बाबर के चरित्र एवं व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विश्लेषण (Mughal Emperor Babur Personality & Character in Hindi)

भारत में मुगल शासन की शुरुआत करने वाले बाबर को केवल एक सक्षम सैन्य रणनीतिकार के रूप में ही नहीं देखा जाता, बल्कि वह एक संवेदनशील, उदार और साहित्यिक रुचि रखने वाले व्यक्तित्व के रूप में भी उल्लेखनीय थे। उनके जीवन और स्वभाव का अध्ययन हमें उस समय के राजनीतिक माहौल के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को भी गहराई से समझने में सहायता करता है। इस लेख में हम बाबर के व्यक्तित्व की उन विशेषताओं पर विचार करेंगे, जिन्होंने उन्हें अपने दौर में विशिष्ट स्थान प्रदान किया।

बाबर महान प्रतिभशाली व्यक्ति था। तैमूर वंश का कोई भी व्यक्ति इतना गुण सम्पन्न और प्रतिभाशाली नही था, जितना बाबर था। उसके चरित्र में आकर्षण तथा प्रभावित करने की शक्ति थी। उसने जीवन पर्यन्त संघर्ष किया और कई बार वह मृत्यु से बाल-बाल बचा था। लेकिन संकटो एवं निराशाओं में भी वह प्रसन्नचित रहा और उसने कभी भी आशा और मानवीय गुणों को नही त्यागा। वह प्रकृति से उदार, सहिष्णु, दया और परोपकार करने वाला था। व्यक्तिगत संबंधों में भी वह सद्गुणों से सम्पन्न था। वह अच्छा पुत्र, पिता, मित्र और पति था। इस बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण उसका चरित्र  आकृष्ट करता है। बाबर के चरित्र एवं व्यक्तित्व का अवलोकन हम निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर कर सकते है जो उसके व्यक्तित्व में मौजूद थी–

बाबर के चरित्र एवं व्यक्तित्व की मुख्य विशेषताएँ

व्यक्ति के रूप में बाबर

बाबर का व्यक्तिगत जीवन आदर्शमय था। उसने सदैव अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया और अपने पुत्रों के साथ सदैव सदव्यवहार किया। अपनी पत्नियों के प्रति उसका आदर्श व्यवहार था। अपने कुटुम्बियों और रिश्तेदारो के प्रति भी सदव्यवहार रखता था। वह शराब का शौकीन अवश्य था, लेकिन कभी उसका गुलाम नही बना। उसमे असीम धैर्य, साहस, और सहनशीलता थी। उसका शरीर शक्तिशाली था। उसे ईश्वर में गहरी आस्था थी। पानीपत की विजय के उपरांत वह मुस्लिम संतो की दरगाह में दर्शन करने गया था। खानवा के युद्ध से पहले उसने शराब को त्याग दिया, यह उसके पश्चाताप का प्रतीक था। विसेन्ट स्मिथ के अनुसार “बाबर अपने युग के एशिया के राजाओं में सर्वाधिक प्रतिभाशाली था और किसी भी देश अथवा युग के राजाओं के मध्य उसे उच्च स्थान दिया जा सकता है।“

विद्वान एवं साहित्य प्रेमी बाबर

बाबर बड़ा विद्वान व्यक्ति था। उसका साहित्य तथा ललित कलाओ से विशेष अनुराग था। प्राकृतिक सौंदर्य की विशेषताओ का वह पारखी था तथा व्यक्ति और जीवन के बहुरंगी रूपों का दर्शन बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से करता था। वह तुर्की एवं फ़ारसी भाषाओं का ज्ञाता था। वह एक सुयोग्य लेखक था। उसने तुर्की भाषा मे अपनी आत्मकथा बाबरनामा” नाम से लिखी थी। वह “मुबइयान” नामक एक पद्य शैली का जन्म दाता था। तुर्की भाषा मे उसका “दीवान” काव्य कला का श्रेष्ठ उदाहरण है। कहा जाता है कि उसने “खत-ए-बाबरी” नामक लिपि का आविष्कार किया था।इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है कि “वह किसी भी प्रकार के संकट से घबड़ाता नही था, संकट जितना भी भीषण और खतरनाक होता था उतना ही वह उसे पसन्द करता था।”  

