सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासियों के धार्मिक विश्वासों एवं रीती-रिवाजो की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।

सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, प्राचीन भारत की एक विकसित नगर सभ्यता थी। इस सभ्यता के निवासियों के धार्मिक विश्वास और रीति-रिवाज उनकी सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। उनके पूजा-पद्धति, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, और अनुष्ठान इसके प्रमुख संकेत हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी नगरों से प्राप्त मूर्तियों और चिन्हों से पता चलता है कि वे देवी-देवताओं की उपासना करते थे, विशेषकर मातृ-देवी और पशु-पूजा। घरों और सार्वजनिक स्थानों में मिट्टी और पत्थर की मूर्तियाँ, स्नानागार और कुंड उनके धार्मिक अनुष्ठानों को दर्शाते हैं। इसके अलावा, उनकी दैवीय प्रतीकात्मकता, जैसे सर्प, बैल और हाथी, उनके प्रकृति-आधारित विश्वास को भी दर्शाती है। इन धार्मिक रीति-रिवाजों से स्पष्ट होता है कि सिन्धु घाटी के लोग धर्म और समाज को आपस में जोड़कर जीवन जीते थे।

उत्तर– सिन्धु सभ्यता के निवासी भी प्राचीन विश्व की अन्य सभ्यताओं के समान बहुदेववादी और प्रकृति पूजक थे। वे प्रकृति की विभिन्न शक्तियों यथा- अग्नि, वृक्ष, जल, पशु, आदि की पूजा करते थे। उनकी धार्मिक प्रथाओं और पूजा-पाठ की विधियों के विषय मे तो यथेष्ठ जानकारी नही मिलती है, परन्तु उत्खनन से प्राप्त मूर्तियों एवं मोहरों (मुहोर) पर पाये गए चित्रों के आधार पर उनके धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नलिखित सन्दर्भो में वर्णित कर सकते हैं।

धार्मिक विश्वास एवं प्रथाएं—

1* सिन्धु घाटी सभ्यता में पृथ्वी की पूजा एवं मातृदेवी की पूजा

2* सिन्धु घाटी सभ्यता में शिव की पूजा

3* हड़प्पा सभ्यता में प्रजनन-शक्ति की पूजा

4* हड़प्पा सभ्यता में वृक्ष पूजा

5* हड़प्पा सभ्यता में पशु एवं नाग पूजा

6* हड़प्पा सभ्यता में जल एवं प्रतीक पूजा

7* हड़प्पा सभ्यता में पुरोहित एवं मन्दिर

8* हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक प्रथाएं

1* सिन्धु घाटी सभ्यता में पृथ्वी की पूजा या मातृदेवी की पूजा:-

मोजनजोदड़ो , हड़प्पा तथा अन्य स्थानों से मिट्टी की मूर्तियां बहुत अधिक संख्या में प्राप्त हुई है। इन्हें पृथ्वी या मातृदेवी का प्रतीक माना गया है। मातृदेवी की पूजा अत्यंत ही प्राचीन है और विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओ में इनकी पूजा के प्रमाण मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग भी पृथ्वी को अपनी माता के रूप में मानकर मातृदेवी के रूप में उसकी पूजा करते थे। पूजा में संभवतः बलि का भी प्रचलन था। एक मुहर पर प्राप्त चित्र को देखने से पता लगता है कि संभवतः मातृदेवी को प्रसन्न करने के लिए नर बलि भी दी जाती थी क्योंकि चित्र में एक पुरुष कटार लिए खड़ा है और एक स्त्री हाथ ऊपर किये हुए खड़ी है। मातृदेवी सिन्धु सभ्यता की प्रमुख देवी के रूप में विभिन्न रूपो में दृष्टिगोचर होती है।

