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इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का स्थिरकर्ता माना जाता है, क्योंकि उसने संकटों से जूझ रही सल्तनत को न केवल सँभाला, बल्कि उसे संगठन, प्रशासन और सैन्य शक्ति के आधार पर मज़बूत रूप दिया। उसके शासनकाल को सल्तनत की प्रारंभिक संरचना को मजबूत करने का काल माना जाता है। दी गई छवि उसके राजनीतिक कार्यों, सैन्य नीतियों और प्रशासनिक क्षमता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है।

भूमिका
दिल्ली सल्तनत के आरंभिक तुर्क सुल्तानों में इल्तुतमिश अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का स्वामी था। अनिश्चित राजनीतिक परिस्थितियों में और अत्यंत गम्भीर संकट के काल मे इल्तुतमिश दिल्ली का शासक बना। अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर उसने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली रूप प्रदान किया।
वास्तव में इल्तुतमिश से पूर्व कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने संक्षिप्त शासन काल में दिल्ली सल्तनत की स्थापना का कार्य आरम्भ किया, किन्तु वह उसे पूरा करने में असमर्थ रहा। इल्तुतमिश के लिए यह अनिवार्य था कि वह इस नव-स्थापित राज्य को सुदृढ़ता प्रदान करे। किन्तु इसके लिए उसे सबसे पहले अपनी स्थिति सुदृढ़ करना अनिवार्य था।
इल्तुतमिश की उपलब्धियों को वेहतर ढंग से समझने के लिए एवं दिल्ली सल्तनत के प्रति उसके योगदानों का मूल्यांकन करने के लिए यह आवश्यक है कि उन समस्याओं की ओर ध्यान दिया जाय जो उसके राज्याभिषेक (राज्यारोहण)के समय उपलब्ध थी। उसके राज्यारोहण के समय प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित थी—
इल्तुतमिश के राज्यारोहण के समय प्रमुख समस्याएँ
(i) विरोधी सामंतो विशेषकर कुतुबी और मुइज्जी सामंतो का दमन।
(ii) अपने प्रतिद्वंद्वी एल्दौज एवं कुबाचा का दामन।
(iii) मंगोल आक्रमण से सल्तनत की रक्षा।
(iv) सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करना आदि।
(i) विरोधी सामंतों का दमन और तुर्कान-ए-चहलगानी

सर्वप्रथम इल्तुतमिश ने उन सामंतो की शक्ति को कुचला ( दमन किया) जो उसके राज्यारोहण के समय उसका विरोध कर रहे थे। कुतुबी और मुइज्जी इल्तुतमिश को दास मानते थे,इसिलिए वे गद्दी पर इल्तुतमिश के अधिकार को अनुचित मानते थे। इल्तुतमिश ने सर्वप्रथम इन सामंतो को पराजित किया। सामंतो को पराजित करने के पश्चात उसने सामंती पदों को समाप्त कर दिया। और उसके स्थान पर चालीस दासों का एक नया संगठन “तुर्कान-ए-चहलगानी” स्थापित किया, जो अब सामंतो के स्थान पर शासक को शासन में सहायता करने लगे।
(ii) एल्दौज एवं कुबाचा का दमन
इल्तुतमिश के प्रबल प्रतिद्वंद्वीयो में सर्वप्रथम उसका सामना एल्दौज से हुआ,जो उस समय गजनी का शासक था। और दिल्ली पर वह अपना दावा कर रहा था। यधपि उसे ऐबक द्वारा पराजित किया गया था,परंतु इल्तुतमिश की कठिनाइयों को देखकर एल्दौज ने पुनः अपना दावा दोहराया। 1215-1216 ई0 के बीच इल्तुतमिश ने एल्दौज को तराइन के तृतीय युद्ध मे पराजित किया। इसी दौरान उसने अपने दूसरविरोधी कुबाचा के विरुद्ध भी संघर्ष किया परन्तु उसे पूर्ण सफलता नही मिली।
(iii) मंगोल संकट से सल्तनत की सुरक्षा

इल्तुतमिश को मंगोलो के संभावित आक्रमण का सामना भी करना पड़ा। 13 वी शताब्दी में मंगोल विजेता चंगेजखान ने समस्त मध्य एशिया को अपने पैरों के तले रौंदकर अपनी धाक जमा ली थी। उसी समय यह मंगोल नेता चंगेजखान ख़्वारिज्म के शाह जलालुद्दीन मगबार्नी का पीछा करते हुए दिल्ली की सीमा तक पहुँच गया था,मगबार्नी ने इल्तुतमिश से सहायता मांगी, परन्तु इल्तुतमिश ने कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए मगबार्नी को किसी भी प्रकार से सहायता नही की। इल्तुतमिश के इस व्यवहार से चंगेजखान संतुष्ट रहा और दिल्ली पर आक्रमण नही किया। इल्तुतमिश ने इस प्रकार नव-स्थापित राज्य की मंगोल आक्रमणकारियो से सुरक्षा की।
