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अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत में अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए कई महत्वपूर्ण अभियान चलाए। इन अभियानों का नेतृत्व मलिक काफ़ूर ने किया और इनसे दिल्ली सल्तनत को अपार धन, शक्ति और प्रतिष्ठा मिली। यहाँ उसकी दक्षिण नीति और अभियानों का सरल विश्लेषण प्रस्तुत है।

परिचय: अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति का स्वरूप
अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण भारत की नीति धन, एवं साम्राज्य निर्माण या यश की भावना का प्रतीक थी। इसके अतिरिक्त वह जनता था कि दक्षिण की संपत्ती से ही वह सुल्तान बने हैं, और उसी के द्वारा बने रह सकते हैं। अलाउद्दीन खिलजी एक दूरदर्शी एवं व्यवहारिक शासक थे। और वह जानते थे कि उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों के संदर्भ में उनके द्वारा अपनाई जा रही सम्मेलन की नीति दक्षिण भारत में संचार के साधनो एवं प्रशासनिक तंत्र के अभाव में असफल हो जाएगी। इसीलिए उन्होंने दक्षिण भारत में अधीनस्थ राज्य की नीति का अवलंबन किया और इन राज्यो से नियामित कर एवं उपहार लेकर अपने कार्य की इतिश्री मान बैठे।
अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियानों के उद्देश्य (मुख्य कारण)
उत्तर भारत की विजय प्राप्त करने के पश्चात अलाउद्दीन खिलजी ने अपना ध्यान दक्षिण के राज्यों की ओर केंद्रित किया अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दक्षिण के राज्यों पर आक्रमण के निमनालिखत कारण थे—
1. साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा और राजनीतिक अवसर
अलाउद्दीन खिलजी आत्यंत लालची और साम्राज्यवादी था। उसने दक्षिण की राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाया। जिसके अंतर्गत दक्षिण के सभी राज्य आपस में संघर्षरत थे।
2. विस्तृत सेना को सक्रिय और आर्थिक रूप से समर्थ बनाना
उत्तर भारत की विजय तथा मंगोल आक्रमण को रोकने के लिए सुल्तान ने एक विशाल सेना का गठन किया था। उस सेना को सक्रिय बनाये रखने के लिए उसने दक्षिण के राज्यो को जीतने की योजना बनाई।
3. धन-संपत्ति की आवश्यकता
विशाल सेना को वेतन देने के लिए धन की अत्यधिक आवश्यकता थी,जो दक्षिण से प्रप्त हो सकता था।
4. 1303 ई. की वारंगल पराजय का बदला
सुल्तान अलाउद्दीन 1303 ई0 की वारंगल पराजय का बदला लेना चाहता था।
5. देवगिरी के शासक द्वारा कर बंद करना
देवगिरी के शासक रामचंद्र देव ने 1296 ई0 में अपनी पराजय के कुछ वर्ष पश्चात खिराज (वार्षिक कर) देना बंद कर दिया था।
दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति
इस समय दक्षिण में चार राज्य देवगिरी, होयसल, तेलंगाना और पाण्ड्य थे, जो एक-दूसरा, एक- दूसरे के प्रति इर्ष्या के भाव रखते थे और आप में संघर्षरत थे तथा मलिक काफूर के आक्रमण के समय एक-दूसरा, एक- दूसरे के प्रति मलिक काफूर की सहायता करते थे। आपसी संघर्ष की भावना सबसे अधिक पाण्ड्य राज्य में देखने को मिली। जिसमें वीर पांडेय के खिलाफ उसका छोटा भाई सुंदर पांडेय काफूर की सहायता कर रहा था। इस प्रकर पांडेय राज्य को छोडकर सभी राज्यों यथा -देवगिरि, तेलंगाना,और होयसल ने अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार कर ली। और देवगिरी अलाउद्दीन खिलजी का प्रथम अधीनस्थ राज्य बना।
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अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियान (क्रमवार विवरण)
1. देवगिरी अभियान (1306–1307 ई.)

अलाउद्दीन ने सुल्तान बनने से पूर्व देवगिरी के राजा रामचंद्र देव को पराजित कर उससे अपनी अधीनता स्वीकार करवाई थी। परंतु कुछ समय पश्चात उसने सुल्तान को वार्षिक कर देना बंद कर दिया था। इस करण से अलाउद्दीन उससे नाराज था। उसने गुजरात के शासक कर्ण एव उसकी पुत्री देवल देवी को भी शरण दे रखी थी। अत: अलाउद्दीन खिलजी ने उसे सबक देने की ठानी। 1306 -7 ई0 में एक सेना मलिक काफूर और अलप खां के नेतृत्व में देवगिरी पर आक्रमण करने के लिए भेजी गई अत: रामचंद्र देव की पराजय हुई, रामचंद्र देव के साथ अलाउद्दीन खिलजी ने सम्मानपूर्वक व्यवहार किया और उसे “रायरायन”की उपाधि तथा एक चदौवां भेंट किया गया। रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन खिलजी की अधीनता स्वीकार कर ली। और वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया। और उसने जीवन पर्यन्त सुल्तान का विरोध नहीं किया।
2. तेलंगाना (वारंगल) अभियान (1308 ई.)

