दिल्ली सल्तनत: गुलाम वंश:- गयासुद्दीन बलबन का इतिहास:/ Delhi Sultanate: Slave Dynasty: – History of Ghiyasuddin Balban

परिचय (Introduction)

सुल्तान बलबन का पूरा नाम गयासुद्दीन बलबन था। बलबन ने 1265 ई0 से 1287 ई0 तक सुल्तान के रूप में सल्तनत की बागडोर संभाली। उसे ‘उलुग खां’ के नाम से भी जाना जाता है। उसका वास्तविक नाम ‘बहाउद्दीन’ था। इल्तुतमिश की भांति वह भी इल्बारी तुर्क था। बलबन को द्वितीय इल्बारी वंश का संस्थापक कहा जाता है। उसने एक नवीन राजवंश बलबानी वंश की नींव डाली। योगेश्वर पंडित के पालम बावली लेख के अनुसार, “बलबन भगवान विष्णु के सारे कार्य सम्पन्न कर रहा था।” गढ़मुक्तेश्वर अभिलेख में बलबन को खलीफा का सहायक कहा गया है।

बलबन का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Balban)

बलबन को  बचपन में ही मंगोलो द्वारा पकड़ लिया गया था, जिन्होंने उसे बगदाद में बसरा के निवासी ख्वाजा जमालुद्दीन बसरी के हाथों बेच दिया। 1232 ई0 में उसे गुजरात मार्ग से  दिल्ली लाया गया, जहां इल्तुतमिश ने 1233 ई0 में (ग्वालियर विजय के पश्चात ) उसे खरीदा। उसकी योग्यता से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने उसे ‘खासदार’ का पद दिया। रजिया के काल मे वह ‘अमीर-ए-शिकार’ के पद पर पहुँच गया। रजिया के विरुद्ध षड़यंत्र में उसने तुर्की सरदारों का साथ दिया। रजिया के पतन के बाद बहरामशाह के सुल्तान बनाने के पश्चात उसे ‘अमीर-ए-आखूर’ का पद मिला। बदरुद्दीन शंकर रूमी की कृपा से उसे रेवाड़ी की जागीर मिली। अलाउद्दीन मसूदशाह को सुल्तान बनाने में भी उसने तुर्की अमीरो का साथ दिया जिसके फलस्वरूप उसे हांसी की सूबेदारी दी गयी। 1249 ई0 में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह  सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद शाह से कर दिया। इस अवसर पर उसे ‘उलुग खां‘ की उपाधि और ‘नायब-ए-ममलिकात’ का पद दिया गया। इस प्रकार बलबन अपने प्रभाव और शक्ति में लगातार वृद्धि करता गया। अंततः 1265 ई0 में बलबन दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। इस प्रकार देखा जाय तो बलबन भी एक दास से ऊपर उठकर दिल्ली सल्तनत का सुल्तान बनाने में सफल रहा। 

 बलबन का शासन और नीतियाँ (Administration and Policies)

रक्त और लौह की नीति (Policy of Blood and Iron)

 बलबन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रूप से विचार प्रकट किए। बलबन के विषय मे कहा गया है कि उसने लौह और रक्त की नीति को अपनाई थी। विद्रोहियों के प्रति बलबन की नीति रक्त एवं युद्ध की थी। मेव, कतेहरो, एवं बुंदेलखंड के विद्रोह बलबन के काल मे हुआ। मेव जनजातियों का दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों एवं दो-आब क्षेत्र में आतंक था। बरनी बताता है कि इनके डर से शाम होने से पहले ही दिल्ली के हर घर के फाटक बंद हो जाते थे। यही कारण है कि सिंहासन पर बैठते ही सर्वप्रथम बलबन ने 1267 ई0 में मेवो का दमन किया। इसके बाद उसने अवध (दो-आब) के विद्रोह को दबाया तदुपरान्त कटेहरो को शांत किया। बलबन ने गोपालगिर में किला बनबाया और इसमें अफगानों की नियुक्ति की। उसने दिल्ली के चार कोनो भोजपुर, पटियाली, काम्पिल्य, तथा जलाली में चार किले बनवाये और यहां अफगान अधिकरियो की नियुक्ति की बरनी लिखता है कि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप तब से सड़के डाकुओ से मुक्त हो गयी।

मंगोलों के विरुद्ध नीति (Mongol Policy)

