दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण: राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व धार्मिक विफलताओं का सरल व विस्तृत विश्लेषण

दिल्ली सल्तनत का पतन मध्यकालीन भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। लगभग तीन सदियों तक उत्तर भारत पर शासन करने वाली यह सत्ता राजनीतिक कमजोरी, आर्थिक अव्यवस्था, प्रशासनिक ढिलाई और लगातार होते विदेशी आक्रमण के कारण धीरे-धीरे कमजोर होती गई। प्रांतीय शक्तियों का बढ़ता प्रभाव, सैन्य अनुशासन में गिरावट और जनता की असुरक्षा ने केंद्रीय शासन को पूरी तरह निष्क्रिय बना दिया।

इस लेख में सल्तनत के पतन के प्रमुख कारणों को सरल और क्रमबद्ध रूप में समझाया गया है, ताकि विद्यार्थी इसे आसानी से याद कर सकें।

प्रस्तावना

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा की गई। 1206–1526 ई0 के मध्य दिल्ली पर क्रमशः आदि तुर्को (गुलाम वंश), खिलजियों, तुगलकों, सैय्यदों, और लोदियों ने राज्य किया। लोदियों के पतन के साथ ही भारत मे मुगल वंश की स्थापना हुई। आदि तुर्को का शासन सल्तनत की स्थापना एवं इसके सुदृढ़ीकरण का काल था। खिलजी वंश का योगदान सम्राज्यवादी विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। तुगलकों के समय से सल्तनत के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हुई। इसी समय अनेक क्षेत्रीय राज्यो का उदय हुआ, जिसने सल्तनत की सत्ता को कमजोर करना प्रारंभ कर दिया। लोदियों के शासन काल मे सल्तनत का पतन पूरा हो गया। सल्तनत के पतन के बीज इसकी संरचना में ही छिपे हुए थे। अनेक राजनीतिक, प्रशासनिक, सैनिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक कारणों के सम्मिश्रण ने सल्तनत को धराशायी कर दिया।

सल्तनत के पतन के कारण—– दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों को निम्नलिखित संदर्भो में देखा जा सकता है—-

(A) राजनीतिक कारण

1 स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन

दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों ने एक स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश राजतंत्र की स्थापना की। शासन सुल्तान और अमीरो तथा सैनिक अधिकारियों के हाथों में ही केंद्रित रहा, जनसाधारण से इसका सम्पर्क नही के बराबर था। इस प्रकार की निरंकुश सत्ता में विघटनकारी तत्व प्रबल होते है। यह व्यवस्था सिर्फ योग्य एवं शक्तिशाली शासको के समय ही चल सकती थी और प्रजा उनके मनमाने अत्याचार और शोषण के विरुद्ध प्रतिक्रिया नहीं कर पाती थी। अवसर मिलने पर कमजोर शासको के समय राजवंश को नष्ट कर नये राजवंश की स्थापना कर ली जाती थी। अतः निरंकुश राजतंत्र पर आधारित साम्राज्य का विघटन इतिहास की एक स्वाभाविक घटना मानी जाती है।

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2 अत्यधिक विशाल साम्राज्य

मध्यकालीन शासको द्वारा सैन्य शक्ति के बल पर एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया जाता था, लेकिन इस विशाल साम्राज्य पर नियंत्रण रखना कठिन था। यातायात एवं संचार साधनों का अभाव, केन्द्र से प्रान्तों की दूरी और सामान्य जनता के बीच साम्राज्य के प्रति सहानुभूति का अभाव ऐसे अनेक तत्व थे,जो विघटनकारी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते थे। उत्तर और दक्षिण भारत पर समान रूप से नियंत्रण रखने में शासको को व्यवहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। दक्षिण भारत की विजय मुगल साम्राज्य की तरह दिल्ली सल्तनत के लिये भी कब्रगाह सिद्ध हुआ। क्योंकि दक्षिण विजय में संलग्न रहने के कारण उत्तर भारत की स्थिति बिगड़ गई। इस प्रकार साम्राज्य की विशालता और उस पर नियंत्रण का अभाव दिल्ली सल्तनत के विघटन का कारण बन गया।

