बाबर के आक्रमण के समय उत्तर भारत की राजनीतिक दशा- सम्पूर्ण विश्लेषण/ Political Condition of North India at the Time of Babur’s Invasion – Complete Analysis

जब 1526 ईस्वी में बाबर भारत पहुँचा, उस समय उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति काफी कमजोर और बिखरी हुई थी। दिल्ली सल्तनत अपनी शक्ति खो चुकी थी, विभिन्न क्षेत्रीय राज्य आपस में संघर्ष कर रहे थे और कोई मजबूत केंद्रीय शासन मौजूद नहीं था। अफगान, तुर्क और राजपूत शक्तियाँ परस्पर प्रभुत्व की होड़ में लगी हुई थीं। ऐसी अव्यवस्थित परिस्थितियों ने बाबर के लिए भारत पर विजय प्राप्त करना आसान बना दिया और आगे चलकर मुगल साम्राज्य की स्थापना का आधार तैयार हुआ

बाबर के आक्रमण से पूर्व भारत की राजनीतिक कमजोरियाँ

भारत में जब-जब केंद्रीय शक्ति का ह्रास हुआ और नये-नये स्वतंत्र राज्यो की स्थापना की गई,तब-तब विदेशी आक्रमणकारियों  ने परिस्थतियों का लाभ उठाकर नये राज्य की स्थापना कर ली। तुर्क-अफगान राज्य की स्थापना विभाजित परिस्थिति की ही उपज थी।  मुगल आक्रमण के समय भारत की रजनीतिक अवस्था लगभाग ठीक उसी प्रकार से थी जिस प्रकार से तुर्क-अफगान शासन के समय थी।

1. केंद्रीय सत्ता का कमजोर होना

मुहम्मद तुगलक के बाद दिल्ली सल्तनत की सत्ता धीरे-धीरे बिखरने लगी। फ़िरोज़ तुगलक प्रशासनिक दृष्टि से उतना प्रभावशाली शासक सिद्ध नहीं हो सका, जिसके कारण केंद्र की पकड़ ढीली होती गई और प्रांतीय नेता अधिक स्वतंत्र होते चले गए।

2.  नए राज्यों का उभार और आपसी टकराव

केंद्रीय नियंत्रण कमज़ोर पड़ते ही अलग-अलग क्षेत्रों में स्वतंत्र राज्यों का गठन होने लगा। विजयनगर और बहमनी जैसी शक्तियाँ दक्षिण और मध्य भारत में उभरीं, जिससे राजनीतिक खंडन तेज़ हो गया। इनके बीच लगातार होने वाले युद्धों ने किसी भी प्रकार की व्यापक एकता की संभावना को कम कर दिया।

3. विदेशी आक्रमणों के प्रति उदासीनता

जब भारतीय राज्य एक-दूसरे से संघर्ष में उलझे रहे, तब बाहरी खतरों की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। तैमूर का आक्रमण इस उपेक्षा का परिणाम था, जिसने उत्तर भारत को भारी क्षति पहुँचाई। इसके बावजूद संयुक्त रक्षा-रणनीति का अभाव बना रहा।

4. अफगान सरदारों में टकराव

लोदी शासन के दौरान अफगान सरदारों के बीच प्रभुत्व की होड़ तेज़ हो गई। इब्राहिम लोदी की कठोर नीतियों ने उनकी नाराज़गी और बढ़ा दी, जिससे प्रशासन भीतर से अस्थिर और विभाजित होता चला गया।

5. राजपूतों में संघभावना का अभाव

यदि राजपूत राज्यों के बीच सहयोग और एकता होती, तो वे विदेशी आक्रमणों का संयुक्त रूप से सामना कर सकते थे। परंतु पारस्परिक ईर्ष्या, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और व्यक्तिगत हितों के कारण संगठित प्रतिरोध विकसित नहीं हो सका।

तुगलक काल के बाद राजनीतिक अव्यवस्था की शुरुआत हुई, जो तैमूर के आक्रमण के बाद और तेज़ी से बढ़ी। लोदी साम्राज्य की आंतरिक कमजोरी, प्रांतीय शासकों की महत्वाकांक्षा और राज्यों के बीच सतत संघर्ष ने भारतीय उपमहाद्वीप को बाहरी हमलों के प्रति लगभग असुरक्षित बना दिया। इसी विखंडन के वातावरण ने बाबर के अभियान को अपेक्षाकृत सरल बना दिया। तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश डालते हुए  बी0 एन0 मजूमदार ने लिखा है “बाबर के लिए परेशानी की कोई बात नहीं थी, भारत पर मुसलमानो की विजय के लिए मंच तैयार था।”

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क्षेत्रवार राजनीतिक स्थिति

दिल्ली

बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली में इब्राहिम लोदी राज्य कर रहा था। यद्यपि उत्तर भारत का यह राज्य सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था, फिर भी समस्त उत्तर भारत इसमें सम्मिलित नहीं था। इस  राज्य के अंतर्गत पंजाब, दो-आब,जौनपुर, अवध, बिहार, और बुंदेलखंड के कुछ भाग सम्मिलित थे। इब्राहिम लोदी  में एक योग्य सैनिक के गुण थे। लेकिन वह क्रोधी, अहंकारी, और संदेह प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसने अमीरों पर कठोर नियंत्रण रखने तथा उन्हें अनुशासित करने का प्रयास किया। केवल संदेह मात्र के आधार पर राज्य के वरिष्ठ तथा सम्मानित अफगान अमीरों को मरवा डाला। उसकी निर्दयता तथा अत्याचार इस सीमा तक बढ़ गए थे, कि अनेक अफगान अमीरों ने उसके विरुद्द् विद्रोह कर दिया। दो महत्वाकांक्षी अफगान अमीरो-आलम खान लोदी और दौलत खान लोदी ने बाबर को आक्रमण के लिए निमंत्रित किया और यह आत्मघाती आशा की कि अपने पूर्वज तैमूर के समान दिल्ली  लूटने के बाद काबुल वापस चला जाएगा और दौलत खां लोदी पंजाब पर तथा आलम खान लोदी दिल्ली पर अधिकार रखने में सफल रहेंगे। इस प्रकर इब्राहिम लोदी और उसके सरदारों की शत्रुता तथा हटधर्मिता से लोदी का दिल्ली राज्य राजनीतिक दृष्टि से सत्यंत दुर्बल था।

