मौर्य कालीन मूर्ति कला की विशेषताएँ/Mauryan Sculpture Art in Ancient India

मौर्य काल भारतीय इतिहास का वह युग था जब कला और स्थापत्य अपने उत्कर्ष पर पहुँचे। विशेष रूप से मूर्तिकला ने इस काल में नई ऊँचाइयाँ हासिल कीं। सम्राट अशोक और उनके उत्तराधिकारियों ने पत्थर, मिट्टी और पॉलिशयुक्त प्रस्तर मूर्तियों के निर्माण को बढ़ावा दिया। इस युग की मूर्तियाँ केवल धार्मिक प्रतीक नहीं थीं, बल्कि सामाजिक जीवन, सौंदर्य-बोध और तकनीकी निपुणता की जीवंत अभिव्यक्ति थीं। इन्हीं कलाकृतियों में से कई आज भी भारतीय कला की अमर धरोहर बनी हुई हैं।

परिचय (Introduction):

मौर्यकालीन शासको ने मूर्ति कला की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उत्खनन के आधार पर कहा जा सकता है कि हड़प्पा संस्कृति के लगभग 1500 वर्ष बाद पहली बार मौर्यकाल में वस्तुकला एवं मूर्ति कला को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन मिला। मौर्यकालीन मूर्ति कला के अध्ययन हेतु साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों की भरपूर उपलब्धता है। साहित्यिक स्रोतों में आपस्तम्भ, गृहसूत्र तथा कौटिल्य का अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण है। तथा पुरातात्विक स्रोतों में  मौर्यकालीन मूर्तियों की बड़ी संख्या में  प्राप्ति यह साबित करती है कि मौर्यकाल में मूर्तियाँ रही हैं यहॉं दिलचस्प बात यह है कि मौर्यकाल में  शानदार पॉलिश युक्त मूर्तियाँ प्राप्त हुई है। परन्तु कोई स्पष्ट मूर्ति निर्माण शैली नही है, फिर भी मौर्यकालीन मूर्तियाँ विशिष्ट है।

1. मौर्य कालीन मूर्ति कला की प्रमुख विशेषताएँ

मौर्यकाल से हमे जो मूर्तियाँ प्राप्त होती है उसके आधार पर मौर्यकालीन मूर्तिकला में निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती है, जो इस प्रकार है —

(1) विदेशी प्रभाव और अशोक स्तंभ

अशोक के स्तम्भो में तत्कालीन भारत के विदेशो से सम्बन्धो का खुलासा होता हैं।

(2) चमकदार पॉलिश और सजीव अभिव्यक्ति

चमकदार पॉलिश, मूर्तियों के सजीव भाव अभिव्यक्ति, एकाश्म पत्थर द्वारा निर्मित पाषाण स्तम्भ एवं उनके कलात्मक शिखर, पत्थरो पर पॉलिश करने की कला, इस काल मे इस स्तर पर पहुँच गयी थी कि एक आज भी अशोक की लाट की पॉलिश शीशे की भांति चमकती है।

(3) मूर्ति निर्माण की तकनीक

मौर्य काल मे मूर्तियों का निर्माण चिपकवा विधि या साँचे में ढालकर हुआ है।

(4) मूर्तियों के विषय और उद्देश्य

मौर्यकालीन मूर्तियों के विषय है– पशु, पक्षी, खिलौना और मानव अर्थात इन मूर्तियों का निर्माण गैर-धार्मिक उद्देश्य से किया गया था, इनमे किसी भी धर्म को प्रधानता नही दी गयी है।

(5)  प्रयुक्त सामग्री — पत्थर और मिट्टी

मौर्यकाल में पत्थर और मिट्टी की तो मूर्तियाँ प्राप्त हुई है लेकिन धातु की कोई मूर्ति प्राप्त नही हुई है।

(6)  प्रयुक्त पत्थर और क्षेत्रीय उदाहरण

मौर्यकाल में प्रस्तर-मूर्ति- निर्माण में चुनार के बलुआ पत्थर और पारखम (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त यक्ष की मूर्ति में चित्तीदार लाल पत्थर का इस्तेमाल हुआ है।

(7) प्रस्तर मूर्तियाँ और धार्मिक निरपेक्षता

 प्रस्तर मूर्तियाँ अधिकांशतः शासको द्वारा बनवाई गई, फिर भी किसी देवता को प्रस्तर मूर्ति में नही ढाला गया है।

(8) अशोक काल — मूर्तिकला का उत्कर्ष काल

 कला, सौन्दर्य एवं चमकदार पॉलिश की दृष्टि से सम्राट अशोक के समय की मूर्तियों को सर्वोत्तम माना गया है।

(9) प्रमुख मूर्तिकला केंद्र

मौर्य काल की मूर्तियाँ अनेक स्थानों जैसे– पाटलिपुत्र, वैशाली, मथुरा, कौशाम्बी, तक्षशिला, सारनाथ, अहिच्छत्र आदि से प्राप्त हुई है।

(10) प्रमुख मूर्तियाँ — यक्ष, यक्षिणी और हाथी शिल्प

मथुरा के पारखम से प्राप्त 7 फिट ऊंची यक्ष की मूर्ति, दिगम्बर की प्रतिमा (लोहानीपुर, पटना), धौली से प्राप्त हाथी (उड़ीसा), तथा दीदारगंज (पटना) से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति, मौर्य कला के उदारहरण के रूप में देखने को मिलते है।

