बाबर की भारत विजय और सैन्य प्रतिभा-सम्पूर्ण ऐतिहासिक विवरण

बाबर केवल एक आक्रमणकारी नहीं थे, बल्कि उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक और एक महान सेनानायक थे। उन्होंने पानीपत, खानवा, चंदेरी और घाघरा के युद्धों में अपनी अद्वितीय सैन्य रणनीति और आधुनिक युद्ध तकनीक का प्रदर्शन किया। इस लेख में हम बाबर की भारत विजय, उसकी युद्ध कला और ऐतिहासिक योगदान को सरल और विस्तृत तरीके से समझेंगे।

बाबर का प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

14 फरवरी 1483 ई0 को फरगना में जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म हुआ। उसके पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था। यह अपने पिता की ओर से तैमूर का पांचवा वंशज एवं माता कुतलुग निगार खानम की ओर से चंगेज खां (मंगोल नेता) का 14वां वंशज था। इसका परिवार तुर्की जाति के चागताई वंश के अंतर्गत आता था। इस प्रकार बाबर के शरीर मे दो महान विजेताओं का रक्त बहता था। अपने पिता की मृत्यु के बाद 11वर्ष की अल्पायु में लगभग 1194 ई0 में फरगना का शासक बना। जिस समय वह गद्दी पर बैठा, उसके सामने अनेक कठिनाइयां थी, उसे सबसे पहले खतरा अपने चाचा अहमद मिर्जा और मामा महमूद खां से था। दोनो ने बाबर की अल्पायु का लाभ उठाकर दो बार फरगना पर संयुक्त आक्रमण किये, किन्तु बाबर ने दृढ़तापूर्वक उनका मुकाबला कर उनके आक्रमणों को विफल कर दिया। अंत मे वे समझौता कर समरकन्द चले गए। इस प्रकार बाबर ने बाह्य आक्रमणों से अपने राज्यो को सुरक्षित कर लिया, तत्पश्चात अपनी आंतरिक स्थिति को सुदृढ किया।

महत्वाकांक्षी शासक के रूप में बाबर

बाबर एक महत्वाकांक्षी शासक था। फरगना में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद वह तैमूर की राजधानी समरकन्द को जीतना चाहता था। 1496 ई0 में उसने समरकन्द पर आक्रमण कर दिया, परन्तु असफल रहा। 1497 ई0 में समरकन्द पर उसका अधिकार हो गया। मात्र 100 दिन के बाद ही समरकन्द को छोड़कर फरगना में विद्रोह को शांत करने के लिए आया। किन्तु उसके आने से पहले शैबानी खां ने फरगना पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार “बाबरनामा” में उसने लिखा है “फरगना के लिए मैंने समरकन्द को खोया और एक को पाए बिना दूसरे को खो दिया।” फरगना एवं समरकन्द को खोने के बाद बाबर स्वयं खानाबदोश हो गया, लेकिन बाबर के भाग्य ने साथ दिया और 1499 ई0 में उसने पुनः फरगना पर अधिकार कर लिया। बाबर के साथ भाग्य आँख मिचौली कर रहा था। 1500 ई0 में फरगना बाबर के हाथ से निकल गया, 1501 ई0 में समरकन्द पर बाबर का अधिकार हो गया। लेकिन पुनः1502 ई0 में समरकन्द बाबर के हाथ से निकल गया। 1502 से 1504 ई0 तक बाबर फिर खानाबदोश हो गया। लेकिन महत्वाकांक्षी बाबर निरन्तर संघर्ष करने के दृढ़ संकल्प से बाज नही आया।

काबुल विजय और राजनीतिक स्थिरता

समरकन्द पर अधिकार करने के बाद शैबानी खां ने अधिकांश ट्रांस-आक्सियाना पर अधिकार कर लिया था। इस समय बाबर ताशकन्द में था, उसके समक्ष दो विकल्प थे, प्रथम हरोत (हेरात) की रक्षा करे, जिस पर शैबानी खां ने आक्रमण कर दिया था। द्वितीय काबुल पर आक्रमण करना जहाँ के तैमूर शासक अब्दुल  रज्जाक (बाबर का चचेरा भाई) को मुकीम आरगो ने निकल दिया था। यह जानकर की उसकी सेना शैबानी खान से बहुत कम थी, उसने काबुल जाने का निर्णय लिया और 1504 ई0 में काबुल पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। काबुल विजय के पश्चात बाबर के राजनीतिक जीवन मे स्थिरता आई। वह वहाँ का शासक बन गया और 1507 ई0 में उसने “पादशाह” (बादशाह) की उपाधि धारण की।

