हड़प्पा संस्कृति और वैदिक संस्कृति: पारस्परिक सम्बन्ध और विनाश में इन्द्र की भूमिका

हड़प्पा और वैदिक संस्कृति दोनों प्राचीन भारतीय सभ्यताएँ हैं। इस लेख में हम इनके सामाजिक, आर्थिक संबंधों और इन्द्र की हड़प्पा विनाश में भूमिका पर चर्चा करेंगे।

उत्तर:- हड़प्पा संस्कृति तथा वैदिक संस्कृति प्राचीन भारत की दो महत्वपूर्ण सभ्यताएं थी।  इन दोनों ही सभ्यताओ की अपनी-अपनी मौलिक विशेषताए थी। हड़प्पा औऱ वैदिक संस्कृति में पारस्परिक सम्बन्ध स्वरुप के दृष्टिकोण से तो आवश्यक भिन्न थे परन्तु इन स्वरूपगत भिन्नताओं के बावजूद भी उनमे तात्विक रूप से पारस्परिक सामंजस्य के भाव देखे जा सकते है।

हड़प्पा औऱ वैदिक संस्कृति में पारस्परिक सम्बन्ध:-

हड़प्पा औऱ वैदिक संस्कृति में पारस्परिक सामंजस्य के भाव हम निम्नलिखित संदर्भो के आधार पर देख सकते है—

1* सिन्धु घाटी सभ्यता 2500–1750 ई0 पू0  की सभ्यता है तो  वैदिक सभ्यता 1500–600 ई0 पू0 के बीच की सभ्यता है। इस प्रकार सिन्धु सभ्यता, वैदिक सभ्यता से प्राचीन सभ्यता थी। इसके बावजूद हड़प्पा संस्कृति मूलतः  नगरीय  थी जबकि वैदिक संस्कृति ग्रामीण संस्कृति थी। इन भिन्नताओं के बावजूद भी दोनो संस्कृतियो में समानता यह है कि दोनों ही संस्कृतियों में गेंहू और जौं मुख्य खाद्य फसल थी और दोनों ही सभ्यताएं सिन्धु और उसकी सहायक नदियों की गोद मे विकसित हुई थी। कपास की खेती करने वाले सैंधव लोग संभवतः विश्व के पहले मानव थे परन्तु किसी भी वैदिक साहित्य में कपास का उल्लेख तो नही मिलता परन्तु दोनों ही संस्कृतियो में कपड़ा बनाना प्रमुख उद्योग था। कपड़े की चित्रकारी दोनो ही संस्कृतियो के लोगो की प्रमुख उपलब्धि एवं रूचियां थी।

2* हडप्पा सभ्यता में बैल को जहां पवित्र पशु माना जाता था वही वैदिक संस्कृति में गाय पवित्र मानी जाती थी। परन्तु दोनो में पारस्परिक सामंजस्य इस तथ्य से है कि दोनों ही पशु एक ही जाति से सम्बंध रखते है। दोनो ही सभ्यता के लोग सर्वाहारी थे। दोनो ही सभ्यताओ में घोड़ा पालतू पशु था परंतु अंतर यह है कि हडप्पा सभ्यता में घोड़े का प्रयोग कौशलता के साथ नही किया जा सका जबकि आर्य संस्कृति में घोड़ा और रथ ही उनकी विजय का संस्थापक था।

3* कालीबंगा, लोथल और संघोल के अग्निकुण्ड से इस तथ्य का ज्ञान होता है कि दोनों ही सभ्यताओ में  धार्मिक कर्मकांडों के दृष्टिकोण से समानता मौजूद थी। इसके अतिरिक्त पुरुष एवं स्त्री देवमण्डल के आधार पर दोनो संस्कृतियों में पारस्परिक सामंजस्य को देखा जा सकता है। क्योंकि पुरुष देवता की मोहनजोदाड़ो से प्राप्त योगी की प्रतिमा जिसे मार्शल ने रुद्र (शिव) से संबोधित किया है। वैदिक साहित्य में उल्लेखित रुद्र एवं पूषन के समान है। क्योंकि दोनों ही संस्कृतियो में उसे पशु देव के रूप में स्थापित किया गया है। जहाँ तक हडप्पा संस्कृति की मातृदेवी का प्रश्न है तो वह ऋग्वेद की पृथ्वी देवी के समान ही प्रजनन की देवी के रूप में स्थापित की गई है।