3 विद्रोह और प्रतिरोध

दिल्ली सल्तनत के पतन का एक प्रमुख कारण था, राजपूतों, सामंतो, जागीरदारों, अमीरो एवं प्रांतीय अधिकारियों के विद्रोह। इसका कारण दिल्ली की गद्दी पर दुर्बल शासको का होना तथा इनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं थी। राजपूतों ने दिल्ली के सुल्तानों को कभी चैन से बैठने नही दिया। मौका पाते ही वह विद्रोह कर स्वतंत्र होने का प्रयास करने लगते थे। इसी प्रकार प्रत्येक सुल्तान को शासक बनते ही अपने प्रतिद्वंद्वियों एवं अन्य महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के विद्रोह का सामना करना पड़ता था। इसी प्रक्रिया के दौरान बंगाल, गुजरात, मालवा एवं दक्षिण में स्वतंत्र क्षेत्रीय राज्यो का उदय हुआ। प्रत्येक सुल्तान की शक्ति एवं समय इन विद्रोहियों से निपटने में लगा। इसके चलते सुल्तान की शक्ति एवं प्रतिष्ठा नष्ट हुई, सेना दुर्बल हुई। अंततः दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ।

4 प्रशासनिक कमजोरियाँ

दिल्ली के सुल्तानों ने कुछ अपवादों की छोड़कर प्रशासन की ओर अधिक ध्यान नही दिया। उनका अधिकांश समय विद्रोह का दमन, साम्राज्य विस्तार अथवा अपनी गद्दी की सुरक्षा तथा भोग विलास में व्यतीत हुआ। जिन सुल्तानों ने प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित भी की वो उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गई, उनका व्यापक और स्थाई प्रभाव नही पड़ सका। दुर्बल सुल्तानों के समय मे विशेषकर सल्तनत के उत्तरार्द्ध में प्रशासनिक व्यवस्था विल्कुल ही चौपट हो गई। इसका दिल्ली सल्तनत के स्थायित्व पर बुरा असर पड़ा।

5 उत्तराधिकार का विवाद

दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों की एक बड़ी गलती यह थी कि उन लोगो ने उत्तराधिकार के नियम निश्चित नही किये थे। एक शासक की मृत्यु के बाद गद्दी के लिए कई दावेदार खड़े हो जाते थे और अंततः तलवार के बल पर निर्णय लिया जाता था। उत्तराधिकार की अनिश्चित स्थिति संघर्ष का कारण बन जाती थी और उससे अशांति एवं अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती थी। कोई भी शासक इस तरह के संघर्ष का अपवाद नही रहा।

6 सैन्य व्यवस्था की कमियाँ

दिल्ली सल्तनत की स्थापना सैन्य शक्ति के आधार पर ही कि गई थी और इस साम्राज्य को सेना की शक्ति के आधार पर ही संरक्षित रखा जा सकता था। दुर्भाग्यवश इसकी मूल संरचना दोषपूर्ण थी। इकत्तेदारी प्रथा एवं सैनिक पदों को वंशानुगत बनाने की नीति ने सेना को दुर्बल और अक्षम बना दिया। सुल्तान की अपनी कोई स्थायी और केंद्रीय सेना नही होती थी। बल्कि सैनिक अभियानों और विद्रोह के दमन के लिए उसे अपने अमीरो, जागीरदारो और प्रांतीय अधिकारियों की सेना पर निर्भर रहना पड़ता था। ऐसी स्थिति में सेना सुल्तान के प्रति स्वामिभक्त न होकर अपने मालिक के प्रति स्वामिभक्त होती थी। अधिकतर ऐसी सेना मालिक के विद्रोही होने पर उसका ही साथ देती थी और यही सेना विद्रोहियों के साथ मिलकर दिल्ली सल्तनत के विघटन में सहायक सिद्ध हुई।

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7 तुगलक सुल्तानों की त्रुटिपूर्ण नीतियाँ

