अभिलेखों से ज्ञात अशोक का साम्राज्य विस्तार/ Abhilekhon Se Gyaat Ashok Ka Samrajya Vistar
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प्रश्न– अशोक के साम्राज्य विस्तार का निर्धारण उसके अभिलेखों के आधार पर कीजिए।
अथवा
अशोक के अधीन मौर्य साम्राज्य के विस्तार की विवेचना कीजिए।
मौर्य वंश के प्रसिद्ध सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 273–232) भारतीय इतिहास के उन शासकों में गिने जाते हैं जिन्होंने अपने शासनकाल में देश को राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाया। उनके शासन का सबसे उल्लेखनीय पक्ष था — साम्राज्य का विस्तार और उसका सुचारु संगठन। अशोक के शासन से संबंधित जानकारी मुख्यतः उनके शिलालेखों और स्तंभलेखों से प्राप्त होती है। इन अभिलेखों में न केवल उनकी नीतियों और धर्मप्रचार का वर्णन मिलता है, बल्कि उनके विशाल साम्राज्य की भौगोलिक सीमाओं का भी संकेत मिलता है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह माना जाता है कि उनका साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान से लेकर दक्षिण में तमिलनाडु तक, तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। इस प्रकार, ये अभिलेख अशोक के शासन की प्रशासनिक नीति, धार्मिक दृष्टिकोण और उनके युग की सांस्कृतिक समृद्धि की एक महत्वपूर्ण झलक प्रस्तुत करते हैं।

परिचय (Introduction)
अशोक के साम्राज्य विस्तार और सीमा निर्धारण के लिए उसके अभिलेख एवं समकालीन ग्रंथो का महत्वपूर्ण योगदान है। केवल अभिलेखों के आधार पर भी हम निश्चित रूप से उसका साम्राज्य विस्तार एवं सीमा का निर्धारण कर सकते है। भण्डारकर महोदय ने तो अशोक के अभिलेखों के आधार पर ही मौर्य साम्राज्य का प्रशासन लिखने की बात कही है।
साम्राज्य विस्तार के प्रमाण (Evidence of Expansion)

उत्तर-पश्चिमी सीमा का निर्धारण
अशोक को अपने पूर्वजों से एक विस्तृत साम्राज्य मिला था। उत्तर-पश्चिम में सेल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को हिरात (हेरात), कांधार, बलूचिस्तान और काबुल की घाटी के प्रदेश दिए थे। इन क्षेत्रों पर अशोक का अधिकार बना रहा क्योंकि उत्तर-पश्चिम में दो स्थानों से उसके अभिलेख प्राप्त हुए है– पाकिस्तान के पेशावर के निकट “शाहबाजगढ़ी“ तथा हजारा के निकट “मानसेरा”। इनके अतिरिक्त कांधार के निकट “शरेकुना” तथा जलालाबाद के निकट काबुल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित “लघमान” से अशोक के आरमेइक लिपि में लेख मिले है। इसके साथ ही साथ उत्तर-पश्चिमी सीमा की पुष्टि ह्वेनसांग की रचना सी0 यू 0 की0 से भी हो जाती है। क्योंकि ह्वेनसांग ने कपिसा में स्थित स्तूप को देखा था। इन अभिलेखों के प्राप्ति स्थानों से स्पष्ट हो जाता है कि उसके साम्राज्य में हिन्दुकुश, एशिया (हेरात), आरकोशिया (कांधार), जेड्रोशिया, सम्मिलत थे। इस प्रकार से स्पष्ट है कि अशोक के साम्राज्य में अफगानिस्तान का एक बड़ा भाग सम्मिलित था।
