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प्रश्न—सिन्धु घाटी सभ्यता के स्वरूप पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर—सिन्धु घाटी सभ्यता का उदगम(उदभव) ताम्रपाषाणिक पृष्ठभूमि पर भारतीय उपमहाद्वीपीय क्षेत्र के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ। कार्बन डेंटिंग पद्धति के आधार पर इसका काल निर्धारण 2500 ई0पू0 –1750 ई0पू0 के बीच माना गया है। सर्वप्रथम 1921 ई0 में पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रान्त में अवस्थित हड़प्पा स्थल की खोज हुई। इसिलिए इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। यह सभ्यता अपने समकालीन मेसोपोटामिया ( दजला-फरात नदी) एवं मिश्र (नील नदी घाटी) की सभ्यताओं से भी अधिक विस्तृत और विकसित थी। इस सभ्यता का केन्द्र स्थल सिन्धु घाटी है। यहाँ से इसका विस्तार गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सीमांत भाग था। इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा-गोदावरी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। इन स्थलों जी खुदाई करके जो महत्वपूर्ण सामग्री मिली है, उनसे इस सभ्यता के उदय, विस्तार, स्वरूप, काल, विलय, लक्षण आदि पर प्रकाश पड़ता है। ऐसा लगता हैं कि अपने अस्तित्व की पूरी अवधि भर यह संस्कृति एक ही प्रकार के औजारों, हथियारो, और घरों का प्रयोग करती रही, परन्तु कुछ लक्षणों में परिवर्तन भी आये तथा सभ्यता संस्कृति के कई रंग भी दिखे।
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख लक्षण:-
हड़प्पा सभ्यता के प्रमख लक्षणों को एक डायग्राम के द्वारा निम्नलिखित सन्दर्भो के आधार पर समझा जा सकता है—-
1*कांस्य युगीन सभ्यता:-
हड़प्पा सभ्यता को ताम्र युगीन सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस युग मे तांबे के हथियार एवं बर्तनो को बहुत अधिक मात्रा में बनाया जाता था। पत्थर के भी अस्त्र-शास्त्र बनाये जाते थे। बाद में वृहत पैमाने पर कांसे के औजार और अन्य वस्तुओं का निर्माण होने लगा। कांसे की प्रचुरता रहने के कारण ही इस को सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाने लगा। हड़प्पा कालीन समाज मे कांस्य शिल्पियों का महत्वपूर्ण स्थान था।
2* नगरीय सभ्यता:-
हड़प्पा संस्कृति नगरीय संस्कृति भी थी। इस काल मे अनेक नगरों का उदय हुआ, इन नगरों में सुव्यवस्थित राजमार्ग, पक्के भवन, सुव्यवस्थित नालियां, सड़के एवं सार्वजनिक स्नानागार का निर्माण, सुदृढ़ शासन व्यवस्था, यह प्रमाणित करते हैं कि साधारण लोगो की सुख-सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जाता था। ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, लिपि का भी विकास इस सभ्यता के अंतर्गत हुआ। व्यक्तिगत सम्पत्ति, सामाजिक वर्ग-विभेद एवं धर्म के प्रति आस्था भी इस समय देखने को मिलती है। नगरीय सभ्यता के कुछ प्रमुख लक्षणों को विस्तार पूर्वक देखा जा सकता है—-

(i) विशाल स्नानागार:-
मोहनजोदड़ो के दुर्ग के भीतर एक विशाल जल कुंड का अस्तित्व प्रकाश में आया है। इस जल कुण्ड के अंदर प्रवेश करने के लिए दक्षिणी और उत्तरी सिरों पर ईटो की सीढ़ियां बनाई गई थी। फर्स के निर्माण में विशेष सुविधा बरती गई थी। यह पक्की ईंटों का बना हुआ था। इस जलाशय का प्रयोग अनुष्ठानिक स्नान के लिये होता था।
(ii) सुव्यवस्थित राजमार्ग:-
हड़प्पा सभ्यता के सभी नगर एक सुव्यवस्थित योजना के आधार पर बसाये गये थे और इन नगरों की सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। ये सड़के तीन प्रकार की है– चौड़ी, मध्यम चौड़ी, और संकीर्ण गलियाँ। मोहनजोदड़ो की सबसे चौड़ी सड़क 10 मीटर से भी अधिक चौड़ी है। जिसे पुरातत्वविदों ने राजमार्ग कहा है।
(iii) सुदृढ शासन व्यवस्था:-
हड़प्पा संस्कृति से सम्बद्ध विभिन्न स्थलों पर एक जैसी नगर-निर्माण योजना, एक ही तरह की लिपि, माप-तौल के साधनों का प्रयोग, मोहरों का चलन इत्यादि को ध्यान में रखने से ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा कालीन सभी नगर एक प्रशासनिक सूत्र में बंधे हुए थे, क्योंकि सांस्कृतिक एकता के तत्व तथा सुदूर व्यापार के साक्ष्य विद्यमान थे, जो केंद्रीय सत्ता और सुदृढ़ शासन की स्थापना को सुनिश्चित करता है।