भारत विजय की पृष्ठभूमि

बाबर भारत की अपार सम्पत्ति को ललचाई आँखो से देख रहा था। भारत विजय के लिए बाबर के सामने अनेक कठिनाइयां थी। उसने जब इन कठिनाइयो का समाधान कर लिया तो भारत पर आक्रमण करने की  तैयारी करने लगा। भारत पर आक्रमण करने से पहले बाबर ने ईरानियों की सहायता से एक तोपखाने का निर्माण किया जो भारत विजय में काफी कारगर सावित हुआ। उसने भारत की वास्तविक राजनीतिक स्थिति का ज्ञान (जानकारी) करने के लिये चार प्रारम्भिक आक्रमण किये।

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भारत पर बाबर के पाँच आक्रमण

प्रथम आक्रमण (1519 ई.)

बाबर का भारत के विरुद्ध किया गया प्रथम अभियान 1519 ई0 में यूसुफजई जाति के विरुद्ध था। इस अभियान में बाबर ने “बाजौर” और “भेरा” को अपने अधिकार में किया जिसमे उसने तोपखाने का प्रयोग किया था। लेकिन काबुल वापस जाते ही इस प्रदेश से उसका आधिपत्य समाप्त हो गया।

द्वितीय आक्रमण (1519 ई. के अंत में)

बाबर ने दूसरा आक्रमण1519 ई0 के अंत मे पेशावर पर किया और इसे अधिकार में ले लिया लेकिन मध्य एशिया की राजनीतिक स्थिति डाँवाडोल होने के कारण वह शीघ्र ही काबुल लौट गया।

तृतीय आक्रमण (1520 ई.)

भारत पर बाबर का तीसरा आक्रमण 1520 ई0 में हुआ। उसने बाजौर, भेरा एवं सियालकोट के साथ-साथ सैयदपुर पर भी अधिकार कर लिया। इस बीच बाबर को सूचना मिली कि कंधार में अशांति फैल गयी है। अतः उसने शाहबेग और अरगुन को सबक सिखाने के उद्देश्य से तीसरी बार क़ाबुल लौट गया। उसने कंधार पर विजय पाकर उसे अपने पुत्र कामरान को सौप दिया।

चतुर्थ आक्रमण (1524 ई.)

बाबर ने 1524 ई0 में भारत पर चौथा आक्रमण किया। इस बार आक्रमण करने का निमंत्रण भारत के ही कुछ असंतुष्ट सम्राटो द्वारा मिला था। लेकिन सुल्तान इब्राहिम लोदी ने उनकी आशा पर पानी फेर दिया।

पाँचवां और निर्णायक आक्रमण (1525 ई.)

बाबर नवंबर 1525 ई0 में विशेष सैनिक तैयारी के पश्चात भारत की ओर चल पड़ा। इस अभियान में बदख्शाँ से एक सैनिक टुकड़ी के साथ बाबर का पुत्र हुमायूँ भी आ गया था। सर्वप्रथम दौलत खां लोदी को समर्पण के लिए विवश कर बन्दी बना कर भेरा नगर भेज दिया गया, शीघ्र ही आलम खां लोदी ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। इस तरह से पूरा पंजाब बाबर के कब्जे में आ गया। दौलत खां लोदी को परास्त कर बाबर दिल्ली की ओर बढ़ा। बाबर की विजय की सूचना पाकर इब्राहिम लोदी विशाल सेना के साथ प्रस्थान किया। जो बाबर के मार्ग में एक मात्र रोड़ा (बाधा) था। बाबर यमुना नदी को पार कर 12 अप्रैल 1526 ई0 को पानीपत के मैदान में पहुँच गया था। लेकिन 12 अप्रैल से 19 अप्रैल तक कोई युद्ध नही हुआ।

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पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526 ई.)