उत्तर-पूर्वी सीमा का निर्धारण
उत्तराखण्ड के देहरादून जिले में कालसी नामक स्थान से प्राप्त अशोक के अभिलेख से पता चलता है कि गढ़वाल-देहरादून का यह पहाड़ी प्रदेश अशोक के अधिकार में था। अभिलेखों, अनुश्रुतियों और अशोक द्वारा निर्मित स्मारकों से ज्ञात होता है कि नेपाल और उसकी तराई के भू-भाग पर भी अशोक का आधिपत्य था। उसके अभिलेख “रूमनदेई” तथा “निग्लीवा” से मिले है। बिहार के चम्पारण में भी “लौरिया-अरेराज” और “लौरिया-नन्दनगढ़” में भी अशोक के स्तम्भ लेख मिले है। ये स्तम्भ लेख इस बात का स्पष्ट प्रामाण है कि नेपाल की तराई का समस्त भू-भाग अशोक के राज्य में सम्मिलित था। “रामपुरवा” का अभलेख और ललितपाटन का अशोक द्वारा निर्मित स्मारक-स्तूप इस बात का साक्षी है कि नेपाल की घाटी का पूरा प्रदेश अशोक के राज्य का अंग था। अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने नेपाल के अनेक स्थानों की यात्रा की और वहां देवीपाटन या पाटल नामक नगर भी बसाया था। इस नगर के बीच मे उसने एक चैत्य का निर्माण भी करवाया था। चार चैत्य नगर के चारो ओर मुख्य स्थानों पर निर्मित करबाये। अशोक की एक पुत्री चारूमती का विवाह नेपाल के क्षत्रिय राजकुमार देवपाल से हुआ था। पश्चिमी नेपाल का प्रसिद्ध स्वयंभूनाथ का मन्दिर भी अशोक द्वारा निर्मित बताया जाता है।
अपने शासन के प्रारम्भ में अशोक ने भारत के प्राचीन राजाओ के राजनीतिक आदर्श दिग्विजय को ही अपने सामने रखा और भारत के वे प्रांत जो अभी तक मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित नही थे, उन पर आक्रमण किया, कल्हण की राजतरंगिणी से मालूम होता है कि पहले उसने कश्मीर पर विजय किया। कश्मीर के इतिहास में अशोक मौर्य वंश का पहला शासक था। अतः इससे प्रतीत होता है कि चन्द्रगुप्त और बिन्दुसार के समय मे यह मौर्य साम्राज्य से बाहर था। ऐसी अनुश्रुति है कि अशोक ने ही श्रीनगर को बसाया और कश्मीर की घाटी में अनेक चैत्यों और स्तूपो का निर्माण करबाया। कश्मीर विजय के बाद अशोक ने दक्षिण-पूर्व में अपने पड़ोसी राज्य कलिंग पर आक्रमण करके उस पर विजय प्राप्त किया। इन विजयो का परिणाम यह रहा कि मौर्य साम्राज्य में कश्मीर और कलिंग भी सम्मिलित हो गए। उड़ीसा के दो स्थानों धौली और जौगढ़ से उसके अभिलेख मिले है। बंगाल में ताम्रलिप्ति से प्राप्त स्तूप उसके वहाँ अधिपत्य की सूचना देता है।
पश्चिमी-सीमा का निर्धारण
पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा का निर्धारण वहां से प्राप्त अभिलेखों के आधार पर किया गया है। जूनागढ़ के निकट “गिरनार अभिलेख” तथा महाराष्ट्र के सोपारा नामक स्थान से मिले है और इस प्रदेश पर तुसाष्प राज्यपाल की नियुक्ति यहं सिद्व करती है कि ये राज्य उसके साम्राज्य में सम्मिलित थे।
दक्षिण-सीमा का निर्धारण