दिल्ली सल्तनत के पतन के लिए तुगलक सुल्तानों की दोषपूर्ण नीति भी उत्तरदायी थी। मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं एवं कठोर दण्ड की नीति ने प्रजा एवं अधिकारियों के बीच असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर दिया। विद्रोह के रास्ते को अपनाकर स्वतंत्र बनने की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी। दक्षिण भारत मे बहमनी और विजयनगर साम्राज्य, बंगाल और सिंध में स्वतंत्र राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के समय मे ही हो गई थी। उसके उत्तराधिकारी फिरोजशाह तुगलक की कट्टर धार्मिक नीति ने विघटन की प्रक्रिया को ओर अधिक बल प्रदान किया। जिससे केंद्रीय सत्ता की जड़े और कमजोर हो गई। उत्तर कालीन तुगलक शासक अयोग्य, निकम्मे और विलासी थे। अतः तुगलक वंश के अंतिम दिनो में विघटन की प्रक्रिया तेज हो गई और धीरे-धीरे तुर्क साम्राज्य पतन्नोमुख  (विघटन ) हो गया।

(B) आर्थिक कारण

दिल्ली सल्तनत के पतन में आर्थिक कारणों का भी महत्वपूर्ण योगदान था। दिल्ली सल्तनत की आर्थिक स्थिति कुछ अपवाद को छोड़कर कभी अच्छी नही रही। प्रत्येक शासक को पुराने और नए क्षेत्रो पर अधिकार करने के लिये सैनिक अभियानों को करना पड़ता था। लगातार युद्ध करने के कारण राजकोष की हालत दयनीय थी। मंगोलो के आक्रमण से सल्तनत की रक्षा के लिए भी बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता था। दासों के रख रखाव पर भी धन खर्च किया जाता था। सेना का खर्च पूरा करने के लिए अतिरिक्त साधनो का सहारा लेना पड़ता था। सुल्तानों की ख्याली योजनाओ के कारण आर्थिक स्थिति और भी अधिक दयनीय हो गई। और इस जर्जर आर्थिक दशा पर तैमूर के आक्रमण के वज्रपात ने दिल्ली सल्तनत की कमर तोड़ कर रख दी।

 (C)  सामाजिक कारण

दिल्ली सल्तनत के अधिकतर सुल्तान कट्टर धार्मिक प्रवृत्ति के थे। इस्लाम को प्रश्रय देने के नाम पर सुल्तानों ने धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाई और भारत जौसे देश मे हिन्दू और मुस्लमान के बीच भेदभाव की खाई खोद दी। मुस्लिम अपने को शासक वर्ग का मानने लगे और हिन्दू शासित। अतः अविश्वास एवं विद्वेष की भावना दोनो वर्गो में आई। सामाजिक स्तर पर भेदभाव की नीति अपनाने के कारण बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय का समर्थन तुर्क शासको को नही मिल सका। मुसलमानों ने निम्न हिन्दू वर्ग के लोगो को तरहजीह (प्राथमिकता) दी जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ा और यह असंतोष दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बना।

  (D) धार्मिक कारण

दिल्ली के सुल्तानों ने इस्लाम धर्म को अपने शासन का आधार बनाया जिस कारण शासन और राजनीति पर उलेमा का प्रभाव स्थापित हो गया। गैर इस्लामिक प्रजा के दुःख दर्द को दूर करना वे अपना कर्तव्य नही मानते थे। हिन्दुओ की उपेक्षा कर भारत मे शासन संचालित करना आसान नही था। धर्म और राजनीति को एक साथ मिला देने का दुष्परिणाम दिल्ली सल्तनत के लिए घातक सिद्ध हुआ। शासको द्वारा धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाने के कारण हिन्दुओ को अपार कष्ट उठाना पड़ा। कर का बोझ हिन्दुओ पर अधिक होता था। उनके मन्दिरो को नष्ट करना आदि कारणों से वे हिन्दुओ की सहानुभूति प्राप्त नही कर पाये और जैसे ही उन्हें अवसर मिलता था तो वे तुर्को के खिलाफ बगावत कर देते थे। यही धार्मिक असंतोष दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बना।

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अन्य पूरक कारण

इन कारणों के अतिरिक्त भी सल्तनत के पतन के लिए अन्य कारण भी उत्तरदायी थे, सल्तनत काल मे दासों और अमीरो का क्रमशः चारित्रिक पतन हुआ। वे राज्य के प्रति स्वामिभक्ति भूल कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लग गये। उनमे गुटबाजी आरम्भ हो गई। प्रत्येक वर्ग सुल्तान को अपने प्रभाव में लाने का प्रयास करता था। परिणामस्वरूप केन्द्रीय शक्ति कमजोर पड़ गयी। जागीरदारी प्रथा ने भी सल्तनत को दुर्बल बना दिया। साथ ही साथ साम्राज्य की विशालता, आवागमन एवं संचार के साधनों की कमी, दूरस्थ प्रान्तों पर नियंत्रण बनाये रखने की समस्या, प्रशासनिक भ्रष्टाचार इत्यादि कारणों ने सल्तनत के पतन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।   

