गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है? संपूर्ण विश्लेषण

गुप्त साम्राज्य का दौर भारतीय इतिहास में एक ऐसा समय था जब समाज, कला, विज्ञान और अर्थव्यवस्था सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति देखने को मिली। स्थिर शासन, सांस्कृतिक जागरण और वैज्ञानिक खोजों ने इस युग को एक अनोखी पहचान दी। इन्हीं कारणों से इतिहासकार इसे भारत के सबसे उज्ज्वल और समृद्ध कालों में शामिल करते हैं।

प्रस्तावना – गुप्त काल को स्वर्ण युग कहने का आधार

गुप्त शासको का शासन काल प्राचीन भारतीय इतिहास के उस युग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमे सभ्यता एवं संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई तथा हिन्दू संस्कृति अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गई थी। गुप्त काल की चहुमुखी प्रगति को ध्यान में रखकर ही इतिहासकारो ने इस काल को “स्वर्ण काल” की संज्ञा से अभिहित किया है। निश्चयतः यह काल अपने महान शासको तथा सर्वोत्कृष्ट संस्कृति के कारण भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण के समान प्रकाशित है।

साधारणतः स्वर्ण युग से तात्पर्य उस युग से है जिसमे देश की राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिस्थितियां सर्वोत्कृष्ट हो। ललित कलाओं, साहित्य, विज्ञान तकनीकी आदि के अंगों में सांस्कृतिक जीवन का चरम विकास हो। राष्ट्र और व्यक्ति दोनो का बहुमुखी विकास होता है। भौतिक आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास के अवसर प्राप्त होते है। देश धन-धान्य पूर्ण एवं सम्पन्न रहता है। स्वर्ण युग की अनेक विशेषताए गुप्त युग मे पायी गई, जिससे गुप्तकाल भारतीय इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण युग का स्थान प्राप्त किया। इसकी प्रमुख विशेषताओं को निम्नलिखित संदर्भो में उल्लेखित किया जा सकता है—-

राजनीतिक दृष्टि से गुप्त काल का स्वर्णिम स्वरूप

अखिल भारतीय साम्राज्य और एकता की स्थापना

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात गुप्त राजाओ ने अपने सैनिक अभियानों के माध्यम से अनेक क्षेत्रों को विजित करके भारत मे एक अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। इस विशाल साम्राज्य में एक सुदृढ़ शासन व्यवस्था को स्थापित करके राजनीतिक एकता को स्थापित किया। गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष काल मे उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विंध्या पर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक विस्तृत था। इतना विशाल साम्राज्य होने के बावजूद भी यह प्रत्यक्ष गुप्त शासको के अधीन था, जबकि सुदूर दक्षिण तक उनका प्रभाव था। यह गुप्त शासको की वीरता एवं पराक्रम का ही परिणाम था कि इतने विशाल साम्राज्य को एकता के सूत्र में आबद्ध (बांध) कर दिया था।

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महान गुप्त सम्राटों का उदय

समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय और स्कन्दगुप्त की उपलब्धियाँ

अगर गुप्त राजाओ की महानता की बात की जाय तो गुप्त काल मे एक से बढ़कर एक महान राजाओ का उदय हुआ, जिन्होंने अपनी विशाल सेनाओं के द्वारा विभिन्न प्रदेशो पर विजय प्राप्त कर एक छात्र शासन स्थापित किया। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की महानता की चर्चा प्रयाग प्रशस्ति में की गई, उसने न केवल आर्यवर्त को विजित किया बल्कि सुदूर दक्षिण तक अपनी विजय पताका फैहराई। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शको का उन्मूलन करके, पश्चिम तक अपने साम्राज्य का विस्तार करके अपनी महानता का परिचय दिया। स्कन्दगुप्त, गुप्त साम्राज्य का अत्यन्त प्रतापी शासक हुआ जिसने हूण जाति को परास्त कर अपनी मात्रा भूमि की रक्षा की। इस प्रकार हम कह सकते है कि इतने महान और प्रतापी शासक प्राचीन भारत के किसी युग मे दिखाई नही देते है।