दक्षिण में भी अनेक स्थानों से अशोक के अभलेख मिले है। ये स्थान- येरागुंडी (आंध्रप्रदेश) ब्रह्मगिरि, सिद्धपुर, मास्की तथा जटिंग-रामेश्वरम (कर्नाटक) है। इससे स्प्ष्ट होता है कि ये क्षेत्र अशोक के आधिपत्य में थे। अतः मौर्य साम्राज्य बिना किसी अन्तराल के हिन्दूकुश से बंगाल की खाड़ी और हिमालय से लेकर मैसूर तक फैल गया था। दक्षिण के राज्यो चोल, पाण्ड्य, केरल पुत्र, सतियपुत्र, ताम्रपर्णी को अशोक ने अभयदान दिया था किन्तु इसमें जरा सा भी संदेह नही है कि ये अशोक के राजनीतिक प्रभाव के भीतर थे। अशोक इनका उल्लेख अपने 13 वे शिलालेख में सीमावर्ती राज्यो के रूप में भी करता है।
अभिलेखों के आधार पर अशोक के साम्राज्य की जो सीमा निश्चित की जाती है उसकी पुष्टि उन जातियों की स्थिति से भी होती है, जिनका उल्लेख अशोक ने अपने पाँचवे और तेहरवें अभिलेख में किया है, जिन्हें अशोक ने अपने साम्राज्य की सीमा पर माना है।
ये जातिया योन, यवन, कम्बोज, गांधार, रिष्टिक, भोज, नाभक, नागपंक्ति, आंध्र, पुलिंग इत्यादि प्रमुख है। योन से तात्पर्य संभवतः उन यूनानियों से है जो नीसा में रहते थे। गांधार की राजधानी तक्षशिला थी। रिष्टिक, नासिक और पूना जिले में तथा भोज संभवतः बम्बई के पास थाना एवं कोलावा जिले में रहते थे। नाभक और नागपंक्ति संभवतः बलूचिस्तान और परिन्द संभवतःउत्तरी बंगाल में रहते थे। अशोक ने इन प्रदेशो में धम्म-महामात्रो की नियुक्ति की थी। आटवी-राज्यो को भी चेतावनी दी गई थी। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि साम्राज्य के बाहर रहते हुए भी इन पर अशोक का प्रभाव था। इसी प्रकार 13 वे शिलालेख में कुछ विदेशी राज्यो का जिक्र किया है, जो सीरिया, मिश्र, मकदूनिया, सिरीन, एपिरस में राज्य करते थे। ये शासक निश्चित तौर पर अशोक के प्रभाव क्षेत्र से बाहर थे। अशोक के साथ सिर्फ इनके मैत्रीपूर्ण संबंध थे।
निष्कर्ष (Conclusion)
यधपि अशोक को एक विस्तृत साम्राज्य विरासत में प्राप्त हुआ था। फिर भी प्राप्त अभिलेखों के माध्यम से जो राज्य विस्तार अशोक का प्राप्त होता है, वह उत्तर-पश्चिम में काबुल नदी के उत्तरी किनारे तक जलालाबाद तक विस्तृत था। उत्तर में कश्मीर, उत्तर-पूर्व में बंगाल, ताम्रलिप्ति तक दक्षिण में चोल, पांडय तक पश्चिम में सोपारा (थाना) सौराष्ट्र तक फैला था। संभवतः सुदूर दक्षिण में कुछ स्थानो को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण भारत मे ही अशोक का प्रभाव दिखाई देता है। मौर्य साम्राज्य के इस विस्तार और प्रभाव के कारण ही महावंश में अशोक को समस्त “जम्बूद्वीप” का एक छत्र सम्राट कहा गया है।
यदि इतिहास को साक्षी माना जाय तो अशोक का राज्य विस्तार मानवता के प्रति दृष्टिकोण, धर्म के प्रचार-प्रसार, प्रजा के भौतिक एवं आध्यात्मिक कल्याण के प्रयास, धार्मिक सहिष्णुता की दृष्टि से अशोक सिकंदर, सीजर, नेपोलियन, अकबर आदि सभी मे अद्वितीय दिखाई पड़ता है।
PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: अभिलेखों से अशोक के साम्राज्य की सीमाएँ क्या ज्ञात होती हैं?
