अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक एवं बाजार नियंत्रण नीति: आलोचनात्मक समीक्षा

अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीतियाँ और बाजार नियंत्रक उपाय मध्यकालीन भारत के प्रशासनिक ढाँचे में अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। सुल्तान ने आवश्यक वस्तुओं के दाम तय कर, कठोर निरीक्षण तंत्र स्थापित कर तथा विशाल सेना के खर्च को नियंत्रित करने हेतु कई प्रभावी सुधार लागू किए। इन कदमों का असर पूरे दिल्ली सल्तनत के बाजार तंत्र और शासन व्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखा गया। प्रस्तुत चित्र में इन बाजार नियंत्रण उपायों का एक वास्तविक और जीवंत दृश्य दर्शाया गया है।

परिचय

अलाउद्दीन खिलजी  ने  एक विशाल साम्राज्य के लिये एक बड़ी स्थायी सेना संगठित की। इसी सेना की सहायता से साम्राज्य के विभिन्न स्थानों में होने वाले विद्रोह को दबाया और साथ ही सम्पूर्ण साम्राज्य को अपने हाथों में केंद्रित किया। इस विशाल सेना की आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु उसने वस्तुओ के मूल्य निश्चित किये और उनके मूल्यो (दरों) को कम कर दिया। भारतीय इतिहास में अलाउद्दीन खिलजी की यही व्यवस्था बाजार मूल्य नियंत्रण अथवा आर्थिक नियमन कहलाती है। अलाउद्दीन खिलजी की यह नीति मध्यकालीन भारतीय इतिहास में काफी महत्वपूर्ण है। इस नीति के कारण अलाउद्दीन खिलजी को मध्यकाल का राजनीतिक अर्थशास्त्री की संज्ञा दी गयी है।

उद्देश्य: बाजार नियंत्रण नीति लागू करने का कारण

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति पर इतिहासकारो ने  ने बताया कि इसके पीछे उसका उद्देश्य मानवीय था तथा उसने प्रजा की भलाई के लिये इस व्यवस्था को लागू किया था लेकिन जिस कठोरता से यह व्यवस्था लागू की गयी उससे स्पष्ट होता है कि उसका उद्देश्य प्रजा की भलाई नही बल्कि राजनीतिक था। दरअसल उसने एक विशाल सेना स्थापित की और उसे नकद वेतन देना प्रारम्भ किया। सैनिकों की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखने एवं वस्तुओ में मूल्य में वृद्धि को रोकने के उद्देश्य से बाजार नियंत्रण व्यवस्था लागू की गई थी। प्रोफेसर के0 एस0 लाल और मोरलैंड का विचार है कि यह व्यवस्था सिर्फ दिल्ली में ही लागू की गई थी परन्तु कुछ अन्य विद्वानों की धारणा है कि इसे पूरे साम्राज्य में लागू किया गया था। अलाउद्दीन खिलजी ने विभिन्न वस्तुओं के लिए विभिन्न बाजार संगठित किये और उनके लिए आवश्यक अधिनियम बनाये। ये बाजार थे–गल्ला बाजार,सराय-ए-अदल, घोड़ो, दासो, और मवेशियों के बाजार तथा अन्य वस्तुओं के लिए सामान्य बाजार।

दैनिक उपयोग की वस्तुओं का मूल्य निर्धारण

अलाउद्दीन खिलजी ने एक अधिनियम के द्वारा दैनिक उपयोग की वस्तुओं का मूल्य निश्चित कर दिया। कुछ महत्वपूर्ण अनाजो का मूल्य इस प्रकार था –गेहूँ 7.5 जीतल प्रति मन, चावल 5 जीतल, जौ 4 जीतल, उड़द 5 जीतल, मक्खन या घी ढाई किलो, एक जीतल, मूल्यों की स्थिरता अलाउद्दीन खिलजी की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। जिसने खाद्यानों की बिक्री हेतु शहना-ए-मंडी नामक बाजार की स्थापना की। प्राकृतिक विपदा से बचने के लिये अलाउद्दीन खिलजी ने शासकीय अन्न भण्डार की व्यवस्था की थी। अपनी राशन व्यवस्था के अंतर्गत अनाज को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराने के लिए सुल्तान ने अधिकांशलगान अनाज के रूप में वसूल किया परन्तु पूर्वी राजस्थान के झाईन (छाईन) क्षेत्र से आधी मालगुजारी अनाज के रूप में, आधी नकद रूप में वसूल की जाती थी। अकाल या बाढ़ के समय प्रत्येक घर को आधा मन अनाज सहायता के रूप में दिया जाता था। राशानिग व्यवस्था अलाउद्दीन खिलजी की नवीन सोच थी। मलिक कबूल को अलाउद्दीन खिलजी ने खाद्यान बाजार का शाहना-ए-मंडी नियुक्त किया था।

