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प्रश्न:- अशोक का धम्म क्या है? उसने उसके प्रचार-प्रसार हेतु कौन से साधन अपनाये?
अथवा
अशोक का धम्म क्या है? उसके धम्म के सिद्धांत, तत्व और विशेषताओ का भी उल्लेख करें।

1. परिचय: अशोक और धम्म
कलिंग युद्ध के नरसंहार के पश्चात अशोक ने युद्ध नीति का त्याग कर धम्म की नीति अपनाई। “धम्म” संस्कृत शब्द ‘धर्म’ का प्राकृत रूप है। यह कोई विशेष धार्मिक आस्था, व्यवहार या मनमाने ढंग से निर्मित की गई शासकीय नीति नही थी बल्कि यह सामाजिक व्यवहार एवं गतिविधियों के सामान्यीकृत मानदण्ड थे। एक तरह से पूजा के नैतिक उत्थान एवं सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए अशोक द्वारा बनाये गए नये नैतिक नियम ही धम्म की नीति थी। धम्म का क्या अर्थ है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए विद्वानों ने तीन मत प्रस्तुत किये है। कुछ विद्वानो के अनुसार यह राजधर्म था , कुछ विद्वान इसे सार्वभौमिक मानते है तथा अनेक विद्वान इसे बौद्ध धर्म का परिष्कृत रूप मानते है इन तीनो मतों पर विचार तथा विवेचना करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है के अशोक के धम्म का अर्थ सार्वभौमिक सद्गुणों की व्यवस्था, स्थापना तथा उनका पालन करना था। अतः अशोक के धम्म में सभी धर्मों की मूल विशेषताए मिलती है।
2. धम्म के सिद्धांत (Principles of Dhamma)

अशोक ने अपने धम्म के सिद्धांत का वर्णन अपने विभिन्न अभिलेखों में किया है, जिसकी सहायता से धम्म की गहराई से इसके अर्थ पर प्रकाश डाला जा सकता हैं—
(i) अपने दूसरे स्तम्भ लेख में अशोक स्वयं प्रश्न करता है कि धम्म क्या है? जिसका उत्तर स्वयं देते हुए कहता है कि विश्वकल्याण, दयादान, सत्य, पाप कर्मों से मुक्ति, कर्म शुद्धि ही धम्म है।
(ii) द्वितीय लघु स्तम्भ लेख में कहा है कि माता-पिता, वृद्वो, गुरुजनों की सेवा करना, प्राणियों की हत्या न करना, दास एवं नौकरों के साथ अच्छा व्यवहार, सत्य बोलना, सगे संबंधियों के प्रति सहानुभूति का भाव होना चाहिए।
(iii) सातवे अभिलेख में कहा गया है कि मन, कर्म, वचन तथा इन्द्रियों पर नियंत्रण होना चाहिए।
(iv) नवें अभिलेख में अशोक कहता है कि दास व मजदूरों के प्रति उचित व्यवहार, ब्राह्मणों को दान, अहिंसा, गुरुजनों का आदर आदि प्रकार के अन्य कर्म ‘धम्म’ कहलाते है।
(v) ग्यारहवें शिलालेख में धम्म के तत्व बताएं गये है जैसे दासों, वेतनभोगी सेवको के प्रति उचित व्यवहार, माता-पिता की सेवा, मित्रो, ब्राह्मणों, सन्यासियों के प्रति उदारता तथा पशुबलि से विकार।
(vi) बाहरवें शिलालेख में धर्म सहिष्णुता की बात कही गयी है। सभी सम्प्रदायों व धर्मो को मानने वाले तथा सभी धर्म समान आदर भाव के पात्र है। सभी धर्मो के सार की वृद्धि हो यही अशोक की कामना है।
(vii) तेहरवें शिलालेख में ‘धम्म विजय’ को सबसे प्रमुख विजय मानता है और सभी धर्मों को समान दर्जा व सभी मनुष्यों को आदर का भाव दिया गया है।
(viii) द्वितीय स्तम्भ लेख में धम्म के गुणों का वर्णन है धर्म मे अधर्मता का वास नही होना चाहिए तथा कर्म, सहानुभूति, उदारता, पवित्रता, दया, दान, धर्म की वास्तविक परिभाषा है।
3. धम्म के तत्व (Elements of Dhamma)
अशोक ने अपने सभी अभिलेखों में धम्म के जिन सिद्धांतो का वर्णन किया है उनके तीन तत्व रूप है।
(i) व्यवहारिक तत्व:– जिन गुणों को व्यवहार में लाया जाता है उन्हें व्यवहारिक तत्व के अंतर्गत रखा जाता है जौसे– प्राणियों की हत्या न करना, माता-पिता, गुरुजनों, वृद्वो की सेवा, सभी धर्मों व सम्प्रदायों के प्रति उदारता, सम्बन्धियो, मित्रो के प्रति सद-व्यवहार, अहिंसा व अल्प-व्यय तथा अल्प संचय। ये सभी धम्म विधायक पक्ष है।
(ii) निषेधात्मक तत्व:- अशोक के धम्म का एक निषेधात्मक पक्ष भी है। जिसके अंतर्गत कुछ दुर्गुणों की गणना की गयीं है। ये दुर्गुण व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं जैसे उग्र व्यवहार, क्रोध, घमण्ड, इर्ष्या, भेद-भाव आदि।
