कलिंग युद्ध: अशोक पर प्रभाव, परिणाम और इतिहास का विस्तृत विवरण

भारतीय इतिहास का एक अत्यंत निर्णायक और भावनात्मक अध्याय है — कलिंग युद्ध। यह युद्ध जहाँ एक ओर मौर्य सम्राट अशोक की साम्राज्य-विस्तार की आकांक्षा का परिणाम था, वहीं दूसरी ओर उसके जीवन का सबसे गहरा परिवर्तन बिंदु सिद्ध हुआ। युद्ध में हुई व्यापक तबाही और जनहानि ने अशोक के हृदय को करुणा से भर दिया। परिणामस्वरूप, उसने हिंसा का मार्ग त्यागकर बौद्ध धर्म को अपनाया और जीवन को दया, अहिंसा तथा मानवता के आदर्शों के अनुरूप ढाल लिया। नीचे प्रदर्शित चित्र में अशोक के इस आत्मिक परिवर्तन और कलिंग युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाया गया है।

प्रश्न:— “कलिंग का युद्ध अशोक के जीवन में एक मोड़ साबित हुआ और इसने भारतीय और समस्त पूर्वी दुनिया के इतिहास को व्यापक रूप से प्रभावित किया।” विवेचना करे

अथवा
“कलिंग युद्ध ने मगध और भारत के इतिहास में एक नये युग का आरम्भ किया।” व्याख्या करें।
अथवा
अशोक की विदेश नीति का उल्लेख करें।

परिचय (Introduction)
कलिंग युद्ध का इतिहास और महत्व

कलिंग युद्ध (261 ईपू) मौर्य सम्राट अशोक के जीवन का सबसे निर्णायक युद्ध था। यह युद्ध अशोक के राज्याभिषेक के आठ वर्षों के बाद हुआ और इसे अशोक ने स्वयं अपने 13वें शिलालेख में विस्तार से दर्ज किया है। युद्ध की विभीषिका और रक्तपात ने अशोक के हृदय को झकझोरा और उसे चंडाशोक से धर्माशोक में बदल दिया।

कलिंग उस समय एक स्वतंत्र और समृद्ध राज्य था, जो उत्तर में वैतरणी नदी से पश्चिम में अमरकंटक और दक्षिण में महेन्द्रगिरि तक फैला हुआ था। अशोक के लिए अपने साम्राज्य की सुरक्षा और आर्थिक हितों की दृष्टि से कलिंग पर नियंत्रण आवश्यक था। इस युद्ध के माध्यम से मौर्य साम्राज्य ने दक्षिण-पूर्वी भारत में रणनीतिक और समुद्री मार्गों पर अपना प्रभाव स्थापित किया।

कलिंग युद्ध केवल सैनिक विजय नहीं थी, बल्कि इसके परिणामस्वरूप शांति, अहिंसा और धर्म के मार्ग की शुरुआत हुई। यह युद्ध भारतीय इतिहास में न केवल अशोक के जीवन का मोड़ था, बल्कि मौर्य साम्राज्य और सम्पूर्ण भारत के लिए नए सामाजिक और धार्मिक युग की नींव भी रखता है।

अशोक की विदेश नीति (Ashoka’s Foreign Policy)

अपने शासन काल के प्रथम तेरह वर्षो में अशोक ने मौर्य साम्राज्य की परंपरागत नीति का ही अनुसरण किया। उसने भारत के अन्दर अपने साम्राज्य का विस्तार और विदेशी शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार की नीति अपनाई। चन्द्रगुप्त और बिन्दूसार की तरह अशोक भी देशी शक्तियों के लिए आक्रामक और विदेशी शक्तियों के लिए मित्र रहा। राजदूतों के आदान-प्रदान एवं तुसाष्प जैसे यवनों को भी राजपद देने के उदाहरण विदेशियो से मौर्यो की मैत्री के परिचायक है। राजा बनने से पूर्व ही वह खस और नेपाल की विजय कर चुका था। कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि अशोक ने कश्मीर पर भी विजय प्राप्त की।

कलिंग युद्ध का परिचय (Introduction of Kalinga War)

 अशोक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध कलिंग का युद्ध था, जो उसके राज्यभिषेक के आठ वर्षों के पश्चात अर्थात नवें वर्ष (261-60 ई0 पू0) मे हुआ। इस युद्ध ने अशोक को ‘चंडाशोक’ से ‘धर्माशोक’ में परिवर्तित कर दिया।

