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मौर्यकाल को भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम दौर माना जाता है, जब शिक्षा, भाषा, लिपि और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई। तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों की ख्याति, सम्राट अशोक के अभिलेखों में प्रयुक्त ब्राह्मी व खरोष्ठी लिपियाँ तथा संस्कृत और पाली साहित्य का उत्कर्ष इस युग की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है।

परिचय
मौर्यो की केंद्रीय शासन व्यवस्था के दौरान शिक्षा, भाषा, लिपि एवं साहित्य का भी अभूतपूर्व विकास हुआ, जिसे हम निम्नलिखित संदर्भो में उल्लेखित कर सकते है—
(A) मौर्यकालीन शिक्षा प्रणाली

मौर्य काल मे शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी उन्नति हुई। गुरुकुलों में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे। यद्यपि राज्य स्वयं अपनी तरफ से शिक्षा की व्यवस्था नही करता था, तथापि आचार्यो एवं पुरिहितो को आर्थिक सहायता दी जाती थी। राज्य की तरफ से इन्हें “ब्रम्हदेय भूमि” भी दान में दी जाती थी। समूचे साम्राज्य में अनेक विख्यात शैक्षणिक केंद्र स्थापित हो गए थे। तक्षशिला, बनारस, उज्जैन इत्यादि प्रसिद्ध शिक्षा के केंद्र थे, जहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने आते थे। तक्षशिला उच्च शिक्षा का सुविख्यात केंद्र था। कौशलराज प्रसेनजित तक्षशिला के विद्यार्थी के रूप में रह चुके थे। सम्राट बिम्बिसार के राजवैद्य जीवक तक्षशिला का ही आचार्य था। चन्द्रगुप्त मौर्य कुछ समय तक तक्षशिला में आचार्य चाणक्य का शिष्य बनकर रह चुका था। इसी प्रकार अनेक राजकुमार तक्षशिला में अध्ययन किया करते थे। तक्षशिला के आचार्य अपने ज्ञान के लिए सुविख्यात थे। धार्मिक शिक्षा के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र, धनुर्विद्या, चिकित्साशास्त्र, मंत्रविद्या, हस्ति विद्या आदि की शिक्षा दी जाती थी। मौर्य काल मे तक्षशिला जैसे उच्च शिक्षा केंद्रों के अतिरिक्त गुरुकुलों, मठो तथा विहारों में भी शिक्षा दी जाती थी। शिल्पी संघ व्यवसायिक शिक्षा देते थे। इसके अतिरिक्त अनेक आचार्य, पुरोहित आदि व्यक्तिगत रूप से शिक्षा दिया करते थे। लिखने की कला से भारतीय परिचित हो चुके थे। उनका प्रमाण अशोक के अभिलेख है। कर्टियस भी कहता है कि भारतीय सन के वस्त्र के टुकड़े एवं वृक्षो की छाल का प्रयोग लिखने के लिए करते थे। मौर्य शासनकाल में शिक्षा की स्थिति पर विचार करते हुए डॉ वी0ए0 स्मिथ ने लिखा है कि “अशोक के समय मे भारतवर्ष में शिक्षा का प्रतिशत दर ब्रिटिश राज्य के अनेक प्रान्तों की दर से ऊंची थी।” परन्तु यह ध्यान में रखना चाहिए कि तक्षशिला के शिक्षा केन्द्र के द्वार एक मात्र प्रथम तीन वर्णों के लिए खुले थे। शूद्रों का प्रवेश निषिद्ध था।
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(B) मौर्यकालीन भाषा का विकास
मौर्य काल मे दो भाषाओ का प्रचलन था–
(1) संस्कृत भाषा
संस्कृत भाषा साहित्यिक और शिक्षित वर्ग की भाषा मानी जाती थी। संस्कृत भाषाओ में हिन्दुओ के धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई। संस्कृत जिसमे पूरी वैदिक संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद और सूत्र साहित्य लिखा गया। इसका स्वरूप व्याकरण के नियमो से बंधा हुआ था।
(2) प्राकृत अथवा पाली साहित्य

यह भाषा, जनसाधारण की भाषा थी, इस भाषा को गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशो का माध्यम बनाया। प्रारंभिक बौद्ध साहित्य त्रिपिटक और जातक इसी भाषा मे लिखे गए है। इस भाषा ने भी साहित्यिक भाषा का रूप धारण करना प्रारंभ कर दिया था। अशोक ने इस भाषा को राजभाषा स्वीकार किया और उसके धर्मलेख, जो सम्पूर्ण देश मे विस्तृत थे, इसी भाषा मे लिखे गए है। यह भाषा उत्तर भारत मे जन साहित्य की भाषा थी और दूसरे प्रान्तों की जन भाषाओ से इसका मेल था, किन्तु यह फिर भी संस्कृत की अपेक्षा जनता के निकट थी।
(C) मौर्यकालीन लिपियाँ

