फिरोज तुगलक की धार्मिक और प्रशासनिक नीतियाँ: सरल भाषा में सम्पूर्ण विश्लेषण/ Firoz Tughlaq’s Religious and Administrative Policies: A Simple and Complete Analysis.

मध्यकालीन भारत में फिरोज़ तुगलक का शासन धार्मिक नीतियों, प्रशासनिक बदलावों और जनहित से जुड़े प्रयासों के कारण एक विशिष्ट स्थान रखता है। उनके शासनकाल में इस्लामी कानूनों के अनुपालन पर विशेष ज़ोर दिया गया, साथ ही सिंचाई, कर व्यवस्था और सार्वजनिक निर्माण कार्यों में उल्लेखनीय सुधार किए गए। इस लेख में हम उनकी धार्मिक तथा प्रशासनिक नीतियों को सरल शब्दों में समझने का प्रयास करेंगे, ताकि विद्यार्थी और सामान्य पाठक दोनों विषय को बेहतर ढंग से समझ सकें।

परिचय (Introduction)

फ़िरोज तुगलक (1351–1388 ई.) तुगलक वंश का तीसरा प्रमुख शासक था, जिसे अमीरों और उलेमा के सहयोग से सिंहासन प्राप्त हुआ। शांतिप्रिय, दयालु और जनकल्याणप्रिय शासक के रूप में उसकी ख्याति रही। उसने युद्धों के विस्तार की अपेक्षा प्रशासनिक सुधारों, जनता की सेवा, सिंचाई, सार्वजनिक निर्माण तथा आर्थिक पुनर्गठन पर विशेष ध्यान दिया। परंतु धार्मिक नीति में उसने कट्टर सुन्नी सिद्धांतों को अपनाया, जिससे सल्तनत की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। उसके शासन को समझने के लिए उसकी धार्मिक नीति और प्रशासनिक सुधारों का विश्लेषण आवश्यक है।

1. सिंहासनारोहण और धार्मिक रुचि

मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के बाद फ़िरोजतुग़लक को प्रमुख अमीरों तथा उलेमाओ ने 1351 ई0 में सिंहासन पर बैठाया। स्वभाव तथा शिक्षण के कारण भी धर्म मे उसकी रुचि थी। दूसरी उसकी माता प्रारंभिक जीवन मे हिन्दू रह चुकी थी। इसीलिए सुल्तान ने यह दिखाना आवश्यक समझा होगा कि मैं तुर्की माता-पिता से उत्पन्न लोगो से कम अच्छा मुसलमान नही हूँ। इन्ही कारणों से उसने उलेमा की शक्ति तथा प्रतिष्ठा बढ़ाने का अनुसरण किया।

2. प्रशासकीय सुधार और शासन शैली

पूर्व मध्यकालीन भारत के इतिहास में फ़िरोजतुग़लक अपने प्रशासनिक सुधरो के लिए प्रसिद्ध समझा जाता है। वह एक शांति प्रिय सुल्तान था। अतः उसने युद्धों की अपेक्षा प्रशासनिक सुधरो और सार्वजनिक हितो के कार्यो की ओर विशेष ध्यान दिया। बरनी ने लिखा है कि फ़िरोजतुग़लक दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाला सबसे अधिक विनम्र, दयालु तथा सत्यवादी सुल्तान था। उसने जनता की दशा को सुधारने का विशेष प्रयत्न किया। उसने योग्य एवं विश्वासपात्र अधिकारियों की नियुक्ति की और शासन का काम उन्हें सौपा गया। उसकी सफलता का श्रेय उसके वजीर खान-ए-जहां मलिक मकबूल को है। सुल्तान फ़िरोजतुग़लक के सुधरो को निम्नलिखित सन्दर्भो के अंतर्गत समझा जा सकता है—-

प्रमुख प्रशासनिक सुधार

3. राजस्व सुधार

फ़िरोजतुग़लक ने आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए राजस्व व्यवस्था में युगान्तकारी परिवर्तन किए। पहले के तकाबी ऋण बन्द कर दिए गए। सरकारी कर्मचारियों का वेतन इस उद्देश्य से बढ़ाया गया कि वे भ्रष्टाचार से मुक्त होकर कार्य करे। अधिकारियों को दण्डित करने की प्रथा को बंद कर दिया गया। कर उत्पादन के आधार पर निर्धारित किये गए। फतुहात-ए-फ़िरोजशाही से ज्ञात होता है कि सुल्तान ने मकान, चारागाह आदि पर लगाये गए 24 प्रकार के करो को वापस ले लिया था। राज्य ने मुख्यतः चार कर वसूले– खराज, जकात, जजिया,और ख़ुम्स। इन करो के अतिरिक्त सिंचाई कर भी लगाया गया जो उपज का  1/10 भाग होता था। और ख्वाजा हिसामुद्दीन के सहयोग से राज्य की संभावित आय एवं व्यय का ब्यौरा तैयार करवाया गया।