कलिंग युद्ध क्यों हुआ: कारण और पृष्ठभूमि

 कलिंग युद्ध का विस्तृत वर्णन अशोक अपने 13 वें शिलालेख में करता है। इस युद्ध के अनेक कारण प्रतीत होते है। संभवतः नन्द वंश के पतन के बाद कलिंग एक स्वतन्त्र राज्य बन गया था। कलिंग एक शक्तिशाली और संपन्न राज्य था। इसका विस्तार उत्तर में वैतरणी से लेकर पश्चिम में अमरकंटक और दक्षिण में महेन्द्रगिरि पर्वत तक था। यह राज्य हाथियों के लिए प्रसिद्ध था। मेगस्थनीज इस बात की पुष्टि करता है कि उसके समय मे कलिंग का राज्य एक स्वतंत्र राज्य था। इसकी सैनिक शक्ति अत्यधिक बढ़ी-चढ़ी थी। अशोक जैसे चक्रवर्ती सम्राट के लिए अपने पड़ोस में एक स्वतंत्र और शक्तिशाली राज्य का अस्तित्व सहन करना कठिन था। मगध की सुरक्षा के लिए कलिंग पर नियंत्रण करना आवश्यक था। कलिंग विजय का दूसरा कारण संभवतः यह था की अशोक कलिंग पर अधिकार कर दक्षिण भरत से सीधा सम्पर्क कायम करना चाहता था। यह तभी सम्भव था, जब मौर्यो का नियंत्रण कलिंग होकर दक्षिण जाने वाले स्थल और सामुद्रिक मार्ग पर हो। व्यापार की प्रगति के लिए भी कलिंग पर अधिकार आवश्यक था। कलिंग का दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों के साथ संबंध था। इस पर अधिकार होने से पूर्वी समुद्री व्यापार पर मौर्यो का नियंत्रण स्थापित होता। प्रसिद्ध विद्वान आर0 जी0 भण्डारकर के अनुसार अशोक ने कलिंग पर इसलिए भी आक्रमण किया कि कलिंग के शासक ने बिंदूरसार के समय मे मगध के विरुद्ध दक्षिण के चोल एवं पांडय राजाओ की सहायता की थी, लेकिन इस तर्क की पुष्टि के स्पष्ट प्रमाण नही है। वस्तुतः अशोक के सामने कलिंग विजय के दो स्पष्ट उद्देश्य प्रतीत होते है। पहला एक पड़ौसी स्वतंत्र राज्य को अपनी अधीनता स्वीकार करवाना तथा दूसरा मौर्य साम्राज्य के अर्थिक हितों की सुरक्षा करना। अतः अशोक ने कलिंग विजय की योजना बनाई।

कलिंग युद्ध का विवरण और अशोक की विजय

कलिंग युद्ध का वर्णन अशोक के 13 वें शिलालेख में मिलता है। जिससे पता चलता है कि यह एक भीषण युद्ध था, जिसमे लाखो व्यक्ति मारे गये, घायल हुए, और बन्दी बनाये गए। अन्ततः कलिंग पर अशोक की विजय हुई। कलिंग मगध साम्राज्य का अंग बन गया। इसका प्रशासन तोसली (पुरी जिला) में स्थित राजकुमार को सौंप दिया गया। अशोक ने राज्य के अधिकारियों को प्रजा के साथ पुत्रवत एवं न्यायपूर्ण व्यवहार करने का आदेश दिया।

कलिंग युद्ध के सामाजिक और ऐतिहासिक परिणाम

कलिंग युद्ध के परिणाम अत्यन्त महत्वपूर्ण निकले। युद्ध मे हुए भीषण रक्तपात को देखकर अशोक का हृदय परिवर्तित हो गया।उसने शांति और अहिंसा की नीति अपना ली तथा हमेशा के लिए युद्ध करना छोड़ दिया। कलिंग युद्ध के परिणाम मौर्य वंश और प्राचीन भारतीय इतिहास के लिये अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए।

