हड़प्पा सभ्यता और पश्चिमी एशिया के व्यापारिक संबंध

हड़प्पा सभ्यता प्राचीन भारत की एक उन्नत शहरी संस्कृति थी, जिसने पश्चिमी एशिया के साथ सक्रिय व्यापारिक संबंध स्थापित किए। इस लेख में हम इनके व्यापार, आयात-निर्यात और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर चर्चा करेंगे।

उत्तर– विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओ में हड़प्पा सभ्यता विकसित एवं आर्थिक जगत नगरीय सभ्यता थी। सभ्यता के विकास में कृषि एवं व्यापार दोनो का ही महत्वपूर्ण योगदान था। मिस्र एवं सुमेर आदि विकसित सभ्यताओ की तरह हड़प्पा सभ्यता में भी आंतरिक एवं बाह्य दोनो स्तर के व्यापार कायम थे। व्यापार वस्तु विनिमय के आधार पर होता था। नगर-विन्यास, यातायात, माप-तौल की पद्वतियां आदि व्यापार के सहायक तत्व थे।

पृष्टभूमि:

मिस्र एवं मेसोपोटामिया जैसी विकसित सभ्यताओ में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान था; जैसे हम मिश्र को नील नदी का योगदान कहते है। इसी प्रकार मेसोपोटामिया सुमेर की सभ्यता का विकास दजला-फरात नदियों के कारण हुआ था तो हड़प्पा सभ्यता के विकास में सिन्धु और उसकी सहायक (घाघर एवं हाकरा) नदिया काफी महत्वपूर्ण थी। इन नदियों के उर्वरा क्षेत्रो का प्रयोग करना लोगो ने सीखा, जिसके परिणामस्वरूप अधिशेष उत्पादन हुआ। अधिशेष उत्पादन के परिणामस्वरूप व्यक्तियों में स्थायित्व की प्रवृत्ति बढ़ी, जनसंख्या का विकास हुआ। इस प्रकार नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई साथ ही साथ अधिशेष उपभोग की वस्तु की मांग में वृद्धि हुई तथा भोग-विलास की मांग ने ही लोगो मे आपसी संबंध कायम करने की प्रक्रिया की शुरुआत की। और इन्ही आवश्यक वस्तुओं की मांग ने आपस मे लेन-देन की प्रक्रिया को जन्म दिया। यही प्रक्रिया दूसरी संस्कृतियो के साथ हड़प्पा सभ्यता के व्यापार एवं वाणिज्य के विकास में सहायक सिद्ध हुई और इन्ही वस्तुओ की मांग से हड़प्पा सभ्यता का बाह्य व्यापार भी देखने को मिला।

आन्तरिक व्यापार:-

हड़प्पा सभ्यता के अंतर्गत आंतरिक व्यापार अत्यन्त विकसित अवस्था मे था। हड़प्पावासी अपने द्वारा निर्मित वस्तुओ के लिए बाजार की तलाश और कच्चे माल की प्राप्ति की लालसा एवं अतिरिक्त उत्पादन से जन्मे सम्पतशाली (अमीर) वर्ग की विलास की वस्तुओं के लिए भारत के विभिन्न भागों एवं विदेशो से भी व्यापार करते थे। पुरातात्विक अन्वेषणों से सिन्धु सभ्यता से व्यापार का प्रामाण मिलता है। हड़प्पा सभ्यता के लोग ताँबा (राजस्थान के खेतड़ी), सोना (कर्नाटक की कोलार खान), चाँदी (अफगानिस्तान), कार्निलियन (लोथल-गुजरात), सेलखड़ी (गुजरात), लाजवर्दमणि (शोर्तुघुई-अफगानिस्तान) आदि स्थानों से प्राप्त करते थे।

आंतरिक व्यापार के यातायात के साधन:-

यातायात के साधनों के विषय मे जो पुरातात्विक साक्ष्य मिले है, उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन साधनों के माध्यम से ही इनका आन्तरिक व्यापार अत्यंत सफल रहा होगा। जिनमे बनाबली से प्राप्त बैलगाड़ी के पाहिये के निशान, कालीबंगा, दायमाबाद तथा अन्य क्षेत्रों से प्राप्त बैलगाड़ी के खिलौने,मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक मोहर पर नाव के चित्र आदि हड़प्पा सभ्यता के आंतरिक व्यापार को दर्शाते है।

