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हुमायूँ, महान मुगल सम्राट बाबर का योग्य उत्तराधिकारी और साम्राज्य का दूसरा शासक था। उसका जीवन संघर्ष, उदारता, हार-जीत और अद्भुत दृढ़ता की प्रेरक गाथा है। शेरशाह सूरी द्वारा सत्ता खोने के बाद भी हुमायूँ ने हौसला नहीं छोड़ा और वर्षों की कठिनाइयों के बाद पुनः दिल्ली के सिंहासन पर अधिकार स्थापित किया। इस लेख में हम हुमायूँ के जन्म, युद्धों, उपलब्धियों और उसके शासनकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं को सरल और सहज भाषा में समझेंगे।

नासीरूद्दीन हुमायूँ का जन्म काबुल के किले में 6 मार्च 1508 ई0 में बाबर की पत्नि माहम बेगम के गर्भ से हुआ था। वह बाबर का ज्येष्ठ पुत्र था। बाबर ने इसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। भारत मे राज्यभिषेक से पूर्व 1520 ई0 में 12 वर्ष की आयु में उसे बदख्शाँ का सूबेदार नियुक्त किया गया। बदख्शाँ के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी युद्धों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया। 1529 ई0 में हुमायूँ बदख्शाँ की सूबेदारी त्याग कर भारत आ गया, जहाँ पर बाबर की मृत्यु के बाद 30 सितंबर 1530 ई0 को 23 वर्ष की आयु में हुमायूँ का राज्याभिषेक किया गया। हुमायूँ अपने जीवन मे बहुत ही उदार था। उसने अपना साम्राज्य अपने भाइयों में विभाजित कर दिया। साम्राज्य का किया गया विभाजन हुमायूँ की भूल में से एक था। जिसके कारण उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और कालान्तर में उसके भइयो ने उसका साथ नही दिया।
हुमायूँ की प्रमुख उपलब्धियाँ और युद्ध
गद्दी पर बैठने के कुछ माह पश्चात ही हुमायूँ को अपनी कठिनाइयो से निजात पाने के लिए अनेक संघर्ष करने पड़े। उसके प्रमुख शत्रु अफगान थे और उन्ही से उसके संघर्ष का आरम्भ हुआ, कालिंजर पर आक्रमण उसी संघर्ष की एक कड़ी था।
कालिंजर अभियान (1531)
राज्यारोहण के पश्चात 6 महीने के भीतर हुमायूँ ने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। किले का घेरा कुछ महीनों तक पड़ा रहा और अंत मे हुमायूँ को कालिंजर नरेश से संधि करनी पड़ी। कालिंजर नरेश ने बहुत सा धन देकर हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली।
दौहरिया/देवरा का युद्ध (1532)
कालिंजर का घेरा उठाने के बाद हुमायूँ महमूद लोदी का दमन करने के लिए पूर्व की ओर बढ़ा,जो मुगल प्रदेश जौनपुर की ओर बढ़ा आ रहा था। दोनो सेनाओं के मध्य अगस्त 1532 ई0 में दौहरिया नमक स्थान पर युद्ध हुआ, अफगान पराजित हुए और बिहार की ओर भग खड़े हुए।
चुनार अभियान (1533)
महमूद लोदी को पराजित करने के पश्चात हुमायूँ ने 1533 ई0 में चुनार के किले का घेरा डाला। इस समय चुनार पर शेर खां का अधिकार था। चार महीने तक लगातार किले को घेरे रहने के बाद हुमायूँ और शेर खां में समझौता हो गया। समझौते के अन्तर्गत शेर खां ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार करते हुए अपने पुत्र कुतुब खां को एक अफगान सैनिक टुकड़ी के साथ हुमायूँ की सेवा में भेजना स्वीकार कर लिया। शेर खां को बिना पराजित किये छोड़ देना हुमायूँ की महान भूल थीं। इस प्रकार शेर खां ने अपनी कूटनीति से अपनी शक्ति संगठित करने का पूरा अवसर प्राप्त कर लिया।
बहादुरशाह पर विजय (1535–36)
गुजरात के शासक बहादुरशाह ने 1531 ई0 में मालवा तथा 1532 ई0 में रायसेन के किले पर अधिकार कर लिया। 1534 ई0 में उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर संधि के लिए बाध्य किया। बहादुरशाह ने टर्की के कुशल तोपची की सहायता से एक बेहतर तोपखाने का निर्माण करवाया था । दूसरी तरफ शेर खां ने सूरजगढ़ के युद्ध मे बंगाल को पराजित कर काफी सम्मान अर्जित कर लिया था। उसकी बढ़ती हुई शक्ति हुमायूँ के लिए चिंता का विषय थी। पर हुमायूँ की पहली समस्या बहादुरशाह था। क्योंकि वह एक महत्वाकांक्षी शासक था, जो दिल्ली पर अधिकार करना चाहता था। बहादुशाह और हुमायूँ के मध्य 1535 ई0 में सारंगपुर में युद्ध हुआ। बहादुरशाह पराजित होकर माण्डू भाग गया। इस तरह हुमायूँ द्वारा माण्डू एवं चम्पानेर पर विजय के बाद मालवा और गुजरात पर भी उसका अधिकार हो गया। एक वर्ष बाद बहादुशाह ने पुर्तगालियों के सहयोग से 1536 ई0 में पुनः मालवा और गुजरात पर अधिकार कर लिया, परन्तु 1537 ई0 में बहादुशाह की मृत्यु हो गई।