कलिंग युद्ध के ऐतिहासिक परिणाम

यह विजय विकास की उस नीति का अन्त करती है, जिसका आरम्भ बिम्बिसार ने अंग देश पर विजय प्राप्त करके किया था। यह एक नये युग का आरम्भ करती है- यह युग है शांति का, सामाजिक उन्नति का, धार्मिक प्रचार का तथा राजनीतिक अवरोध और सैनिक पतन का। सैनिक विजय या दिग्विजय का युग समाप्त हो गया तथा आध्यात्मिक विजय या धम्म विजय का युग प्रारम्भ होने वाला था।” इस प्रकार कलिंग विजय अशोक के जीवन काल की क्रन्तिकारी घटना थी। इसके दूरगामी और स्थाई परिणाम निकले।

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विद्वानों का मत

“कलिंग की विजय मगध तथा भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण सीमा चिन्ह है। यह विजय विकास की उस नीति का अन्त करती है, जिसका आरम्भ बिम्बिसार ने अंग देश पर विजय प्राप्त करके किया था। यह एक नये युग का आरम्भ करती है — शांति, सामाजिक उन्नति, धार्मिक प्रचार तथा राजनीतिक अवरोध का युग।“

कलिंग युद्ध के बाद अशोक की नीति (Ashoka’s Policy after Kalinga War)

 कलिंग युद्ध के अतिरिक्त अशोक ने अन्य किसी प्रकार का युद्ध नही किया। इस युद्ध के पश्चात उसने मैत्री की नीति अपनाई। कलिंग अभिलेख में अशोक ने स्वयं घोषणा की है कि सीमान्त स्वतन्त्र राज्य उससे भयभीत न हों और विश्वास रखे कि उन्हें अशोक से सुख की प्राप्ति होगी। उसने स्वीकार किया कि धम्म-विजय सबसे बड़ी विजय है और आशा व्यक्त की कि उसके उत्तराधिकारी भी धम्म-विजय की नीति अपनाएंगे। यधपि ‘भेरीघोष’ का स्थान ‘धम्म घोष’ ने ले लिया था फिर भी इसका अर्थ यह नही था कि अशोक ने अपने साम्राज्य को विघटनकारी तथ्यो के हाथों छोड़ दिया था या उसकी सुरक्षा से हाथ खींच लिया था या सेना को उसने नियत काम से छुट्टी दे दी थी। अशोक ने स्पष्ट घोषणा की कि “यदि उन प्रदेशो के निवासी, जिन्हें मैने नही जीता है, जानना चाहते है कि मेरी क्या इच्छा है,उन्हें बतला दिया जाय कि उनके प्रति मेरी यह इच्छा है कि मेरे कारण वे किसी प्रकार चिन्तित न हो। मुझमें विश्वास रखे। उन्हें इस व्यवहार का फल सुख ही मिलेगा न कि शोक। किन्तु यह भालीं प्रकार समँझ ले कि मैं उनको एक सीमा तक ही क्षमा कर सकता हूँ, उससे परे नही।”

विदेश नीति के मुख्य तत्व

अशोक की इस नीति का आशय यह था कि यदि वे उपद्रव करेंगे तो वह उन्हें दण्ड देगा। अशोक ने चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्र, केरालपुत्र और ताम्रपर्णी को जीतने का प्रयास नही किया। उसने विदेशी शासकों के साथ मित्रता का संबंध रखा। यद्यपि अशोक ने अपने पड़ौसी राज्यो को जीतकर अपने साम्राज्य में नही मिलाया अपितु समय-समय पर वह उन्हें परामर्श देते रहता था। इन राज्यो में उसने अपने धर्म प्रचारक भेजे। मनुष्य तथा पशुओं के लिए चिकित्सालय खोले और औषधियों के पौधे लगवाये।

अशोक की विश्व नीति और धम्म विजय (Ashoka’s Dhamma and World Policy)

अशोक का प्रयत्न बाहरी राज्यो के साथ मैत्री, सौहार्दपूर्ण सहयोग और सह-अस्तित्व का सम्बन्ध थ। अपने राष्ट्र के साथ-साथ वह समान रूप से बाहरी राष्ट्रों के हित के लिए भी कामना करता था। निश्चय ही उसकी इस नीति ने बाहरी देशो के साथ भारत के संबंध दृढ़ कर दिए थे। अशोक कि इस नीति का आधार था “सर्वकल्याण अर्थात विश्वकल्याण की कामना और सब प्राणियों के प्रति सुरक्षा, संयम, समुचित और मृदुता के व्यवहार की सक्रिय भावना, जिसके लिए अशोक जीवन पर्यन्त प्रयत्न करता रहा। यवनों के साथ-साथ उसने चोल, पाण्ड्य, सतियपुत्र, केरालपुत्र और ताम्रपर्णी के राज्यो के साथ भी सर्वकल्याण, सहयोग एवं सह-अस्तित्व की नीति अपनाई।