व्यापारिक केन्द्र:-

हड़प्पा सभ्यता के आंतरिक व्यापार को उन्नतशील बनाने के लिए सिन्धुवासियो ने व्यापारिक केन्द्रों पर भी अत्यधिक ध्यान दिया। सौराष्ट्र तट पर किम नदी के किनारे स्थित भगतराव, नर्मदा तट पर मेघम, हिरण्य नदी के किनारे प्रभासपाटन, भोगवा एवं सरस्वती के संगम पर स्थित लोथल, मकरान तट पर सुत्कागेंडोर तथा सुत्काकोह इत्यादि तटवर्ती व्यापारिक केंद्रों के रूप में स्थित रहे होंगे। इसके साथ ही साथ हड़प्पा, मोहनजोदाड़ो, कालीबंगा, चन्हूदाड़ो, बनावली आदि नगर भी व्यापार के प्रमुख केन्द्र रहे होंगे।

बाह्य या पश्चिमी एशिया से व्यापार:-

मेसोपोटामिया, मिस्र एवं मध्य एशिया के देशों के साथ भी हड़प्पा सभ्यता का घनिष्ठ व्यापारिक संबंध था। इसका प्रमाण सिन्धु सभ्यता में बनी मोहरों का मेसोपोटामिया में मिलना तथा मेसोपोटामिया की मोहरों का हड़प्पा सभ्यता में मिलना, यह दर्शता है की दोनो सभ्यताओ के बीच व्यापारिक लेन-देन रहा होगा। मेसोपोटामिया के अभिलेखो में इस बात की चर्चा की गई है कि ‘उर’ नगर के व्यापारी ‘मेलुहा’ से व्यापार करते थे। ‘उर’ और ‘मेलुहा’ के बीच ‘दिल्मुन’ और ‘मगन’ दो व्यापारिक केन्द्र थे। ये संभवतः फारस की खाड़ी में स्थित ‘बहरीन’ और ‘ओमान’ या ‘बलूचिस्तान’ का नाम था।

 फारस के ‘फैलका’ और बहरीन से हड़प्पा लिपियों का पाया जाना, मिस्र से हड़प्पा प्रकार के मनको का पाया जाना, लोथल से गोरिल्ला और ममी की मूर्तियों का पाया जाना, क्रीट के मिश्रित पशुओं और मोहनजोदाड़ो के मिश्रित पशुओं में समानता यह प्रमाणित करती है कि हड़प्पावासियों का इन देशों से व्यापारिक संबंध था।

बाह्य-व्यापार हेतु यातायात के साधन:- सिन्धु सभ्यता के निवासियों ने बाह्य व्यापार के संसाधनों की ओर भी अपना ध्यान केन्द्रित रखा।  लोथल (गोड़ीबाड़ा का साक्ष्य), सुत्काकोह, बालाकोट,सुत्कागेन्डोर आदि बंदरगाह के प्रमाण तथा मोहरो पर अंकित जहाजो एवं नावों के चित्र आदि प्रमाण हड़प्पा सभ्यता के बाह्य व्यापार का प्रमाण है।

मुद्रा एवं माप-तौल प्रणाली:-

सिन्धु सभ्यता का व्यापार वस्तु-विनिमय पर आधारित था क्योंकि उत्खननों से मुद्रा के प्रचलन का प्रमाण नही मिलता है। व्यापारियों की मोहरे होती थी, जिसका प्रयोग हुण्डी के रूप में होता था। व्यापारियों की सुविधा के लिए माप-तौल की प्रणाली भी प्रचलित थी। तौलने की इकाई के रूप में 16 या उसके गुणज अंक का प्रयोग किया जाता था। मोहनजोदाड़ो से सीप का बना हुआ एक मापदण्ड तथा लोथल से हाथी दांत का बना हुआ एक पैमाना मिला है। इससे स्पष्ट होता है कि व्यापार की प्रगति के लिए माप-तौल की एक निश्चित प्रणाली अपनाई गई थी।

 निष्कर्ष:-

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता का व्यापार एवं वाणिज्य एक लंबी प्रक्रिया एवं कई महत्वपूर्ण घटनाओ का परिणाम था। हड़प्पा सभ्यता का व्यापार और वाणिज्य इस सभ्यता के नगरीकरण का आधार स्तम्भ था, जिसने हड़प्पाई नगरीकरण एवं नगर नियोजन को बढ़ावा दिया, साथ ही साथ हड़प्पा सभ्यता के व्यापार (बाह्य-व्यापार) को स्पष्ट रूप से देखने से पता चलता है कि हड़प्पा सभ्यता उसी दौर की एक सभ्यता थी जिस समय मे मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता का विकास हो रहा था। हालांकि इतनी विकसित सभ्यता का पतन किस प्रकार हुआ यह इतिहासकारो के लिए एक विवाद का विषय बना हुआ है   

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