बलबन ने मंगोलों के लगातार बढ़ते ख़तरे को ध्यान में रखते हुए एक सशक्त और व्यावहारिक नीति अपनाई। उसकी मंगोल नीति बल और रणनीति, दोनों पर आधारित थी। सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उसने सैन्य व्यवस्था को अधिक संगठित बनाया और इसके संचालन हेतु एक विशेष विभाग “दीवान-ए-अर्ज” की स्थापना की। इस विभाग का दायित्व सेना के प्रबंधन, भर्ती और प्रशिक्षण की देखरेख करना था। बलबन ने इसके प्रमुख के रूप में इमाद-उल-मुल्क को नियुक्त किया, ताकि सीमांत क्षेत्रों की रक्षा प्रभावी ढंग से की जा सके और मंगोल आक्रमणों को रोका जा सके।

बलबन का राजत्व सिद्धांत (Balban’s Theory of Kingship)

दैवी राजसत्ता का सिद्धांत (Divine Kingship)

बलबन के राजत्व सिद्धांत की दो मुख्य विशेषताएं थी--प्रथम सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया जाता है। और द्वितीय सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है। वंशानुगत अधिकार के महत्व को समंझकर अपने को विद्वान फिरदौसी की रचना “शाहनामा” के शूरवीर पात्र “अफरासियाब का वंशज” बताया। उसने फारस के लोक- प्रचलित वीरो से प्रेरणा लेकर अपना राजनीतिक आदर्श निर्मित किया था। उनका अनुसरण करते हुए उसने राजत्व की प्रतिष्ठा को उच्च सम्मान दिलाने की कोशिश किया। राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि “नियामत-ए-खुदाई” माना गया। उसके अनुसार मान-मर्यादा में वह केवल पैगम्बर के बाद है। राजा “जिल्ले अल्लाह” या “जिल्ले इलाही” अर्थात ईश्वर का प्रतिबिंब है। उसके अनुसार “राजत्व निरंकुशता का शारीरिक रूप है।” खलिक अहमद निजामी की दृष्टि में ‘यह एक जटिल धार्मिक युक्ति थी जिससे वह अपनी निरंकुश सत्ता को पवित्र बनाना चाहता था।’ बलबन का मत था कि “राजा का हृदय ईश्वरीय कृपा का विशेष भंडार होता है। इस दृष्टि से कोई भी मनुष्य उसकी समानता नही कर सकता।” वह दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जिसने राजत्व संबंधी सिद्धान्तों की स्थापना की। डॉ0 आर0 पी0 त्रिपाठी के अनुसार बलबन का राजत्व शक्ति, न्याय और प्रतिष्ठा पर आधारित था। उसने अपने पुत्र बुगरा खां से कहा था–” सुल्तान का पद निरंकुशता का सजीव प्रतीक है।”

दरबारी अनुशासन और रीति-रिवाज (Court Etiquette)

बलबन ने ईरानी बादशाहो की कई परम्पराओ को अपने दरबार मे आरम्भ किया। उसने “सिजदा” (भूमि पर लेट कर अभिवादन करना) और “पाबोस” (सुल्तान के चरणों को चूमना) की प्रथाओ को लागू किया। उसने अपने दरबार में प्रतिवर्ष फ़ारसी त्यौहार “नौरोज” (सूर्य पूजा)को बड़ी शानो-शौकत से मनाने की प्रथा आरम्भ की।

बलबन ने पदों के वितरण को उच्च वंश के लोगो तक ही सीमित रखा। अपने पुत्र और पोत्रो के नाम भी ईरानी नामो जैसे रखे। दरबारियो के लिए शराब पीना निषिद्ध कर दिया गया और विशेष वस्त्र धारण करके ही उन्हें दरबार मे आने की आज्ञा दी गई।

प्रशासनिक सुधार और गुप्तचर तंत्र (Administrative Reforms)

बलबन नें इल्तुतमिश द्वारा बनाये गए संगठन ‘तुर्कान-ए-चिहलगानी’ को समाप्त कर दिया। मंगोलो से मुकाबला करने के लिए बलबन ने एक सैन्य विभाग ‘दीवान-ए-अर्ज’ की स्थापना की। बलबन ने अपना सेना मंत्री (दीवान-ए-अर्ज) इमाद-उल-मुल्क को बनाया था। जो अत्यंत ईमानदार और परिश्रमी व्यक्ति था। बलबन ने सैन्य व्यवस्था को वजीर के आर्थिक नियंत्रण से मुक्त रखा ताकि उसे धन की कमी न हो। ऐसा करने से वजीर का पद महत्वहीन हो गया। उसने सैनिक प्रशिक्षण पर भी बल दिया। तथा वह प्रत्येक सैनिक आक्रमण की योजना स्वयं बनाता था और उसे अंतिम दिन तक गुप्त रखता था। प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करते हुए बलबन ने ‘नायब-ए-ममलिकात’ के पद को भी समाप्त कर दिया।