आर्थिक उन्नति और व्यापारिक समृद्धि

कृषि, उद्योग और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विकास

गुप्त कालीन भारत मे जनता की आर्थिक अवस्था बहुत उन्नत थी। योग्य शासको के शासन में भारत मे शांति और सुव्यवस्था का साम्राज्य था जिससे लोगो ने अर्थिक उन्नति की ओर विशेष प्रयास किया। गुप्त राजाओ ने लोक हित कार्यो की ओर विशेष ध्यान दिया। इस काल मे उत्पत्ति के साधन तथा आवागमन के मार्ग भी उन्नत थे। कृषि, व्यापार- वाणिज्य एवं उद्योग- धंधे उन्नत अवस्था मे थे। राज्य की ओर से उनकी उन्नति तथा विकास के लिए विशेष प्रयत्न किया जाता था। इस समय बाह्य व्यापार बहुत उन्नत था। यह व्यापार जल तथा स्थल मार्गो से किया जाता था। व्यावसायिको के संघ थे। उनके अपने नियम तथा कोष थे। बैंक का कार्य संघ किया करते थे। इन संघो ने अर्थिक व्यवस्था को सम्पन्न बनाने में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया। उज्जैनी, दशपुर, भड़ौच, वैशाली, पाटलिपुत्र आदि इस काल के महत्वपूर्ण व्यापारिक नगर थे। भड़ौच तथा ताम्रलिप्ति प्रमुख बंदरगाह थे। इस समय भारत का व्यापार अरब, फारस मिस्र, रोम, चीन तथा दक्षिण पूर्वी एशिया से होता था। अतः कुल मिलाकर कहा जाय तो यह युग आर्थिक समृद्धि का युग था।

धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण

वैष्णव, शैव, बौद्ध, जैन सभी धर्मों का विकास

गुप्त काल धार्मिक दृष्टिकोण से ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान का युग था। इस समय ब्राह्मण धर्म की प्रतिष्ठा स्थापित हुई, मंदिरो और मूर्तियों का निर्माण हुआ तथा अवतारवाद की धारणा का उदय हुआ।  पौराणिक धर्म या नव-हिन्दूवाद की आधारशिला इसी युग मे रखी गई। यज्ञ, बलि-प्रथा एवं भक्ति की भावना भी अधिक विकसित हुई। इस समय ब्राह्मण धर्म के अंतर्गत वैष्णव धर्म सबसे प्रधान बन गया। अधिकांश गुप्त शासको ने इसी धर्म को अपनाया तथा इसे अपना संरक्षण प्रदान किया और ‘परमभागवत’ की उपाधि धारण की एवं गरुण को अपना राजकीय चिन्ह बनाया। गुप्त शासको ने शैव धर्म को भी संरक्षण दिया। कुमारगुप्त एवं स्कन्दगुप्त के नाम शिव के पुत्र कार्तिकेय के नाम पर ही आधारित थे। इस काल मे शैव धर्म मे कुछ नवीन तत्व दिखाई देते है जैसे शिव की पूजा पार्वती के साथ अर्द्वनारीश्वर के रुप में की जाने लगी तथा शिव की पूजा विष्णु के साथ हरिहर के रूप में की जाने लगी। गुप्त काल मे सूर्य पूजा भी प्रचलित थी। समकालीन साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों से मन्दसौर, इंदौर, ग्वालियर, मूलस्थान में सूर्य-पूजा का उल्लेख मिलता है।

गुप्त शासको ने जैन एवं बौद्ध धर्म को भी संरक्षण प्रादान किया। समुद्रगुप्त ने श्रीलंका के शासक मेघवर्मन को गया में बौद्ध विहार बनवाने की अनुमति दी थी। उसी प्रकार कुमारगुप्त ने नालन्दा में प्रसिद्ध बौद्ध विहा की स्थापना करवाई थी। इस काल मे जैन धर्म की भी उन्नति हुई। गुप्त शासक कुमारगुप्त के उदयगिरी लेख से ज्ञात होता है कि शंकर नामक व्यक्ति ने पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी।
इस प्रकार गुप्त शासक विभिन्न धर्मों के महान संरक्षक हुए। गुप्तकाल में वैष्णव एवं शैव धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मो का भी विकास हुआ। इस काल मे धर्मो में कुछ ऐसे नवीन परिवर्तन हुए जिन्होंने वर्तमान के धर्म का स्वरूप निश्चित कर दिया।

