गुप्त राजवंश के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत/Sources of History of Gupta Empire

गुप्त राजवंश को “भारत का स्वर्ण युग” कहा जाता है। इस काल में राजनीतिक स्थिरता, सांस्कृतिक उत्थान, और वैज्ञानिक प्रगति ने भारत को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। गुप्त साम्राज्य के इतिहास की सटीक जानकारी हमें विभिन्न अभिलेखीय, मुद्रात्मक, साहित्यिक और विदेशी स्रोतों से मिलती है।

गुप्त राजवंश के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत/Sources of History of Gupta Empire

परिचय (Introduction)

उत्तरी भारत मे कुषाण वंश के पतन और गुप्त वंश के उदय के मध्य की राजनीतिक स्थिति को सामान्यतः अंधकार युग की संज्ञा से विभूषित किया जाता हैं। अगर देखा जाय तो यह युग राजनीतिक विश्रृंखलता का युग था। किसी भी केन्द्रीय सत्ता के अभाव में नई- नई शक्तियों का उदय हुआ, जो सभी आपस मे संघर्षरत थी। राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में अनेक गणराज्य शक्तिशाली बन गए थे। पदमावती, विदिशा (एम0पी0) और मथुरा (यू0पी0) में नागों की शक्ति का अभ्युदय हुआ। दक्कन में सातवाहनों के बाद वाकाटक शक्तिशाली बन बैठे। अत्यंत विकट परिस्थितियों में गुप्तो ने अपनी सैनिक क्षमता और कूटनीतिज्ञता के बल पर इन समस्त शक्तियों को अपना समर्थक या अधीनस्थ बना लिया और भारत मे एक विशाल एवं शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना किया। वास्तव में देखा जाय तो गुप्त वंश के शासको ने ही मौर्यो के बाद पुनः भारत मे राजनीतिक एकता स्थापित किया और उसमें एक सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था लागू की। गुप्तो द्वारा स्थापित की गई सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था एवं राजनीतिक एकता का ही परिणाम था कि यह साम्राज्य कला, शिक्षा एवं साहित्य, धर्म, संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति किया। प्रत्येक क्षेत्र में हुई प्रगति से मंत्रमुग्ध होकर अनेक विद्वानों ने इस युग को “स्वर्ण युग” की संज्ञा से अभिहित किया। गुप्त वंश के इतिहास की जानकारी के लिए हमारे पास पर्याप्त मात्रा में साहित्यिक एवं पुरातत्विक स्रोत उपलब्ध हैं।

(A) साहित्यिक स्रोत (Literary Sources of Gupta Empire)

गुप्तकाल के इतिहास की जानकारी के लिए पर्याप्त मात्रा में साहित्यिक स्रोत उपलब्ध है। इनमे ज्यादातर तो देशी है परन्तु कुछ विदेशी (यात्रा-विवरण) साहित्य से भी गुप्तकालीन इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है। देशी साहित्य का वर्णन निम्न उपशीर्षकों के अन्तर्गतकर सकते है।

(i) पुराण (Puranas)

देशी साहित्य में सर्वप्रमुख स्थान हम पुराणों को दे सकते है। पुराणों में दी गई वंशावली से गुप्त शासको के राजनीतिक इतिहास की जानकारी मिलती है। यो तो सभी पुराणों (18) से गुप्त राजाओ के विषय मे जानकारी मिलती है, परन्तु गुप्तकाल के लिए विशेष उल्लेखनीय पुराणों में ब्रह्माण्ड पुराण, वायु पुराण तथा विष्णु पुराण का नाम लिया जा सकता है। इन पुराणों में गुप्त साम्राज्य का पूर्ण विवरण मौजूद हैं। इससे गुप्तो के राज्य की  सीमा एवं विभिन्न राजाओ के विषय मे जानकारी प्राप्त होती है।

(ii) धर्मशास्त्र (Dharmashastra Texts)

धर्मशास्त्रों से भी धर्म, संस्कार, स्त्रियों की दशा और नैतिक आदर्शो के विषय मे ज्ञान प्राप्त होता है। इनमे वृहस्पति, नारद इत्यादि स्मृतियां संभवतः इसी काल की हैचन्द्रगुप्त द्वितीय के समय मे कामन्दक ने ‘नीतिसार’ की रचना की। इस ग्रंथ का उद्देश्य एवं विषय वस्तु बहुत कुछ कौटिल्य के अर्थशास्त्र से मिलती-जुलती है। इसमे राजा को सुचारू रूप से शासन चलाने की सीख दी गई है। इससे गुप्तकालीन प्रशासन पर अच्छा प्रकाश पड़ता है।

(iii) काव्य और नाटक साहित्य (Poetic and Dramatic Works)

