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अशोक भारतीय इतिहास के उन महान सम्राटों में गिने जाते हैं जिन्होंने मौर्य साम्राज्य को अपनी नीतियों और दूरदर्शिता से स्वर्ण युग तक पहुँचाया। कलिंग युद्ध की विभीषिका ने उनके जीवन और विचारों को गहराई से प्रभावित किया। इस युद्ध के पश्चात उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड़कर धर्म, दया और अहिंसा को अपने शासन का आधार बनाया। उनके शासन में जनकल्याण, प्रशासनिक सुधार तथा सभी धर्मों के प्रति समान आदर को विशेष महत्व दिया गया। अशोक की विचारधारा आज भी आदर्श शासन, मानवीय मूल्यों और वैश्विक शांति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।

परिचय:
अशोक सिर्फ मौर्य वंश का अथवा प्राचीन भारत का ही नही बल्कि विश्व का एक महान शासक था। उसकी गणना विश्व के श्रेष्ठतम शासको में होती है। अनेक विद्वानों ने उसकी तुलना कांस्टेनटाइन, मार्क्स, शार्लमां और अकबर से की है। इतिहासकार रमेशचंद्र मजूमदार उसकी तुलना भारतीय इतिहास के धूमिल आकाश में सबसे चमकीले तारे से करते है। इतिहासकार एच0 सी0 वेल्स भी अशोक की प्रसंशा करते है। उनके अनुसार “इतिहास के स्तम्भो में भीड़ करने वाले हजारों, करोड़ो राजाओ तथा सम्राटो के मध्य अशोक का नाम चमकता है। वोल्गा से जापान तक आज भी अशोक का नाम आदरणीय है। चीन, तिब्बत तथा भारत भी आज तक अशोक की महत्ता की गाथाओं को सुरक्षित रखे हुए है—— आज भी अशोक की स्मृति विपुल मनुष्यों के हृदय पर अंकित है। अतः वह एक महान विजेता, कुशल प्रशासक एवं सफल धार्मिक नेता था। चाहे जिस दृष्टिकोण से भी उसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन किया जाय वह सर्वथा योग्य सिद्ध होता है। अतः अशोक की उपलब्धियों का मूल्यांकन निम्नलिखित संदर्भो के अंतर्गत किया जा सकता है—-
(1) महान सम्राट के रूप में अशोक
अशोक भारतीय इतिहास के महानतम व्यक्तियों में से एक रहा है। वह चन्द्रगुप्त मौर्य के सदृश शक्तिमान, समुन्द्रगुप्त की तरह बहुमुखी प्रतिभावाला तथा अकबर जैसा धर्म प्रेमी था। वह एक शासक, प्रशासक एवं धार्मिक नेता के रूप मे उसके आदर्शो एवं कार्यो ने भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति को लम्बे समय तक प्रभावित किया। उसने अपने पिता के जिस विशाल साम्राज्य को उत्तराधिकार में प्राप्त किया था, वह सर्वथा उसके योग्य था। कलिंग विजय कर अशोक ने अपनी सैनिक निपुणता का परिचय दिया। अशोक की इस महानता के कारण ही उसे आज भी एक आदर्श शासक माना जाता है। अशोक स्तंभ आज शांतिवादी भारत सरकार का प्रतीक चिन्ह बन गया है।
(2) प्रजाहितैषी और कल्याणकारी शासक
अशोक एक प्रजा हितैसी सम्राट था तथा उसकी राजत्व सम्बन्धी धारणा पितृपरक थी। संभवतः अशोक विश्व का प्रथम सम्राट था, जिसने स्प्ष्ट शब्दो मे अपनी प्रजा को अपनी संतान का दर्जा दिया। वह यह समझता था कि उस पर प्रजा का ऋण है, जिसे वह प्रजा का कल्याण करके चुका सकता है। उसने अपने उत्तराधिकारियों एवं पदाधिकारियों को आदेश दिया कि वे सदैव जनहित के कार्य करे। उसने कभी भी अपनी दैवीय-उत्पत्ति का दावा नही किया और अपने दीर्घकालीन शासनकाल में शांति-सुव्यवस्था कायम की। न्याय के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए और दण्ड-समता तथा व्यवहार समता स्थापित करने की कोशिश की जो न्याय के क्षेत्र में क्रांतिकारी युग का सूत्रपात्र करती हैं।
(3) महान निर्माता और कला प्रेमी

अशोक एक महान निर्माता भी था। बौद्ध परम्पराओ के अनुसार उसने 84 हजार स्तूपो का निर्माण करवाया। उसने कनकमुनि के स्तूप का संवर्द्धन करवाया तथा बराबर की पहाड़ी को कटवाकर आजीविकों के लिए गुफाओ का निर्माण करवाया था। उसके स्तम्भ वस्तुकला के उत्कृष्ट उदाहरण है।
(4) कुशल योद्धा एवं प्रशासक
विश्व मे अशोक के समान कुशल योद्धा एवं प्रशासक अनेक सम्राट हुए परन्तु अशोक अपने जनहित कार्यो के कारण सर्वाधिक प्रसिद्ध है। वह पहला शासक था जिसकी उदार दृष्टि से सम्पूर्ण मानव समाज ही नही अपितु सभी जीवधारी समान थे।
