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प्रश्न— हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों का समीक्षात्मक वर्णन कीजिए।
अथवा
क्या हड़प्पा सभ्यता का आकस्मिक अन्त हुआ?
अथवा
क्या हड़प्पा सभ्यता का पतन किसी बाह्य प्रेरणा का परिणाम था?

उत्तर:- विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में हड़प्पा सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हड़प्पा सभ्यता एक उन्नत, नगरीय तथा विकसित आर्थिक जगत की सभ्यता थी। यहां के नगर-नियोजन, जल आपूर्ति, जल निकास आदि तमाम नगरीय तत्व कही न कही सुमेर की सभ्यता, मिश्र तथा मध्य-पश्चिम एशिया की समकालीन सभ्यता से आगे थी। इस सभ्यता का विस्तार भी अपने चरम पर था। यह सभ्यता उत्तर में जम्मू कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुन्द्र तट से उत्तर-पूर्व में मेरठ या सहारनपुर जिले तक विस्तृत थी। अगर देखा जाय तो यह सभ्यता बहुत बड़े भू-भाग में फैली हुई एक विस्तृत सभ्यता थी। यह सभ्यता अपने समकालीन मिश्र की सभ्यता एवं सुमेर की सभ्यताओ से भी उत्कृष्ट सभ्यता थी। लेकिन उस सभ्यता का पतन कैसे हुआ? इसके पतन के.कारणों को लेकर इतिहासकारो में विवाद है। मुख्यतः विवाद का कारण यह बन जाता है, कि हमारे पास इस सभ्यता के संदर्भ में स्रोत के साधन सीमित है। जो अभी तक पढ़े नही जा सके (लिपि)। अतः हड़प्पा सभ्यता जो एक विशाल, दीर्घकालीन एवं विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में व्याप्त संस्कृति का पतन किसी एक कारण का परिणाम नहीं रहा होगा। इस सभ्यता के पतन के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों ने अनेक मत दिए है।
हम इस सभ्यता के पतन से सम्बंधित विभिन्न विद्वानों के मतों को विभिन्न उपशीर्षकों में विभाजित कर उन्हें निम्नलिखित प्रकार से उल्लेखित कर सकते है—
1* विदेशी आक्रमण/ बाह्य आक्रमण ।
2* बाढ़ का प्रकोप।
3* जल धारा में परिवर्तन।
4* विभिन्न प्रकार के जल प्लावन।
5* भूमि की शुष्कता का बढ़ना।
6* प्रशासनिक शिथिलता।
7* बढ़ती जनसंख्या और साधनों की कमी।
8* व्यापार में गिरावट।
1* विदेशी आक्रमण:-

अनेक विद्वानों का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन बाह्य आक्रमण के कारण हुआ। गॉर्डन चाइल्ड, ह्वीलर, स्टुअर्ट पिगट्स इत्यादि विद्वानों की धारणा थी कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का विनाश आर्य आक्रमणकारियों द्वारा किया गया। इस तर्क का आधार साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत है। ह्वीलर महोदय का मानना है कि ऋग्वेद में “इंद्र” को पुरन्दर कहा गया है और “इंद्र” ने उसके समकालीन कई शहरो को नष्ट कर दिया था जैसे–‘हरियूपीय’, ‘वैलाशथानाक’ इत्यादि। इनमे से हरियूपीय की पहचान सामान्यतः विद्वानों ने हड़प्पा से की है। विद्वान अपने दूसरे मत के अनुसार कहते है कि मोहनजोदड़ो में करीब 38 नरकंकाल उत्खननों के दौरान मिले थे। ये स्त्री, पुरूष एवं बच्चों के है। कुछ कंकालों पर धारधार हथियार के घाव के निशान है। जो इर्द-गिर्द बिखरे हुए हैं। इन नरकंकालों की प्राप्ति के आधार पर ह्वीलर का सुझाव है कि किसी बड़े आक्रमण में ये लोग मारे गये और लोगो को शव-विसर्जन करने अथवा उनके गहने लेने का भी समय नही मिला। इन प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि 1700 ई0 के आस-पास मोहनजोदड़ो पर अचानक आक्रमण हुआ जिससे नगर नष्ट हो गया। इन आक्रमणकारियों को “ऋग्वेद” के आधार पर आर्य माना गया।