 मुसलमान के रूप में बाबर

बाबर पक्का सुन्नी मुसलमान था,किन्तु उसमे धार्मिक कट्टरता नही थी। उसने अन्य धर्मालंबियों से कठोरता का व्यवहार नही किया। इसमें ईश्वर के प्रति इतनी अटूट श्रद्धा थी कि उसे “ईश्वरीय पुत्र” कहा गया है। वह कहा करता था ‘ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ भी नही हो सकता, उसकी शरण मे रहकर ही हमे आगे बढ़ना चाहिए।’ भारत मे उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति नही अपनाई। राणा सांगा और मेदिनी राय के विरुद्ध उसने जिहाद (धर्म युद्ध) का नारा दिया। हिन्दुओ के धार्मिक स्थल अयोध्या में उसने एक मस्जिद का निर्माण करवाया। हिन्दू व्यापारियों से चुंगी पूर्ववत ली जाती रही। इतना सब होते हुए भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दिल्ली सल्तनत के मुसलमानों की अपेक्षा उसकी नीति भारत की जनता के प्रति उदार थी।

सेनापति के रूप में बाबर

राजनीतिक परिस्थितियों ने बाबर को एक योग्य सेनापति बना दिया था। वह एक प्रशंसनीय घुड़सवार कमाल का निशानेबाज, कुशल तलवार चालक तथा एक उच्च कोटि का शिकारी था।  वह अपने सैनिक अधिकारियों एवं सैनिको के मध्य लोकप्रिय था, क्योंकि वह प्रत्येक समय उनके दुःख तथा कठिनाइयो में सम्मिलित रहता था, किन्तु युद्ध के समय अनुशासनहीनता पर वह सैनिको के साथ कठोर व्यवहार करता था। उसके सैन्य संगठन की श्रेष्ठता ने ही विशाल सेनाओं को परास्त किया।

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शासक के रूप में बाबर

बाबर ने एक सैनिक तथा विजेता के रूप में जितनी ख्याति प्राप्त की है उतनी सफल शासक के रूप में नही। उसमे रचनात्मक बुद्धि का सर्वथा अभाव था। उसने पुरानी संस्थओं में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नही किया और न ही नवीन शासन व्यवस्था को अपनाया। बाबर ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसे इतना समय नही मिला कि वह साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था स्थपित कर सकता। उसने शांति स्थापना पर विशेष जोर दिया, क्योंकि उसे स्थानीय प्रशासन के बारे में ज्ञान नही था। उतावलेपन से परिवर्तन या सुधार करना संकटपूर्ण हो सकता था। फिर भी यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उसमें अकबर या शेरशाह जैसी प्रशासनिक प्रतिभा नही थी। उसने लुटेरों का दमन करके जनता के जान-माल की रक्षा की, सड़को को सुरक्षित किया और संभवतः चौकियों की स्थापना करके संचार व्यवस्था को कुशल बनाया। लेकिन कृषि, न्याय, शिक्षा, आदि क्षेत्रों में उसने कुछ नही किया, वह अर्थव्यवस्था स्थापित करने में असफल रहा। लेकिन वह सफल कुटनीतिज्ञ था और उसमें अफगानों, अमीरों तथा राजपूतो को कूटनीति के द्वारा सन्तुष्ट करने में सफलता भी प्राप्त की थी।

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इतिहास में बाबर का स्थान

बाबर भारत मे मुगल साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है। लेकिन उसने भारत में मुगल वंश की नींव का पहला पत्थर ही रखा था। जिस प्रकार बाबर का एक सम्राट के रूप में उसकी मातृभूमि ट्रांस- आक्सियाना के इतिहास में कोई प्रमुख स्थान नही है, उसी प्रकार भारतीय इतिहास में भी उसका कोई स्थान न होता, यदि उसके पुत्र हुमायूँ के निष्कासन के बाद मुंगलो के हाथ से सम्पूर्ण साम्राज्य निकल गया होता, लेकिन उसका भग्य ही समझिए कि अकबर जैसा उसका पौत्र पैदा हुआ और उसने मुगल साम्राज्य की ऐसी गहरी नीव डाली दी जो 300 वर्षो से भी अधिक समय तक स्थापित रहा। इसीलिए भारत मे मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक अकबर को ही माना जाता है। डॉ0 आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव के शब्दों में “भारतीय इतिहास में बाबर का स्थान एक विजेता और साम्राज्य का शिलान्यास करने वाले व्यक्ति के रूप में ही है।”

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निष्कर्ष: बाबर का चरित्र क्यों अद्वितीय था?

