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नूरजहाँ का परिचय और राजनीतिक भूमिका इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मध्यकालीन भारत के इतिहास में नूरजहाँ एक ऐसी प्रभावशाली स्त्री के रूप में उभरती है, जिसने अपनी अद्वितीय बुद्धिमत्ता, सौंदर्य, राजनीतिक समझ और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर मुगल शासन की दिशा को गहराई से प्रभावित किया। जहाँगीर की प्रियतम बेगम होने के साथ-साथ उन्होंने साम्राज्य की नीतियों और निर्णयों पर वास्तविक नियंत्रण स्थापित कर लिया था। उनकी महत्वाकांक्षाएँ और सत्ता में गहरा हस्तक्षेप एक ओर जहाँ मुगल शासन को नई दिशा देता था, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक अस्थिरता का कारण भी बनता गया। आइए समझते हैं कि नूरजहाँ ने किस प्रकार जहाँगीर के शासनकाल पर अपनी छाप छोड़ी।

नूरजहाँ का परिचय
नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरुन्निशा था। उसके पिता गियास वेग और माता असमत बेगम (अस्मत) तेहरान (फारस) के निवासी थे। अपने पिता मुहम्मद शरीफ की मृत्यु के बाद नौकरी की तलाश में गियास वेग भारत आया। लेकिन 1578 ई0 में कंधार पहुंचने पर उसकी पत्नी ने एक लड़की को जन्म दिया, वह मेहरुन्निशा थी। मलिक मसूद नामक एक व्यापारी के प्रयास से गियास वेग को अकबर के दरबार मे नौकरी मिल गई। 1594 ई0 में मेहरुन्निशा का विवाह अली कुली वेग (शेर अफगाना) से सम्पन्न हुआ। 1607 ई0 में शेर अफगान की मृत्यु के पश्चात जहाँगीर ने 1611 ई0 में मेहरुन्निशा से विवाह कर लिया और उसे नूरजहाँ एवं नूरमहल की उपाधि प्रदान की। विवाह के बाद नूरजहाँ ने नूरजहाँ गुट का निर्माण किया। नूरजहाँ शिक्षित एवं तीक्ष्ण बुद्धि की महिला थी। उसे कविता, संगीत और चित्रकला में रुचि थी। उसने एक पुस्तकालय का निर्माण भी करबाया था। जहाँगीर एवं एत्मादुद्दौला का मकबरा उसकी स्थापत्य कला की रुचि को प्रदर्शित करता है। नूरजहाँ को आधुनिक फैशन का आविष्कारक माना जाता है। उसने अनेक निर्धन, गरीब व असहाय कन्याओं का विवाह करवाया था। 1645 ई0 में लाहौर में नूरजहाँ की मृत्यु हो गयी।
नूरजहाँ का शासन और राजनीति पर प्रभाव

नूरजहाँ का जब जहाँगीर से विवाह हुआ, उसी समय से उसका प्रभाव बढ़ने लगा। क्योंकि वह असाधारण रुप से सुंदर, शिक्षित, और सुसंस्कृत थी। उसकी प्रतिभा बहुमुखी थी। उसे कविता, चित्रकला में अभिरुचि थी। श्रृंगार प्रसाधन, आभूषणों तथा वस्त्रों में उसकी रुचि परिष्कृत थी। उसमें गहन प्रशासनिक तथा राजनीतिक समस्याओं को समंझने की सहज बुद्धि थी। अतः इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि सम्राट जहाँगीर उसके शक्तिशाली और मोहक प्रभाव में आ गया और उसने उसे शासन करने तथा बादशाहत के प्रतीक धारण करने का भी अधिकार दे दिया था। जहाँगीर स्वयं कहा करता था कि “मुझे तो केवल शराब की एक बोतल और खाने को आधा शेर मांस से अधिक और कुछ नही चाहिए।” वह स्वयं झरोखा से प्रजा को दर्शन दिया करती थी, शासन की तमाम आज्ञाएं उसी के नाम से निकाली जाती थी, ऊँचे-ऊँचे पदाधिकारियो को वही आदेश देती थी, सिक्को पर उसका नाम भी अंकित होता था। इसके अतिरिक्त शाही आदेशो पर बादशाह के साथ उसका भी हस्ताक्षर होता था।
नूरजहाँ गुट और कूटनीति