4. सिंचाई और कृषि विकास

कृषि एवं सिंचाई के विकास के लिए फिरोज द्वारा अनेक कदम उठाये गए। किसानो को उपज बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया और उन्हें आर्थिक सहायता भी दी गयी। सिंचाई की सुविधा के लिए अनेक नहरों का निर्माण किया गया। नहरों के अतिरिक्त कूप, तालाब, झील भी खुदवाई गई। सिंचाई के लिए उपयोग में लाये गये पानी के लिए किसानों को कर देना पड़ता था। जिससे राज्य की आय में वृद्धि हुई।

5. उद्योग एवं व्यापार विस्तार

सुल्तान ने साम्राज्य को समृद्धशाली बनाने के लिए राज्य के उद्योग-धन्धे एवं व्यापार को भी प्रोत्साहन दिया। उसने 36 कारखाने स्थापित करवाये, जहाँ विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तैयार होती थी। इन कारखानों में तैयार की गई अधिकांश वस्तुएँ महल तथा शाही उपयोग के लिए बनती थी और जो बच जाती थी उसे बेच कर राज्य की आय में वृद्धि की जाती थी। उसने लगभग 1200 बाग लगवाए जिससे राज्य की अच्छी आय प्राप्त होती थी। व्यापारियों पर अनेक प्रकार के कर हटा दिए गए। इससे सल्तनत की वित्तीय स्थिति सुधरी और जनता को काफी राहत मिली।

6. सार्वजनिक निर्माण कार्य

फ़िरोजतुग़लक की ख्याति एक महान निर्माता के रूप में भी है। यदि इतिहासकार फरिश्ता के कथन पर विश्वास किया जाय तो निर्माण कार्य फिरोज का मुख्य पेशा था। उसने फिरोजाबाद, फतेहपुर, फिरोजपुर, हिसार, फिरोजशाह कोटला तथा जौनपुर आदि नगरों कु स्थापना की। इसके अतिरिक्त उसने 40 मस्जिदें, 20 महल,100 सरायों,5 जलाशयों, 5 मकबरे,100 स्नानागारों,10 स्तम्भो तथा 100 पुलों का निर्माण करवाया। उसने अपने पूर्वर्ती शासको द्वारा बनवाये गये स्मारकों की सुरक्षा में भी ध्यान दिया। फ़िरोजतुग़लक ने 1200 नये उद्यानो को भी लगवाया, इन उद्यानो से विभिन्न प्रकार के फल प्राप्त होते थे। इससे राज्य को 1,80,000 टंका वार्षिक आय प्राप्त होती थी।

7. जनकल्याण एवं सामाजिक सुधार

दयालु प्रवृत्ति का होने के कारण फ़िरोजतुग़लक ने जनकल्याण के लिए भी अनेक कार्य किये। बेरोजगार व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए दिल्ली में एक रोजगार दफ्तर खुलवाया गया। बेरोजगारो की योग्यतानुसार इस कार्यालय द्वारा रोजगार दिलाया जाता था। सुल्तान ने गरीब कन्याओं के विवाह में मदद के लिये “दीवान-ए-खैरात” नामक एक विभाग की स्थापना की। विधवाओं और अनाथों को भी इस विभाग से सहायता मिलती थी। फिरोज ने रोगों के उपचार और निदान के लिए दिल्ली में दार-उल-शफ़ा नामक औषद्यालय की स्थापना करवाई। जहाँ रोगियों के लिए निःशुल्क चिकित्सा एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई थी।

8. न्याय व्यवस्था

फ़िरोजतुग़लक एक कट्टर मुसलमान था, अतः उसकी न्याय व्यवस्था इस्लामी कानून पर आधारित थी। राजधानी में काजी प्रमुख न्यायधीश होता था। उसके अधीन प्रान्तों में भी काजी नियुक्त किये गए। मुफ़्ती कानूनों की व्याख्या करते थे। काजी तथा मुफ्ती का पद उलेमा के लिए सुरक्षित कर दिया गया था। दण्ड विधान की कठोरता समाप्त कर दी गईं।अपराधियो एवं विद्रोहियों को यातना देने और अंग-भंग करने की सजा समाप्त कर दी गयी। मुसलमानों को मृत्यु दण्ड देना बन्द कर दिया गया, परन्तु हिन्दुओ के लिए यह व्यवस्था बनी रही।