गुप्त काल की उत्कृष्ट शासन व्यवस्था

लोककल्याण, सुरक्षा और दण्ड-विधान में सुधार

प्रतिभाशाली गुप्त राजाओ ने जिस शासन व्यवस्था का निर्माण किया वह न केवल प्राचीन अपितु आधुनिक युग के लिए आदर्श की बात कही जा सकती है। यह व्यवस्था उदार एवं लोककल्याणकारी थी। सम्पूर्ण गुप्त साम्राज्य में भौतिक एवं नैतिक समृद्धि का वातावरण व्याप्त था। साम्राज्य में चारो ओर सुख-समृद्धि एवं शांति थी। यहाँ आवागमन पूर्णतः सुरक्षित था। फाहियान जैसे यात्री ने भी गुप्त शासन की उच्च शब्दो मे प्रशंसा की। गुप्त शासको ने प्राचीन भारत की दण्ड व्यवस्था के कड़े नियमो को उदार बना दिया था और मृत्यु दण्ड को पूर्णतः समाप्त कर दिया था। इस समय पुलिस अथवा गुप्तचरों के आचरण से प्रजा दुःखी नही थी। गुप्त शासन के अनेक तत्व आधुनिक प्रजातांत्रिक शासन में देखे जा सकते है।

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शिक्षा एवं साहित्य का स्वर्ण काल

कालिदास, पुराण, स्मृति ग्रंथ और नालंदा विश्वविद्यालय

गुप्त काल शिक्षा एवं साहित्य के विकास का भी युग था। पाटलिपुत्र, वल्लभी, उज्जैयनी, कांशी और मथुरा आदि इस समय के प्रमुख शैक्षिक केन्द्र थे। नालंदा महाविहार की स्थापना भी गुप्त काल मे हुई जो आगे चलकर विश्वविख्यात शैक्षिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। शिक्षण संस्थाएं शासको एवं धनी व्यक्तियों के अनुदान पर चलती थी।

गुप्तकाल में साहित्य की भी अभूतपूर्व प्रगति हुई। पुराण, महाभारत, एवं रामायण को इसी काल मे अंतिम रूप से लिखा गया। स्मृति ग्रंथो जैसे नारद, वृहस्पति, कात्यायन एवं पराशर स्मृति की रचना गुप्तकाल में हुई। मंदसौर प्रशस्ति एवं उदयगिरी गुहालेख की रचना वीरसेन ने की थी। किन्तु गुप्तकालीन सभी कवियों में सर्वश्रेष्ठ कवि एवं नाटककार कालिदास थे, जिन्हें भारत का ‘शेक्सपियर’ कह जाता है। कालिदास ने मालविकाग्निमित्र, अभिज्ञानशाकुन्तलम आदि महत्वपूर्ण ग्रंथो की रचना की। इस काल मे शूद्रक ने मृच्छकटिकम, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षक व देवीचंद्रगुप्तम, वात्सायन ने कामसूत्र, कामन्दक ने नीतिसार तथा विष्णुशर्मा ने पंचतन्त्र की रचना की।