2* सिन्धु घाटी सभ्यता में शिव की पूजा:-

मातृदेवी की उपासना के साथ ही साथ हमे एक पुरुष देवता की उपासना का भी प्रमाण मिलता है। मोहनजोजड़ो से प्राप्त एक मुहर के ऊपर पद्यासन की मुद्रा में विराजमान एक योगी का चित्र मिला है। पुरुष की दायीं ओर चीता और हाथी तथा वायी ओर गैंडा और भैंसा चित्रित किये गए है। सिर पर एक त्रिशूल जैसा आभूषण है। इसके तीन मुख है। योगी के आसन के नीचे दो मुर्गो की आकृतियां है। ये जानवर देवता के वाहन के रूप में रहे होंगे, इस मूर्ति को पुरातत्ववेत्ता ‘योगीश्वर’ एवं ‘पशुपति शिव’ की मूर्ति मानते है। शिव की उपासना के प्रमाण अन्य मुहरों से भी मिलते है। इनमें शिव के नारी रूप, नागधारी रूप एवं नतर्क रूप का चित्रण किया गया है। इन साक्ष्यों के आधार पर मार्शल एवं अन्य विद्वनो का मत हैं कि सिन्धु वासी शिव के प्रारम्भिक रूप की पूजा करते थे, तथा शिव उनके प्रमुख देवता थे।

3* हड़प्पा सभ्यता में प्रजनन शक्ति की पूजा:-

मातृदेवी एवं शिव की उपासना के अतिरिक्त सिंधुवासी प्रजनन अंगों- लिंग एवं योनि की पूजा भी करते थे। इसके द्वारा वे ईश्वर की सर्जनात्मक शक्ति के प्रति अपनी शक्ति की भावना प्रकट करते थे। यह भी संभव है कि लिंग- पूजा का सम्बंध शिव पूजा से रहा हो। हड़प्पा एवं मोहनजोदाड़ो  से बड़ी संख्या में पत्थर, चीनी मिट्टी तथा सीप के बने लिंग मिले हैं, जो छोटे तथा बड़े दोनो ही प्रकार के थे। छोटे लिंगो को ताबीज के रूप में साथ रखा जाता होगा। इनसे बुरी शक्तियों से सुरक्षा होती होगी। पत्थर की बनी योनियां भी मिली है। जिनकी पूजा होती थी। इन प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिन्धुवासी संभवतः मूर्ति-पूजा में भी विश्वास रखते थे।

4* हड़प्पा सभ्यता में वृक्ष पूजा:-

 सिन्धु सभ्यता में वृक्षो की भी पूजा की जाती थी। कुछ वृक्षो की पूजा होती थी तथा कुछ को देवी-देवताओं या इनके इष्टों का आवास मानकर उनकी पूजा की जाती थी। वृक्षो में सबसे प्रमुख पीपल और नीम था। अनेक मुहरों पर इन वृक्षो के तथा इनसे संबद्ध देवी-देवताओं के चित्र उत्कीर्ण किये गए थे। मोहनजोदाड़ो से प्राप्त एक मुहर में पीपल की डाली के बीच एक देवता का भी चित्र है, जिसकी उपासना सात स्त्री मूर्तियां कर रही है। इनमे एक पशु का भी चित्र है, जिसकी आकृति बैल और बकरे से मिलती-जुलती है। यह संभवतः पीपल देवता का चित्र है तथा स्त्री मूर्तियां शीतला माता एवं उनके वाहनों का  प्रतीक है। इनसे वृक्ष पूजा की महत्ता स्पष्ट होती है।

5* हड़प्पा सभ्यता में पशु एवं नाग पूजा:-

 सिन्धुवासी अनेक पशुओं एवं सर्पो (नाग) की भी पूजा करते थे। इनकी पूजा डर से या इन्हें देवताओ का वाहन मानकर की जाती थी। मुहरों पर अनेक पशुओं के चित्र मिले है। कुछ पशुओं की मूर्तियां भी मिली है। मानव एवं पशुओं की आकृति को मिलाकर अनेक मूर्तियां बनाई जाती थी। इससे स्प्ष्ट होता है कि सिन्धुवासी इनमे देवत्व के अंश की कल्पना कर इनकी पूजा करते थे। पशुओं में सबसे प्रमुख कूबड़दार साँड़ था। शिव के साथ दिखाये गए पशुओं (बाघ, भैंसा, गैंडा) की भी पूजा की जाती थी। नाग पूजा की प्रथा भी प्रचलित थी।