(11)  ईरान और यूनान का प्रभाव

कुछ विद्वानों का मानना है मौर्यकालीन मूर्ति कला पर ईरान एवं यूनान की कला का प्रभाव है।

(12) सारनाथ स्तंभ — राष्ट्रीय प्रतीक का स्रोत

सारनाथ स्तम्भ के शीर्ष पर बने चार सिंहो की आकृतियाँ तथा उसके नीचे की वल्लारी आकृतियाँ अशोक कालीन मूर्तिकला का बेहतरीन नमूना है, जो आज हमारा राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में है।

(13) रॉक-कट गुफाएँ — मौर्य मूर्तिकला की तकनीकी श्रेष्ठता

 बराबर की पहाड़ी पर जो नक्कासीदार रॉक कट (पत्थरो को काटकर) गुफाओ का निर्माण किया गया है, वह  मौर्यकालीन मूर्तिकला का एक अच्छा उदाहरण है।

Must Read It: मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ: स्थापत्य, मूर्तिकला और सांस्कृतिक विकास

निष्कर्ष

उपरोक्त विवरण में प्राप्त अवशेषों से यह स्पष्ट होता है कि मौर्यकालीन मूर्तिकला उन्नति पर थी। एक राष्ट्र में शान्ति एवं जनता के सुखमय वैभवपूर्ण जीवन को कला एवं साहित्य के विकास के लिए उपयुक्त माना गया है। रॉक कट (पत्थरो को काटकर) मूर्ति कला की जो परम्परा है, यह ई0 पू0 दूसरी शताब्दी के अन्त से दूसरी शताब्दी तक प्रमुख रही थी। इसकी जड़ें मौर्यकाल में है, बाद की अवस्था मे ये मूर्तियां भारतीय वस्तुकला की विशिष्ट विशेषताएँ बन गई। विशिष्ट विशेषताएं इस प्रकार भी बन गई है कि आज हमने राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अशोक स्तम्भ को अपनाया है, जो कि मौर्यकाल से संबंधित है। अतः हम कह सकते है कि मूर्तिकला की खूबसूरती मौर्यकाल की ही देन है।

FAQ (Frequently Asked Questions)

प्रश्न 1. मौर्यकालीन मूर्ति कला की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं?

मौर्यकालीन मूर्ति कला अपनी उत्कृष्ट चमक (high polish), यथार्थवाद और तकनीकी कौशल के लिए प्रसिद्ध थी। इसमें एक ही पत्थर से बनाई गई प्रतिमाएँ, जीवंत मानव और पशु आकृतियाँ तथा चिकनी सतहें देखने को मिलती हैं। यह कला शाही भव्यता और जनजीवन की सादगी दोनों को दर्शाती है।

प्रश्न 2. मौर्यकालीन मूर्ति कला के प्रमुख उदाहरण कौन-कौन से हैं?

प्रमुख उदाहरणों में सारणाथ का अशोक स्तंभ, दिदारगंज यक्षी, पारखम यक्ष, तथा बराबर गुफाएँ उल्लेखनीय हैं। ये सभी मौर्यकाल की कलात्मक उत्कृष्टता और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 3. मौर्यकालीन मूर्तियों में कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया गया था?

इन मूर्तियों में मुख्यतः चुनार बलुआ पत्थर, लाल धब्बेदार पत्थर और मिट्टी का उपयोग किया गया। धातु की मूर्तियाँ नहीं मिली हैं, परन्तु पत्थर और टेराकोटा की कृतियाँ अत्यंत उच्च कोटि की हैं।

प्रश्न 4. मौर्यकालीन कला पर विदेशी प्रभाव कैसे दिखाई देता है?

मौर्य कला में ईरानी (पर्शियन) और यूनानी (ग्रीक) प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, विशेष रूप से अशोक स्तंभों और उनके शीर्षों की डिजाइन में। चिकनी पॉलिश और पुष्पाकार अलंकरण इन प्रभावों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 5. सारनाथ का सिंह स्तंभ क्यों प्रसिद्ध है?

सारनाथ का सिंह स्तंभ मौर्यकालीन पत्थर कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। इसमें चार पीठ से जुड़े हुए सिंह शक्ति, साहस और एकता का प्रतीक हैं। यही प्रतीक आगे चलकर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक बना।

प्रश्न 6. मौर्यकाल को भारतीय कला का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?

क्योंकि इस काल में मूर्तिकला, स्थापत्य और हस्तकला सभी ने अभूतपूर्व प्रगति की। कलात्मक दृष्टि, तकनीकी निपुणता और राजकीय संरक्षण के कारण यह युग भारतीय संस्कृति का स्वर्ण अध्याय बन गया।

प्रश्न 7. मौर्यकालीन मूर्तियाँ किन स्थानों से प्राप्त हुई हैं?

मौर्यकालीन मूर्तियाँ पाटलिपुत्र, सारनाथ, वैशाली, मथुरा, कौशांबी, तक्षशिला और बराबर पर्वत से प्राप्त हुई हैं। ये स्थल मौर्य कला के व्यापक विस्तार का प्रमाण हैं।

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