12अप्रैल 1526 ई0 को बाबर और इब्राहिम लोदी की सेनाएं आमने-सामने हुई पर दोनों सेनाओं में मध्य युद्ध का प्रारम्भ 21 अप्रैल 1526 ई0 को हुआ। बाबर के पास आधुनिक तरीको से लैस सेनाओं के संगठन एवं तोपखाने थे। लेकिन इब्राहिम लोदी परम्परागत ढंग से ही युद्ध मैदान में उतारा था। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया था। क्योंकि बाबर के कुशल तोपचिओ के सामने इब्राहिम लोदी की सेना शीघ्र ही अपना संतुलन खो बैठी, और परिणाम बाबर की आशा के अनुकूल हुआ। इब्राहिम लोदी युद्ध क्षेत्र में ही मारा गया। बाबर की इस विजय ने प्रथम अफगान साम्राज्य को समाप्त कर दिया।

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खानवा का युद्ध (17 मार्च 1527 ई.)

Scene of Khanwa battle, Babur's and Rana Sanga's armies facing each other

यह युद्ध बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के मध्य लड़ा गया था। इस युद्ध के कारणों के विषय मे इतिहासकारो में मतभेद है। कुछ का मानना है कि राणा सांगा ने बाबर के साथ हुए समझौते का पालन नही किया था तथा  कुछ इतिहासकार तर्क देते है कि राणा सांगा बाबर को दिल्ली का बादशाह नही मानता था। कुछ अन्य इतिहासकारो का मानना है कि यह युद्ध बाबर और राणा सांगा की महत्वाकांक्षी योजनाओ का परिणाम था। बाबर सम्पूर्ण भारत को (रौंदना चाहता था)अपने अधिकार में लेना चाहता था तो राणा सांगा तुर्क-अफगान राज्यो के खंडरो के अवशेष पर एक हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहता था। परिणामस्वरूप दोनो सेनाओं में मध्य 17 मार्च 1527 ई0 को खानवा नामक स्थान पर युद्ध आरम्भ हुआ। बाबर ने राजपूतो के साथ हुए इस युद्ध को “धर्म युद्ध” या “जेहाद” का नाम दिया। जिसके कारण मुसलमानों ने डटकर उसके विरुद्ध बाबर का साथ दिया। इस युद्ध मे भी बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्वति का सहारा लिया, जिसके कारण राणा सांगा युद्ध मे घायल होकर किसी तरह भागने में सफल हुआ। खानवा के युद्ध की विजय के बाद बाबर ने “गाजी” की उपाधि धारण की।

चंदेरी का युद्ध (29 जनवरी 1528 ई.)

29 जनवरी 1528 ई0 को बाबर ने चंदेरी के युद्ध मे वहाँ के सूबेदार मन्दिनीराय को पराजित करके चंदेरी पर अधिकार कर लिया। चंदेरी का राज्य सामरिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था।

घाघरा का युद्ध (16 मई 1529 ई.)

बाबर गंगा नदी पार करके बंगाल एवं बिहार के विरोधी अफगानों को दबाने के लिए आगे बढ़ा। अतः 16 मई 1529 ई0 में घाघरा नदी के किनारे दोनो सेनाओं के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध मे बंगाल एवं बिहार की संयुक्त सेनाओं को  बाबर द्वारा पराजित किया गया। घाघरा के युद्ध की विजय के  बाद बाबर सम्पूर्ण उत्तर भारत का स्वामी बन गया। परिणामस्वरूप बाबर का साम्राज्य ऑक्सस से घाघरा एवं हिमालय से ग्वालियर तक पहुँच गया।

बाबर का व्यक्तित्व और सैन्य प्रतिभा — मूल्यांकन

उपर्युक्त विवरणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बाबर एक महान चरित्र का व्यक्ति था। वह एक उच्च कोटि का साहित्यकार, कला प्रेमी और प्रकृति का पुजारी था। वह एक प्रशंसनीय घुड़सवार, सुंदर निशानेबाज, अच्छा तलवारबाज एवं कुशल शिकारी था। वह फ़ारसी, अरबी,एवं तुर्की भाषा का अच्छा ज्ञाता था। उसने अनेक बागों, जलाशयों,एवं पुलों का निर्माण कराया। व्यक्तिगत जीवन में बाबर इस्लाम धर्म का पक्का अनुयायी था। वह सुन्नी धर्म को मानता था। लेकिन गैर मुसलमानों के प्रति सहिष्णु था।
        सम्भवतः बाबर कुषाणों के बाद पहला शासक था जिसने काबुल और  कंधार को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा। इसने भारत मे अफगानों एव राजपूतो की शक्ति को समाप्त कर मुगल साम्राज्य की स्थापना की, जो करीब 332 वर्षो तक जीवित रहा। बाबर ने भारत पर आक्रमण कर एक नई युद्ध नीति का प्रचलन किया।