अनेक आधुनिक विद्वान इस मत को स्वीकार नही करते हैं कि आर्यो के आक्रमण ने हड़प्पा सभ्यता को नष्ट किया। प्रोफेसर राम शरण शर्मा का मानना है कि नये आक्रमणकारी इतनी बड़ी संख्या नही आये थे की वे सिन्धु सभ्यता की उन्नत और विकसित सभ्यता को नष्ट कर दे। इसके साथ-साथ यह तथ्य विचार करने योग्य है कि सिन्धु निवासियों और आर्यो के बीच किसी बड़े संघर्ष का प्रमाण नही मिलता। ऋग्वेद जिसकी तिथि अनिश्चित है उसके विवरण पर अनावश्यक बल दिया गया है और साथ ही साथ मोहनजोदड़ो की अनुमानित जनसंख्या (फेयर सर्विस के अनुसार) 41,250 थी। इसमे से मात्र 38 कंकाल का मिलना, किसी बड़े आक्रमण की कल्पना करना अनुचित ही होगा। इस संबंध में यह भी कहा जा सकता है कि यह किसी आपसी संघर्ष का परिणाम रहा हो। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि आर्यो का आक्रमण इस सभ्यता के पतन के लिए उत्तरदायी नही था।
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2* बाढ़ का प्रकोप:-

नदियों में वार्षिक बाढ़ आना लोगो के लिए सामान्य विभीषिका (समस्या) बन चुका था। उत्खनन में मोहनजोदड़ो के विभिन्न सतहों से बालू के रूप में बाढ़ के प्रमाण मिले है। मैके के अनुसार चन्हूदाड़ो में भी सिन्धु सभ्यता के लोगो का उस स्थल को छोड़ने के लिये भी बाढ़ ही उत्तरदायी थी। वहाँ अंतिम स्तर में भयंकर बाढ़ के साक्ष्य रेत की तह से प्राप्त हुए है। एस0 आर0 राव का अनुमान है कि हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में भी इस दौरान बाढ़ आई, भीषण बाढ़ से खेती नष्ट हो जाती होगी और नहरे बालू से पट जाती होगी। इससे सभ्यता पतन की ओर उंन्मुख हुई।
3* जल-धारा में परिवर्तन:-
हड़प्पा संस्कृति के नगरों के पतन में जल धारा के परिवर्तन का भी योगदान था। यह एक प्राकृतिक नियम है कि नदियों की जल धारा में परिवर्तन होता रहता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अनेक वैसे नगर जो आरम्भ में नदियों के किनारे बसे हुए थे, बाद में नदी से दूर हो गये। परिणामस्वरूप उनकी अर्थव्यवस्था और सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। ये नगर अपना आर्थिक महत्व खोने लगे। सिन्धु नदी के मार्ग बदलने के अनेक साक्ष्य उपलब्ध है। एम0एस0 वत्स का तो यहाँ तक मानना है कि रवि नदी कि धारा में परिवर्तन ही हड़प्पा के पतन का प्रमुख कारण है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि हड़प्पा सभ्यता के दौरान हड़प्पा रवि नदी के किनारे अवस्थित था, परन्तु आज यह नदी हड़प्पा से करीब 6 मील दूर है। कालीबंगा के पतन के लिए भी नदियों के मार्ग परिवर्तन को उत्तरदायी माना गया है। नदियों के मार्ग परिवर्तन से यातायात और व्यापार तथा नगरों की समृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। क्योंकि हड़प्पा सभ्यता के अनेक नगर नदियों के किनारे बसे हुए थे और इन्ही नदियों के माध्यम से यातायात और व्यापार होता था, जो नदियों के दूर होने से कठिन हो गया।