6* हड़प्पा सभ्यता में जल एवं प्रतीक पूजा:-

जल देवता की या नदी की पूजा करना भी सिंधुवासियो की प्रथा रही थी। नदियों ने प्राचीन सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, अतः इनकी पूजा करना सिन्धुवासियों के लिए असाधारण बात थी। स्नान को धार्मिक अनुष्ठान का दर्जा दिया गया था। मोहनजोदाड़ो का विशाल स्नानागार इसी उद्देश्य से बनाया गया था। इसके अतिरिक्त स्वास्तिक के चित्र भी मुहरों पर मिले है, जो संभवतः किसी देवी-देवता के प्रतीक के रूप में पूजे जाते होंगे। लोथल और कालीबंगा से यज्ञ-वेदिकाएँ भी मिली है। इनसे अग्नि पूजा एवं बलि की प्रथा का प्रमाण मिलता है।

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7* हड़प्पा सभ्यता में पुरोहित एवं मन्दिर:-

सिन्धु सभ्यता में पुरोहितों की स्थिति क्या थी? इसके विषय मे कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नही है। तत्कालीन सुमेरी सभ्यता में पुरोहित समाज के सबसे प्रमुख व्यक्ति थे, परन्तु सिन्धु सभ्यता में उनकी स्थिति स्पष्ट नही है। भले ही सिन्धु घाटी सभ्यता का पुरोहित वर्ग सुमेर जैसा प्रभावशाली न रहा हो परंतु धर्म का जीवन पर गहरा प्रभाव रहने से पुरोहित को अवश्य ही सम्मान और विशेषधिकार प्राप्त रहे होंगे। सिन्धु सभ्यता में मन्दिर थे या नही यह भी निश्चित नही है। प्रसिद्ध विद्वान ह्वीलर की धारणा है कि मोहनजोजड़ो का एक भवन जो विशाल चबूतरे पर बना हुआ था तथा जहाँ से पत्थर की खण्डित मूर्तियां प्रप्त हुई है, मन्दिर का अवशेष है, परन्तु अब भी मन्दिर के अस्तित्व का प्रमाण संदिग्ध ही है।

8* हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक प्रथाएं:-

 सिन्धु घाटी के निवासियों के धार्मिक रीति-रिवाजों तथा पूजा-पाठ की पद्वतियों के विषय मे स्प्ष्ट जानकारी नही है। मुहरों को देखने से लगता है कि देवताओ को प्रसन्न करने के लिये बलि चढ़ाई जाती थी। धार्मिक अवसरों पर नृत्य गान की परिपाटी प्रचलित थी। यहाँ के निवासी मरणोत्तर जीवन मे भी विश्वास रखते थे। अंधविश्वास भी प्रचलित था। बुरी शक्तियों से बचने के लिए ताबीज पहनें जाते थे तथा जादू-मंतर का भी सहारा लिया जाता था।

इस प्रकार सैंधव सभ्यता में मातृदेवी तथा पुरूष देवता की उपासना के साथ हम अनेक पशु-पक्षियों, वृक्षो, वनस्पतियों, मांगलिक प्रतीकों आदि की पूजा का विधान पाते है। मार्शल महोदय के अनुसार कालांतर में हिन्दू धर्म मे प्रचलित अनेक अंधविश्वास भी सैन्धव सभ्यता में पाये जाते है और इस प्रकार हिन्दू धर्म के अनेक प्रमुख तत्वों का आदि रूप हमे सिन्धु सभ्यता में ही मिल पाता है।

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