तुर्कों के आक्रमण के समय भारत राजनीतिक रूप से बिखरा हुआ था और अनेक राजपूत राज्यों के बीच शक्ति-संघर्ष चल रहा था। सामाजिक और धार्मिक स्तर पर भी समाज कई कमजोरियों से घिरा था, जबकि आर्थिक रूप से भारत समृद्ध था। यही मिश्रित परिस्थितियाँ तुर्कों के सफल आक्रमण का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

परिचय: तुर्क आक्रमण से पहले भारत की समग्र स्थिति
तुर्को के आक्रमण के समय भारत (उत्तर भारत) पर अनेक राजपूत राजाओं का शासन था। सम्राट हर्षवर्द्धन के अवसान के पश्चात 7 वी से 12वी शताब्दी तक राजपूत सत्ता का विकास हुआ। भारत उस समय अनेक छोटे -छोटे वंशानुगत राज्यो में बटा हुआ था। प्रायः इन सभी राज्यो के संस्थापक राजपूत थे। कुछ राजपूत राज्य विस्तृत हो गए थे और कुछ वर्षों तक उन्होने भारत मे राजनीतिक एकता भी स्थापित कर ली थी। सामरिक दृष्टि से राजपूत अपनी वीरता, रणकौशल, और युद्ध प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। उत्तर-पश्चिम से आने वाले तुर्को के आक्रमण को रोकने के लिये सदियो तक वे उनसे युद्ध करते रहे, जूझते रहे और उन्होंने देश, समाज, और धर्म की रक्षा की। इसमे उन्होंने अपने उच्च आदर्शो, आलौकिक गुणों, अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। अतः तुर्को के आक्रमण के समय भारत की स्थिति का वर्णन निम्नलिखित शीर्षकों — राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, और आर्थिक स्थिति के आधार पर कर सकते हैं—–
1.राजनीतिक स्थिति (Political Condition of India During Turkish

1.1. केंद्रीकरण का पतन और राजपूत राज्यों का उदय
हर्ष के शासनकाल तक एक केंद्रीय सत्ता की व्यवस्था थी। लेकिन उसके पतन के बाद इस केंद्रीय सत्ता में बिखराव आ गया। अब भारत अनेक छोटे-छोटे राज्यो में विभक्त हो गया।
1.2. प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियाँ और आपसी वैमनस्य
इस समय उत्तरी-भारत का प्रतीक कन्नौज माना जाता था। लेकिन गुर्जर प्रतिहारो के पतन के बाद उत्तर भारत मे कोई भी इतना शक्तिशाली सम्राट नही था, जो भारत को एक राजनीतिक सूत्र में संगठित कर समस्त बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित कर सके। इस संबंध में ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि “इस समय भारत सोलहवी शताब्दी के जर्मनी की भांति ऐसे राज्यो का समूह बन गया था जो अपने प्रत्येक उद्देश्य एवं कार्य के लिए स्वतंत्र थे।” उस समय भारत मे उत्तर पश्चिम में (पंजाब तथा काबुल) हिन्दू शाही वंश शासन कर रहा था। सिंध तथा मुल्तान पर अरब वासी अपना राज्य स्थापित कर चुके थे। जबकि बंगाल में पाल वंश का शासक महिपाल शासन कर रहा था। गुजरात अथवा मध्य और पूर्वी राजस्थान में मुस्लिम आक्रमणों के पूर्व प्रतिहारों का शासन था। प्रतिहारो के बाद कई राजपूत राज्यो का उदय हुआ। इसमे अजमेर के चौहान, बुन्देलखण्ड के चंदेल, कन्नौज के गहड़वाल, मालवा के परमार, चेदि के कलचुरी तथा गुजरात के सोलंकी प्रमुख थे। चौहानो के राज्य के पूर्व राठौर गहड़वालों का राज्य था, जहां जयचंद शासन कर रहा था। गहड़वालों के पूर्व में सेन वंश का राज्य था तथा दिल्ली में इस समय तोमरो का राज्य था। वर्तमान में प्राचीन भारत की राजनीति का केंद्र मगध अब राज्य का केंद्र नही रह गया था बल्कि राजनीतिक सत्ता पश्चिम और पूर्वी सीमांत पर केंद्रित हो गयी थी। राजनीतिक व्यवस्था के विघटन के साथ-साथ सत्ताधारी की भावना समाप्त हो गई थी। परिणाम यह हुआ कि संधि और प्रतिसंधि की व्यवस्था आरम्भ हो गई थी।