चंगेजखान के आक्रमण का एक अप्रत्यक्ष लाभ इल्तुतमिश को यह हुआ कि मगबार्नी ने सिंध के किनारे कुबाचा की शक्ति को कमजोर कर दिया था। अतः इस स्थिति का लाभ उठाकर इल्तुतमिश ने कुबाचा पर 1226 ई0 में आक्रामक कर दिया और उसे पराजित किया तथा सिंध और मुल्तान के क्षेत्रों को दिल्ली में मिला लिया।
(iv) बंगाल-बिहार एवं राजपूताना में विजय अभियान
इल्तुतमिश ने अपने प्रतिद्वंद्वीयो का सफाया कर और मंगोल आक्रमणकारियो के संभावित खतरे से मुक्त होकर अपना ध्यान राज्य विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण की तरफ लगाया। इसी समय इल्तुतमिश ने पूर्वी सीमा की तरफ ध्यान दिया। बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि प्रान्त स्वतंत्र हो गए थे। उसने बंगाल के विरुद्ध दो सैनिक अभियान चलाए और इसे अपने अधीन किया। इसके बाद उसने राजपूताना क्षेत्रों पर सैन्य कार्यवाही संचालित की और उसने अजमेर,नागौर,ग्वालियर आदि क्षेत्रों को भी अपने अधीन किया।
(v) खलीफा से वैधानिक मान्यता प्राप्त करना
इल्तुतमिश के राज्यकाल की एक प्रमुख़ घटना है बगदाद के खलीफा से सुल्तान के पद की वैधानिकता प्राप्त करना। अब्बासी खलीफा इल्तुतमिश के कार्यो से प्रसन्न था,अतः उसने 18 फरवरी 1229 ई0 को इल्तुतमिश को दिल्ली का वैधानिक एवं स्वतन्त्र शासक स्वीकार कर लिया। इस प्रकार इल्तुतमिश दिल्ली का वैधानिक सुल्तान बन गया, उसकी प्रतिष्ठा बढ़ गई एवं उसके विरोधी शांत हो गए।
(vi) प्रशासनिक सुधार – इक्ता प्रणाली
इल्तुतमिश ने अपने साम्राज्य का विस्तार कर उसे संगठित करने का भी प्रयास किया। इस उद्देश्य से उसने प्रचलित प्रशासनिक व्यवस्था में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किये। प्रशासनिक कार्यवाही के अंतर्गत उसने अपने साम्राज्य को छोटे-छोटे भू-खण्डों में विभाजित किया। इसे “इक्ता” कहा जाता था, और इसके अधिकारी इक्तादार कहलाते थे। ये इक्तादार अपने क्षेत्रों की लगन वसूली, कानून व्यवस्था, सैन्य व्यवस्था, न्याय आदि गतिविधियों को संचालित करने के लिए जिम्मेदार थे। इक्तादारों को वेतन के रूप में इक्ता से लगन वसूल करने का अधिकार था। इस व्यवस्था ने इल्तुतमिश को प्रशासन में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की।
(vii) मुद्रा-व्यवस्था में सुधार – टंका और जीतल

इल्तुतमिश का एक अन्य कार्य था, प्रचलित मुद्रा व्यवस्था में सुधार करना। उसने प्रचलित सिक्को के स्थान पर शुद्ध अरबी ढंग से “टंका” चलवाये। ये सोने एवं चाँदी के बने होते थे। जिसका वजन 175 ग्रेन था। इन पर अरबी भाषा मे इल्तुतमिश का नाम अंकित होता था। टंको पर “टकसाल” का नाम खुदवाने की प्रथा भी इल्तुतमिश ने प्रारम्भ की। टंका के अतिरिक्त इल्तुतमिश ने पीतल के “जीतल” भी जारी किया। इन सिक्कों को जारी कर इल्तुतमिश ने अपनी सत्ता के सुदृढ़ीकरण का प्रमाण भी दिया।
(viii) कला, संस्कृति एवं विद्वानों का संरक्षण
इल्तुतमिश ने कला और संस्कृति को भी प्रोत्साहन दिया। इस समय दिल्ली शिल्प-कलाकारों, कलाकारों, विद्वानों, संगीतकारों आदि का आश्रय बन गई थी। अर्थात इल्तुतमिश ने इन सभी को अपने साम्राज्य में आश्रय प्रदान किया।
निष्कर्ष — क्या इल्तुतमिश वास्तविक संस्थापक था?
इस प्रकार इल्तुतमिश की उपरोक्त उपलब्धियों को देखने से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि एक विजेता और सेनानायक के रूप में इल्तुतमिश की ये उपलब्धियां अत्यंत प्रभवशाली है। उसने नव-स्थापित दिल्ली सल्तनत को न केवल विघटन से बचाया बल्कि उसे एक सुदृढ़ अस्तित्व भी प्रदान किया। अतः निःसंदेह रूप से यह कहा जा सकता है कि दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कोई है तो वह इल्तुतमिश ही है।
FAQs: इल्तुतमिश की उपलब्धियाँ एवं दिल्ली सल्तनत में योगदान
Q1. इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक किस कारण माना जाता है?