नूरजहाँ ने अपने प्रथम प्रभत्वकाल (1611–1622 ई0) में अपने पिता, भाई, तथा अन्य सगे-संबंधियो को ऊँचे पद तथा मनसब दिलाने में अपने प्रभाव का जो प्रयोग किया, उससे निश्चित रूप से अन्य ऊँच पदाधिकारी इससे असन्तुष्ट हुए तथा दरबार के वातावरण में थोड़ा बहुत तनाव आया।
नूरजहाँ ने अपने विवाह के कुछ समय पश्चात अपना दल बना लिया था। जिसके कारण उसे कठिन समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इस गट में उसके पिता गियास वेग, माता असमत बेगम, उसका भाई आसफ खां तथा शहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) शामिल थे। उसमे सभी योग्य एवं राज्य के शीर्ष पदों पर आसीन थे। इस दल का प्रभुत्व 1622 ई0 तक स्थापित रहा। नूरजहाँ के प्रभत्व काल को दो भागों में विभाजित किया जाता हैं—
प्रथम भाग (1611–1622 ई0) तथा द्वितीय भाग (1622–1627 ई0)।
(i) प्रथम काल मे नूरजहाँ के माता पिता जीवित थे और उन्होंने नूरजहाँ को मर्यादित (नियन्त्रित रखा) किया था तथा खुर्रम साथ था।
(ii) दूसरा भाग 1622–1627 ई0 तक रहा। यह काल नूरजहाँ के लिए घोर आपत्ति एवं कलह का काल था इस काल मे खुर्रम इस गुट से अलग हो गया था तथा इसके माता पिता की भी मृत्यु हो गई थी। अतः नूरजहाँ एवं खुर्रम एक दूसरे के विरोधी हो गए थे। जिस कारण साम्राज्य को अनेक विद्रोह का सामना करना पड़ा।
जहाँगीर के शासनकाल के प्रमुख विद्रोह
1. शाहजहाँ (खुर्रम) का विद्रोह

नूरजहाँ की महत्वाकांक्षाओं की कोई सीमा नही थी। उसे अब यह अहसास हो गया था कि शाहजहाँ के बादशाह बनने पर उसका प्रभाव शासन के कार्यो में कम हो जायेगा, इसिलिए नूरजहाँ ने जहाँगीर के दूसरे पुत्र शहरयार को महत्व देना प्रारम्भ कर दिया था। वह हर कीमत पर खुर्रम के प्रभाव को समाप्त करके स्वयं हमेशा के लिए शक्तिशाली बनना चाहती थी।1621–22 ई0 में नूरजहाँ के मां बाप की मृत्यु हो जाने से वह अधिक निरंकुश हो गई, अब उसे समंझाने वाला कोई नही था। जहाँगीर का स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा था। ऐसी स्थिति में खुर्रम भी नूरजहाँ की बढ़ती हुई शक्ति एवं योग्यताओं से सशंकित हो गया। उसने उसके विरूद्ध विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह निश्चित रूप से नूरजहाँ की सत्ता लोलुपता का ही परिणाम था। यह विद्रोह तीन वर्ष तक चला। इसके फलस्वरूप मुगल साम्राज्य की शक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
2. महावत खाँ का विद्रोह

शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महावत खां की सफलता से नूरजहाँ को ईर्ष्या होने लगी। जिसके कारण उसके प्रभाव एवं लोकप्रियता में वृद्धि हो गई। क्योंकि वह नूरजहाँ के बढ़ते प्रभव से असन्तुष्ट था। नूरजहाँ भी महावत ख़ाँ की योग्यता एवं लोकप्रियता से घबराती थी। इसिलिए उसने महावत खां को अफगानिस्तान की सीमा पर नियुक्त कर दिया था। महावत खाँ ने इसे अपना अपमान समंझकर 1626 ई0 में विद्रोह कर दिया और जहँगीर को बन्दी बना लिया। यधपि यह विद्रोह शीघ्र ही दबा दिया गया। उस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि जहँगीर ने वृद्वावस्था में एक महान सेनापति को खो दिया। यधपि इस सम्पूर्ण घटना में नूरजहाँ के भाई, शाहजहाँ के ससुर आसफ खां का हाथ था। तथापि यह भी सत्य है कि स्वयं नूरजहाँ भी महावत खां की शक्ति को समाप्त करना चाहती थी।
नूरजहाँ के रचनात्मक योगदान

(i) जहाँगीर की क्रूरता में कमी
नूरजहाँ के प्रभाव के फलस्वरूप ही जहाँगीर के अत्यधिक शराब पीने में कमी आई और जहाँगीर की बर्बरता में भी कमी देखने को मिलती है।
