मुहम्मद बिन तुगलक की आदर्शवादी नीतियाँ: कारण, उद्देश्य और असफलताएँ/ Mohammad bin Tughlaq’s Idealistic Policies and Their Failures: A Simple and Clear Analysis

मध्यकालीन भारत के शासकों में मुहम्मद बिन तुगलक को सबसे दूरदर्शी और महत्वाकांक्षी शासकों में गिना जाता है। उसने शासन व्यवस्था, कृषि सुधार, राजधानी स्थानांतरण और मुद्रा व्यवस्था जैसी अनेक योजनाएँ शुरू कीं। हालाँकि, उसकी नीतियों के पीछे की सोच प्रगतिशील थी, लेकिन व्यावहारिक कठिनाइयों और गलत क्रियान्वयन के कारण अधिकांश प्रयास सफल नहीं हो सके। प्रस्तुत लेख में उसकी नीतियों का सरल, स्पष्ट और मानवीय दृष्टिकोण से विवेचन किया गया है।

भूमिका

मुहम्मद बिन तुगलक एक विलक्षण प्रतिभा का शासक था। वह बड़ा ही उदार, न्याय प्रिय तथा सहिष्णु शासक था। वह जनहित एवं राज्य की समृद्धि के लिए सदैव नई तथा आदर्शवादी योजनाए बनाता एवं लागू करता था। यधपि सुल्तान ने निष्ठापूर्वक इन योजनाओं पर अमल किया परन्तु समय व परिस्थितियां अनुकूल न होने के कारण उसकी योजनाए असफल होती चली गई और उसे इतिहास में उचित स्थान नही मिल पाया। मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा लागू की गई योजनाऐं इस प्रकार है—–

1. राजधानी परिवर्तन योजना (दिल्ली से दौलताबाद)

मुहम्मद बिन तुगलक के राज्य काल की एक प्रमुख घटना है, राजधानी परिवर्तन। सुल्तान ने दिल्ली के स्थान पर दौलताबाद (देवगिरी) को राजधानी बनाने का निश्चय किया। दौलताबाद को राजधानी बनाने के निम्नलिखित कारण थे—

कारण

(i) रणनीतिक स्थिति 

दौलताबाद साम्राज्य के केन्द्र में स्थित था। उत्तर-पश्चिम सीमा से दूर होने कारण, दिल्ली जैसा इस पर मंगोल आक्रमण का खतरा (भय) नही था।

(ii) दक्षिण पर अधिक नियंत्रण

सुल्तान दक्षिण भारत  के शासन पर उत्तर भारत की अपेक्षा अधिक ध्यान देना चाहता था।

(iii) दिल्ली के लोगों से नाराज़गी

सुलतान दिल्ली के निवासियो से क्रुद्ध था क्योंकि वे उसे गालियों से भरा पत्र प्रतिदिन लिखते थे, इसिलिए क्रोध में सुल्तान ने दिल्ली को उजड़ने का निश्चय किया (इब्नबतूता और इसामी के अनुसार)

(iv) दक्षिण में इस्लामी संस्कृति का प्रसार

वह दक्षिण भारत मे मुस्लिम संस्कृति की स्थापना तथा प्रसार करना चाहता था।   

 उपर्युक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए सुल्तान ने देवगिरी (दौलताबाद) को अपने साम्राज्य की राजधानी बनाने का निर्णय किया, उसने दिल्ली की जनता को देवगिरी जाने के आदेश दिये। उसने लोगो के स्थान परिवर्तन हेतु अनेक प्रबंध किए, परन्तु ये सभी नाकाफी साबित हुए और जनसामान्य को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बाद में मुहम्मद बिन तुगलक  को अहसास हुआ तो उसने लोगो को वापस लौटने की अनुमति दे दी।

असफलता

दौलताबाद पहुँचकर सुल्तान ने देखा कि दक्षिण से पूरे साम्राज्य पर नियंत्रण रखना ज्यादा कठिन था, अतः वह पुनः दिल्ली लौट गया। इस कारण यह योजना विफल हो गई। बरनी लिखता है कि “इस योजना से पहले उसने किसी से राय नही माँगी, उसका यह फैसला बाद में आया कि जो दिल्ली लौटना चाहते हैं, वो लौट सकता है।”

2. सांकेतिक मुद्रा (Token Currency) योजना

मुहम्मद बिन तुगलक की दूसरी विवादास्पद योजना थी सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन। इस सांकेतिक मुद्रा का चलन आरम्भ करने से पूर्व उसने प्रचलित मुद्रा व्यवस्था में अनेक सुधार किए और एक अध्यादेश द्वारा कांसे और तांबे के सिक्कों को कानूनी मुद्रा घोषित कर दिया गया, और उसे मूल्य की दृष्टि से चांदी के टंका के बराबर रखा गया। सुल्तान ने 1329-30 ई0 में इन सिक्कों को जारी किया। सुल्तान का यह एक नया एवं क्रांतिकारी कदम था, जिसके द्वारा उसने राजकोष में चांदी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की, परन्तु उसकी यह योजना भी असफल हो गई।