(iii) आसिनव:– ‘आसिनव’ को अशोक अपने तीसरे स्तम्भ लेख में वर्णन करते हुए कहता है कि मनुष्य आसिनव के कारण सद्गुणों से विचलित हो जाता है। प्रचण्डता, निष्ठुरता, क्रोध, घमण्ड, ईर्ष्या आदि। अतः धम्म का पूर्ण पालन तभी संभव हो सकता है, जब मनुष्य उसके गुणों के साथ ही साथ इन विकारों से भी अपने को मुक्त रखे। अर्थात मनुष्य अपने सत्कर्मो को देखता है परन्तु पाप कर्मों को नही देखता और ऐसा करना भी कठिन है।
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4. धम्म की विशेषताएँ (Characteristics of Dhamma
अशोक के धम्म की अनेक विशेषताए है कुछ महत्वपूर्ण विशेषताए इस प्रकार है-
(i) अहिँसा:– अशोक के प्रथम शिलालेख से पता चलता है कि वह अहिंसा का परम पुजारी व दूत था।
(ii) सदव्यवहार:— अशोक के अभिलेखों के अध्ययन के पश्चात हम कह सकते है कि अशोक का धम्म माता-पिता, गुरुजनों, वृद्वो, मित्रो, सगे संबंधियों, दासों, श्रमिको आदि के प्रति सदव्यवहार सिखाता है।
(iii) जनकल्याण:– अशोक के सातवें स्तम्भ लेख से उसके धम्म की जनकल्याण की भावना दिखती हैं।
(iv) धार्मिक सहिष्णुता:— अशोक के 12 वें शिलालेख में उसके धम्म की प्रकृति का पता चलता है। वह स्वयं कहता है कि सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति उसकी श्रद्धा के पात्र है।
(v) सार्वभौमिकता:– अशोक का धम्म सभी सम्प्रदायों व वर्गो को समान अवसर व समान कल्याण की बात करता है।
5. धम्म के प्रचार-प्रसार के उपाय (Methods of Promoting Dhamma)
अशोक ने धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए निम्नलिखित साधनों (उपायों) को अपनाया, जो इस प्रकार से है—
(i) धर्म विभाग:– अशोक ने एक धम्म विभाग की स्थापना की, जिसके मुख्य अधिकारी धम्म-महामात्र थे। इन्होंने जनता की नैतिक और भौतिक उन्नति का सर्वत्र प्रयत्न किया।
(ii) धार्मिक प्रदर्शन:– लोगो को धर्म की ओर आकृष्ट करने के लिए स्वर्गलोक के बहुत से दृश्यों के प्रदर्शन का प्रबंध किया। इसका उद्देश्य यह था कि सामान्य लोग इस बात को जान जाय कि जो नैतिक आचरण करेंगे वे इस लोक और परलोक दोनो में सुखी रहेंगे।
(iii) धर्म-यात्रा:– राज्य की ओर से अशोक ने धर्म-यात्रा की प्रथा चलाई। अशोक स्वयं और उसके मुख्य कर्मचारी धार्मिक स्थानों और धर्म के प्रचार के लिए यात्रा करते थे और रास्ते मे जनता के सम्पर्क में आते थे।
(iv) धर्म-श्रावण:– अशोक द्वारा धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए धम्म-श्रावण की व्यवस्था की गई थी, जिसमे धार्मिक विषयो के ऊपर भाषण, कथा आदि होते थे। इस कार्य मे राजुक, प्रादेशिक, युक्त आदि अधिकारी लगे थे।
(v) दान:— राजधानी एव अन्य सभी मुख्य स्थानों में रोगियों, भूखो और दीन-दुखियों को राज्य की ओर से दान मिलता था। और धम्म के उत्थान के लिए भी दान की व्यवस्था की गई थी।
(vi) धर्म लिपि:— अशोक ने धर्म के सिद्धांतों और उद्देश्यों को पर्वत की शिलाओं, पत्थरो के स्तम्भो और पर्वत की गुफाओ में उत्कीर्ण कराकर साम्राज्य के विभिन्न भागों में फैलाया। इसके दो उद्देश्य थे – एक तो यह कि पत्थर पर उत्कीर्ण हो जाने से धर्म-लेख स्थाई रहेगा। दूसरा यह कि भविष्य में लोग पढ़कर धर्माचरण में अशोक का अनुसरण करेंगे।
अशोक ने लोगो को अहिंसा का उपदेश दिया। उसने जनसाधारण के नैतिक उत्थान के लिएअपने धम्म का प्रचार किया ताकि वे ऐहिक सुख और इस जन्म के बाद स्वर्गप्राप्त कर सके। इसमें कोई संदेह नही है कि अशोक सच्चे हृदय से प्रजा का नैतिक पुनरुद्धार चाहता था और उसके लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा। वह निःसंदेहएक आदर्श को चरितार्थ करना चाहता था। यही अशोक की अलौकिकता है।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
अशोक का धम्म केवल धर्म का संदेश नहीं था। यह सामाजिक सुधार, नैतिक शासन और जनकल्याण का मार्ग था। अशोक ने अपने धम्म के प्रचार के माध्यम से प्रजा के नैतिक उत्थान का लक्ष्य रखा और उन्हें ऐहिक और पारलौकिक सुख प्राप्त करने का मार्ग दिखाया।
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प्रश्न 1: अशोक के ‘धम्म’ का क्या अर्थ था?