कला और स्थापत्य का उत्कर्ष

मन्दिर निर्माण, मूर्तिकला और चित्रकला का विकास

गुप्त काल मे स्थापत्यकला का अभूतपूर्व विकास हुआ। इस काल मे ही मन्दिर निर्माण कला का जन्म हुआ। ये मन्दिर नागर शैली के है। मन्दिर निर्माण चबूतरे के ऊपर किया जाता था। तथा ऊपर जाने के लिए चारो ओर सीढ़िया बनाई जाती थी, मन्दिर की छत प्रायः सपाट होती थी। किन्तु देवगढ़ के मन्दिर में शिखर का निर्माण किया गया था। मन्दिरो के निर्माण में प्रायः पत्थरो का प्रयोग किया जाता था, किन्तु भीतरगांव, सिरपुर तथा देवगढ़ स्थित मंदिरो के निर्माण में ईंटो का प्रयोग किया गया है। मंदिरो का भीतरी भाग सादा होता था। तथा गर्भगृह में देवमूर्ति की स्थापना की जाती थी। गुप्तकालीन प्रमुख मन्दिर यथा- देवगढ़ का दशावतार मन्दिर (उत्तर प्रदेश), भीतरगांव का  विष्णु व शिव मन्दिर (उत्तर प्रदेश), सिरपुर का लक्ष्मण मन्दिर (छत्तीसगढ़), तिगवा का विष्णु मन्दिर (मध्य प्रदेश), नचानाकुठार का पार्वती मन्दिर (उत्तर प्रदेश) आदि।

गुप्तकाल में मूर्ति कला निर्माण में भी उन्नति हुई। इस काल मे गंधार एवं मथुरा कला शैली के समन्वय से सारनाथ मूर्तिकला शैली का विकास हुआ। इस कला शैली में मूर्तियों का निर्माण प्रायः लाल बलुआ पत्थर से किया जाता था। मूर्तियों में भौतिकता की बजाय आध्यात्मिकता को अधिक महत्व दिया गया है। गुप्तकालीन मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण देवगढ़ के दशावतार मंदिर से प्राप्त होता है।
गुप्तकाल में चित्रकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण अजंता एवं बाघ की गुफाओ से प्राप्त होते है। अजंता में 19 गुफाओ के चित्र बने है, जिनमे से 16 वीं, 17 वीं और 19 वीं गुफा के चित्र गुप्तकालीन है। 16 वीं गुफ़ा के चित्र बौद्ध धर्म से सम्बंधित है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित बाघ की गुफाओ से भी गुप्तकालीन चित्रकला पर प्रकाश पड़ता है। अजंता के चित्रों के विपरीत बाघ की गुफाओ के चित्र मनुष्य के लौकिक जीवन से संबंधित है।

विज्ञान, गणित और ज्योतिष की अभूतपूर्व प्रगति

आर्यभट्ट, वराहमिहिर और नागार्जुन के योगदान

गुप्तकाल में चिकित्सा विज्ञान, रसायन विज्ञान, गणित एवं ज्योतिषी का भी अभूतपूर्व विकास हुआ। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार मे धन्वंतरि नामक महान चिकित्सक को  आश्रय प्राप्त था। आर्यभट्ट को गुप्तयुग का सबसे महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ एवं ज्योतिष माना जाता है। उन्होंने अपने ग्रंथ ‘आर्यभट्टीय’ में यह प्रमाणित कर दिया कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है तथा इसी कारण ग्रहण लगता है। वराहमिहिर ने ज्योतिष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया। उन्होंने ‘पंचसिद्धांतिका’ नामक महत्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। नागार्जुन रसायन विज्ञान एवं धातू-विज्ञान के महान ज्ञाता थे।

निष्कर्ष – गुप्त काल को स्वर्ण युग कहना क्यों उचित

उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर विद्वानों ने गुप्तकाल को ‘स्वर्ण युग’ के पद पर आसीन किया। संस्कृति एवं सभ्यता के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस प्रकार हम कह सकते है कि इस युग का भारतीय इतिहास में अद्वितीय स्थान है तथा इसकी समकक्षता में कोई अन्य काल नही आ सकता। गुप्तो से पूर्व यधपि मौर्य साम्राज्य अत्यंत विस्तृत था फिर भी इस काल मे संस्कृति की वह चहुमुखी प्रगति देखने को नही मिलती जिसका साक्षात्कार हम गुप्त युग मे करते है। आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं कला-कौशल के क्षेत्र में इस समय देश उन्नति की पराकाष्ठा पर पहुँच गया तथा उन परम्पराओ का निर्माण हुआ जो आगामी शताब्दियों के लिए आदर्श बन गयी। इसी कारण आज का भारतीय गर्व करता है। वरनेट के अनुसार “गुप्तकाल साहित्यिक भारत के इतिहास में वही स्थान रखता है, जो यूनान के इतिहास में पेरीक्लीज के युग को प्राप्त है।” अतः गुप्त काल को प्राचीन भारत के इतिहास में ‘स्वर्ण युग’ की संज्ञा से विभूषित करना सर्वदा उचित एवं तर्कसंगत प्रतीत होता है।