बलबन के शासन की सफलता का मुख्य आधार उसका गुप्तचर विभाग था। गुप्तचरों को ‘बरीद’ कहा जाता था। गुप्तचर सुल्तान से सीधा संपर्क स्थापित करते थे। और साम्राज्य की सम्पूर्ण घटनाओ की जानकारी सुल्तान को देते थे। इस प्रकार साम्राज्य की सभी घटनाओं से सुल्तान भली-भांति अवगत रहता था।

विद्रोह और उत्तराधिकार (Rebellion and Successor)

बलबन के समय मे बंगाल के इक्तादार तुगरिल खां ने  1279 ई0 में विद्रोह कर दिया और सुल्तान मुगीसुद्दीन की उपाधि धारण कर ली यह एक गुलाम सरदार का पहला विद्रोह था। विद्रोह को दबाने के लिए अवध के सूबेदार अमीन खां को भेजा गया लेकिन यह असफल रहा इसके बाद तिर्मित, शहाबुद्दीन को क्रमशः भेजा गया इनके असफल होने पर बलबन स्वयं अपने पुत्र बुगरा खां के साथ गया। काफी परेशानी के बाद अंततः यह विद्रोह शांत कर दिया गया और बुगरा खां को बंगाल का इक़्तेदार नियुक्त किया गया। बलबन ने मंगोलो के आक्रमण की सुरक्षा की दृष्टि से  उत्तर-पश्चिमी सीमा लाहौर, मुल्तान, दीपालपुर का गवर्नर अपने बड़े पुत्र शहजादा मुहम्मद को बनाया। लेकिन 1287 ई0 में मंगोल विद्रोह (मंगोल नेता हलाकू) को दबाने में मारा गया। सुमन, समाना और उच्छ की जागीर बुगरा खां को दी लेकिन इसे बलबन बुला लेता है और बंगाल का इक्तादार बना देता है। अपना अंतिम समय पास आते जानकर बलबन ने बंगाल से बुगरा खां को बुलाया और उत्तराधिकारी घोषित कर दिया परन्तु इसने यह उत्तरदायित्व नही निभाया और पुनः बंगाल चला गया। बलबन ने मुहम्मद के पुत्र कैखुसरो को  अपना उत्तराधिकारी चुना। 1287 ई0 में बलबन की मृत्यू हो गयी।

निष्कर्ष (Conclusion)

गयासुद्दीन बलबन ने दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया और शासन की मर्यादा को पुनः स्थापित किया। उसकी दूरदर्शिता और कठोर नीतियों ने साम्राज्य को स्थिरता और शक्ति प्रदान की।

People Also Ask (FAQ Section – Hindi)

प्रश्न 1. गयासुद्दीन बलबन कौन थे?

Ans. गयासुद्दीन बलबन दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के आठवें सुल्तान थे, जिन्होंने 1265 से 1287 ईस्वी तक शासन किया। वे अपने कठोर शासन, अनुशासनप्रियता और “रक्त और लौह की नीति” के लिए प्रसिद्ध थे।

प्रश्न 2. बलबन की “रक्त और लौह की नीति” क्या थी?

Ans. “रक्त और लौह की नीति” बलबन की कठोर शासन प्रणाली थी, जिसमें विद्रोहियों और अपराधियों के प्रति सख्त दंड दिया जाता था। इसका उद्देश्य सल्तनत में शांति, अनुशासन और सुल्तान की सर्वोच्चता स्थापित करना था।

प्रश्न 3. बलबन का राजत्व सिद्धांत (Theory of Kingship) क्या था?

Ans. बलबन ने स्वयं को ईश्वर द्वारा नियुक्त शासक बताया और सुल्तान को “दैवी सत्ता” का प्रतीक माना। दरबार में सिजदा (झुकना) और पाबोस (पैर चूमना) जैसी परंपराएँ इसी विचारधारा से जुड़ी थीं।

प्रश्न 4. बलबन के प्रमुख प्रशासनिक सुधार कौन से थे?