सराय-ए-अदल: उपभोक्ता वस्तुओं का विशेष बाजार

यह ऐसा बाजार होता था जहाँ पर वस्त्र, शक्कर, जड़ी-बूटी, मेवा, दीपक जलाने का तेल, एवं अन्य निर्मित की गयी वस्तुएं बिकने के लिये आती थी। सराय-ए-अदल का निर्माण बदायूँ द्वार के समीप एक बड़े मैदान में किया गया था। इस बाजार में एक टंके से लेकर 10,000 मूल्य टंके की वस्तुएं बिकने आती थी। अलाउद्दीन खिलजी ने कपड़े का व्यापार करने वाले व्यापारी को खाद्यान्न व्यापारियों की तुलना में अधिक प्रोत्साहन दिया।

घोड़ा, दास और मवेशी बाजार के नियम (4 मुख्य नियम)

1. किस्म के अनुसार मूल्य का निर्धारण।

2. व्यापारियों एवं पूंजीपतियों का बहिष्कार।

3. दलाली करने वाले लोगो पर कठोर अंकुश।

4. सुल्तान द्वारा बार-बार जांच पड़ताल।

मूल्य नियंत्रण को सफल बनाने में मुहतसिब एवं नाजिर माप-तौल अधिकारी की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी।सामान्य बाजार और मूल्य नियंत्रण

दीवान-ए-रियासत एवं वाणिज्य मंत्रालय के नियंत्रण में सामान्य बाजार भी स्थापित किये गये थे। ये बाजार पूरे नगर में थे। इन बाजारों में बिकने वाली सामान्य वस्तुएँ जैसे- मिठाइयां, सब्जियां, रोटियां,कंघी, चप्पल,जूता, बर्तन,सुपारी, पान, मिट्टी के बर्तन,इत्यादि के मूल्य भी निश्चित किये गये थे। मूल्य निर्धारण उत्पादन लागत के आधार पर किया जाता था।

आर्थिक प्रशासन: दीवान-ए-रियासत की भूमिका

अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी बाजार व्यवस्था के संचालन के लिए सर्वप्रथम दीवान -ए-रियासत नामक विभाग का निर्माण किया एवं उसके अधीन सराय-ए-मंडी, सराय-ए-अदूर, बरीद-ए-मंडी, मुन्नीहास तथा परवाना नवीस जैसे अधिकारियों को नियुक्त किया गया।वास्तव में अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था सीमित अर्थो में एक राज्य जैसी थी,जिसकी सम्पूर्ण गतिविधियों का संचालन, नियंत्रण, एवं निर्देशन केवल विभाग के अंतर्गत ही किया जा सकता था। अर्थात दीवान-ए-रियासत बाजार के सम्बंध में कार्यपालिका, विधानपालिका, और न्यायपालिका तीनो ही कार्य करने के लिये स्वतंत्रत थी। आपातकालीन स्थितियों में सुल्तान इसमे हस्तक्षेप करता था। यह सम्पूर्ण व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे इसके लिये अलाउद्दीन खिलजी ने कठोर दण्ड का विधान किया था। जिसके अनुसार कम तोलने पर व्यापारी के शरीर से उतना ही मांस कटवाकर कमी की भरपाई की जाती थी। जिसका परिणाम यह हुआ कि अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण व्यवस्था बिना किसी विद्रोह के उसके जीवन पर्यन्त चलती रही परन्तु निरंकुशवाद पर आधारित यह व्यवस्था अलाउद्दीन खिलजी के मरते ही ताश के पत्तो की तरह बिखर गई।

राजस्व और कर व्यवस्था में सुधार

राजस्व सुधारो के अंतर्गत अलाउद्दीन खिलजी ने सर्वप्रथम मिल्क, ईनाम, वक्फ, के अंतर्गत दी गयी भूमि को वापस लेकर उसे खालसा में बदल दिया। साथ ही मुकद्दमों, खूतो एवं चौधरियों के विशेषधिकार को समाप्त कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने पैदावार का 50% (1/2) भूमि कर ( खराज) के रूप में लेना निश्चित किया। अलाउद्दीन खिलजी प्रथम सुल्तान था जिसने भूमि की पैमाइश कराकर  (माप/मसाहत)  एवं भूमि की वास्तविक आय पर लगान लेना निश्चित किया। अलाउद्दीन खिलजी ने भूमि के एक विस्वा को एक इकाई माना। सुल्तान लगान को अन्न में वसूल करने को महत्त्व देता था।  अलाउद्दीन खिलजी ने दो नवीन करो यथा-  करही कर (गृह कर) चराई कर को लागू किया। जजिया कर गैर मुस्लिम से लिया था ख़ुम्श कर  4/5 भाग राज्य को तथा  1/5 भाग सैनिकों के हिस्से में आता था। जकात केवल मुसलमानों से लिया जाने वाला एक धार्मिक कर था, जो सम्मत्ति का 40 वां हिस्सा होता था।