जिस समय अशोक ने कलिंग विजय की थी उसके पास असीम शक्ति तथा साधन थे और यदि वह चाहता तो उसे विश्व विजय के कार्यो में लगा सकता था, परन्तु उसका कोमल हृदय मानव समाज के लिए द्रवित हो उठा और उसने शक्ति की पराकाष्ठा पर पहुंचकर विजय कार्यो से हमेशा के लिए मुख मोड़ लिया। यह अपने आप मे एक आश्चर्यजनक घटना है, जिसका विश्व इतिहास में कोई सानी नही है।
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(5) महान धर्म प्रचारक
अशोक ने बौद्ध धर्म के उपासक स्वरूप को ग्रहण किया और उसके प्रचार-प्रसार में अपने विशाल साम्राज्य के सभी साधनों को लगा दिया। इस प्रचार कार्य के फलस्वरूप बौद्ध धर्म, जो तृतीय शताब्दी ई0पू0 में मगध साम्राज्य के इर्द-गिर्द ही फैला था, ना केवल सम्पूर्ण भारतवर्ष एवं श्रीलंका में विस्तृत हुआ अपितु पश्चिमी एशिया, पूर्वी यूरोप तथा उत्तरी अफ्रीका तक फैल गया था।
इस प्रकार अशोक ने अपने अदम्य उत्साह से एक स्थानीय धर्म को विश्व व्यापी धर्म बना दिया। परन्तु बौद्ध धर्म के प्रति अदम्य उत्साह ने उसे अन्य धर्मों के प्रति क्रूर और असहिष्णु नही बनाया। उसने अपने धर्म को जबर्दस्ती किसी पर थोपने का प्रयास नही किया। इतिहास के पृष्ठों में ऐसे व्यक्तित्व विरले ही मिलते है। अशोक ने विश्व बंधुत्व एवं लोक-कल्याण का संदेश दूर-दूर देशो तक फैलाया।
कुछ विद्वानों ने अशोक की धार्मिक एवं शांतिवादी नीति की आलोचना भी की है कि उसने दिग्विजय की नीति का त्यागकर जो धर्म विजय की नीति अपनाई, उसने मगध की सैनिक शक्ति को कुण्ठित कर दिया, जिससे अन्ततः मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया। यहां इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि उसकी धार्मिक एवं शांतिवादी नीति से मगध की सैनिक कुशलता का किसी प्रकार से ह्रास नही हुआ। उसने सैनिको को धर्म-प्रचार में लगाया हो इसका कोई प्रामाण नही मिलता।
(6) शांतिवादी नीति और मानवता का प्रतीक

अशोक ने शांतिवादिता की नीति का अनुसरण किया क्योंकि उसके साम्राज्य में पूर्णरूपेण शांति एवं समरसता का वातावरण व्याप्त था तथा उसकी बाह्य सीमाएं भी पूर्णतः सुरक्षित थी। अशोक के साम्राज्य में सैनिक शक्ति यथावत विद्यमान थी। केवल युद्धों से ही सम्राट महान नही बनता बल्कि वह शांति के कार्यो से भी समान रूप से महान बन सकता है।
विद्वानों ने अशोक की तुलना कांस्टेनटाइन, नेपोलियन, सीजर से की है। परन्तु इनमे से कोई भी अशोक की बहुमुखी प्रतिभा के सामने टिक नही सकता है। कुछ विद्वानों ने अशोक की तुलना अकबर से करना पसन्द करते है। निसंदेह अकबर में धार्मिक सहिष्णुता थी तथा वह भी सच्चे हृदय से प्रजा का कल्याण करना चाहता था। विभिन्न धर्मो की अच्छी बातों को ग्रहण कर अकबर ने ‘दीन-ए-इलाही‘ धर्म चलाया।
किन्तु जैसा कि भण्डारकर ने स्पष्ट किया है कि अकबर सबसे पहले राजनीतिक और दुनियावी व्यक्ति था तथा धार्मिक सत्यता के लिए वह अपनी सम्राटता को खतरे में डालने के लिए तैयार नही था। जब उसने देखा की धर्म मे उसकीं नयी बाते प्रचलित करने से मुसलमानों में विद्रोह हो रहा है तब उसने धार्मिक वाद-विवाद बन्द करवा दिए। वह सबके प्रति सहिष्णु भी नही था तथा उसने इलाही सम्प्रदाय के अनुयायियों को पकड़वाकर सिन्ध और अफगानिस्तान निर्वासित करवा दिया।
अकबर में अशोक जैसा धार्मिक उत्साह भी नही था। इसी कारण उसका धर्म राजदरबार के बाहर नही जा सका तथा उसकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया। दूसरी ओर अशोक में कही भी असहिष्णुता नही दिखाई देती है। उसका धर्म भी उसके साथ समाप्त नही हुआ, बल्कि विश्व धर्म बन गया।
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(7) निष्कर्ष