असफलता

सुलतान ने इन सिक्कों पर राज्य के एकाधिकार रखने की कोई व्यवस्था नही की, जिसके परिणामस्वरूप लोगो ने घरों में इसका निर्माण शुरू कर दिया। इन सिक्कों के बदले में वे घरों में बने सिक्को को कर के रूप में देने लगे। इससे व्यापार पर बुरा असर पड़ा, क्योंकि व्यापारियों ने इन सिक्कों को लेने से मना किया और भारत मे माल लाना बन्द कर दिया। बाध्य होकर सुल्तान ने इसे बन्द किया और कांसे के सिक्के राजकोष में जमा कर लिए गए और उनके बदले में चांदी, सोने के सिक्के दे दिए गए। सुल्तान की यह नीति अत्यंत घातक सिद्ध हुई।

3. खुरासान अभियान की योजना

मुहम्मद बिन तुगलक एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने साम्राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा से खुरासान अभियान की शुरुआत की। इस उद्देश्य से सुल्तान ने एक विशाल सेना की नियुक्ति की (लगभग 3,70,000 सैनिक) और सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन भी दिया गया। लेकिन वर्फ़ से ढके खुरासान पर युद्ध करना सरल कार्य नही था। लेकिन यह योजना आरम्भ ही नही हो सकी। सेना के कूच करने से पहले ही खुरासान की राजनीतिक अस्थिरता समाप्त हो गई। जिस कारण मुहम्मद बिन तुगलक को अपना अभियान बीच मे ही समाप्त करना पड़ा।

4. कराचिल (कुल्लू–कांगड़ा/गढ़वाल) विजय योजना

खुरासान की ही तरह सुल्तान ने कराचिल विजय की भी योजना बनाई। यह प्रदेश मध्य हिमालय में कुल्लू-कांगड़ा या गढ़वाल-कुमाँऊ क्षेत्र था। सुल्तान ने कराचिल राज्य पर साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से आक्रमण किया। 1337 ई0 में मलिक खुशरो के नेतृत्व में दिल्ली की विशाल सेना ने हिन्दुओ के इस गढ़ पर धावा बोल दिया। परन्तु पर्वतीय मार्ग की दुर्गमता के कारण मलिक खुशरो कराचिल पर अधिकार नही कर सका। पर्वतीय भूमि तथा अत्यधिक वर्षा के कारण उसे भीषण क्षति हुई, बाध्य होकर उसे लौटना पड़ा। अतः यह योजना भी असफल हो गई।

5. दोआब में कर वृद्धि

मुहम्मद बिन तुगलक ने दो-आब के क्षेत्र में गुणवत्ता के आधार पर कर व्यवस्था लागू किया और उसे कठोरता से वसूलने के आदेश दिया। किन्तु दुर्भाग्यवश उसी वर्ष दो-आब में भयंकर अकाल पड़ गया। इस कारण वहां की प्रजा ने इसका विरोध किया, लेकिन सुल्तान के कर्मचारियों ने कर वसूलना जारी रखा। इसिलिए किसानों ने कृषि छोड़कर लूट-मार का पेशा अपना लिया। सुल्तान ने कृषको को राहत सामग्री देकर सहायता देने की कोशिश की, लेकिन सुल्तान के सारे प्रयास विफल रहे और जनता में सुलतान की प्रतिष्ठा गिरी।

6. कृषि विस्तार योजना (दीवान-ए-कोही)

दो-आब में कर वृद्धि के अतिरिक्त सुल्तान ने कृषि की व्यवस्था सुधारने का भी प्रयास किया। सुल्तान ने कृषि के विकास के लिए “दीवान-ए-कोही” नामक विभाग की स्थापना की। इसके द्वारा 60 वर्ग मील के एक भू-क्षेत्र का चयन किया गया, जो दो-आब का ही एक क्षेत्र था। जिसमे बारी-बारी से फसलों की बुआई की गई। इस योजना में  सुल्तान ने 1341-44 ई0 के मध्य करीब 70 लाख टंका खर्च किया गया। परंतु उसके प्रयोग भी अन्य प्रयोगों की तरह असफल सिद्ध हुए।

असफलता

इसकी असफलता का मुख्य कारण यह था कि इसके लिए चयनित भूमि अनुपजाऊ (बंजर) थी। स्वयं सुल्तान इस योजना की तरफ पूरा ध्यान नही दे सका तथा उसके पदाधिकारी अयोग्य एवं भ्रष्ट निकले। इस योजना की पूर्ति के लिए तीन वर्षों का निर्धारित समय और किसानों से उपज का आधा भाग वसूलने की नीति गलत थी। अतः यह योजना पूरी ही नही हो सकी।