काव्य नाटक साहित्य से गुप्तकालीन इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति की अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। इस श्रेणी में विशाखादत्त विरचित देवीचंद्रगुप्तम, मुद्राराक्षक, वात्स्यायन के कामसूत्र,वसुबन्धु का जीवन वृतांत,कौमुदिमाहोत्सव, शूद्रक की मृच्छकटिकम एवं कालिदास की रचनाओं को  रख सकते है। देवीचंद्रगुप्तम में  चन्द्रगुप्त द्वितीय एवं शको के साथ संबंधों की समीक्षा की गई है। मुद्राराक्षक नाटक में कूटनीति का अच्छा वर्णन है। शूद्रक की मृच्छकटिकम तत्कालीन सामाजिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालती है। कामसूत्र से नागरिक जीवन की जानकारी मिलती है। कालिदास की रचनाएं तो गुप्तकाल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यद्यपि इनसे राजनीतिक इतिहास की जानकारी कम मिलती है, फिर भी सांस्कृतिक अध्ययन के लिए इनका विशेष महत्व है। उनके नाटकों में प्रमुख ऋतुसंहार, रघुवंश, कुमारसंभव, मेघदूत,मालविकाग्निमित्रम, अभिज्ञानशकुन्तलम है।

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(iv) बौद्ध और जैन साहित्य (Buddhist and Jain Literature)

संस्कृत काव्य नाटक के अतिरिक्त बौद्ध और जैन साहित्य भी गुप्तकालीन इतिहास पर प्रकाश डालते है। बौद्ध ग्रंथो में सबसे प्रमुख मंजुश्रीमूलकल्प है। यह संस्कृत में लिखित महायान बौद्ध ग्रंथ है। इसमे ईसा की आरम्भिक शताब्दी से लेकर पाल युगीन इतिहास की झलक मिलती है। गुप्त इतिहास का भी इसमे उल्लेख है। जैन ग्रंथ हरिवंश पुराण (जिनसेन सूरी द्वारा रचित) से भी गुप्तो के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।

इन ग्रंथो के अतिरिक्त कृष्ण चरित्र, सेतुबंध, हर्षचरित्र, काव्य मीमांसा, कथासरितसागर आदि ग्रंथो से भी गुप्त इतिहास के बारे महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

(v) विदेशी यात्रियों के विवरण (Foreign Accounts)

गुप्तकाल के इतिहास की जानकारी के लिए विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण भी काफी महत्वपूर्ण है, यद्यपि इनसे राजनीतिक इतिहास पर ज्यादा प्रकाश नही पड़ता है, परन्तु धार्मिक सामाजिक एवं आर्थिक अवस्था का इन विवरणो में बड़ा ही अच्छा चित्रण किया गया है। गुप्त वंश के उत्थान तक, कुषाणों के प्रयत्नो से बौद्ध धर्म का विदेशो में अच्छा प्रचार हो चुका था। फलतः अनेक चीनी यात्री बाद में ज्ञान की खोज में भारत आये। ऐसे चीनी यात्रियों में पहला यात्री फाहियान था। जो चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय मे भारत आया था। उसने यहां की तत्कालीन प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति का वर्णन अपनी पुस्तक “फो-क्यो-की” (रिकॉर्ड ऑफ दी बुद्विस्टिक किंगडंस) में किया है। सुंग-युन के वर्णन से हूण आक्रमण के विषय मे जानकारी मिलती है। ह्वेनसांग एवं इत्सिंग नामक दो अन्य चीनी यात्री भी भारत आये। उनके ग्रंथो मे भी यदा-कदा गुप्तकालीन सभ्यता एवं संस्कृति की झांकी मिलती है। ह्वेनसांग की पुस्तक “सी-यू-की” तथा इत्सिंग की पुस्तक “काउ-फ़ा-काओ-सांग चुन” में दिए गए विवरणों से गुप्तो के समय की कुछ जानकारी मिलती है। 11 वी शताब्दी में भारत आये अलबरूनी की पुस्तक “तहक़ीक़-उल-हिन्द” (किताबुल-हिन्द) से भी गुप्त संवत की तिथि को निर्धारित करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार साहित्यिक स्रोत गुप्तकालीन इतिहास की जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोत बन जाते हैं।

(B) पुरातात्विक स्रोत (Archaeological Sources of Gupta Empire)

गुप्त काल मे पुरातात्विक साधनों की बहुलता बढ़ जाती है। पुरातात्विक प्रमाण साहित्यिक प्रमाणों से अधिक विश्वसनीय है। इस काल मे अभिलेखों सिक्को एवं अन्य पुरातात्विक अवशेषों से इतिहास की जानकारी में महत्वपूर्ण सहयोग प्राप्त होता है।

(i) अभिलेख (Inscriptions)

पुरातात्विक साधनों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान अभिलेखों का है। गुप्तकालीन अभिलेख शिला, स्तम्भ एवं , ताम्रपत्रो पर उत्कीर्ण है। इनकी भाषा संस्कृत है। इन अभिलेखों में गुप्त शासको की वंशावली, उनके कृत्यों, उनकी दानशीलता एवं राजनीतिक निपुणता का पता चलता है। सरकारी अधिकारियों एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी भी अभिलेखों से मिलती है। गुप्तकालीन अभिलेख सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक अवस्था की भी जानकारी देते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमुख गुप्त अभिलेख समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति एवं एरण अभिलेख, चन्द्रगुप्त के महरौली व उदयगिरि गुहा अभिलेख, कुमारगुप्त के भिलसद, गढ़वा, मन्दसौर अभिलेख तथा स्कन्दगुप्त के भीतरी व कहौम अभिलेख है।