उत्तर: अशोक के ‘धम्म’ का संबंध किसी विशेष धार्मिक परंपरा से नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी नैतिक नीति थी जो मानवीय मूल्यों और सामाजिक सद्भाव पर आधारित थी। इस धम्म का उद्देश्य लोगों में आपसी सम्मान, सहिष्णुता, और करुणा की भावना को विकसित करना था। अशोक ने इसे समाज के सभी वर्गों — ब्राह्मण, श्रमण, गृहस्थ और सेवक — के लिए समान रूप से लागू किया, ताकि राज्य में नैतिकता और शांति की स्थापना हो सके। वास्तव में यह उनके शासन का नैतिक सिद्धांत था जो जनकल्याण पर केंद्रित था।
प्रश्न 2: अशोक के धम्म के प्रमुख सिद्धांत क्या थे?
उत्तर: अशोक के धम्म के प्रमुख सिद्धांत थे —
- अहिंसा: सभी जीवों के प्रति दया और हिंसा से परहेज़।
- सत्य: जीवन में ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का पालन।
- करुणा: दूसरों के दुःख को समझने और सहायता करने की भावना।
- संयम: अपने आचरण और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना।
- सहिष्णुता: विभिन्न मतों और धर्मों का सम्मान करना।
इसके अतिरिक्त उन्होंने माता-पिता, गुरु, ब्राह्मण और श्रमणों के प्रति आदर दिखाने तथा समाज में परस्पर सहयोग की भावना बनाए रखने पर बल दिया।
प्रश्न 3: अशोक के धम्म के तत्व कौन-कौन से थे?
उत्तर: अशोक के धम्म के प्रमुख तत्व थे — सामाजिक एकता, धार्मिक सहिष्णुता, प्राणियों के प्रति दया, पारिवारिक जीवन में अनुशासन और शासक का प्रजापालन धर्म। उन्होंने अपने अभिलेखों जैसे गिरनार, धौली और शाहबाजगढ़ी के शिलालेखों में स्पष्ट किया कि धम्म का उद्देश्य किसी धर्म का प्रचार नहीं, बल्कि समाज में नैतिक सुधार और स्थायी शांति की स्थापना है।
प्रश्न 4: अशोक के धम्म की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: अशोक के धम्म की मुख्य विशेषताएँ थीं —
- सर्वधर्म समभाव: सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण और सम्मान।
- नैतिक सुधार: व्यक्ति और समाज के आचरण को शुद्ध बनाना।
- जनकल्याण: प्रजा की भलाई के लिए नीतियों और व्यवस्थाओं का विकास।
- धर्म महामात्रों की नियुक्ति: धम्म के प्रचार और पालन की निगरानी के लिए अधिकारियों की व्यवस्था।
- अहिंसा और करुणा: युद्ध, हिंसा और पशु-बलि का विरोध।
इन सिद्धांतों ने अशोक के शासन को नैतिकता, मानवता और कल्याण के उच्च आदर्शों पर स्थापित किया।
प्रश्न 5: अशोक के धम्म का ऐतिहासिक और सामाजिक प्रभाव क्या था?
उत्तर: अशोक के धम्म ने भारतीय समाज में नैतिक जागरूकता और धार्मिक सहिष्णुता की भावना को मजबूत किया। इसके प्रभाव से समाज में शांति, सहयोग और पारस्परिक सम्मान का वातावरण बना। अशोक ने अपने दूतों के माध्यम से इस नीति को श्रीलंका, नेपाल और म्यांमार जैसे देशों में भी फैलाया, जिससे यह एक वैश्विक नैतिक संदेश बन गया। उनके धम्म ने मानवता को एकजुट करने और नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी, जो आज भी प्रासंगिक है।