4* हड़प्पा संस्कृति एवं वैदिक संस्कृति, दोनो ही संस्कृतियो के समाज मे वर्ग विभाजन का आधार श्रम था जैसे हड़प्पा का पुरोहित वर्ग ऋग्वेद के दसवें मण्डल और बाद के वैदिक साहित्य का ब्राह्मण ही है। हड़प्पा संस्कृति का दुर्ग रक्षक वैदिक संस्कृति का क्षत्रिय और वहां का व्यापारी वैदिक संस्कृति के वैश्य के रूप में स्थापित किया गया है। यदि हड़प्पा संस्कृति के शिल्पकारों को श्रमिक कहा जाय तो निःसंदेह वह वैदिक साहित्य के शूद्रों के समान ही थे।

5* दोनो ही सभ्यता और संस्कृति में भौगोलिक स्थितियां समान है। क्योंकि दोनों का विकास सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के बीच में हुआ है। दोनो ही स्थल पर सरस्वती नदी पवित्रम नदी के रूप में स्थापित है और दोनों ही संस्कृतियो में ताँबे का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है। हाँ यह अलग बात है कि वैदिक संस्कृति के बाद के दिनों में लोह (Iron) तकनीकी का विकास हुआ।

इस प्रकार उपरोक्त वृतान्तों से यह सिद्ध होता है कि दोनों ही सभ्यता और संस्कृति में जहां बाह्य रूप से अनेक अंतर देखने को मिलते है वही आधारभूत रुप में दोनो ही सभ्यताओ में पारस्परिक समानताएं भी मौजूद है।

क्या “इन्द्र” हड़प्पा सभ्यता के विनाशक है?:-

 हड़प्पा सभ्यता के विनाश में आर्यो के आक्रमण की प्रमुख भूमिका मानने वाले विद्वान ह्वीलर का कहना है कि इस सभ्यता का विनाश बाह्य आक्रमण से हुआ। इस तर्क का आधार साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोत है। ह्वीलर महोदय का मानना है कि की ऋग्वेद में इंद्र को “पुरन्दर” कहा गया है और इंद्रा ने उसके समकालीन कई शहरों को नष्ट कर दिया था जैसे- हरियूपिया, विलाशथानक इत्यादि।  इनमें हरियूपिया की पहचान विद्वानों ने हड़प्पा से की है। विद्वानों का दूसरा मत यह है कि मोहनजोदाड़ो में करीब 38 नर कंकाल उत्खननों के दौरान मिले है जो पुरुष, नारी, बच्चों के है, जिस पर धारदार हथियारो से काटने के निशान देखे जा सकते है। इन कंकालों में कीमती आभूषण भी लगे हैं। इन कंकालों को दफनाने की कोशिश नही की गई है जिससे सिद्ध होता है कि इन मृतकों के परिवार जनों को आर्यो के आक्रमण के कारण या तो अपनी जान बचाकर कही भागना पड़ा होगा या वे इस  युद्ध मे मारे गए हो। इन प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि 1700 ई0 पू0 के आस-पास मोहनजोदाड़ो पर अचानक आक्रमण हुआ जिससे नगर नष्ट हो गया। इन आक्रमकारियों को ऋग्वेद के आधार पर आर्य माना गया है।