(ii) सिक्के (Coins)

गुप्तकालीन सिक्को (मुद्राएँ) से भी तत्कालीन स्थिति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है। गुप्त युग से भारतीय मुद्रा के इतिहास में एक नवीन युग का प्रारम्भ माना जाता है। गुप्त काल मे स्वर्ण, चांदी एवं ताँबे की मुद्राओ का निर्माण हुआ था। मुद्राएँ साम्राज्य की सीमा निर्धारण में सहायक होती है। मुद्राओ पर उत्कीर्ण चित्रों से सम्राटो की शारीरिक बनावट व व्यक्तित्व के विषय मे पता चलता है। ये मुद्राएं से जहां एक ओर राजनीति इतिहास के अध्ययन में सहायक है तो वही दूसरी तरफ तत्कालीन संस्कृति एवं दैनिक जीवन का भी ज्ञान प्राप्त करती है।

(iii) मुहरे और स्मारक (Seals and Monuments)

खुदाई से प्राप्त मुहरे भी गुप्तकालीन इतिहास की जानकारी के महत्वपूर्ण साधन है। गुप्तकालीन अनेक मुहरे वैशाली एवं नालंदा से प्राप्त हुई है। जिनसे तत्कालीन प्रांतीय तथा स्थानीय व्यवस्था के विषय मे प्रकाश पड़ता है।

गुप्तकालीन स्मारकों से भी इतिहास की जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है। गुप्तकाल में अनेक स्मारक व कलाकृतियां प्राप्त हुई है। जैसे- गुप्त शैली की भव्य बुद्ध मूर्ति, अभिलिखित बुद्ध एवं जैन मूर्तियाँ, गुप्तकालीन अनेक मन्दिर (उदयगिरी, तिगवा एवं देवगढ़ मन्दिर) इन सभी साधनो के अध्ययन से गुप्त साम्राज्य की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थिति को जानने में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

उपर्युक्त विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि गुप्तकालीन इतिहास की जानकारी के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनो ही साधन महत्वपूर्ण सिद्ध हुए है। हाँ दोनो स्रोतों के संबंध में इतना आवश्यक कहा जा सकता है कि साहित्यिक स्रोत की अपेक्षा पुरातात्विक स्रोत अधिक प्रमाणित माने जा सकते है। 

FAQ / PAQ (People Also Ask)

प्रश्न 1: गुप्त राजवंश के इतिहास की जानकारी हमें किन स्रोतों से मिलती है?

उत्तर: गुप्त युग के इतिहास के बारे में हमें दो प्रमुख प्रकार के प्रमाण प्राप्त होते हैं — साहित्यिक स्रोत और पुरातात्त्विक साक्ष्य। साहित्यिक प्रमाणों में प्रयाग प्रशस्ति तथा फाहियान का यात्रा-वृत्तांत महत्वपूर्ण हैं, जबकि पुरातात्त्विक प्रमाणों में गुप्तकालीन सिक्के, अभिलेख और मंदिरों के अवशेष प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2. प्रयाग प्रशस्ति का गुप्त इतिहास में क्या महत्व है?

उत्तर: प्रयाग प्रशस्ति की रचना कवि हरिषेण ने की थी। इसमें सम्राट समुद्रगुप्त के युद्ध विजय, उदारता और राजनीतिक नीतियों का विस्तृत विवरण मिलता है। यह अभिलेख गुप्त साम्राज्य की सीमाओं और शासकीय दृष्टिकोण को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है।

प्रश्न 3. फाहियान के विवरण से गुप्त काल के बारे में क्या जानकारी मिलती है?

उत्तर: चीनी यात्री फाहियान ने चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत की यात्रा की थी। उसके लेखन से उस समय के समाज, धर्म, शिक्षा प्रणाली और प्रशासन की उत्कृष्टता का परिचय मिलता है, जिससे गुप्त काल की समृद्धि का अंदाज़ होता है।

प्रश्न 4. गुप्तकालीन सिक्कों से क्या जानकारी प्राप्त होती है?

उत्तर: गुप्तकाल के स्वर्ण और रजत सिक्कों पर अंकित प्रतीक, देवी-देवताओं की आकृतियाँ और राजाओं की छवियाँ उस युग की आर्थिक उन्नति, धार्मिक प्रवृत्तियों, तथा कला-कौशल का परिचय कराती हैं।

प्रश्न 5. गुप्तकालीन मंदिरों और स्थापत्य कला से इतिहास की क्या झलक मिलती है?


उत्तर: देवगढ़ और भितरगाँव जैसे गुप्तकालीन मंदिर उस समय की स्थापत्य शैली, धार्मिक भावना और शिल्पकला की उच्चता को दर्शाते हैं। इन्हीं कारणों से गुप्त युग को भारतीय कला का “स्वर्ण युग” कहा जाता है।

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