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प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन एवं उपलब्धियों का वर्णन करे।
अथवा
मौर्य साम्राज्य की स्थापना एवं उसके सुदृढ़ीकरण में चन्द्रगुप्त मौर्य की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
अथवा
एक विजेता एवं मुक्तिदाता के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य की भूमिका का मूल्यांकन करे।
चन्द्रगुप्त मौर्य को भारतीय उपमहाद्वीप का पहला शासक माना जाता है जिसने विभिन्न राज्यों को एक राजनीतिक ढांचे में जोड़ा। उनके कुशल नेतृत्व और सेल्युकस निकेटर के साथ हुई संधि ने मौर्य शासन को संगठित प्रशासन और सैन्य सामर्थ्य का प्रतीक बना दिया। उनके शासनकाल ने भारतीय साम्राज्यवादी परंपरा की नींव रखी।

परिचय (Introduction)
मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य की गणना भारत मे ही नहीं बल्कि विश्व के महान सम्राटो में की जाती है। वह प्रथम भारतीय शासक था जिसने उत्तरी तथा दक्षिणी भारत को एक छत्र राज्य के अधीन किया। वह विदेशियों को परास्त करने वाला पहला ऐतिहासिक शासक था, जिसके साम्राज्य की सीमा ईरान को छूती थी। साथ ही उसने इस विशाल साम्राज्य में कुशल प्रशासन हेतु उच्च कोटि की प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की।
प्रारम्भिक जीवन (Early Life of Chandragupta Maurya)
जिस प्रकार मौर्यो की जाति के संबंध में अनेक मत प्रचलित है, उसी प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रारंभिक जीवन भी किवदंतियों पर आधारित है। बौद्ध ग्रंथो के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के पूर्वज पिप्पलीवन के शासक थे। जब इस राज्य पर मगध का अधिकार हो गया तब मोरिय कुल के व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत करने लगे। चन्द्रगुप्त मौर्य का बाल्यजीवन भी जंगलो में बीता। अपने पिता की मृत्यु के बाद वह अपनी मां के साथ मगध की राजधानी पाटलीपुत्र चला गया। परन्तु आर्थिक अभाव के कारण उसे बेच दिया गया। ‘राजकीलम’ का खेल खेलते समय चाणक्य की दृष्टि उस पर पड़ी और उन्होंने उसकी प्रवीणता से प्रभावित होकर 1000 कार्षापण में उसे खरीद लिया तथा तक्षशिला लाकर उसे अस्त्र-शस्त्र एवं अन्य कला की शिक्षा दिलवाई। चाणक्य वस्तुतः नन्द वंश के शासक घनानंद को नष्ट करना चाहता था और चन्द्रगुप्त मौर्य उसे इस कार्य के लिए योग्य लगा। चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रथम उद्देश्य था नन्द वंश के शासन की समाप्ति और इस हेतु परिस्थितियां थोड़ी अनुकूल होने लगी थी। दूसरी ओर 323 ई0 में सिकन्दर की मृत्यु के साथ ही उसका साम्राज्य बिखर रहा था। चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसका लाभ उठाने के लिए एक मजबूत जनजातीय सेना तैयार की और इस सेना की सहायता से पंजाब के क्षेत्र को यूनानियों के शासन से मुक्त करवाया। इसके बाद उसने मगध पर विजय प्राप्त की और नन्दो का नाश कर दिया।
चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रमुख उपलब्धियाँ (Major Achievements of Chandragupta Maurya)

चन्द्रगुप्त मौर्य की सर्वप्रमुख उपलब्धियों में भारत को विदेशी शासन के चंगुल से मुक्त कराना और अत्याचारी घनानंद के शासन से मुक्ति दिलाकर एक सुसंगठित केंद्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था स्थापित करने की थी। अतः इसकी उपलब्धियों को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत वर्णित किया जा सकता है—-
1. पंजाब की विजय एवं विदेशी शासन से मुक्ति
चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने इन कार्यो में सफल निर्देशन एवं असीमित मूल्यवान सहयोग प्राप्त हुआ। यूनानी-रोमन एवं बौद्ध साक्ष्यों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने पहले पंजाब तथा सिन्ध को विदेशी शासन से मुक्त किया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी विदेशी शासन की निंदा की गयीं है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने बड़ी बुद्धिमानी से उपलब्ध साधनों का उपयोग किया तथा विदेशियो के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध छेड़ दिया। उसने इस कार्य को करने के लिए एक विशाल सेना का निर्माण किया। विभिन्न विद्वानों के अनुसार इस सेना में चोर, चोर गण, म्लेच्छ, आटविक, शास्त्रोपरजीवी श्रेणी वर्गो को मिलाया। जस्टिन के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना “डाकुओ का गिरोह” थी। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेना तैयार करके सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसके क्षत्रपों के विरुद्ध राष्ट्रीय युद्ध छेड़ दिया और 317 ई0 पू0 पशिमी पंजाब का अन्तिम यूनानी सेनानायक यूडेमस को भारत छोड़ने के लिये बाध्य किया। इस तिथि को पंजाब और सिन्ध चन्द्रगुप्त मौर्य के अधिकार में आ गये।
2. मगध पर अधिकार
सिन्ध तथा पंजाब पर अधिकार होने के पश्चात चन्द्रगुप्त मौर्य तथा चाणक्य ने मगध के अत्याचारी शासक घनानंद पर आक्रमण किया क्योंकि इसके शासन से जनता बहुत दुःखी थी। और इसके अत्याचारी शासन के कारण जानता विद्रोह करने के लिए तैयार थी, यही नन्द शासन की सबसे बड़ी दुर्बलता थी। घनानंद ने एक बार चाणक्य का भी अपमान किया था। जिससे क्रुध होकर उसने नन्दो के समूल को नष्ट करने की प्रतिज्ञा किया था। दुर्भाग्य से हमे किसी भी साक्ष्य से नन्दो तथा मौर्यो के बीच हुए युद्ध का विवरण नही मिलता है। केवल इतना निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि युद्ध बड़ा घमासान एवं भयंकर रहा होगा। अन्ततः घनानंद मारा गया और मगध पर चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार हो गया।
3. सेल्युकस निकेटर से संघर्ष और संधि
चन्द्रगुप्त मौर्य का एक अन्य महान सैनिक अभियान सेल्युकस के विरुद्ध हुआ। उस युद्ध मे चन्द्रगुप्त मौर्य की विजय हुई और इसके परिणामस्वरूप चन्द्रगुप्त मौर्य को आरकोशिया, जेड्रोशिया, एरियान तथा पेरिपेनिसडाई के विशाल भू-भाग एक सन्धि द्वारा मिले और सेल्युकस ने अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ किया और सेल्युकस ने अपने दूत मेगास्थनीज को भारतीय दरबार मे भेजा, बदले में चन्द्रगुप्त मौर्य ने सेल्युकस को 500 हाथी प्रदान किये। इस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य सम्पूर्ण भारत में फैल गया। प्लूटार्क के अनुसार उसने 6 लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अपना अधिकार कर लिया।
4. दक्षिण भारत की विजय
कुछ तमिल ग्रन्थों के आधार पर विद्वानों का अनुमान है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने दक्षिणी भारत के अधिकांश भाग पर अधिकार कर लिया था। अशोक के अभिलेखों से भी प्रकट होता है कि उसका साम्राज्य दक्षिण भारत के उत्तरी मैसूर तक था। क्योंकि अशोक ने एक मात्र विजय कलिंग विजय की थी। अशोक के पिता बिन्दुसार को भी दक्षिण विजय का श्रेय नही दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यह निश्चित हो जाता है कि दक्षिण भारत की विजय चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी। क्योंकि अगर देखा जाय तो उसने अपना अन्तिम समय “श्रमणवेलगोला” (मैसूर) में बिताया। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह भाग उसके साम्राज्य में सम्मिलित था।
5. साम्राज्य का विस्तार