FAQ (People Also Ask)           

Q1. गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

उत्तर:  गुप्त काल को स्वर्ण युग इसलिए माना जाता है क्योंकि इस अवधि में शासनव्यवस्था स्थिर थी और समाज अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण था। इसी अनुकूल वातावरण में कला, साहित्य, विज्ञान, शिक्षा, धर्म, अर्थव्यवस्था और राजनीति—सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय विकास हुआ, जिसने इस युग को भारतीय इतिहास का अत्यंत समृद्ध दौर बना दिया।

Q2. गुप्त काल में आर्थिक समृद्धि के क्या कारण थे?

उत्तर:  इस युग में कृषि उत्पादन बढ़ा और हस्तशिल्प तथा धातु उद्योगों का विस्तार हुआ। ताम्रलिप्ति, भड़ौच और उज्जैन जैसे नगर समुद्री तथा स्थल व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र बने। सुरक्षित मार्गों, सुव्यवस्थित शासन और बढ़ते आंतरिक-बाह्य व्यापार ने अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार प्रदान किया।

Q3. गुप्त काल में कौन-कौन सी कला और स्थापत्य शैलियाँ विकसित हुईं?

उत्तर:  गुप्त काल में मंदिर स्थापत्य की नागर शैली स्पष्ट रूप से विकसित हुई, जिसके उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भीतरगाँव का मंदिर और सिरपुर के अवशेष हैं। इस समय सारनाथ की मूर्तिकला परिष्कृत रूप में उभरी और अजंता–बाघ की गुफा चित्रकला ने भारतीय कला को नई ऊँचाई दी।

Q4. गुप्त काल में साहित्यिक उन्नति के प्रमुख कारण क्या थे?

उत्तर:  इस युग के शासक विद्वानों और लेखकों को उदार संरक्षण देते थे। इसी वातावरण में कालिदास, शूद्रक, विशाखदत्त, वात्सायन और विष्णुशर्मा जैसे महान रचनाकारों ने संस्कृत साहित्य को समृद्ध किया। कई पुराणों का संकलन और महाभारत-रामायण का अंतिम रूप भी इसी अवधि में पूरा हुआ।

Q5. गुप्त काल के प्रमुख वैज्ञानिक और उनके योगदान कौन थे?

उत्तर:  आर्यभट ने खगोलशास्त्र और गणित के कई सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप दिया—जैसे पृथ्वी के स्व-घूर्णन की अवधारणा और ग्रहणों की वैज्ञानिक व्याख्या। वराहमिहिर ने पंचसिद्धांतिका जैसी महत्वपूर्ण कृति लिखी। नागार्जुन ने धातु-विज्ञान और रसायन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रयोग किए।

Q6. क्या गुप्त काल धार्मिक दृष्टि से सहिष्णु था?

उत्तर:  हाँ, यह काल धार्मिक दृष्टि से काफी उदार माना जाता है। यद्यपि गुप्त शासक मुख्यतः वैष्णव मत के अनुयायी थे, फिर भी उन्होंने बौद्ध, शैव और जैन परंपराओं को समान संरक्षण दिया। कुमारगुप्त द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय का विकास और समुद्रगुप्त द्वारा श्रीलंका के शासक को बौद्ध विहार निर्माण की अनुमति इसका प्रमाण है।

Q7. गुप्त प्रशासन को उत्कृष्ट क्यों माना जाता है?

उत्तर:  गुप्त प्रशासन अपेक्षाकृत सरल, स्थिर और जनहितकारी था। दंड-विधान कठोर होने के बजाय मानवीय था, मार्ग सुरक्षित रखे जाते थे और पुलिस व्यवस्था प्रभावी थी। चीनी यात्री फाहियान ने भी गुप्त शासन की न्यायप्रियता, सामाजिक शांति और लोककल्याण की प्रशंसा की है।

   

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