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अनेक आधुनिक विद्वान इस मत को स्वीकार नही करते है कि आर्यो के आक्रमण ने हड़प्पा सभ्यता को नष्ट किया होगा। प्रोफेसर रामशरण शर्मा का मानना है कि नए आक्रमणकारी इतनी बड़ी संख्या में नही आये होंगे कि वे सिन्धु घाटी की उन्नत और विकसित सभ्यता (जो 12,99,600 वर्ग किमी0 क्षेत्र में फैली हुई थी) को नष्ट कर दिया। इसके साथ-साथ यह तथ्य विचार करने योग्य है कि सिन्धु निवासियों और आर्यो के बीच किसी बड़े संघर्ष का प्रमाण नही मिलता। ऋग्वेद जिसकी तिथि अनिश्चित है। उसके विवरण पर अनावश्यक बल दिया गया है। यह प्रश्न भी विचारणीय है कि मोहनजोदाड़ो की अनुमानित जनसंख्या 41,250 थी (फेयर सर्विस के अनुसार)। इनमे से मात्र 38 कंकालों का मिलना किसी बड़े आक्रमण की कल्पना करना अनुचित ही होगा। इस संबंध में यह भी कहा जा सकता है कि यह किसी आपसी संघर्ष का परिणाम रहा हो। क्योंकि इतने बड़े क्षेत्र में फैली सभ्यता के किसी और अन्य नगरो से कटे हुए नर कंकालों के अवशेष क्यों नही पाये गये?

निष्कर्षत:

उपर्युक्त विवरण के आधार पर यही तर्क सामने आता है कि इस सभ्यता के विनाश में ऋग्वेद के ‘पुरन्दर’ केवल एक कारण हो सकता है किन्तु अंतिम एवं निर्णायक कारण नही।

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1. हड़प्पा संस्कृति और वैदिक संस्कृति के बीच क्या संबंध था?

हड़प्पा संस्कृति और वैदिक संस्कृति के बीच निरंतरता और परिवर्तन दोनों दिखाई देते हैं। हड़प्पा सभ्यता नगरीय और भौतिक रूप से विकसित थी, जबकि वैदिक संस्कृति धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से उन्नत हुई। दोनों में कृषि, पशुपालन, अग्नि-पूजा और देवी-देवताओं की समान अवधारणाएँ देखने को मिलती हैं। इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता ने वैदिक संस्कृति की भौतिक नींव रखी।

2. क्या वैदिक आर्य हड़प्पा सभ्यता के विनाश के लिए जिम्मेदार थे?

कुछ प्रारंभिक इतिहासकार जैसे मॉर्टिमर व्हीलर का मत था कि आर्यों ने हड़प्पा सभ्यता पर आक्रमण कर उसे नष्ट किया। किंतु आधुनिक शोध बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन, नदियों का मार्ग बदलना और व्यापार का पतन प्रमुख कारण थे। अतः आर्य आक्रमण सिद्धांत अब अधिकांश विद्वानों द्वारा अस्वीकार किया जाता है।

3. हड़प्पा सभ्यता के विनाश में इन्द्र की क्या भूमिका मानी जाती है?

ऋग्वेद में इन्द्र को “पुरंदर” अर्थात “नगरों को नष्ट करने वाला” कहा गया है। कुछ विद्वान इस प्रतीक को आर्य विजयों से जोड़ते हैं, परंतु अन्य इसे रूपक मानते हैं — जहाँ इन्द्र प्राकृतिक शक्तियों जैसे वर्षा, तूफ़ान और बाढ़ का प्रतीक है, जिसने संभवतः हड़प्पा नगरों के विनाश में भूमिका निभाई।

4. क्या हड़प्पा संस्कृति वैदिक सभ्यता की पूर्वज थी?

हाँ, कई विद्वान मानते हैं कि हड़प्पा संस्कृति वैदिक सभ्यता की पूर्ववर्ती थी। हड़प्पा की कृषि व्यवस्था, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन, अग्नि-पूजा, मातृदेवी की आराधना और सामाजिक संगठन की झलक वैदिक युग में भी मिलती है। इससे दोनों के बीच सांस्कृतिक निरंतरता का संकेत मिलता है।

5. आधुनिक भारत के लिए हड़प्पा और वैदिक संस्कृतियों का क्या महत्व है?

दोनों संस्कृतियाँ भारतीय सभ्यता की जड़ों को समझने में अनिवार्य हैं। हड़प्पा सभ्यता भारत की नगरीय और व्यापारिक प्रगति की प्रतीक है, जबकि वैदिक संस्कृति धार्मिक, सामाजिक और वैचारिक विकास की जननी मानी जाती है। दोनों मिलकर भारतीय सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता का प्रतिनिधित्व करती हैं।

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