1.3. निरंकुश राजतंत्र, सामंतवाद और प्रशासनिक शिथिलता
तुर्को के आक्रमण से पूर्व शासन का स्वरूप निरंकुश राजतंत्र था। गणतंत्र शासन प्रणाली विलुप्त हो गई थी। राजा की सत्ता और अधिकारों पर प्रजा का कोई नियंत्रण नही था यद्यपि गामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायतें विद्यमान थे, परंतु उनके कार्य ग्रामो के स्थानीय विषयो तक ही सीमित थे और वे राज्य या प्रदेश की राजनीति में सक्रिय नही थे। उनकी कोई विशिष्ट राजनीतिक सत्ता भी नही थी। इससे राजाओ में स्वेच्छाचारिता और निरंकुशवादिता विकसित एवं प्रसारित हुई। फलतः जनता स्वयं के कार्यो एवं प्रशासन के प्रति उदासीन हो गई। उसमे राष्ट्रीय चेतना, देशभक्ति, देश प्रेम, स्वतंत्रता, समानता, राजनीतिक जागृति आदि गुण लुप्त हो गए और उसके स्थान पर उसमे भीरुता, अवहेलना, राजाओ और सामंतो की चापलूसी, मानसिक और शारीरिक उदासीनता आदि दुर्गुणों का विकास हुआ। इससे राजनीतिक जीवन निम्न स्तर पर आ गया। तथा वह खोखला हो गया। इस समय राजा और प्रजा के संबंधों में शिथिलता के साथ-साथ प्रशासन में भी शिथिलता देखने को मिलती है। अब प्रशासन का स्वरूप एकतंत्र निरंकुश, राजतन्त्र और सामंतवाद पर आधारित था। केंद्रीय प्रशासन मौर्यो और गुप्त सम्राटो की भांति दृढ़ और संगठित नही था। प्रांतीय प्रशासन में सामंतो का अधिकार और बाहुल्यता थी। वे अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से शासन करते थे। इससे सैनिक संगठन भी दुर्बल हो गया था क्योकि राज्य की सैनिक शक्ति भी सामंतो पर निर्भर करती थी, जिससे केन्द्रीय शक्ति कमजोर और प्रांतीय शक्ति प्रबल हो गई थी। जिसके परिणामस्वरूप तुर्को के आक्रमणों को राजपूत झेल नही पाए और एक-एक करके पराजित होते गए।
1.4. राजनीतिक विघटन और तुर्कों की सफलता के कारण
इस प्रकार हम देखते है कि तुर्को के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति में विविधता तथा एकरूपता का अभाव था। परिणामस्वरूप यह विविधता भारत मे मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए उत्तरदायी सिद्ध हुई।
2. सामाजिक स्थिति (Social Condition of India Before Turkish Invasions)

2.1. वर्ण व्यवस्था का चरम और जातिगत विभाजन
तुर्की आक्रमण से पूर्व भारत मे वर्णव्यवस्था अपने चरम पर पहुँच गयी थी। समस्त देश मे अराजकता एवं अव्यवस्था फैलने के कारण सामाजिक स्तर बहुत गिर गया था। समस्त समाज विभिन्न श्रेणियों में विभक्त था और उनमे ऊँच-नीच की भावना बहुत अधिक विद्यमान थी। उनमे से कुछ अपने आप को बहुत ऊँचा समझने लगे थे और अन्य जातियों के व्यक्तियों को घृणा की दृष्टि से देखने लगे थे। इसका विशेष दुष्परिणाम हुआ। जाति बन्धन बड़े जटिल हो गये, और उसका आधार ‘कर्म’ न होकर पूर्णतः ‘जन्म’ हो गया।
2.2. स्त्रियों की स्थिति और सामाजिक पतन
समाज मे स्त्रियों का संम्मान कम हो गया। वे भोग्य-विलास की वस्तु समझी जाने लगी। भारत का विदेशो से संबंध विच्छेद हो गया। जिसके कारण विदेशो से होने वाली प्रतिक्रियाओ से भारतीय पूर्ण रूप से अनभिज्ञ हो गये। उनको वहां की राजनीतिक उथल-पुथल, सैनिक ढंग, तथा अन्य बातों का ज्ञान न हो पाया। इससे भारतीयों के उत्साह तथा उनकी स्फूर्ति को बड़ा आघात पहुंचा। वह मंद तथा कुंठित हो गई और भारतीयों ने किसी भी क्षेत्र में उन्नति नही की।