इस प्रकार उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि विश्व मे अशोक का स्थान अद्वितीय है। सही अर्थों में वह प्रथम राष्ट्रीय शासक था। जब हम देखते हैं कि आज विश्व के देश हथियारों की होड़ रोकने तथा युद्ध टालने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने के बावजूद सफल नही हो पा रहे है तथा मानवता के लिए परमाणु युद्ध का गम्भीर संकट बना हुआ है, तब अशोक के कार्यो की महत्ता स्वमेव स्पष्ट होती है। अशोक के आदर्श विश्व शान्ति की स्थापना के लिए आज भी हमारा मार्गदर्शन करते है। अशोक वास्तव में एक महान शासक, महान धर्मवेत्ता, महान आदर्शवादी, शांति तथा अहिँसा का पोषक और युग प्रवर्तक था। एक इतिहासकार ने ठीक ही लिखा है “न तो प्रत्येक युग और न प्रत्येक राष्ट्र इस प्रकार का शासक उत्पन्न कर सकता है। अशोक अब भी विश्व इतिहास में अतुलनीय ही ठहरता है।”
FAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: अशोक को “महान” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: अशोक को “महान” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने एक विजेता राजा से करुणामयी शासक तक का अद्भुत परिवर्तन किया। कलिंग युद्ध की भीषण विनाशलीला ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने हिंसा का त्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाया और दया, सत्य, सहिष्णुता तथा अहिंसा के सिद्धांतों पर शासन किया। अशोक ने धर्म और नैतिकता को शासन का आधार बनाया तथा सम्राट होने के बावजूद सभी प्राणियों के कल्याण को सर्वोच्च माना। इसी कारण वे केवल भारत ही नहीं, बल्कि विश्व इतिहास के भी महान शासकों में गिने जाते हैं।
प्रश्न 2: अशोक की मुख्य उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर: अशोक की प्रमुख उपलब्धियों में बौद्ध धर्म का भारत से बाहर एशिया के अनेक देशों—जैसे श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, और चीन—तक प्रसार प्रमुख है। उन्होंने स्तूपों, विहारों और स्तंभों का निर्माण करवाया तथा यात्रियों और रोगियों के लिए विश्रामगृह और चिकित्सालय स्थापित किए। उन्होंने मानव और पशु दोनों के कल्याण हेतु अनेक नीतियाँ अपनाईं। अशोक ने पूरे भारत को एक प्रशासनिक इकाई में संगठित किया और नैतिक शासन का आदर्श प्रस्तुत किया, जिससे उनका नाम सदैव अमर रहा।
प्रश्न 3: अशोक की ‘धम्म नीति’ क्या थी?
उत्तर: “सम्राट अशोक की ‘धम्म नीति’ ऐसे नैतिक और धार्मिक आदर्शों पर आधारित थी, जिनका मुख्य उद्देश्य समाज में नैतिक मूल्यों, आपसी सौहार्द और स्थायी शांति को बढ़ावा देना था।” इसमें सत्य, अहिंसा, दया, सहिष्णुता, माता-पिता का आदर, और सभी धर्मों के प्रति सम्मान जैसे मूल्य शामिल थे। अशोक ने किसी संप्रदाय विशेष को बढ़ावा नहीं दिया, बल्कि सबको समान दृष्टि से देखने का संदेश दिया। उनकी यह नीति मौर्य साम्राज्य को शांति, न्याय और सामाजिक एकता का आदर्श राज्य बना गई।
प्रश्न 4: कलिंग युद्ध ने अशोक के जीवन को कैसे बदल दिया?
उत्तर: कलिंग युद्ध अशोक के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ था। इस युद्ध में असंख्य लोगों की मृत्यु और पीड़ा देखकर अशोक के मन में गहरी संवेदना जागी। उन्होंने युद्ध और हिंसा का मार्ग त्याग दिया तथा बौद्ध धर्म को अपनाकर धर्म, दया और मानवता का प्रचार किया। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने विजय की जगह ‘धर्म विजय’ को अपना आदर्श बनाया और अपने जीवन को जनकल्याण और शांति के लिए समर्पित कर दिया।
प्रश्न 5: अशोक के अभिलेखों का क्या महत्व है?
उत्तर: अशोक के अभिलेख (Edicts) भारत के प्राचीनतम शिलालेख हैं, जो पत्थरों और स्तंभों पर खुदे हुए मिले हैं। इन अभिलेखों के माध्यम से अशोक ने अपने शासन की नीतियाँ, नैतिक शिक्षाएँ और जनकल्याण संबंधी संदेश जनता तक पहुँचाए। इनसे पता चलता है कि अशोक का शासन धार्मिक सहिष्णुता, न्याय और नैतिकता पर आधारित था। इतिहासकारों के लिए ये अभिलेख मौर्यकालीन प्रशासन, समाज और धर्म की जानकारी के प्रमुख स्रोत हैं।