निष्कर्ष

इस प्रकार यही कहा जा सकता है कि बाबर अत्यंत वीर और कुशल सेनानायक था। उसने अपने युद्ध कौशल, तोपखाने और तुलगमा युद्ध रणनीति के कारण अनेक युद्धों में सफलता प्राप्त की तथा भारत मे मुगल साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ। 

FAQs / अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: बाबर का जन्म कब और कहाँ हुआ?

Ans 1: बाबर का जन्म 14 फरवरी 1483 ई. को मध्य एशिया के फरगना क्षेत्र में हुआ था, जो वर्तमान उज़्बेकिस्तान में आता है। बाबर तैमूर और चंगेज़ खान की वंशावली से संबंध रखते थे। बचपन से ही उन्हें राजनीति और युद्ध कला में गहरी रुचि थी। उनके पिता का समय जल्दी समाप्त हो जाने के कारण बाबर को कम उम्र में ही अपनी सत्ता संभालनी पड़ी और इसने उनके नेतृत्व कौशल को बहुत मजबूत बनाया।

Q2: बाबर ने भारत में कितनी बार और क्यों आक्रमण किया?”

Ans 2: बाबर ने भारत पर कुल पाँच मुख्य आक्रमण किए, जो 1519 से 1525 ई. तक चले। इन आक्रमणों का उद्देश्य सिर्फ विजय नहीं था, बल्कि कमजोर राजनीतिक परिस्थितियों का लाभ उठाकर एक मजबूत साम्राज्य की स्थापना करना था। बाबर ने हर अभियान में अपनी सैन्य निपुणता और रणनीति का उपयोग किया, जिससे उसने कम समय में बड़े क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।

Q3: पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ और इसका महत्व क्या था?

Ans 3:पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल 1526 ई. को लड़ा गया था।  ऐतिहासिक रूप से यह युद्ध बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसने दिल्ली सल्तनत का अंत किया और भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत करने में निर्णायक भूमिका निभाई। बाबर ने इस युद्ध में अपने समय की आधुनिक युद्ध तकनीकों और तोपखाने का प्रभावशाली उपयोग किया, जिससे उसकी सेना को रणनीतिक बढ़त मिली और यह युद्ध जीतना संभव हुआ।

Q4: खानवा का युद्ध किससे हुआ और इसका परिणाम क्या रहा?

Ans 4: खानवा का युद्ध राणा सांगा के नेतृत्व वाले राजपूत गठबंधन के खिलाफ लड़ा गया। इस युद्ध में बाबर ने अपनी सैन्य कुशलता और अनुशासित सेना के बल पर जीत हासिल की। इस विजय के बाद उसे “गाज़ी” की उपाधि मिली, जो उसके धर्म और युद्ध कौशल में उत्कृष्टता का प्रतीक थी।

Q5: बाबर की सैन्य प्रतिभा किन-किन क्षेत्रों में प्रकट हुई?

Ans 5: बाबर की सैन्य प्रतिभा कई क्षेत्रों में दिखी। उसने तोपखाने और आधुनिक हथियारों का प्रभावी उपयोग किया, अपने सैनिकों को संगठित रखा, और युद्ध की परिस्थितियों के अनुसार उसने रणनीति में बदलाव (परिवर्तन) किया। इसके अतिरिक्त, उसका नेतृत्व ऐसा था कि सैनिकों में आत्मविश्वास और अनुशासन दोनों उच्च स्तर पर बने रहे। इन गुणों ने उसे केवल एक आक्रामक सेनानायक नहीं बल्कि कुशल रणनीतिकार भी बनाया।

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