3. धार्मिक स्थिति (Religious Condition of India on the Eve of Turkish Invasions)
3.1. धर्म का पतन और शंकराचार्य का सुधार प्रयास
जिस प्रकार भारत की सामाजिक स्थिति दिन-प्रतिदिन पतन की ओर अग्रसर हो रही थी उसी के समान इस समय धार्मिक स्थिति भी डावाँडोल थी। उस क्षेत्र में भी भारतीयों की दशा सोचनीय थी। इस स्थिति से उभरने का अथक परिश्रम स्वामी शंकराचार्य ने करने का प्रयास किया, किन्तु अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो जाने कारण वे अपने कार्य मे पूर्णतः सफल नही हो सके। वे हिन्दू धर्म को दोष रहित करने में सफल नही यधपि उनकी सेवाएं हिन्दू धर्म के लिए महान थी। इस समय के लोगों में आध्यात्मिक उन्नति की ओर विशेष चाव नही किया। वे इस प्रकार इस ओर से उदासीन हो गए थे।
3.2. वाममार्ग, भोगवाद और मठों का भ्रष्टाचार
इस समय समाज वाममार्ग का बोलवाला था, जिसकी प्रमुख शिक्षा “खाओ, पियो और मौज करो” (Eat, Drink and be marry) थी। इससे शिक्षण संस्थाए भी प्रभावित हुई। जिसका परिणाम शिक्षित वर्ग तथा विद्यार्थियों पर विशेष रूप से पड़ा और उनका जीवन दूषित हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मानव की प्रवृत्ति तथा आसक्ति भोग- विलास की ओर तीव्र गति से जाने लगी। मठो तथा बिहारो में भी इसने घर कर लिया, जहां का जीवन बहुत ही पवित्र तथा शुद्ध होना चाहिए था। जब धर्म के ठेकेदारों के ही जीवन अपवित्र तथा दूषित हो गया, तो साधारण जनता का क्या कहना था?
3.3. देवदासी प्रथा और धार्मिक संस्थाओं का पतन
इस समय भारत मे देवदासी प्रथा आरम्भ हो गई थी। प्रत्येक मंदिर में कुछ युवक तथा सुंदर अविवाहित कन्याएं निवास करती थी जिनका मुख्य कार्य मंदिर के आराध्य देवता की उपासना, सेवा आदि करना था किन्तु बाद में ये कलुषित हो गयी और इनको केवल भोग-विलास का साधन समझा जाने लगा। अतः मठ, बिहार, मन्दिर, शिक्षण संस्थायें आदि सबका जीवन दूषित हो गया और जनता को उचित धार्मिक शिक्षा प्राप्त होना असंभव हो गया।
4. आर्थिक स्थिति (Economic Condition of India Before Turkish Invasions)

तुर्को के आक्रमण से पूर्व भारत की आर्थिक स्थिति का उल्लेख इस प्रकार से किया जा सकता है—-
4.1. कृषि, खनिज और संपन्नता—भारत ‘सोने की चिड़िया’
इस समय भारत की आर्थिक स्थिति उन्नत अवस्था मे थी। भारत की अधिकांश जनता का मुख्य उद्यम कृषि था। भारत की उपजाऊ मिटटी तथा खनिज पदार्थों की बहुलता के कारण भारतीयों की अपनी आजीविका के उपार्जन में विशेष कठिनाई का सामना नही करना पड़ता था। राजा तथा उच्च कुल के व्यक्तियों का सम्पत्ति पर एकाधिकार था। उनकी आय बहुत अधिक थी।
4.2. राजाओं और सामंतों का विलासपूर्ण जीवन
ये अपना अधिकांश धन भोग-विलास में व्यय किया करते थे तथा दान आदि के रूप में भी अत्यधिक धन मंदिर व अन्य सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं को दिया करते थे।
4.3. मंदिरों की विशाल संपत्ति और दान प्रणाली
जनता एवं राजाओ की दान की प्रवृत्ति अधिक होने के कारण मंदिरो की आय बहुत अधिक थी और उनके कोष में बहुत अधिक धन जमा रहता था। साधारण जनता का जीवन मामूली था। उनको इतना अवश्य मिल जाता था कि उनकी दैनिक आवश्यकताए सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाती थी और इनकी पूर्ति के लिए विशेष कठिनाई का अनुभव नही करना पड़ता था।