(ii) गरीब एवं असहाय को सहायता
अगर देखा जाय तो नूरजहाँ अपने राजनीतिक जीवन मे दयालु नही थी किन्तु व्यक्तिगत जीवन में वह दयालु थी। नूरजहाँ ने गरीब, निर्धन, दीन-दुखियों तथा असहायों को सहायता एवं आश्रय प्रदान किया। उसका विशेष गुण करुणा व उदारता था। जो कोई पीड़ित उसकी शरण मे जाता था, वह अत्याचार से सुरक्षित हो जाता था। अनाथ बालिकाओं के विवाह में वह पूरी सहायता करती थी।
(iii) सुसंस्कृत एवं परिश्रमशील महिला
नूरजहाँ सुसंस्कृत एवं सुरुचि सम्पन्न महिला थी। उसने वेश-भूषा, फैशन, श्रृंगार के क्षेत्र में नवीन डिजाइनों एवं वस्तुओ का अविष्कार कर इन क्षेत्रों में नवीन एवं क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने में सफलता प्राप्त की। गुलाब का इत्र (सुगन्धित तेल) निकालने का अविष्कार भी सम्भवतः नूरजहाँ की ही देन माना जाता है।
नूरजहाँ के विनाशकारी प्रभव
नूरजहाँ अपने प्रभव के द्वितीय चरण (1622–1627 ई0) में संकीर्ण स्वार्थो से प्रेरित हुई और उसने सिंहासन के योग्यतम दावेदार शाहजहाँ की अपेक्षा अयोग्य शहरयार को बढ़ाना शुरू किया, और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने शाहजहाँ एवं महावत खां की शक्तियों की कुचला। उसके इस निन्दनीय कार्यो से साम्राज्य में अशांति फैली जिसके परिणामस्वरूप राजनीतिक अशांति उत्पन्न हो गयी।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि नूरजहाँ के प्रभत्व का मुगल साम्राज्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह प्रभाव हितकारी कम और अहितकारी अधिक रहा। उसकी गलत नीतियों के कारण मुगल साम्राज्य की नींव डगमगा गई, और कन्धार मुंगलो के अधिकार से निकल गया तथा स्वयं सम्राट को विद्रोहियों की कैद में रहना पड़ा। नूरजहाँ शहरयार को सिंहासन दिलवाने में असमर्थ रही और खुर्रम के शासन काल मे अपने जीवन के शेष दिन दयनीय दशा में बिताने पड़े।
FAQ / PAQ (People Also Ask)/ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. नूरजहाँ का वास्तविक नाम क्या था और उनका जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: नूरजहाँ का जन्म मेहरुन्निशानाम से हुआ था। यह जन्म 1578 ईस्वी के आसपास कंधार क्षेत्र में हुआ, जो उस समय फ़ारस (ईरान) के सांस्कृतिक प्रभाव में था। उनके पिता ग़ियास बेग राजनीतिक शरण की तलाश में फ़ारस से निकलकर भारत आए थे। इसलिए मेहरुन्निशा का बचपन विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल में बीता, जिसने आगे चलकर उनकी व्यक्तित्व-निर्माण और राजनीतिक समझ को गहराई से प्रभावित किया।
Q2. नूरजहाँ और जहाँगीर का विवाह कब हुआ, और इसके बाद क्या परिवर्तन आए?
उत्तर: नूरजहाँ का विवाह सम्राट जहाँगीर से 1611 ईस्वी में हुआ। विवाह केवल एक निजी रिश्ता नहीं था, बल्कि राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी साबित हुआ। जहाँगीर ने विवाह के तुरंत बाद उन्हें नूरमहल(महल की रोशनी) और आगे चलकर नूरजहाँ(दुनिया की रोशनी) की उपाधि प्रदान की। इन उपाधियों से स्पष्ट होता है कि सम्राट ने उन्हें कितना सम्मान और अधिकार प्रदान किया। विवाह के बाद नूरजहाँ धीरे-धीरे शक्ति के केंद्र में आ गईं और मुगल दरबार में उनकी उपस्थिति प्रभावशाली मानी जाने लगी।
Q3. नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका किस प्रकार उभरकर सामने आई?