4* विभिन्न प्रकार के जल प्लावन:-
कुछ विद्वानों की मान्यता है कि बाढ़ और जल धारा में परिवर्तन के अतिरिक्त हड़प्पा संस्कृति के विनाश के लिए विभिन्न प्रकार के जल प्लावन भी उत्तरदायी थे। ऐसा भूमिगत जल स्तर के ऊँचा होने और विवर्तनिक हलचलों के कारण हुआ। नदियों द्वारा लायी गई मिट्टी के जमाव के कारण नदी का तल ऊपर उठता गया और इसके कारण भूमि का अन्तर तल काफी ऊंचा हो गया तथा नगरो के बाढ़ का खतरा बढ़ गया होगा। मोहनजोदड़ो, आमरी तथा कुछ अन्य स्थल से बारीक बलुई मिट्टी मिली है वह बाढ़ के बहते हुए पानी का परिणाम न होकर रुके हुए पानी का परिणाम लगता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है की ये स्थल दूसरे प्रकार के जल प्लावन से प्रभावित हुए।
5* भूमि की शुष्कता का बढ़ना:-
सिन्धु सभ्यता के पतन का एक प्रमुख कारण सिन्धु क्षेत्र का बदलती जलवायु को माना जाता है। यह तर्क दिया जाता है कि जिस तीव्र गति से नगरों का उदय और विस्तार हुआ उसके चलते प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन आया। उदाहरण के लिए ईंटो को पकाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटकर लकड़ी एकत्रित की गई। इस प्रकार मवेशियों, विशेषकर बकरियो के लंबे समय तक चरने से वनस्पतियां नष्ट हुई और हरियाली समाप्त होने लगी। अत्यधिक अनाज उपजाने से भूमि की उर्वरता भी कम हुई। इन सभी कारणों से वातावरण में परिवर्तन आया। परिणामस्वरूप वर्षा कम होने लगी, भूमि की आर्द्रता में कमी आई तथा शुष्कता बढ़ गई। जिस कारण वर्षा में थोड़ी बहुत कमी आई होगी। जिस कारण सिन्धु सभ्यता क्षेत्र की कुछ नदीयो के सूखने से भी उस क्षेत्र में सूखापन बढ़ाने में योगदान रहा होगा। ऐसी धारणा व्यक्त की जाती है कि हड़प्पा, कालीबंगा के विनाश में जलवायु परिवर्तन उत्तरदायी था।
6* प्रशासनिक शिथिलता:-
हड़प्पा सभ्यता के पतन का एक कारण प्रशासनिक शिथिलता भी था। ह्वीलर महोदय द्वारा मोहनजोदड़ो में किये गए उत्खननों से अंतिम प्रकाल के स्तरों में ह्रास के लक्षण स्पष्ट रूप से प्रकट हुए। मकानों की योजना, उनके आकार-प्रकार, भवनों के निर्माण में पुरानी ईंटो का प्रयोग, चित्रित मृदभाण्डों के स्थान पर सादे बर्तनों का निर्माण आदि सभी लक्षण पतन की ओर इंगित करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासनिक तंत्र ढीला और कमजोर पड़ गया था, जो नगर निर्माण एवं नागरी जीवन की विशिष्टताओं को बनाये न रख सका। फलतः मोहनजोदड़ो में शहरीपन का स्थान क्रमशः देहातीपन ने ले लिया। इस प्रकार के पतन के लक्षण मोहनजोदड़ो के अतिरिक्त लोथल, कालीबंगा इत्यादि स्थलो में भी उपलब्ध है।
7* बढ़ती जनसंख्या और साधनों में कमी:-
सैंधव नगरों का उत्थान विकास प्रक्रिया के द्वारा हुआ था। समय के साथ-साथ नगरों में बसने वाले लोगो की जनसंख्या में वृद्धि हुई। नगरों की अबादी पूर्ण विकसित काल मे पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गई। इससे प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों पर दबाव बढ़ने लगा। एक ओर तो जनसंख्या में वृद्धि हो रही थी दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों में कमी हो रही थी। परिणामस्वरूप आर्थिक स्थिति कमजोर होती गई और नगरों का पतन सुनिश्चित हो गया।