बाबर अपने समय के शासकों से इसलिए अलग दिखाई देता है क्योंकि उसमें विजेता के साथ-साथ संवेदनशीलता, सरलता और साहित्यिक रुचि का दुर्लभ मेल था। कठिन परिस्थितियों में भी उसका मनोबल दृढ़ रहा और वह धर्म में आस्था रखते हुए भी कट्टरता से दूर रहा। उसकी सैन्य दृष्टि ने भारतीय इतिहास की दिशा बदली, भले ही प्रशासनिक सुधारों के लिए समय कम मिला। अंततः, उसकी मानवता, उदारता और सांस्कृतिक रुचियों ने ही उसे इतिहास में विशेष स्थान दिलाया।

FAQs – बाबर के व्यक्तित्व से जुड़े सामान्य प्रश्न

Q1. बाबर को कैसा शासक माना जाता है?

बाबर को एक साहसी और दूरदर्शी शासक के रूप में देखा जाता है, जिसने सैन्य क्षमता और रणनीति के बल पर भारत में मुगल सत्ता की आधारशिला रखी। वह स्वभाव से उदार था और व्यक्तिगत संबंधों में सादगी पसंद करता था। हालांकि, उसके शासनकाल की अवधि कम होने के कारण वह प्रशासनिक व्यवस्थाओं को व्यापक रूप से विकसित नहीं कर सका।

Q2. बाबर की प्रमुख साहित्यिक रचना कौन-सी है?

बाबर की सबसे प्रसिद्ध रचना उसकी आत्मकथा “बाबरनामा” है, जिसे उसने तुर्की (चगताई) भाषा में लिखा। यह केवल युद्धों और राजनीतिक घटनाओं का विवरण नहीं देती, बल्कि प्रकृति, समाज, कला और मानवीय भावनाओं के प्रति बाबर की सूक्ष्म दृष्टि को भी दर्शाती है। साहित्य और इतिहास—दोनों दृष्टियों से यह रचना अत्यंत मूल्यवान मानी जाती है।

Q3. बाबर किन गुणों के कारण प्रसिद्ध था?

बाबर की ख्याति उसके अनेक गुणों के कारण है—उसका साहस, उदार और सहज स्वभाव, कविता और प्रकृति के प्रति लगाव, धार्मिक आस्था के साथ संतुलित दृष्टिकोण, तथा उत्कृष्ट सैन्य नेतृत्व। इन सभी विशेषताओं का संयोजन उसे अपने समकालीन शासकों से अलग और अधिक मानवीय बनाता है।

Q4. क्या बाबर धार्मिक रूप से सहिष्णु था?

बाबर सुन्नी मत का अनुयायी था, परन्तु उसका दृष्टिकोण सामान्यतः उदार और व्यावहारिक था। उसने भारत में शासन करते हुए कठोर धार्मिक नीतियों पर अधिक जोर नहीं दिया और स्थानीय परंपराओं तथा समाज की विविधता को स्वीकार करने का प्रयास किया। यही कारण है कि उसे अपेक्षाकृत सहिष्णु शासक माना जाता है।

Q5. बाबर का भारतीय इतिहास में क्या स्थान है?

भारतीय इतिहास में बाबर को मुगल साम्राज्य का संस्थापक और एक प्रभावशाली विजेता के रूप में मान्यता प्राप्त है। उसने न केवल राजनीतिक सत्ता का नया अध्याय शुरू किया, बल्कि बाद के मुगल शासकों को एक मजबूत आधार भी प्रदान किया। उसकी विजय, नेतृत्व क्षमता और सांस्कृतिक दृष्टि—इन सबने उसे इतिहास में स्थायी महत्व दिलाया।

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