शेरशाह से संघर्ष और पराजय

अक्टूबर 1537 ई0 में हुमायूँ ने एक बार पुनः चुनार के किले का घेरा डाला, जहाँ कुतुब खां ने शेर खां की योजना के अनुसार हुमायूँ को अधिक से अधिक समय तक रोके रखा। 6 माह पश्चात हुमायूँ ने 1538 ई0 में चालाकी और तोपखाने की सहायता से किले पर अधिकार कर लिया। उस समय तक शेर खां ने गौड़ को जीत लिया था, और उसके खजाने को लूटकर रोहताशगढ़ के किले में सुरक्षित कर दिया था। चुनार को जीतने में हुमायूँ ने जो समय लगाया वह उसकी एक बड़ी भूल मानी गयी।
चुनार की सफलता के बाद हुमायूँ ने बंगाल पर विजय प्राप्त की। वह गौंड में करीब 1539 ई0 तक रहा। 15 अगस्त 1538 ई0 को जब हुमायूँ ने बंगाल के गौंड क्षेत्र में प्रवेश किया तो उसे वहाँ चारो ओर उजाड़ और लाशो के ढ़ेर दिखाई पड़े। हुमायूँ ने इस स्थान का पुनर्निर्माण करवा कर इसका नाम जन्नताबाद रखा।
चौसा का युद्ध (1539)
25 जून की रात को शेर खां ने अचानक मुगल सेना पर आक्रमण कर दिया, मुंगलो में भगदड़ मच गई और वे बड़ी संख्या में मारे गये अथवा भाग गए। यह युद्ध हुमायूँ और शेर खां की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित चौसा नामक स्थान पर हुआ। यह युद्ध हुमायूँ अपनी गलतियों के कारण हार गया। संघर्ष में मुगल सेनाओं की काफी हानि हुई। हुमायूँ ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिश्ती का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी को पार करके अपनी जान बचाई। चौसा के युद्ध मे सफल होने के बाद शेर खां ने अपने को “शेरशाह” की उपाधि से सुसज्जित किया, साथ ही अपने नाम के खुतवे पढ़वाने एवं सिक्के ढलवाने का आदेश दिया।
बिलग्राम/कन्नौज का युद्ध (1540)
बिलग्राम या कन्नौज की लड़ाई में हुमायूँ के साथ उसके भाई हिन्दाल और अस्करी भी थे, फिर भी हुमायूँ पराजित हुआ। इस युद्ध मे सफलता प्राप्त करने के बाद शेर खां ने सरलता से आगरा और दिल्ली पर अधिकार कर लिया, इस प्रकार हिन्दुस्तान की सत्ता एक बार पुनः अफगानों के हाथों में आ गई।
निर्वासन काल में विवाह

शेर खां से पराजित होने के बाद हुमायूँ सिंध चला गया, जहाँ से करीब 15 वर्षो तक खानाबदोश जैसा निर्वासित जीवन व्यतीत किया। इस निर्वासन के समय हुमायूँ ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फारस वासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ मीर अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा बानो बेगम से 29 अगस्त 1541 ई0 में शादी कर लिया, कालान्तर में हामिद बेगम से ही अक्टूबर 1542 ई0 में अकबर जैसे महान सम्राट का जन्म हुआ।
भारत की पुनर्वापसी और अंतिम सफलता

शेर खां के उत्तराधिरी इस्लामशाह की मृत्यु के बाद अफगान सरदारों में फूट पड गई। उधर 1545 ई0 में हुमायूँ ने कंधार एवं काबुल पर अधिकार कर लिया। शेरशाह के पुत्र इस्लामशाह की मृत्यु के बाद हुमायूँ को भारत पर अधिकार करने का पुनः अवसर मिला। 5 सितम्बर 1554 ई0 में हुमायूँ अपनी सेना के साथ पेशावर पहुँचा, फरवरी 1555 ई0 में हुमायूँ ने लाहौर पर अधिकार कर लिया।
मच्छीवारा का युद्ध (15 मई 1555 ई0)
लुधियाना में सतलज नदी के तट पर स्थित मच्छीवारा नामक स्थान पर हुमायूँ एवं अफगान सरदार नसीब खां तथा तातार खां के बीच संघर्ष हुआ। संघर्ष का परिणाम हुमायूँ के पक्ष में रहा। सम्पूर्ण पंजाब मुंगलो के हाथों में आ गया।
सरहिन्द का युद्ध