9. सैनिक व्यवस्था

फ़िरोजतुग़लक ने आवश्यकतानुसार सैन्य व्यवस्था में भी सुधार किए। सेना का पुनः संगठन हुआ। उसने सेना का गठन सामंती आधार पर किया तथा सैनिको को वेतन जागीरों के रूप में प्रदान किया। साथ ही साथ उसने सैनिको के वृद्ध या मृत्यु हो जाने पर उसके उत्ताधिकारियो को सेना में भर्ती की मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार सैन्य सेवा वंशानुगत हो गई। इससे सेना में अनुभवहीन और अयोग्य सैनिको एवं पदाधिकारियो की संख्या बढ़ गई। ऐसी सेना न किसी बड़े सैनिक अभियान के योग्य रही और न ही शांति व्यवस्था में साहयक हो सकी। फलतः फ़िरोजतुग़लक के बाद सल्तनत का तेजी से विघटन हुआ।

10. मुद्रा व्यवस्था

मुद्रा व्यवस्था में सुधार करते हुए सुल्तान फ़िरोजतुग़लक ने कुछ नवीन सिक्को का भी प्रचलन किया उसने आधे और चौथाई पीतल के सिक्के चलवाये। वह धतु की शुद्धता पर विशेष ध्यान देता था। परन्तु उसके पदाधिकारी ईमानदार नही थे।

11. दास प्रथा

वह दासों का बड़ा शौकीन था। इस कारण उसने दीवान-ए- बंदगान नामक दास विभाग की स्थापना की। इसके लिए उसने सभी पदाधिकारियो को पूरे साम्राज्य से दासों को इकट्ठा करबाया। इस कारण दासो की संख्या 1,80,000 तक पहुंच गई। जिसमें 40,000 दास केवल सुल्तान के महल में सेवक के रूप में नियुक्त किये गए। इस विभाग के कार्यो के लिए कई अधिकारियों की नियुक्ति की गई।

12. शिक्षा एवं साहित्य संरक्षण

सुल्तान फिरोज तुगलक की  शिक्षा में भी काफी रुचि थी। वह विद्वानों का संरक्षक था और उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान करता था। उसने अनेक विद्यालयों, मठों एवं पाठशालाओं की स्थापना करवाई। प्रत्येक मस्जिद ने एक शिक्षा संस्था संबंधित रहती थी। शिक्षण संस्थाओं को राज्य की ओर से अनुदान एवं योग्य विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति की व्यवस्था थी। सुल्तान को इतिहास में विशेष रुचि थी। बरनी तथा अफीफ आदि इतिहासकार उसी के दरबार मे रहते थे, वह स्वयं एक अच्छा लेखक था। उसने अपनी आत्मकथा “फतुहात-ए-फ़िरोजशाही” लिखी। उसने कुछ संस्कृत ग्रंथो का अनुवाद करवाया। जिनमे एक प्रसिद्ध पुस्तक दलायले फ़िरोजशाही थी।

13.धार्मिक नीति और उसकी आलोचना

कट्टर सुन्नी नीति

फ़िरोजतुग़लक के समय राज्य की धार्मिक नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। उसने कट्टर सुन्नी वर्ग का समर्थन प्राप्त करने के लिए इस्लाम के सिद्धांतों को अपने राज्य की नीति का आधार बनाया और प्रत्येक अवसर पर उलेमा वर्ग से सलाह और सहायता ली और वह सम्प्रदायवादी और प्रतिक्रियावादी बन गया। दिल्ली के सुल्तानों ने अब तक सिद्धांत और व्यवहार में धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन किया था। उन्होंने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना पर बल दिया था परन्तु उलेमा के प्रभाव में आकर नये सुल्तान ने धर्मतंत्र की स्थापना का प्रयास किया। वह अपने आप को सिर्फ कट्टर सुन्नी मुसलमानों का ही शासक मानता था और इस्लाम के नियमो का कड़ाई से पालन करता था। गैर सुन्नियों,शियाओ, सुफियो, महदवियो, एवं हिन्दुओ के प्रति उसने कठोर एवं अनुदार नीति अपनाई। उसकी धार्मिक असहिष्णुता की नीति के शिकार मुसलमान एवं हिन्दू दोनो ही बने। शियाओ पर अनेक अत्याचार किये गए। उनकी धार्मिक प्रथाएँ बन्द कर दी गई। मुस्लिम स्त्रियों पर पर्दा कड़ाई से थोपा गया, उन्हें मजारो एवं दरगाहों पर जाने की अनुमति नही दी गयी।