8* व्यापार में गिरावट:-
हड़प्पा संस्कृति के पतन के लिए मुख्य रूप से आर्थिक कारण उत्तरदायी थे, विभिन्न कारणों से जिनका उल्लेख पहले किया गया, हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था गड़बड़ाने लगी। कृषि उत्पादन में कमी आई जिससे उद्योग- धंधों एवं व्यापार में गिरावट आई। सिन्धु सभ्यता के अन्तिम चरण में विदेशी व्यापार में गिरावट के स्पष्ट प्रमाण दिखाई देते है। सैंधव सभ्यता का मुख्य आर्थिक आधार व्यापार ही था, अतः व्यापार में कमी आने से हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई।
समीक्षा:-
अगर हम हड़प्पा सभ्यता के पतन के करणो की बात करे तो चाहे वह बाह्य आक्रमण हो, भूमि की शुष्कता, जल धारा का परिवर्तन, बाढ़ का प्रकोप, प्रशासनिक शिथिलता, बढ़ती हुई जनसंख्या, व्यापार में गिरावट आदि ये सब सुनने में तो ठीक लगता है, कि ठीक है हम मान सकते है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन इन्ही कारणों से हुआ होगा, यहॉं पर हमारे सामने समस्या यह पैदा हो जाती है कि हड़प्पा सभ्यता की लिपि तो है लेकिन इसे अभी तक पढ़ा नही जा सका। लिपि न पढ़े जाने के कारण हमें अभी भी यहॉ की कई कहानियाँ अनसुलझी दिखाई देती है। साथ ही साथ पूरे का पूरा अध्ययन का स्रोत पुरातात्विक स्रोत है। उत्खनन में भी हमारे पास अनेक बाधाएं है, तो इन तमाम बाधाओं के कारण हम देखते है कि इसके पतन के संबंध में जो एक अनसुलझी गुत्थी (पहेली) है, उसको सुलझाने में एक समस्या उत्पन्न हो रही है। इस प्रकार हम कह सकते है कि हड़प्पा सभ्यता का पतन विभिन्न कारणों का सम्मिलित परिणाम हों सकता है। अभी भी इस पर इतिहासकारो का शोध जारी है और उम्मीद की जाती है कि आगे इस सभ्यता के पतन की जो गुत्थी है उसे सुलझा लिया जायेगा।
निष्कर्ष:-
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि किसी सभ्यता के पतन का आशय उसका सम्पूर्ण विनाश नही है, बल्कि उसके स्वरूप में परिवर्तन होता है। वस्तुतः हड़प्पा सभ्यता के पतन का आशय है कि उसके नगरीय तत्वों का पतन हो गया, जो वहां की लेखन परम्परा, मोहरे, मिट्टी के बर्तन की विशेषताएं आदि जो इस सभ्यता के नगरीकरण की विशेषताएं थी, उनका पतन हो गया था। लेकिन हम यह नही कह सकते कि हड़प्पा सभ्यता का पूर्णतः विनाश हो गया। इससे यही आशय लगाया जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता की नगरीय विशेषताओं का पतन हुआ।लेकिन उसकी जो संस्कृति है वो आज तक जीवित रही और वो संस्कृति आज भी भारतीय समाज मे जीवित है। भले ही हड़प्पा सभ्यता के नगरीय तत्वों का पतन हो गया परन्तु इसके बाद छोटे-छोटे गाँव और कस्बे तब भी बने रहे जैसे झूकर संस्कृति, चमकीले लाल मृदभांड संस्कृति, बाड़ा संस्कृति, गेरुवर्णी मृदभांड संस्कृति, गंगा घाटी ताम्र.निधि संस्कृति आदि कुछ संस्कृतियो में भी हम समकालीन समय मे हड़प्पा सभ्यता के कई महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तत्वों को ढूंढ सकते है। इतना ही नही अगर देखा जाय तो वर्तमान समय मे भी हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति के कई तत्वों को देखा जा सकता है।