निष्कर्ष

दिल्ली सल्तनत का पतन किसी एक वजह से नहीं, बल्कि कई जटिल परिस्थितियों के संयुक्त प्रभाव से हुआ। सत्ता के भीतर लगातार उभरती राजनीतिक अव्यवस्थाएँ, प्रशासन में बढ़ती कमजोरियाँ, आर्थिक संसाधनों की कमी, समाज में फैलता असंतोष और धार्मिक नीतियों से पैदा हुआ तनाव—इन सभी ने मिलकर साम्राज्य की नींव को हिलाया। अंतिम चरण तक आते-आते केंद्रीय शासन इतना दुर्बल हो गया था कि वह अपने अस्तित्व को संभाल नहीं सका, और अंततः 1526 ई. में पानीपत की पहली लड़ाई ने सल्तनत के अध्याय को पूरी तरह समाप्त कर दिया।

FAQ / PAQ (People Also Ask)

Q1. दिल्ली सल्तनत के पतन की शुरुआत किस वंश के समय मानी जाती है?

उत्तर: इतिहासकारों के अनुसार दिल्ली सल्तनत का वास्तविक पतन उस समय दिखाई देने लगा जब तुगलक वंश का प्रभाव और नियंत्रण धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। इस वंश के अंत में प्रशासनिक अव्यवस्था, विद्रोहों की बढ़ती संख्या और शासकों की असफल नीतियों ने साम्राज्य की नींव को हिला दिया, जिसके बाद सल्तनत पहले जैसी मजबूत नहीं रह गई।

Q2. दिल्ली सल्तनत के पतन का सबसे प्रमुख राजनीतिक कारण क्या माना जाता है?

उत्तर: सल्तनत के राजनीतिक पतन का मुख्य कारण शाही परिवार में उत्तराधिकार को लेकर लगातार होने वाली खींचतान थी। हर नए शासक के उदय पर सत्ता संघर्ष तेज हो जाता था। इसके साथ ही कुछ शासकों का अत्यधिक कठोर और दमनकारी शासन आम जनता तथा प्रांतीय सरदारों के बीच असंतोष को बढ़ाता रहा। इन कारकों ने केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया और सल्तनत एकजुट नहीं रह सकी।

Q3. आर्थिक दृष्टि से दिल्ली सल्तनत को सबसे बड़ा नुकसान किस घटना ने पहुँचाया?

उत्तर: आर्थिक पतन का सबसे बड़ा कारण 1398 ईसवी में तैमूर का आक्रमण माना जाता है। इस हमले ने दिल्ली के व्यापार, उद्योग, संपत्ति और जनजीवन को भारी क्षति पहुँचाई। शहर की लूट और विनाश से खज़ाना लगभग खाली हो गया, जिससे सल्तनत का वित्तीय ढांचा बुरी तरह चरमरा गया और शासन को पुनर्स्थापित करना बेहद कठिन हो गया।

Q4. क्या धार्मिक असहिष्णुता भी सल्तनत के पतन में एक कारण बनी?

उत्तर: हाँ, कई शासकों की धार्मिक असहिष्णु नीतियों के कारण स्थानीय हिंदू समुदाय और अन्य समूहों का सहयोग कम हो गया था। यह असंतोष समय के साथ बढ़ता गया और कई क्षेत्रों में विद्रोहों का रूप ले लिया। इस तरह धार्मिक तनाव ने सामाजिक अस्थिरता को बढ़ाया, जो अंततः सल्तनती शासन के कमजोर होने का एक महत्वपूर्ण कारण बना।

Q5. दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक कौन था?

उत्तर: दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक इब्राहिम लोदी था। वह लोदी वंश का तीसरा शासक था और उसके समय तक सल्तनत आंतरिक कलह और बाहरी चुनौतियों से कमजोर हो चुकी थी। 1526 ईसवी में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर से हार के बाद इब्राहिम लोदी का शासन समाप्त हो गया, जिससे दिल्ली सल्तनत का अंतिम अध्याय भी बंद हो गया।

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