उत्तर: अशोक के अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसका साम्राज्य अत्यंत विस्तृत और सुदृढ़ था। उत्तर में हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण में मैसूर के क्षेत्र तक, तथा पश्चिम में आधुनिक अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से लेकर पूर्व में बंगाल और उड़ीसा तक उसका प्रभाव फैला हुआ था। गिरनार, धौली, शाहबाजगढ़ी, कौसांबी, सांची और मास्की जैसे स्थानों पर मिले शिलालेख इस विशाल शासन क्षेत्र की पुष्टि करते हैं। यूनानी और अरामाईक अभिलेखों से यह भी प्रमाणित होता है कि अशोक का प्रभाव भारतीय सीमा से बाहर तक पहुँचा हुआ था।
प्रश्न 2: अशोक के शिलालेखों से कौन-कौन से प्रदेश उसके अधीन थे?
उत्तर: अशोक के अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उसके शासन के अंतर्गत अनेक प्रमुख प्रदेश शामिल थे, जैसे — मगध, कलिंग, अवंति, तक्षशिला, गांधार, कर्नाटक, गुजरात, उड़ीसा और बंगाल। गिरनार, मास्की तथा धौली जैसे स्थलों पर उत्कीर्ण शिलालेख उसके शासन क्षेत्र की भौगोलिक सीमा को स्पष्ट करते हैं। इसके अतिरिक्त, अशोक द्वारा भेजे गए धर्म-दूतों और आदेशों से यह ज्ञात होता है कि उसका धार्मिक प्रभाव श्रीलंका तक पहुँच गया था।
प्रश्न 3: अशोक के साम्राज्य विस्तार में अभिलेखों की क्या भूमिका है?
उत्तर: अशोक के साम्राज्य विस्तार और प्रशासनिक स्वरूप को समझने में अभिलेख अत्यंत महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करते हैं। इन शिलालेखों से न केवल उसकी नीतियों और धार्मिक दृष्टिकोण की जानकारी मिलती है, बल्कि शासन की सीमाओं और प्रादेशिक विस्तार का भी आभास होता है। शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा के अभिलेख पश्चिमी क्षेत्रों की ओर संकेत करते हैं, जबकि धौली और जौगढ़ के शिलालेख पूर्वी सीमा को स्पष्ट करते हैं। इन अभिलेखों के आधार पर इतिहासकारों ने अशोक के साम्राज्य का वास्तविक भौगोलिक स्वरूप निर्धारित किया है।
प्रश्न 4: कलिंग युद्ध के बाद अशोक के साम्राज्य में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर: 261 ई.पू. में हुए कलिंग युद्ध के उपरांत अशोक के जीवन और शासन में गहरा परिवर्तन आया। युद्ध की विनाशलीला देखकर उसने हिंसा का त्याग कर बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को अपनाया और ‘धर्म विजय’ की नीति का अनुसरण किया। इसके बाद उसने अपने प्रशासन में धम्ममहामात्रों की नियुक्ति की तथा अहिंसा और करुणा के संदेश को पूरे साम्राज्य में फैलाया। उसने धार्मिक मिशनरियों को श्रीलंका, नेपाल और मध्य एशिया तक भेजा, जिससे उसके साम्राज्य का सांस्कृतिक प्रभाव सीमाओं से परे तक पहुँच गया।
प्रश्न 5: अशोक के विदेशी अभिलेख उसके साम्राज्य विस्तार के बारे में क्या बताते हैं?
उत्तर: अशोक के कुछ अभिलेख यूनानी और अरामाईक भाषाओं में अफगानिस्तान तथा ईरान के क्षेत्रों में प्राप्त हुए हैं। इनसे यह संकेत मिलता है कि उसका प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर तक फैला हुआ था। इन अभिलेखों से यह भी ज्ञात होता है कि अशोक ने सेल्युकस, एंटियोकस और टॉलेमी जैसे समकालीन विदेशी शासकों को भी अपने संदेश भेजे थे। यह तथ्य उसके साम्राज्य की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और व्यापक राजनैतिक प्रभाव का प्रमाण प्रस्तुत करता है।
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