Must Read It: Alauddin Khilji Administration: Policies, Reforms and Key Measures Explained

समीक्षा (Critical Evaluation)

अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था उसके  समय मे लक्ष्य की पूर्ति करने में सफल रही। वह चाहता था कि सभी वस्तुएँ निश्चित मूल्य पर बेची जाय और वह इसमे सफल भी हुआ। इसके पीछे उसका उद्देश्य एक संगठित एवं विशाल सेना कायम रखना था जिसमे वह सफल हुआ। अलाउद्दीन खिलजी के समय मंगोलो के आक्रमण हुए । अतः उसने इसी सेना की मदद से उनको आसानी से पराजित किया। इसके अतिरिक्त दिल्ली वासियो को भी उससे लाभ हुआ क्योंकि सभी वस्तुएँ  सामान्य मूल्य पर मिल जाती थी। निःसंदेह वस्तुओं को निर्धारित मूल्य पर बेचे जाने की अलाउद्दीन खिलजी की व्यवस्था सफल और अद्वितीय थी।
      परन्तु अलाउद्दीन खिलजी को उसकी सफलता का उचित श्रेय प्रदान करने के पश्चात यह भी स्वीकार करना पड़ता है कि उसकी बाजार व्यवस्था न तो जन साधारण के हित मे थी, न राज्य के अन्तिम हितों की पूर्ति में सहायक और न स्थायी। इस व्यवस्था से किसानों को कोई लाभ नही था। किसानों को अपनी उपज का आधा भाग लगान के रूप में देना पड़ता था। दिल्ली के नागरिक ही निर्धारण मूल्य पर वस्तुएँ खरीद सकते थे। परन्तु अन्य व्यक्तियों को यह सुविधा नहीं थी। व्यापारियों का लाभ राज्य की इच्छा पर निर्भर करता था। ऐसी स्थिति में व्यापार उद्योगों को प्रोत्साहन मिलने का कोई प्रश्न ही नही था। अतः अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के उपरान्त उसकी बाजार व्यवस्था समाप्त हो गई।

FAQ / PAQ (People Also Ask)

Q1. अलाउद्दीन खिलजी ने बाजार नियंत्रण नीति क्यों लागू की थी?

उत्तर: अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी विशाल स्थायी सेना की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बाजार नियंत्रण व्यवस्था लागू की। उनका उद्देश्य था कि सैनिकों और आम जनता को रोजमर्रा की वस्तुएँ कम और स्थिर कीमतों पर उपलब्ध हों तथा व्यापारी कृत्रिम रूप से दाम न बढ़ा सकें।

Q2. अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था कितने और किन प्रकार के बाजारों में विभाजित थी?

उत्तर: खिलजी की बाजार प्रणाली को मुख्य रूप से चार प्रमुख वर्गों में संगठित किया गया था—

  1. गल्ला बाजार (अनाज से संबंधित व्यापार),
  2. सराय-ए-अदल (कीमती वस्तुओं और बारीक सामानों का बाजार),
  3. घोड़ा, दास एवं मवेशी बाजार,
  4. सामान्य या रोजमर्रा की वस्तुओं के बाजार

Q3. मूल्य नियंत्रण लागू करने के लिए किन अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी?

उत्तर: मूल्य नियंत्रण की निगरानी और पालन के लिए कई अधिकारी तैनात थे, जिनमें प्रमुख थे—

  • शहना-ए-मंडी,
  • मुहतसिब,
  • नाजिर,
  • दीवान-ए-रियासत

ये अधिकारी सुनिश्चित करते थे कि कीमतें निश्चित सीमा में रहें और व्यापारी नियमों का पालन करें।

Q4. क्या अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नीति सफल रही?

उत्तर: खिलजी के शासनकाल में यह नीति काफी प्रभावी रही और बाजारों में कीमतें नियंत्रित रहीं। हालाँकि, उनके निधन के बाद जब कठोर नियम और दंड व्यवस्था शिथिल हो गई, तो यह प्रणाली जल्दी ही टूटने लगी।

Q5. किसानों पर अलाउद्दीन की आर्थिक नीति का क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: किसानों पर भारी भूमि कर—लगभग पचास प्रतिशत—और अनाज की अनिवार्य वसूली जैसी व्यवस्थाएँ लागू थीं। इन कारणों से किसानों को कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल पाया और वे इस नीति से काफी प्रभावित एवं दबाव में रहे।

Share this article

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top