मच्छीवारा के युद्ध मे अफगानों के पराजित होने पर अब मुगलो का मुकाबला करने के लिए स्वयं सिकंदर सूर आ गया। 22 जून 1555 ई0 में दोनों सेनाओं के मध्य सरहिन्द नामक स्थान पर युद्ध हुआ, इसमे भी मुंगलो की जीत हुई और सिकंदर सूर भागकर पंजाब की पहाडियो में जा छिपा। यह युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ तथा अफगानों ने भारत की सत्ता को सदैव के लिए खो दिया।
22 जुलाई 1555 ई0 में वह शुभ क्षण था जब एक बार पुनः दिल्ली के तख्त पर हुमायूँ को बैठने का सौभग्य प्राप्त हुआ, पर यह उसका दुर्भाग्य था कि वह अधिक दिनों तक सत्ता भोग नही कर सका। जनवरी 1556 ई0 को हुमायूँ की मृत्यु हो गई।
हुमायूँ का व्यक्तित्व एवं मूल्यांकन
| सकारात्मक गुण | कमजोरियाँ |
| साहसी, दयालु, विद्वान | अत्यधिक उदारता |
| कला-संरक्षक | समयानुकूल निर्णय लेने में असफल |
| दृढ़ इच्छाशक्ति (निर्वासन के बाद वापसी) | सैन्य रणनीति में कमी |
निष्कर्ष
उपरोक्त अध्ययन के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि हुमायूँ में व्यक्तिगत सामर्थ्य एवं साहस तो अवश्य था लेकिन अपने कुछ दुर्गुणों के कारण वह निरंतर असफल होता गया। आगे चलकर वह दिल्ली पर अपने अधिकार को कायम न रख सका। शेर खां ने दिल्ली से उसे खदेड़कर शूर वंश की नींव रखी लेकिन शेर खां के अयोग्य उत्तराधिकारियो के काल मे हुमायूँ को पुनः दिल्ली पर अधिकार मिल गया। इसिलिए उसकी प्रारम्भिक कठिनाइयो और युद्ध अभियानों को देखने के बाद हम स्प्ष्ट रूप से कह सकते हैं कि हुमायूँ का जीवन अनेक कठिनाइयो से भरा रहा और वह जीवन भर इसके लिए संघर्ष करता रहा।
FAQs – People Also Ask /हुमायूँ से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1. हुमायूँ का जन्म आखिर कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: मुगल सम्राट हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 ईस्वी को काबुल के प्रसिद्ध किले में हुआ था। बाबर के बड़े पुत्र होने के कारण बचपन से ही उन्हें शासन, युद्धकला और प्रशासन की विशेष शिक्षा मिली, जिसने आगे चलकर उनके शासनकाल को आकार दिया।
प्रश्न 2. हुमायूँ की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानी जाती है?
उत्तर: हुमायूँ की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि यह थी कि शेरशाह सूरी द्वारा सत्ता छीन लिए जाने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई और वर्षों के संघर्ष व निर्वासन के बाद दिल्ली का तख्त दोबारा हासिल किया। इतनी बड़ी पराजय के बाद पुनः साम्राज्य स्थापित करना उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और राजनीतिक कौशल को दर्शाता है।
प्रश्न 3. हुमायूँ को सत्ता से बाहर क्यों होना पड़ा?
उत्तर: हुमायूँ को सत्ता से इसलिए हटना पड़ा क्योंकि वे 1539 ई. के चौसा युद्ध और 1540 ई. के कन्नौज (कनौज) युद्ध दोनों में शेरशाह सूरी से पराजित हो गए थे। इन हारों के बाद वे सुरक्षित स्थान की तलाश में लंबे समय तक निर्वासन में रहे और अपने साम्राज्य को दोबारा स्थापित करने के अवसर की प्रतीक्षा करते रहे।
प्रश्न 4. हुमायूँ की मृत्यु किस प्रकार हुई?
उत्तर: हुमायूँ की मृत्यु एक दुर्घटना के कारण हुई। जनवरी 1556 ईस्वी में, वे अपनी पुस्तकालय की ऊँची सीढ़ियों से उतरते समय फिसलकर गिरने के कारण उनके सिर पर गंभीर चोट लग गई जिस कारण कुछ ही समय बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनकी इस अकस्मात मृत्यु को इतिहासकार एक विशेष और निर्णायक घटना के रूप में स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 5. हुमायूँ के बाद मुगल साम्राज्य का शासक कौन बना?
उत्तर: हुमायूँ के निधन के बाद उनके पुत्र अकबर ने मुगल साम्राज्य की गद्दी संभाली। अकबर आगे चलकर भारत के सबसे शक्तिशाली और प्रख्यात मुगल सम्राटों में गिना गया और उसके शासनकाल में साम्राज्य ने अत्यधिक विस्तार और स्थिरता प्राप्त की।