Ans. बलबन ने गुप्तचर विभाग (Barid system) को मज़बूत किया, सरहदों पर मजबूत चौकियाँ बनाईं और योग्य अमीरों की नियुक्ति की। उसने प्रांतीय शासन को केंद्रीकृत कर दिल्ली सल्तनत को स्थिरता प्रदान की।

प्रश्न 5. बलबन के शासनकाल का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

Ans. बलबन का शासन दिल्ली सल्तनत के इतिहास में अनुशासन, केंद्रीकरण और राजसत्ता की गरिमा के लिए जाना जाता है। उसने शासन को सुदृढ़ किया और आगे चलकर खिलजी वंश के उत्थान की नींव रखी।

महत्वपूर्ण बहुविकल्पीय प्रश्न

1. बलबन का जन्म तुर्को किस सम्प्रदाय में हुआ था?
(a). इल्बारी (b) करलुग (c) खिफाई (d) गुज्ज
2. ईरानी त्यौहार ‘नौरोज’ का प्रचलन किसने प्रारम्भ किया?
(a). इल्तुतमिश ने (b) अलाउद्दीन खिलजी ने (c) बलबन ने (d) फिरोजशाह तुगलक ने
3* जिलअल्लाह जो राजधिकार संबंधी अवधारणा, किससे संबंधित है?
(a). इल्तुतमिश (b) फिरोजशाह तुगलक (c) बहलोल लोदी (d) बलबन
4* निम्नलिखित सुल्तानों में से कौन स्वयं को नायब-ए-खुदाई कहता था?
(a). बलबन (b) इल्तुतमिश (c) गियासुद्दीन तुगलक (d) अलाउद्दीन खिलजी
5* दिल्ली के किस सुल्तान के विषय मे कहा गया है कि उसने ‘रक्त और लौह’ की नीति अपनाई थी?
(a). बलबन (b) फिरोजशाह तुगलक (c) जलालुद्दीन फिरोज ख़िलजी (d) इल्तुतमिश
6* वह मामलुक सुल्तान कौन था जो राजत्व के दैवीय सिद्वान्त का पक्षधर था?
(a) रजिया सुल्ताना (b) कुतुबुद्दीन ऐबक (c) बलबन (d) इल्तुतमिश
7* निम्नलिखित में से किस सुल्तान के लिए जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि “न्याय और लोगो के प्रति दया के कारण उसे अपनी प्रजा का सम्मान मिला एवं उसकी प्रजा उसकी राजगद्दी की पक्की समर्थक बन गयी।”
(a) मुहम्मद बिन तुगलक (b) फिरोजशाह तुगलक (c) अलाउद्दीन खिलजी (d) गयासुद्दीन बलबन
8* किसने एक हाथी और नागौर की गवर्नरी के बदले सिंहासन से अपनी दावेदारी त्याग दी थी?
(a) जलालुद्दीन ने (b) नासिरूद्दीन ने (c) किशलू खाँ ने (d) अलाउद्दीन मसूद ने
9* निम्नलिखित में से कौन शासक मामलूक वंश का था?
(a) अलाउद्दीन खिलजी (b) इब्राहिम लोदी (c) बलबन (d) मुहम्मद गोरी
10* दिल्ली का वह कौन सा शासक था जिसने दरबार मे गैर इस्लामी प्रथाओं का प्रचलन करवाया?
(a) कुतुबुद्दीन ऐबक (b) नासिरुद्दीन महमूद (c) इल्तुतमिश (d) बलबन