3* जनतांत्रिक सभ्यता:-
उत्खनन से प्राप्त विशाल सभा भवन और स्नानागार हड़प्पावासियों के सामूहिक जीवन के प्रतीक है। शासन के दो प्रधान केन्द्र थे —हड़प्पा और मोहनजोदड़ो। केंद्रीय शक्ति का विकेंद्रीकरण कर दिया गया था। केंद्रीय शासन के पदाधिकारी नगरों में स्थानीय अधिकारियों और नागरिकों के सहयोग से शासन करते थे।
4* औद्योगिक सभ्यता:-
हड़प्पा सभ्यता के निवासियों के आर्थिक जीवन का आधार व्यापार-वाणिज्य एवं उद्योग-धंधे था। स्थानीय व्यापार के साथ-साथ ये लोग विदेशों से भी व्यापार करते थे। संभवतः व्यापार वस्तु-विनिमय के माध्यम से होता रहा होगा। हड़प्पा वासी मेसोपोटामिया के अभिलेख में मेलुहा के साथ व्यापारिक संबंध की चर्चा करते है। मेलुहा सिन्ध क्षेत्र का प्राचीन नाम है। एक व्यक्ति एक ही व्यवसाय करता था और एक ही प्रकार का व्यवसाय करने वाले लोग एक ही क्षेत्र में निवास करते थे।
5* शांति मूलक सभ्यता:-
हड़प्पा सभ्यता की एक बड़ी विशेषता थी कि यह मूलतः शांति मूलक सभ्यता थी। राज्य में शान्ति और सुव्यवस्था उस संस्कृति के आर्थिक आधार को बनाये रखने के लिए आवश्यक थे । यही कारण है कि हमे उद्योग-धंधों एवं घरेलू प्रयोग में आने वाले औजार और उपकरण बहुसंख्या में मिलते है, परंतु युद्ध एवं हिंसा के अस्त्र-शस्त्र की संख्या नगण्य है। इनका प्रयोग आखेट तथा आत्मरक्षा के लिए किया जाता था। इस प्रकार यह एक शांति मूलक सभ्यता थी।
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6* सुव्यवस्थित धार्मिक जीवन:-
हड़प्पा वासियो का धार्मिक जीवन सुव्यवस्थित था। वे मुख्यतः दो देवताओं की पूजा करते थे। एक पुरुष रूप में, दूसरा नारी रूप में। ये पृथ्वी को उर्वरा की देवी मानते थे।वृक्षो और पशु-पक्षियों की पूजा भी करते थे। पशु पूजा में सबसे अधिक महत्व कुबड़ वाले सांड का था। पशुपति महादेव तथा मातृदेवी की मूर्तियों की पूजा होती थी। उनके धार्मिक विश्वास, धारणाएं एवं विधियां निश्चित थी। मार्शल महोदय के अनुसार कालान्तर में हिन्दू धर्म मे प्रचलित अनेक अंधविश्वास भी हड़प्पा सभ्यता में पाए जाते है और इस प्रकार हिन्दू धर्म के अनेक प्रमुख तत्वों का आदि रूप हमे सिन्धु सभ्यता मे ही मिल जाता है।
7* लेखन कला, गणना तथा माप-तौल का ज्ञान:-
सिन्धु सभ्यता के वासियो को लिपि का ज्ञान था लेकिन इस लिपि को अभी तक पढ़ा नही जा सका है। लिपि चित्राक्षर है, इसे पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास 1925 ई0 में एल0 ए0 वेंडेल ने किया था। अधिकांशतः लिपि दाएं से वायें में लिखी गयी है। सिन्धु वासी मापना एवं तौलना भी जानते थे। वाट के रूप में वस्तुएँ पायी गई है। ऐसे डंडे पाये गये है, जिस पर माप के निशान पाये गए है
8* पशुपालन तथा कृषि:-
हड़प्पावासियों के आर्थिक जीवन का मुख्य आधार व्यापार एवं उद्योग-धंधे था। लेकिन ये लोग कृषि पर भी विशेष ध्यान देते थे। कृषि कार्यो के लिए लकड़ी के हलो का प्रयोग करते थे। उत्खनन में गेंहू एवं जौ के साक्ष्य प्राप्त हुए है। खरीफ ऋतु में ज्वार, बाजरे की खेती भी होती थी। खेती के साथ-साथ इस सभ्यता में पशुपालन का भी प्रचलन था। पशुओं से दूध, मांस, ऊन, इत्यादि तो मिलते ही थे साथ ही साथ उनका उपयोग बोझ ढ़ोने एवं गाड़ी खीचने में भी होता था। मिट्टी के बर्तनों पर बने चित्रो, मोहरो, एवं अस्ति-अवशेषों के आधार पर हम तत्कालीन पशुओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। इस सभ्यता के लोग सुअर, भेड़, बकरी, गाय, कूबड़वाले बैल, भैंस, ऊँट, हाथी, कुत्ता आदि पशु पालते थे।
निष्कर्षतः
यह कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता जो एक परिपक्व, समृद्ध, विस्तृत, विकसित सभ्यता थी। इस सभ्यता के अनेक ऐसे लक्षण और विशेषताएं है जिससे कि अभी हड़प्पा जैसी सभ्यता, नगर विस्तार, जनतांत्रिक प्रणाली, शांति मूलक जैसे गुणों के समान अन्य कोई सभ्यता उस काल मे नही थी और इसके यही विभिन्न लक्षण इसे अन्य समकालीन सभ्यताओं से अलग करते है।