निष्कर्ष (Conclusion)

कलिंग युद्ध अशोक के जीवन का वह निर्णायक क्षण था जिसने उसके व्यक्तित्व और शासन की दिशा बदल दी। युद्ध की विभीषिका ने उसके भीतर गहन आत्मचिंतन उत्पन्न किया, जिसके परिणामस्वरूप उसने हिंसा का त्याग कर करुणा, धर्म और मानवता का मार्ग अपनाया। अशोक की नीतियों ने भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ किया और सम्पूर्ण एशिया में शांति तथा अहिंसा के आदर्शों का प्रसार किया। वास्तव में, कलिंग युद्ध ने भारत के इतिहास को एक नए युग की ओर अग्रसर किया, जहाँ शक्ति की जगह नीति और करुणा को प्राथमिकता मिली।

PAQ (People Also Ask)

प्रश्न 1: कलिंग युद्ध कब और किनके बीच हुआ था?

उत्तर: कलिंग युद्ध लगभग 261 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक और कलिंग राज्य (वर्तमान में ओडिशा के क्षेत्र) के बीच लड़ा गया था। यह संघर्ष भारतीय इतिहास का एक अत्यंत भयानक और विनाशकारी युद्ध माना जाता है, जिसमें असंख्य सैनिकों और आम नागरिकों ने अपने प्राण गंवाए। इस भयानक परिणाम ने अशोक के जीवन और शासन की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया।

प्रश्न 2: कलिंग युद्ध का अशोक के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक के जीवन में गहरा परिवर्तन आया। युद्ध के दौरान हुए व्यापक विनाश और जनहानि ने उसके मन को झकझोर दिया। उसने महसूस किया कि हिंसा और युद्ध केवल पीड़ा लाते हैं। परिणामस्वरूप, अशोक ने हिंसा का त्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाया और जीवन में अहिंसा, करुणा तथा दया को सर्वोच्च मूल्य मान लिया।

प्रश्न 3: कलिंग युद्ध के परिणाम क्या थे?

उत्तर: कलिंग युद्ध के कई दूरगामी प्रभाव हुए —

  1. यद्यपि अशोक ने विजय प्राप्त की, परंतु अपार जनहानि से उसका हृदय दुखी हुआ।
  2. उसने युद्ध की नीति छोड़कर शांति और नैतिक शासन की नीति अपनाई।
  3. बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का भारत और विदेशों में प्रसार हुआ।
  4. शासन को अधिक कल्याणकारी, मानवीय और धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित बनाया गया।
    इस युद्ध ने मौर्य साम्राज्य की नीतियों को नई दिशा प्रदान की और भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।

प्रश्न 4: कलिंग युद्ध को अशोक के जीवन का Turning Point क्यों कहा जाता है?

उत्तर: कलिंग युद्ध को अशोक के जीवन का “टर्निंग पॉइंट” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस युद्ध ने उसके दृष्टिकोण और जीवन दोनों को पूरी तरह बदल दिया। युद्ध से पहले वह एक महत्वाकांक्षी विजेता था, लेकिन युद्ध के बाद वह जनसेवा और नैतिक शासन का प्रतीक बन गया। इस परिवर्तन के साथ अशोक ने अपने साम्राज्य में अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता और जनकल्याण की नीतियाँ लागू कीं।

प्रश्न 5: कलिंग युद्ध से भारतीय इतिहास को क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर: कलिंग युद्ध हमें यह सिखाता है कि हिंसा का परिणाम केवल विनाश होता है, जबकि सच्ची शक्ति करुणा, दया और मानवता में निहित होती है। यह घटना दर्शाती है कि जब एक शक्तिशाली सम्राट अपने भीतर झाँककर आत्मबोध करता है, तो वह समाज के लिए एक महान आदर्श बन सकता है। अशोक का यह परिवर्तन विश्व इतिहास में मानवीय मूल्यों का अनुपम उदाहरण है।

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