4.4. व्यापार की उन्नति और तुर्क आक्रमण का आर्थिक कारण
इस समय व्यापार भी उन्नत अवस्था मे था। इसी उन्नत आर्थिक अवस्था के कारण ही भारत विश्व मे सोने की चिड़ियाँ के नाम से विख्यात था। भारत के धन को हस्तगत करने के लालच से ही तुर्को ने भारत पर आक्रमण किया था। जो उनके भारत पर आक्रमण करने वाले कारणो में से एक महत्वपूर्ण कारण बना।
निष्कर्ष (Conclusion)
निष्कर्षतः कहा जा सजता है कि तुर्को के आक्रमण के समय भारत राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और नैतिक दृष्टि ने दुर्बल हो चुका था। उसकी दुर्बलता का मुख्य कारण यह था कि भारत ने विदेशियो से कुछ सीखने का प्रयत्न ही नही किया। भारत ने विदेशियो से मुख्यतः अपनी सीमावर्ती देशो के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सैनिक परिवर्तनों की ओर भी ध्यान नही दिया। इन कारणों से उनमे अज्ञानता और दम्य दोनो की उत्पत्ति हुई। और वे अपनी उन्नति के प्रति असावधान हो गये। यह इसी का परिणाम था कि जब भारत पर तुर्क आक्रमण हुआ तो भारतीयों को पराजय का मुँह देखना पड़ा।
PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: तुर्कों के आक्रमण से पहले भारत की राजनीतिक स्थिति कैसी थी?
उत्तर: तुर्कों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप अनेक स्वतंत्र राजपूत रियासतों में बँटा हुआ था। इन राज्यों के बीच एकता का अभाव और केंद्रीय सत्ता की कमजोरी ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि बाहरी हमलावरों के विरुद्ध संयुक्त रक्षा का निर्माण लगभग असंभव हो गया था।
प्रश्न 2: तुर्क आक्रमणों के समय भारतीय समाज किन समस्याओं से जूझ रहा था?
उत्तर: उस समय समाज कठोर जातिगत बंधनों, वर्ण आधारित विभाजन, स्त्रियों की सीमित सामाजिक स्थिति और बढ़ते नैतिक शिथिलता जैसे मुद्दों का सामना कर रहा था। इन परिस्थितियों ने सामाजिक एकजुटता को कमज़ोर कर दिया था, जिससे समाज बाहरी चुनौतियों के सामने अधिक संवेदनशील बन गया।
प्रश्न 3: धार्मिक स्थिति किस प्रकार दुर्बल हो चुकी थी?
उत्तर: धार्मिक संस्थानों में अनुशासन ढीला पड़ चुका था। परंपरागत मठ और मंदिर अक्सर औपचारिकता और भोगवाद के प्रभाव में आ गए थे। देवदासी जैसी प्रथाओं तथा आध्यात्मिक उदासीनता के कारण धार्मिक जीवन अपनी मूल चेतना से दूर होता जा रहा था।
प्रश्न 4: आर्थिक रूप से भारत तुर्कों के लिए आकर्षण का केंद्र क्यों था?
उत्तर: भारतीय भूमि उपजाऊ कृषि, व्यस्त व्यापारिक गतिविधियों और धार्मिक संस्थानों में संचित प्रचुर संपदा के लिए प्रसिद्ध थी। यही आर्थिक समृद्धि विदेशी शक्तियों, विशेषकर तुर्कों, के लिए बड़े आकर्षण का कारण बनी और उनकी सैन्य गतिविधियों को बढ़ावा देने में सहायक हुई।
प्रश्न 5: तुर्क आक्रमण भारत में सफल क्यों हुए?
उत्तर: तुर्कों की सफलताओं के पीछे कई कारण थे—स्थानीय राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य संसाधनों का विखंडन, राजाओं के आपसी वैमनस्य, सामाजिक-धार्मिक विभाजन तथा बाहरी परिस्थितियों की पर्याप्त समझ का अभाव। इन सभी ने मिलकर भारतीय प्रतिरोध को कमजोर कर दिया और तुर्क सेनाओं को अपेक्षाकृत सरल विजय प्राप्त हुई।