इस समय भारत मे दो लिपियाँ थी—
(1) ब्राह्मी लिपि
ब्राह्मी लिपि पश्चिमी भारत के अतिरिक्त समस्त भारत मे प्रयुक्त की जाती थी। यह लिपि राष्ट्र लिपि के पद पर आसीन थी। यह लिपि आधुनिक भारत के विभिन्न प्रान्तों श्रीलंका, तिब्बत आदि देशों की लिपियों की जननी है। यह लिपि दाएँ से बाँये लिखी जाती थी। इसकी रचना प्राचीन भारतीयों की ऊंची प्रतिभा का धोतक है।
(2) खरोष्ठी लिपि
खरोष्ठी लिपि का प्रचलन पश्चिमी भारत मे था। यह लिपि अरबी लिपि की तरह दाँए से बांये ओर लिखी जाती थी। अशोक के जो अभिलेख इस भाग में पाये जाते है, उनकी भाषा पाली है लेक़िन लिपि खरोष्ठी है। खरोष्ठी लिपि लिखने के लिए उस समय एक विशेष प्रकार का ताड़पत्र का प्रयोग किया गया है। इसकी वर्णमाला संस्कृत के आधार पर थी।
(D) मौर्यकालीन साहित्य
मौर्यकाल साहित्य सृजन का भी काल था। तीन धार्मिक सम्प्रदायों के समान इस काल का साहित्य तीन विचारधाराओं में विभाजित था। यथा- वैदिक धारा, बौद्ध साहित्य एवं जैन साहित्य। जिसका वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता हैं—
(1) वैदिक साहित्य
वैदिक धारा के अंतर्गत गृह सूत्र, धर्म सूत्र और वेदांगों की रचना इसी काल मे की गई है। महापण्डित चाणक्य ने अपने महान ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना की। संभवतः कात्यायन ने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर अपने वार्तिक इसी समय लिखे। अनेक विद्वानों में सुबंधु नामक एक ब्राह्मण का उल्लेख आता है। जो बिंदूरसार का मंत्री था। इसे वासवदत्ता नाट्य धारा नामक नाटक का रचयिता बताया जाता है। बृहत्कथा कोष के अनुसार ‘कवि’ नामक एक अन्य विद्वान भी इसी समय हुआ। कुछ विद्वानों का मत है कि वात्सयायन नामक प्रसिद्ध विद्वान भी इसी समय हुआ और उसने कामसूत्र नामक अन्य ग्रंथ की रचना की। परन्तु यह मत अत्यंत संदिग्ध है। भास के नाटकों की रचना भी इसी समय हुई। कुछ विद्वानों की ऐसी धारणा है कि रामायण और महाभारत के कुछ अंशो का परिवर्द्धन इसी समय हुआ। इस काल का राजनीति से संबंधित सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ कौटिल्य का अर्थशास्त्र था।
(2) बौद्ध साहित्य
बौद्ध साहित्य के लिए तो अशोक का काल ऐतिहासिक है। इसी समय तृतीय बौद्ध संगीति, त्रिपिटकों का संगठन तथा तिस्स द्वारा अभिधम्मपिटक के कथावस्तु की रचना आदि महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई।
(3) जैन साहित्य
जैन साहित्य की दृष्टि से भी मौर्यकाल कुछ कम महत्वपूर्ण नही है। इसी समय जैन धर्म का प्रसिद्ध आचार्य भद्रबाहु हुआ। अनुश्रुति के अनुसार उसी की प्रेरणा से चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया था। अन्य जैन विद्वान जम्बूस्वामी, प्रभव और स्वयम्भव भी इसी काल मे हुये। इन सबकी रचनाये जैन धर्म की संपत्ति है। अनेक विद्वानों का मत है कि जैन धर्म के आचारंगसूत्र, भगवतिसूत्र, संवायांगसूत्र आदि की रचना अधिकांशतः इसी समय हुई।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा, भाषा, लिपि और साहित्य का मौर्यकाल में चहुंमुखी विकास हुआ। एक राष्ट्र में शांति एवं जनता के सुखमय वैभवपूर्ण जीवन को शिक्षा एवं साहित्य के विकास के लिए उपयुक्त माना गया है। फलतः हम इस काल मे इन क्षेत्रों में उन्नति पाते है।
People Also Ask (FAQ)
प्रश्न 1. मौर्यकाल में शिक्षा का मुख्य केंद्र कौन था?
उत्तर: मौर्यकाल में तक्षशिला उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जहाँ देश-विदेश से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे।
प्रश्न 2. मौर्यकाल में कौन-कौन सी भाषाएँ प्रचलित थीं?
उत्तर: मौर्यकाल में दो प्रमुख भाषाएँ प्रचलित थीं — संस्कृत (विद्वानों की भाषा) और पाली या प्राकृत (जनसाधारण की भाषा)।
प्रश्न 3. मौर्यकाल में कौन-कौन सी लिपियाँ प्रयोग में थीं?
उत्तर: मौर्यकाल में दो प्रमुख लिपियाँ थीं — ब्राह्मी लिपि (समूचे भारत में) और खरोष्ठी लिपि (उत्तर-पश्चिम भारत में)।
प्रश्न 4. मौर्यकालीन साहित्य की प्रमुख धाराएँ कौन-सी थीं?
उत्तर: इस काल का साहित्य तीन धाराओं में विभाजित था — वैदिक साहित्य, बौद्ध साहित्य और जैन साहित्य।
प्रश्न 5. मौर्यकाल के प्रमुख साहित्यकार कौन थे?
उत्तर: इस युग के प्रमुख साहित्यकार कौटिल्य (चाणक्य), भास, कात्यायन और भद्रबाहु थे। इनके ग्रंथों ने भारतीय साहित्य को नई दिशा दी।