निष्कर्ष

 इस प्रकार उपर्युक्त नीतियों पर विश्लेषण करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि मुहम्मद बिन तुगलक में वे सभी वांछनीय गुण विद्यमान थे। परंतु शासक के दृष्टिकोण से वह पूरी तरह असफल सावित हुआ। उसके साम्राज्य में अनेक स्थानों पर विरोध एवं अंतर्द्वन्द्व विद्यमान थे। वह असीम महत्वाकांक्षी था और साम्रज्य विस्तार करना चाहता था। परन्तु उसने अपने साम्राज्य के अधिकांश भाग को खो दिया था। उसने शासन, भूमि, राजस्व, मुद्रा आदि को वैज्ञानिक आधार पर लागू करने  की योजना चलाई, लेकिन उसकी सभी योजनाएं असफल हो गई। इस कारण कई इतिहासकारो ने मुहम्मद बिन तुगलक की नीतियों को आदर्शवादी नीति बताया है, जो समय के साथ समन्वय स्थापित नही कर सकी और असफल साबित हुई।

FAQ / PAQ (People Also Ask)

Q1. मुहम्मद बिन तुगलक को आदर्शवादी शासक क्यों कहा जाता है?

उत्तर: मुहम्मद बिन तुगलक को एक आदर्शवादी शासक इसलिए माना जाता है क्योंकि उसने अपने शासनकाल में कई ऐसे सुधार लागू किए, जिनका उद्देश्य राज्य को अधिक व्यवस्थित और उन्नत बनाना था। राजधानी को बदलने, प्रतीकात्मक मुद्रा चलाने तथा कृषि क्षेत्र में सुधार जैसी योजनाएँ उसके दूरदर्शी सोच को दर्शाती हैं। हालाँकि, इन योजनाओं की कार्यान्वयन-क्षमता कमजोर थी, जिसके कारण वे अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर सकीं।

Q2. राजधानी परिवर्तन योजना असफल क्यों हुई?

उत्तर: दिल्ली से दौलताबाद राजधानी स्थानांतरित करने की योजना इसलिए असफल हुई क्योंकि यह निर्णय अत्यंत कठोर और अव्यवहारिक था। लंबी व कठिन यात्रा, जनता को होने वाली असुविधाएँ, मार्ग में सुरक्षा की समस्या, और दक्षिण से पूरे साम्राज्य का प्रशासन संभालने की जटिलता ने इस नीति को पूरी तरह कमजोर कर दिया।

Q3. सांकेतिक मुद्रा योजना असफल कैसे हुई?

उत्तर: सांकेतिक मुद्रा योजना इसलिए विफल हो गई क्योंकि सरकार सिक्कों के निर्माण और वितरण पर नियंत्रित व्यवस्था स्थापित करने में सफल नहीं हुई। प्रजा ने घरों में नकली तांबे-पीतल के सिक्के बनाने शुरू कर दिए, जिससे बाज़ार में वैध और अवैध मुद्रा में भेद करना असंभव हो गया और व्यापार तथा आर्थिक व्यवस्था ठप हो गई।

Q4. दोआब में कर वृद्धि का परिणाम क्या हुआ?

उत्तर: अकाल जैसी कठिन परिस्थिति में दोआब क्षेत्र में कर बढ़ाना जनता के लिए अत्यंत भारी साबित हुआ। अधिक कर वसूली के कारण किसान अपनी भूमि छोड़कर अन्य क्षेत्रों में पलायन करने लगे। इससे राजस्व घटा, असंतोष बढ़ा और कई स्थानों पर विद्रोह की स्थिति बनने लगी।

Q5. इतिहासकार मुहम्मद बिन तुगलक को कैसे देखते हैं?

उत्तर: अधिकांश इतिहासकार मुहम्मद बिन तुगलक को ऐसा शासक मानते हैं जिसकी नीतियाँ विचार स्तर पर बहुत प्रगतिशील थीं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में गंभीर कमियाँ थीं। इसी वजह से उसे अक्सर “व्यावहारिकता से दूर आदर्शवादी” या “अच्छी सोच वाला लेकिन अनुपयोगी प्रशासन चलाने वाला” शासक कहा जाता है।

अगर यह लेख आपके लिए उपयोगी रहा हो तो इसे शेयर करें और अगला लेख पढ़ें —फिरोज तुगलक की धार्मिक और प्रशासनिक नीतियाँ: सरल भाषा में सम्पूर्ण विश्लेषण/ Firoz Tughlaq’s Religious and Administrative Policies: A Simple and Complete Analysis.

Share this article

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top