उत्तर: इल्तुतमिश ने सत्ता सँभालते ही दिल्ली सल्तनत को जिस रूप में व्यवस्थित किया, वह इससे पहले संभव नहीं हो पाया था। उसने बिखरी राजनीतिक स्थिति को संभाला, विद्रोही ताक़तों पर नियंत्रण किया और केंद्रीय शासन को मज़बूत ढाँचा दिया। मंगोलों के खतरे को समझदारी से टालने के साथ-साथ उसने खलीफा से औपचारिक मान्यता भी प्राप्त की, जिससे उसकी सत्ता को वैधता मिली। इसी कारण इतिहास में उसे सल्तनत का वास्तविक आधार निर्माता कहा जाता है।
Q2. इल्तुतमिश के शासन की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि क्या मानी जाती है?
उत्तर: उसके शासन की सबसे बड़ी सफलता एक स्थिर और सुव्यवस्थित राजनीतिक ढांचा तैयार करना थी। प्रशासन को संगठित करना, इक्ता प्रणाली को अधिक कारगर बनाना, मुद्रा व्यवस्था में सुधार करना और सीमाओं की सुरक्षा मज़बूत बनाना—इन सबने दिल्ली सल्तनत को दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान की, जो उसकी प्रमुख उपलब्धि मानी जाती है।
Q3. ‘तुर्कान-ए-चहलगानी’ क्या था और यह व्यवस्था क्यों बनाई गई?
उत्तर: यह इल्तुतमिश द्वारा तैयार किया गया प्रमुख तुर्क अधिकारियों का एक विशेष समूह था, जिसमें चालीस विश्वसनीय दास-अफसर शामिल किए गए। इसका उद्देश्य पुराने सामंती वर्ग के अत्यधिक प्रभाव को कम करना और शासन के महत्त्वपूर्ण कार्यों में ऐसे लोगों को शामिल करना था जिन पर सुल्तान पूर्ण भरोसा कर सके। यह व्यवस्था शासन को अधिक केंद्रीकृत और नियंत्रित बनाने का प्रयास थी।
Q4. इल्तुतमिश ने मंगोलों के संभावित आक्रमण से किस प्रकार निपटा?
उत्तर: चंगेज़ खान जब भारत की सीमा के निकट पहुँचा, तब इल्तुतमिश ने प्रत्यक्ष टकराव से बचने के लिए अत्यंत सावधानीपूर्ण कूटनीति अपनाई। उसने राजनीतिक रूप से ऐसा रुख चुना कि न तो मंगोलों को उकसाया जाए और न ही उन्हें हस्तक्षेप का अवसर मिले। उसकी यही सावधानी दिल्ली सल्तनत को मंगोल आक्रमण से सुरक्षित रखने में निर्णायक साबित हुई।
Q5. इल्तुतमिश द्वारा किए गए मुद्रा सुधारों की विशेषता क्या थी?
उत्तर: उसने उस समय प्रचलित असंगठित सिक्का-प्रणाली को एकरूपता प्रदान करने के लिए नए प्रकार की मुद्राएँ जारी कीं—चाँदी का टंका और तांबे/पीतल का जीतल। इन सिक्कों का वजन, धातु की शुद्धता और शैली पहले की तुलना में अधिक मानकीकृत थी। इससे आर्थिक लेन-देन में स्थिरता आई और शाही अधिकार की विश्वसनीयता भी बढ़ी।
Q6. इल्तुतमिश और एल्दौज के बीच संघर्ष का ऐतिहासिक महत्व क्या था?
उत्तर: एल्दौज के साथ संघर्ष में इल्तुतमिश की जीत ने उसे राजनीतिक रूप से बेहद मज़बूती प्रदान की। इस विजय के बाद दिल्ली पर उसका दावा अधिक निर्विवाद बन गया और उसके विरोधियों की शक्ति काफी हद तक खत्म हो गई। परिणामस्वरूप सल्तनत के भीतर उसका अधिकार स्थिर हुआ और आंतरिक चुनौतियों में उल्लेखनीय कमी आई।
Q7. खलीफा से मिली मान्यता इल्तुतमिश के शासन के लिए क्यों महत्वपूर्ण थी?
उत्तर: खलीफा उस समय इस्लामी दुनिया में धार्मिक अधिकार का प्रमुख स्रोत माना जाता था। खलीफा द्वारा इल्तुतमिश को वैध शासक मान लेने से न केवल उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ी, बल्कि घरेलू विरोध भी कमजोर पड़ गया। इससे उसके शासन को धार्मिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर स्वीकार्यता प्राप्त हुई।
Q8. इल्तुतमिश ने कला और संस्कृति को किस प्रकार प्रोत्साहित किया?
उत्तर: उसके शासनकाल में दिल्ली विद्वानों, कवियों, कलाकारों और शिल्पकारों का आकर्षण-केंद्र बनने लगी। उसने प्रतिभाशाली लोगों को संरक्षण दिया और सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सल्तनत के सांस्कृतिक जीवन में नवाचार और विविधता आई।
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