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हिंदुओं पर कठोर नीतियाँ

 हिन्दुओ के साथ उसने अधिक अनुदार व्यवहार किया। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए बाध्य किया गया। अब ब्राह्मणो पर भी जजिया कर लगा दिया गया। हिन्दुओ के अनेक मन्दिर नष्ट कर दिए गये। मन्दिरो की मरम्मत पर पाबंदी लगा दी गई। हिन्दुओ के मेलो, त्यौहारों पर भी रोक लगा दी गई। धार्मिक भावना से प्रेरित होकर सुल्तान ने महल के सभी भित्ती चित्र नष्ट करवा दिये। इस प्रकार यह सत्य है कि फ़िरोजतुग़लक ने हिन्दुओ के प्रति कठोर नीति का पालन किया। फ़िरोजतुग़लक की धर्मान्धता की नीति राज्य के लिए हानिकारक और सिद्धान्त के आधार पर प्रतिक्रियावादी थी। बहुसंख्यक हिन्दू प्रजा असन्तुष्ट हुई औए अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद तुगलक के समय मे आरम्भ की गई धर्म और राज्य को पृथक करने की चेष्टा बेकार हो गई। तुगलक वंश के पतन में इसका बहुत बड़ा योगदान रहा।

निष्कर्ष

निष्कर्षतः कहा जा सकता है फ़िरोजतुग़लक एक शासक की दृष्टि से न तो कुशल था और न ही परिश्रमी। उसके योग्य अधिकारियों ने इस कमी की पूर्ति की और धार्मिक नीति ने उसके समर्थकों का सहयोग प्रदान किया। उसकी दास प्रथा और सैनिक व्यवस्था राज्य के लिए हानिकारक रही, परन्तु फ़िरोजतुग़लक के आर्थिक, लोकोपकारी और सार्वजनिक निर्माण के कार्य सफल हुए। उससे प्रजा सम्पन्न और सुखी हुई तथा शासन की अव्यवस्था समाप्त हो गई। मुहम्मद तुगलक ने राज्य की प्रजा को जो घाव लगाए थे, उनको फ़िरोजतुग़लक ने भर दिया।

FAQ / PAQ (People Also Ask)

Q1. फिरोज तुगलक धार्मिक दृष्टि से कैसा शासक था?

उत्तर:  फिरोज तुगलक अपने समय का अत्यंत धार्मिक और परंपरावादी सुन्नी शासक माना जाता है। वह शासन संचालन में उलेमा वर्ग की भूमिका को अत्यधिक महत्त्व देता था और प्रशासनिक नीतियों को इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप ढालने का प्रयास करता था। उसकी धार्मिक प्रवृत्ति कठोर मानी जाती है, जो शासन के अनेक निर्णयों में स्पष्ट दिखाई देती है।

Q2. फिरोज तुगलक के प्रमुख प्रशासनिक सुधार कौन-से थे?

फिरोज तुगलक ने प्रशासन को अधिक सुव्यवस्थित बनाने के लिए कई उल्लेखनीय कदम उठाए। उसने भू-राजस्व प्रणाली को संगठित किया तथा कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु नई नहरें खुदवाईं। विभिन्न कारीगरों और शिल्पों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक कार्यशालाएँ एवं उद्यान स्थापित कराए। अधिकारियों की जवाबदेही तय करके भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने का भी प्रयास किया, जिससे शासन की दक्षता में सुधार हुआ।

Q3. जनकल्याण के क्षेत्र में फिरोज तुगलक का योगदान क्या था?

उत्तर: फिरोज तुगलक ने समाज के कमजोर और वंचित वर्गों की सहायता के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ चलाईं। बेरोजगारों को कार्य उपलब्ध कराने के लिए विशेष व्यवस्था की गई। निर्धन कन्याओं के विवाह हेतु ‘दीवान-ए-खैरात’ नामक संस्था स्थापित की गई, जबकि आम जनता को निःशुल्क उपचार और औषधियाँ प्रदान करने के लिए ‘दार-उल-शफ़ा’ की स्थापना की गई। इन कदमों ने उसके शासनकाल में सामाजिक सुरक्षा को एक नया रूप दिया।

Q4. सार्वजनिक निर्माण कार्यों में फिरोज तुगलक क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: फिरोज तुगलक अपनी व्यापक निर्माण योजनाओं के कारण विशेष रूप से याद किया जाता है। उसके शासनकाल में सिंचाई नहरों, विश्रामगृहों, मस्जिदों, पुलों, उद्यानों और महलों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ। अनेक नए नगर भी बसाए गए, जिनसे सल्तनत के आर्थिक और सामाजिक ढांचे को स्थिरता और समृद्धि मिली।

Q5. फिरोज तुगलक की धार्मिक नीति को आलोचना क्यों मिली?

उत्तर:  फिरोज तुगलक की धार्मिक नीतियों को उसकी असहिष्णु और कठोर प्रवृत्ति के कारण आलोचना का सामना करना पड़ा। उसकी नीतियों से हिंदू, शिया और कुछ सूफी समूहों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप विभिन्न समुदायों में असंतोष बढ़ा, जिसने अंततः सल्तनत की आंतरिक एकता और स्थिरता को कमजोर कर दिया।

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