देवगिरी पर विजय के पश्चात अलाउद्दीन ने 1308 ई0 में तेलंगाना की राजधानी वारंगल पर आक्रमण किया, क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी अपनी पुरानी पराजय का बदला लेना चाहता था। अतः उसने मलिक काफूर को वारंगल पर आक्रमण करने का आदेश दिया और यह भी निर्देश दिया कि यदि वहाँ का शासक प्रताप रुद्रदेव बिना युद्ध लड़े अधीनता स्वीकार कर ले और पर्यप्त मात्रा में धन भेंट करे तो युद्ध लड़ना अनिवार्य नही है। अलाउद्दीन की आशा के अनुरूप प्रतापरुद्र देव् ने समर्पण कर दिया और मलिक काफूर को पर्याप्त धन-दौलत भेंट की। संभवतः काफूर को कोहिनूर हीरा भी यही से मिला था।
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3. होयसल (द्वारसमुद्र) अभियान (1311 ई.)
दक्षिण का एक प्रसिद्ध राज्य होयसलों का था। इसकी राजधानी द्वार समुद्र में स्थित थी। वहां का राजा बल्लाल तृतीय बहुत ही वीर और साहसी था। 1311 ई0 में जब मलिक काफूर ने उसकी राजधानी द्वार समुद्र पर आक्रमण किया तब बल्लाल तृतीय ने वीरतापूर्वक खिलजी सेना का मुकाबला किया लेकिन पराजित हुआ। उसने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे उसका राज्य वापस कर दिया, उसे सम्मानित किया एवं बहुमूल्य तोहफे दिए।
4. पाण्ड्य अभियान (1311 ई.)
दक्षिण में पाण्ड्य राज्य में गृह-युद्ध के कारण पाण्ड्य राज्य की शक्ति क्षीण पड गयी थी। उत्तराधिकार के लिए वीर पाण्ड्य और सुंदर पाण्ड्य में युद्ध चल रहा था। सुंदर पाण्ड्य ने अलाउद्दीन खिलजी से सहायता मांगी। सुल्तान ने मलिक काफूर को मदुरै पर आक्रमण करने का आदेश दिया। अतः काफूर ने 1311 ई0 में राजधानी मदुरै पर आक्रमण कर दिया। यद्यपि मदुरा पर काफूर का स्थायी रूप से अधिकार नही हो सका तथापि मदुरा की लूट से उसे बहुत अधिक सम्पत्ति हाथ लगी। यद्यपि राजनीतिक दृष्टिकोण से मावर (मदुरा) की विजय महत्वहीन थी तथापि आर्थिक दृष्टि से इसका महत्व बहुत अधिक था।
देवगिरी पर पुनः आक्रमण
राजा रामचन्द्र देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सिंहन देव गद्दी पर बैठा। उसने अपने पिता द्वारा की गई सन्धि को ठुकरा दिया। मलिक काफूर ने देवगिरी पर आक्रमण करके सिंहन देव को पराजित कर दिया और देवगिरी को दिल्ली साम्राज्य में मिला लिया।
निष्कर्ष: अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण नीति का मूल्यांकन
उपरोक्त विजय के फलस्वरूप अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य की सीमा अत्यधिक विस्तृत हो गई। बिहार और उड़ीसा उसके नियंत्रण के बहार थे, अलाउद्दीन खिलजी से पहले साम्राज्य की सीमा इतनी अधिक विस्तृत नही थी। दक्षिण विजय के परिणामस्वरूप अलाउद्दीन खिलजी ने पूरे भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बांध दिया। इसके साथ-साथ काफूर ने दक्षिण की शक्तियों एवं उनकी व्यवस्था पर कुठाराघात किया, हालांकि अलाउदीन खिलजी की दक्षिण विजय उसके उद्देश्यो, साम्राज्य विस्तार एवं धन प्राप्ति में सफल रही, लेकिन वह स्थायी नही हुई। परन्तु सांस्कृतिक रूप से दक्षिण अभियानों के परिणामस्वरूप दक्षिण में इस्लाम धर्म का प्रभाव बढा और मुस्लिम सभ्यता और संस्कृति का विस्तार हुआ। दक्षिण से पर्याप्त मात्रा में धन भी दिल्ली लाया गया जिससे सल्तनत की समृद्धि बढ़ी
Q1. अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत की ओर अभियान क्यों भेजे?
उत्तर: खिलजी का उद्देश्य अपने शासन की सीमाओं को और व्यापक बनाना था। इसके साथ ही दक्षिण के समृद्ध राज्यों में मौजूद अपार धन, संसाधन और राजनीतिक प्रभाव पर नियंत्रण स्थापित करने की उसकी इच्छा भी प्रमुख कारणों में से एक थी।
Q2. इन दक्षिणी अभियानों का संचालन किसके द्वारा किया गया?
उत्तर: अलाउद्दीन ने अपने विश्वसनीय सेनापति मलिक काफ़ूर को इन अभियानों का दायित्व सौंपा। काफ़ूर ने ही दक्षिण के लगभग सभी प्रमुख सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया।
Q3. इन अभियानों से अलाउद्दीन को क्या फायदे प्राप्त हुए?
उत्तर: दक्षिणी राज्यों से प्राप्त भारी कर, युद्धोपरांत लूट, बहुमूल्य रत्न-धन, हाथी-घोड़े तथा सैन्य प्रतिष्ठा में वृद्धि ने दिल्ली सल्तनत की अर्थव्यवस्था और शक्ति को काफी मजबूत किया।
Q4. किन दक्षिण भारतीय राज्यों ने खिलजी शासन को कर अर्पित किया?
उत्तर: देवगिरी, वारंगल, होयसला और मदुरै जैसे प्रमुख राज्यों ने खिलजी की प्रभुसत्ता स्वीकार की तथा नियमित कर भेजने पर सहमति जताई।
Q5. क्या खिलजी की दक्षिण नीति को सफल माना जा सकता है?
उत्तर: आर्थिक समृद्धि और प्रभाव क्षेत्र में तीव्र वृद्धि के कारण यह नीति काफी हद तक सफल रही। हालांकि, इन क्षेत्रों पर दिल्ली का स्थायी शासन स्थापित नहीं हो सका।