अपने विजय अभियानों के द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य ने नन्दो से भी विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। लगभग समस्त भारत को उसने एक राजनीतिक सूत्र में बांध दिया। शक शासक रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख से पता चलता है कि सौराष्ट्र प्रान्त उसके साम्राज्य में सम्मिलित था। अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाणों से पश्चिम में सौराष्ट्र और दक्षिण में मैसूर तक उसके अधिकारों की पुष्टि होती है। इस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक तथा उत्तर में हिमालय श्रृंखला से दक्षिण में कम से कम मैसूर तक विस्तृत था। पश्चिमोत्तर में उसका साम्राज्य मध्य एशिया तक विस्तृत था। डॉ0 स्मिथ ने हिन्दुकुश को ही भारत के वैज्ञानिक सीमा रेखा माना और कहा कि “दो हाजरा से भी अधिक हुए, भारत के प्रथम सम्राट ने भारत की उस वैज्ञानिक सीमा रेखा को प्राप्त किया जिसे प्राप्त करने के लिए मुगल शासक तथा अंग्रेज शासक व्यर्थ का प्रयास करते रहे।”
प्रशासनिक व्यवस्था (Administrative System)
चन्द्रगुप्त मौर्य सिर्फ एक महान विजेता ही नही, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी था। भारत मे उसने एक सफल केंद्रीकृत साम्राज्य के लिए एक आवश्यक प्रशासनिक व्यवस्था का भी सृजन किया। जिस पर उसने स्वयं तथा उसके पुत्र एवं पौत्रो ने एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना किया। ये उपलब्धियां इस समय संसार का कोई सम्राट या राजा प्राप्त नहीं कर सका। जो कार्य अधिकांश देशों में आधुनिक समय में भी नहीं हुआ, इस कार्य को चन्द्रगुप्त मौर्य ने आज से लगभग 2500 ई0 पू0 कर दिखाया। चन्द्रगुप्त मौर्य यधपि निरंकुश शासक था तथापि उसने अपनी प्रजा के भौतिक जीवन को सुखी एवं सुविधापूर्ण बनाने के उद्देश्य से अनेक उपाय किये। सिचाई की व्यवस्था की गई औऱ सिंचाई कर वसूला गया। भूमि पर राज्य तथा कृषक दोनो का अधिकार होता था। साम्राज्य के समस्त आर्थिक क्रिया-कलापो पर राज्य का कठोर नियंत्रण होता था। अर्थात मौर्य अर्थव्यवस्था को हम मिश्रित अर्थव्यवस्था भी कह सकते है। यातायात की सुविधा के लिए मार्गो का निर्माण करवाया। व्यापार एवं उद्योग-धंधों को बढ़ाने के लिए राज्य द्वारा योगदान दिया गया। राज्य अनाथो, विधवाओं, मृत सैनिको एवं कर्मचारियों के भरण-पोषण का दायित्व वहन करता था। कौटिल्य ने जिस विस्तृत शासन की रूपरेखा प्रस्तुत की थी उसमे प्रजा हित को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। यही इस शासन की सबसे बड़ी विशेषता थी। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासनादर्श अर्थशास्त्र में उन पंक्तियों से प्रकट होता है “प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है।” कुछ आलोचकों का कहना है कि मौर्यो ने कर अधिक लिया था, साथ ही साथ हम यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने इन करो का उपयोग विलासिता तथा खर्चीले युद्धों पर नही किया अपितु उत्पादक एवं लोकहित के कार्यो में किया। चन्द्रगुप्त मौर्य को श्रेय देना होगा कि उसने इस विचार (concept) को आज से इतने वर्ष पूर्व न केवल समँझ लिया था बल्कि व्यवस्थित रूप से लागू भी किया।
अशोक के समय मे भारतीय कला उन्नत अवस्था में थी। अवश्य ही इस कला के प्रादुर्भाव में चन्द्रगुप्त मौर्य का योगदान रहा होगा। चन्द्रगुप्त मौर्य के अपनी कार्यपालिका को स्पष्ट आदेश थे कि राज्य के आवश्यक कार्य को उसके सम्मुख तुरन्त पेश किया जाय उसने विदेशो से आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किया, परिणामस्वरूप भारत का विदेशी व्यापार बढ़ा तथा भारतीयों की सांस्कृतिक उन्नति भी हुई। चन्द्रगुप्त मौर्य ने प्रजा से अपना सीधा सम्बन्ध बनाये रखा। स्वयं को राज्य में होने वाली गतिविधियों से अवगत कराने के लिए उसने एक सक्षम गुप्तचर व्यवस्था की स्थापना की।
धार्मिक नीति एवं अंतिम जीवन (Religious Policy and Last Days)