11* बलबन अपने राज्य क्षेत्र में विस्तार करने में असफल रहा

(a) वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण (b) अमीर वर्ग द्वारा असहयोग के कारण (c) मंगोल आक्रमणकारियों के भय के कारण (d) अपने पुत्र द्वारा विद्रोह के कारण
12* बलबन द्वारा शासक पद की शक्ति और प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित करने के लिए निम्न में से कौन से उपाय किये गए थे?
1- उसने अपने को पौराणिक नायक अफरासियाब के वंशज होने का दाबा किया।
2- उसने ईरानी दरबार के शिष्टाचार के तरीको का अनुकरण अपने दरबार मे किया।
3- हरम में अत्यंत कठोर औपचारिकताएं लागू की।
4- उसने अपने साम्राज्य के प्रान्तों की सीमाएं निर्धारित की।
(a) 2 एवं 3 (b) 3 एवं 4 (c) 1 एवं 2 (d) 2 एवं 4
13* सुल्तान नासिरूद्दीन महमूद की सेवा में रहने वाला अमीर, जिसने बलबन की साजिशो से सर्वोच्च पद छोड़ दिया था, कौन था-
(a) तुगरिल बेग (b) इमादुद्दीन रैहान (c) जफर खां (d) अमीर याकूब
14* गुलाम वंश का अंतिम सुल्तान कौन था?
(a) बलबन (b) रजिया (c) मुहम्मद गोरी (d) कुतुबुद्दीन ऐबक
15* निम्नलिखित में से कौन कथन ठीक है–
(a) बलबन राजा के दैवीय सिद्वांत में विश्वास नही करता था।
(b) बलबन राजा को पवित्र व्यक्ति के रूप में स्वीकार नही करता था।
(c) बलबन का विश्वास था कि निरंकुश सैन्य तंत्र ही प्रजा को स्वामी भक्त बना सकता है तथा राज्य की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है।
(d) बलबन इस बात में विश्वास नही करता था कि शासकीय शक्ति का डर अच्छी सरकार का आधार है।
16* दास वंश का सबसे प्रभावी शासक कौन था?
(a) इल्तुतमिश (b) रजिया (c) अलाउद्दीन खिलजी (d) बलबन
17* वह कौन सा शासक था जिसने सदैव तत्पर सेना रखने की शुरुआत की?
(a) अलाउद्दीन खिलजी (b) इल्तुतमिश (c) बलबन (d) फिरोजशाह तुगलक
18* किसके नेतृत्व में बलबन के शासन काल मे मंगोल संगठित थे?
(a) चंगेज खां (b) तैमूर (c) हलाकूँ खां (d) समाना का शासक
19* नीचे दो कथन दिए गए है एक को कथन (A) और दूसरे को कारण (R) कहा गया है–
कथन (A) :  बलबन ने राजत्व सिद्धान्त परिभाषित किया था।
कारण (R) : वह ताज की प्रतिष्ठा में वृद्धि करना चाहता था।
(a) A और R दोनो सही है तथा A की सही व्याख्या R है।
(b) A और R दोनो सही है तथा A की सही व्याख्या R नही है।
(c) A सही है किन्तु R गलत है।
(d) A गलत है किन्तु R सही है
20* “बलबन एक उत्तम अभिनेता था और अपने दर्शकों को आधुनिक फिल्मी सितारों की भांति मंत्रमुग्ध रखता था।” यह कथन किसका है?
(a) के0 ए0 निजामी (b) के0 एस0 लाल (c) आर0 पी0 त्रिपाठी (d) ए0 बी0 एम0 हबीबुल्लाह
21* नीचे दो कथन दिए गए है एक को कथन (A) और दूसरे को कारण (R) कहा गया है–
कथन (A) :  बलबन ने विस्तार की नीति नही अपनाई।
कारण (R) : बरनी निरंतर हो रहे मंगोल आक्रमणों के भय का उल्लेख करता है।
(a) A और R दोनो सही है तथा A की सही व्याख्या R है। (b) A और R दोनो सही है तथा A की सही व्याख्या R नही है। (c) A सही है किन्तु R गलत है। (d). A गलत है किन्तु R सही है
22* बलबन की सार्वभौमिकता तथा राजकीय नीति को जानने के लिए मूल स्रोत है–
(a) इसामी (b) बरनी (c) इब्नबतूता (d) मिन्हाज-उस-सिराज
23* बलबन अपने को किसका वंशज मानता था?
(a) चंगेज खां का (b) महमूद गजनवी का (c) अब्बासी खली का (d) अफरासियाब
24 सल्तनत काल मे गुलाम वंश से संबंधित शासक थे–
(a) गजनवी तुर्क से (b) इल्बारी तुर्क से (c) गोर वंशीय तुर्क से (d) खिलजी वंशीय तुर्क से
