व्यवस्था की गई थी। मकानों में दरबाजे लगे होते थे, परन्तु संभवतः खिड़कियां नही बनाई जाती थी। ऐसा सुरक्षा के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर किया जाता रहा होगा। एक मंजिल के कमरे वाले मकान अपेक्षाकृत कम धनी लोगो के निवास स्थान थे। बहुमंजिले अनेक कमरे वाले मकान धनी वर्ग के लोगों के लिए बने थे।
7* विशिष्ट निर्माण
(i).मोहनजोदाड़ो का विशाल स्नानागार:-

मोहनजोदाड़ो के दुर्ग के भीतर एक विशाल जलकुण्ड का अस्तित्व प्रकाश में आया है। इसकी लंबाई करीब 12 मीटर, चौड़ाई 7 मीटर और गहराई 2.5 मीटर थी। इस जलकुण्ड में प्रवेश करने के लिए दक्षिणी और उत्तरी सिरों पर ईंटो की सीढियां बनाई गई थी। इस कुण्ड में जल एक कुँए से आता था। गन्दे पानी के निकास के लिए नालियों की व्यवस्था की गयीं थी। इस जलाशय का उपयोग धार्मिक अनुष्ठान पर स्नान करने के लिए किया जाता था।
(ii) अन्नागार:-
सिन्धु सभ्यता मे अन्नागार का विशिष्ट महत्व है। जहां मेसोपोटामिया में अतिरिक्त उत्पादन जो कर के रूप में वसूला जाता था, उसे मंदिरो में रखा जाता था, जबकि सिन्धु सभ्यता में इसको एकत्रित करने के लिए अन्नागार बनवाये गये थे। ऐसे अनेक अन्नागार हड़प्पा, मोहनजोदाड़ो, चन्हूदाड़ो, लोथल, कालीबंगा आदि स्थलों की खुदाईयों से प्रकाश में आये है। मोहनजोदाड़ो का अन्नागार करीब 45.72 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा था। इसका प्रमुख प्रवेश द्वार नदी की ओर था।
(iii) सार्वजनिक भवन:-
उत्खननों के दौरान कुछ सार्वजनिक भवनों के अवशेष भी मिले है। इनमे सबसे महत्वपूर्ण मोजनजोदड़ो का विशाल भवन है, जो मूलतः 20 खम्भों पर टिका हुआ था। यह संभवतः सभागार या मुख्य बाजार था।
(iv) गोदीबाड़ा:-

लोथल के उत्खनन से एक बहुत ही विशाल जलकुण्ड का अस्तित्व प्रकाश में आया है।यह करीब 218 मीटर लंबा, 37 मीटर चौड़ा और 3.3 मीटर गहरा था। यह पक्की ईंटो का बना था। इसकी उत्तरी दीवार में काफी चौड़ा प्रवेश द्वार था, जो एक विशाल नाले या नहर के द्वारा भोगवा नदी से संयुक्त था। एस0 आर0 राव इसे गोदीबाड़ा मानते हैं।
(v) परकोटा/प्राचीर:-
गढ़ी के चारों ओर ईंटो से निर्मित मोटी दीवार मिलती है। जिसमे परकोटे और बुर्जे बनी होती थी। सुरक्षा की दृष्टि से गढ़ी के चारो ओर खाई बनाने का प्रचलन था।
(vi) स्टेडियम:- धौलावीरा से स्टेडियम के प्रमाण प्रकाश में आये है, जिसकी लंबाई लगभग 283 मीटर व चौड़ाई 45-47 मीटर है।
(vii) कब्रिस्तान:-
हड़प्पा सभ्यता के अनेक स्थानों से उत्खनन से प्राप्त कब्रिस्तानो के साक्ष्य भी प्रकाश में आये हैं । जैसे– R– 37 कब्रिस्तान हड़प्पा से मिला है।
निष्कर्ष:-
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता की नगर-निर्माण-योजना समकालीन नगरीय सभ्यताओ में उत्कृष्ट अवस्था मे थी। यहां पर सुविधा एवं उपयोगियता पर विशेष ध्यान दिया गया था, जैसा कि हम आधुनिक नगरो में भी देखते है। सुमेर जैसी सभ्यता जहां सर्वप्रथम नगरीकरण का विकास हुआ था, वहां की सभ्यता भी अपनी उत्कृष्टता में कही न कही हड़प्पा सभ्यता से नीचे आ जाती है। हड़प्पा सभ्यता के नगरो की विशेषताओ के आधार पर हम देखे तो यह सभ्यता सुमेर और क्रीट की सभ्यता से कही न कही उत्कृष्ट सभ्यता थी।
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