समाज मे समरसता बनाये रखने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य ने सभी धर्मों व पंथों को स्वतंत्रता प्रदान की। यधपि वह अपने अन्तिम समय मे जैन धर्म को अंगीकार कर चुका था। उसने कभी भी हिन्दू, बौद्ध और आजीवक सम्प्रदाय के विरुद्ध कार्य नही किया। सभी धर्मों को समान माना, जो उसकी उदारता का परिचायक है। उसने अपना अन्तिम समय तप करके बिताया था, जीवन के अंत में उसने जैन धर्म स्वीकार किया और श्रवणबेलगोला में तपस्या करते हुए देह त्याग दी। जिससे ज्ञात होता है कि उसे सत्ता की लालसा भी नही थी।
उपसंहार (Conclusion)
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान विजेता, कुशल प्रशासक और राष्ट्र निर्माता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि वह प्रथम साम्राज्य निर्माता, मुक्तिदाता और कुशल प्रशासक के रूप में विख्यात है। उसे मुक्तिदाता (liberator) इसिलिये कहा जाता है कि उसने एक तरफ तो मगध की जनता को नन्दो के अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाई तो दूसरी तरफ पंजाब से यूनानियों के प्रभुत्व को समाप्त कर देश को विदेशी दासता से मुक्त किया। चन्द्रगुप्त मौर्य एक विजेता और प्रशासक के अतिरिक्त कूटनीतिज्ञ भी था, उसने विदेशी शासकों के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाया। उसका चरित्र निर्मल, उसके कार्य गौरवान्वित करने वाले तथा प्रजा के कल्याण हेतु थे। निश्चय ही चन्द्रगुप्त मौर्य एक विशिष्ट व्यक्ति था। उसका नाम विश्व के महान साम्राज्य निर्माताओं में हमेशा आदर के साथ लिया जाता रहेगा।
PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: चन्द्रगुप्त मौर्य कौन थे?
उत्तर: चन्द्रगुप्त मौर्य (लगभग 340 ई.पू.–297 ई.पू.) प्राचीन भारत के ऐसे शासक थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की नींव रखकर भारतीय इतिहास में एक नए युग की शुरुआत की। उन्होंने नंद वंश को समाप्त कर 322 ई.पू. के आसपास सत्ता प्राप्त की। एक साधारण पृष्ठभूमि से उठकर, अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में वे भारत के पहले विशाल और संगठित साम्राज्य के संस्थापक बने।
प्रश्न 2: चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना कैसे की?
उत्तर: चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की रणनीति और राजनीतिक ज्ञान के सहारे नंद वंश के शासन का अंत किया। इसके बाद उन्होंने उत्तर भारत के अनेक जनपदों और रियासतों को एक प्रशासनिक ढांचे में संगठित किया। यह प्रयास भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार केंद्रीकृत शासन प्रणाली स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
प्रश्न 3: यूनानी शासन के विरुद्ध चन्द्रगुप्त का योगदान क्या था?
उत्तर: सिकंदर की मृत्यु के उपरांत उत्तर-पश्चिम भारत में यूनानी प्रभुत्व कमजोर हो गया था। इसी अवसर का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त ने सेल्युकस निकेटर की सेनाओं को पराजित किया और उस क्षेत्र को अपने साम्राज्य में शामिल किया। बाद में दोनों शासकों के बीच एक संधि हुई, जिसके तहत राजनयिक और वैवाहिक संबंध भी स्थापित हुए।
प्रश्न 4: चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: चन्द्रगुप्त का शासन अत्यंत संगठित और केंद्रीकृत था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित सिद्धांतों के अनुसार, राज्य प्रशासन, कर व्यवस्था और सेना का संचालन व्यवस्थित रूप से किया गया था। उन्होंने कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया तथा एक मजबूत स्थायी सेना रखी, जिससे साम्राज्य की समृद्धि और स्थिरता बनी रही।
प्रश्न 5: चन्द्रगुप्त मौर्य का अंतिम जीवन कैसा रहा?
उत्तर: अपने शासन के अंतिम चरण में चन्द्रगुप्त ने राज्य का कार्यभार अपने पुत्र बिंदुसार को सौंप दिया। उन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर जैन धर्म अपना लिया और कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में तपस्या आरंभ की। वहीं उन्होंने ‘संलेखना व्रत’ के माध्यम से शांतिपूर्वक अपने जीवन का अंत किया।