उत्तर: नूरजहाँ की राजनीतिक भूमिका मुगल इतिहास में अद्वितीय मानी जाती है। वह उन चंद महिलाओं में शामिल हैं जिन्होंने खुले तौर पर साम्राज्य की नीतियों को प्रभावित किया।
- वे शाही फरमानों पर अपने हस्ताक्षर करती थीं, जो उनके अधिकार का सबसे स्पष्ट प्रमाण है।
- वह झरोखा दर्शन के माध्यम से जनता और अधिकारियों से प्रत्यक्ष संवाद करती थीं—जो सामान्यतः सम्राट का विशेषाधिकार था।
- उच्च पदों पर नियुक्तियाँ, सैन्य पद, प्रांतीय प्रशासन—इन सभी पर उनका ठोस प्रभाव था।
- यहाँ तक कि मुगल सिक्कों पर उनका नाम अंकित किया गया, जो किसी भी रानी के लिए अत्यंत दुर्लभ सम्मान था।
इन सबके कारण वह व्यवहारतः साम्राज्य की सह-शासिका बन गई थीं।
Q4. नूरजहाँ और शाहजहाँ के बीच संघर्ष क्यों पैदा हुआ?
उत्तर: सिंहासन के उत्तराधिकार को लेकर नूरजहाँ और शाहजहाँ (खुर्रम) के बीच मतभेद बढ़ गए। नूरजहाँ चाहती थीं कि सम्राट बनने का अधिकार उनके दामाद शहरयारको मिले, ताकि सत्ता उनके पारिवारिक प्रभाव के भीतर बनी रहे। दूसरी ओर, शाहजहाँ स्वयं को योग्य उत्तराधिकारी मानते थे और नूरजहाँ की इस नीति को सीधे-सीधे चुनौती मानकर विद्रोह की ओर बढ़ गए। यह तनाव न केवल राजपरिवार में विभाजन का कारण बना बल्कि मुगल राजनीति में अस्थिरता भी बढ़ा गया।
Q5. नूरजहाँ के रचनात्मक और सांस्कृतिक योगदान कौन-से थे?
उत्तर: नूरजहाँ केवल राजनीतिक रूप से ही नहीं, बल्कि कला, शिल्प और संस्कृति के क्षेत्र में भी अत्यंत नवाचारी रहीं।
- उन्होंने परिधान में कट, सिलाई और कढ़ाई के नए रूप विकसित कराए, जिनका प्रभाव आज भी भारतीय-पाकिस्तानी परिधानों में देखा जा सकता है।
- उनके द्वारा तैयार किया गया गुलाब का इत्र मुगल दरबार की पहचान बन गया।
- वे दरबार और समाज के निर्धन एवं असहाय लोगों की मदद करने में आगे रहती थीं।
- स्थापत्य कला में भी उनकी रुचि थी; कई स्मारकों, उद्यानों और इमारतों को उनका संरक्षण प्राप्त हुआ।
इस प्रकार उन्होंने मुगल संस्कृति में सृजनात्मकता, सौंदर्य और करुणा की नई परंपराएँ स्थापित कीं।
Q6. नूरजहाँ का अंतिम जीवन कैसा बीता?
उत्तर: जब शाहजहाँ मुगल सिंहासन पर बैठे, तब नूरजहाँ का राजनीतिक प्रभाव स्वाभाविक रूप से कम हो गया। सत्ता से दूरी के बाद उन्होंने अपने शेष जीवन को शांतिपूर्वक लाहौर में बिताने का निर्णय लिया। वहाँ उन्होंने अपेक्षाकृत सादगीपूर्ण जीवन जिया, साहित्य और कला से जुड़ी रहीं और अपने परिवार के साथ समय व्यतीत किया। 1645 ईस्वी में उनका निधन हो गया, लेकिन राजनीति और संस्कृति में उनके योगदान ने उन्हें इतिहास की सबसे प्रभावशाली मुगल रानियों में स्थायी स्थान दिलाया।