25* “राजा देवत्व का अंश होता है। उसकी समानता कोई भी मनुष्य नही कर सकता है।” यह कथन है-
(a) बलबन का अपने पुत्र बुगरा खां के प्रति (b) बरनी का अकबर के प्रति (c) काजी का बलबन प्रति (d) इल्तुतमिश का फिरिजशाह तुगलक के प्रति
26* बलबन के संबंध में निम्नलिखित कथनों मे से कौन सा कथन सत्य है?
1- बलबन को चालिसा के दल ने सर्वसम्मति से सुल्तान बनाया।
2- उसने सैन्य विभाग (दीवान-ए-अर्ज) को पुनर्गठित किया।
3- वह उत्तर-भारत की मंगोलो से पूरी तरह रक्षा नही कर सका।
4- बलबन ने चालिसा के दल को समाप्त कर दिया।
(a) 2, 3, 4 (b) 1, 3 (c) 1, 4 (d) कोई नही
27* वह सुल्तान जिसने नये क्षेत्रो को जीतने का प्रयास नही किया:
(a) कुतुबुद्दीन ऐबक (b) इल्तुतमिश (c) रजिया (d) बलबन
28*  निम्नलिखित में से बलबन के काल मे विद्रोह करने वाला, बंगाल का गवर्नर कौन था?
(a) बुगरा खां (b) अलिमर्दान खां (c) तुगरिल खां (d) उपरोक्त में से कोई नही
29* ‘एक मलिक होते हुए भी वह खान हो गया और फिर सुल्तान हो गया,’ वह कौन था?
(a) बलबन (b) इल्तुतमिश (c) मलिक काफूर (d) अलाउद्दीन खिलजी
30* बलबन के बारे में एक गलत कथन बताइए–
(a) उसने शक्तिशाली कुलीन वर्ग का दमन किया। (b) उसने अपने राज्य को मंगोलो से सुरक्षित किया। (c) उसने बंगाल में एक विद्रोह का दमन किया। (d) उसने खलीफा को चुनौती दी।
31* इल्तुतमिश, बलबन, और अलाउद्दीन खिलजी ने —
(a) दक्षिण पर आक्रमण किया। (b) राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया। (c) खलीफा को चुनौती दी। (d) मंगोल आक्रमणों का सामना किया।
32* किसने ‘तुर्कान-ए-चिहलगानी’ को समाप्त कर दिया?
(a) इल्तुतमिश (b) नसीरुद्दीन महमूद (c) अलाउद्दीन खिलजी (d) बलबन
33* बलबन को किसका श्रेय नही दिया जाता–
(a) दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ किया। (b) चालिसा के दल को समाप्त किया। (c) सुल्तान के पद की गरिमा को स्थापित किया। (d) दक्षिण विजय की।
34* बलबन ने राजत्व सिद्धान्त को कहाँ से ग्रहण किया था?
(a) ससानी पर्शिया (b) थगताई(c) खिलजी (d) मामलूक
35* बलबन द्वारा प्रारम्भ किया गया पायबोस था—
(a) एक भेंट (b) एक वर्दी (c) सुल्तान के जन्मदिन का औपचारिक समाहरोह (d) सुल्तान के पैरों को चूमने की प्रथा
36* बलबन ने अपने दरबार मे फारसी रीति एवं शिष्टाचार क्यों लागू किया था?
(a) शरीयत लागू करने हेतु (b) सुल्तान की गरिमा बढ़ाने हेतु (c) तुर्की भाषा के बहिष्कार हेतु (d) मान्यता प्राप्ति हेतु
37* अपनी शक्ति को समेकित करने के बाद बलबन नें भव्य उपाधि धारण की–
(a) तूतिए-हिन्द (b) कैसरे-हिन्द (c) दीने-इलाही (d) जिल्ले-इलाही
38* निम्नलिखित सुल्तानों में से गढ़मुक्तेश्वर की मस्जिद की दीवारों पर अपने अभिलेख में स्वयं को ‘खलीफा का सहायक’ कहा है?
(a) कैकुबाद (b) जलालुद्दीन खिलजी (c) बलबन (d) उपर्युक्त में से कोई नही
39* दिल्ली के सुल्तान बलबन का पूरा नांम क्या था?
(a) जलालुद्दीन (b) इल्तुतमिश (c) गयासुद्दीन (d) कुतुबुद्दीन
40* बलबन के पुत्र शहजादा मुहम्मद की मृत्यु किस कारण हुई?
(a) मंगोलो के विद्रोह को दमन करने में (b) बंगाल विद्रोह को दमन करने में (c) बीमारी के कारण (d) उपर्युक्त में से कोई नही

Answer Key (1–40):

1-a, 2-c, 3-a, 4-a, 5-a, 6-c, 7-d, 8-d, 9-c, 10-d, 11-c, 12-c, 13-b, 14-a, 15-c, 16-a, 17-c, 18-c, 19-a, 20-a, 21-a, 22-b, 23-d, 24-b, 25-c, 26-a, 27-d, 28-c, 29-a, 30-d, 31-d, 32-d, 33-d, 34-a, 35-d, 36-b, 37-d, 38-c, 39-c, 40-a

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