पंजाब

यहाँ का सूबेदार दौलत खां लोदी था। वह यद्यपि दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी के अधीन था, तथापि वह मन ही मन उससे बहुत नाराज था। वह अपनी स्वतंत्रता घोषित करना चाहता था, और इस हेतु उचित अवसर की प्रतीक्षा में था। वह इब्राहिम लोदी के राज्य का अंत करने के लिये बाबर से पत्र-व्यवहार कर रहा था। उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण भेजा था।

मेवाड़

बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ एक महत्वपूर्ण राज्य था, यहाँ का शासक राणा संग्राम सिंह था, जो इतिहास में राणा सांगा के नाम से प्रसिद्ध हैं। वह एक महान योद्धा था। अपनी विजयो से  उसने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बना दिया था। यह मेवाड़ के गौरव और शक्ति का चरम काल था। उसकी महत्वाकांक्षा राजपूत शक्ति का आगरा और दिल्ली में भी विस्तार करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए बुलाया था, सम्भवतः उसे आशा थी कि इससे लोदी सल्तनत पूर्ण रूप से दुर्बल हो जायेगी और आगरा एवं दिल्ली पर राजपूत नियंत्रण स्थापित हो जायेगा। खानवा के युद्ध मे बाबर को राणा सांगा से युद्ध करना पड़ा। भरतीय इतिहास के युद्धों में यह एक निर्णायक युद्ध था।

मालवा

 बाबर के आक्रमण के समय मालवा पर खिलजी वंश का महमूद द्वितीय शासन कर रहा था। उसने  मेंदिनीराय को प्रधानमंत्री का पद सौप दिया था। मेंदिनीराय ने महानवपूर्ण पदो पर अपने संबंधियो को नियुक्‍त कर दिया। इससे मुस्लिम सरदार भड़क उठे और उन्होंने गुजरात के शासक मुजफर शाह की सहायता से उसे पराजित करके उसे बाहर निकल दिया। मेंदिनीराय ने मेवाड़  के शसक राणा संगा से सहायता मांगी। राणा सांगा ने महमूद द्वितीय पर आक्रमण करके उसे बंदी बना लिया परंतु उदारता दिखते हुए उसने शीघ्र  ही उसे छोड़ दिया है। इसके बाद भी मेवाड़ तथा मालवा के मध्य संघर्ष बना रहा। सन 1531 ई0  में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने मालवा को जीत लिया।

गुजरात

 बाबर के आक्रमण के समय गुजरात भी एक स्वतंत्र राज्य था। इस  राजवंश का संस्थापक जफर खां था। उसने  तैमूर के आक्रमण से उत्पन्न अराजकता की स्थिति का लाभ उठाकर अपनी स्वतंत्र सत्ता  की स्थापना कर ली थी। सन 1511 ई0 में मुजफ्फर शाह द्वितीय गुजरात के सिंहासन पर बैठा। उसे  अपने शत्रुओ से अनेक युद्ध करने पड़े। मेवाड़ के राणा सांगा से भी उसकी शत्रुता थी, परंतु उसे  उसके हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा। सन 1526 ई0 में मुजफ्फर शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बहादुर शाह गद्दी पर बैठा, जो एक योग्य और सफल शासक सिद्ध हुआ। उसका बाद में हुमायूं से काफी संघर्ष हुआ।

बंगाल

फ़िरोज़ शाह तुगलक के शासन काल में बंगाल एक स्वतंत्र राज्य था। सिकंदर लोदी ने बंगाल के शासक अलाउद्दीन हुसैन (1493-1519 ई0) से संधि करके बंगाल की स्वतंत्रता सत्ता स्वीकार की थी।  इब्राहिम लोदी  के काल में बंगाल स्वतंत्र बना रहा। बाबर का समकालीन बंगाल का शासक अलाउद्दीन का पुत्र नुसरत शाह था, जो 1518 ई0 में गद्दी पर बैठा। वह एक योग्य प्रशासक था। उसके शासन काल में बंगाल में शांति और समृद्धि रही। वह बंगाली साहित्य का संरक्षक तथा विद्वानों का आश्रय दाता था। बाबर ने उसके साथ संधि कर ली थी।

सिंध और मुल्तान

मुहम्मद तुगलक के शासन काल के अन्तिम  दिनों में सिंध स्वतंत्र हो गया था।  फिरोज तुगलक ने सिंध के पुनर्विजय के लिए प्रयास किए थे लेकिन उसे सफलता नही मिली थी। 16 वी सदी में सिंध में अशांति फैली हुई थी,कंधार का गवर्नर शाह अरघुन सिंध पर दृष्टि रखता था। जब बाबर ने कंधार को जीता उस समय शाह अरघुन ने सिंध पर आक्रमण करके वहाँ के शासक जाम फिरोज को पराजित करके सिंध पर अधिकार कर लिया (सन 1516 ई0)। उसके उत्तराधिकारी शाह हुसैन ने मुल्तान पर भी अधिकार कर लिया। बाबर के आक्रमण के समय सिंध और मुल्तान पर शाह हुसैन राज्य कर रहा था।

कश्मीर

कश्मीर में भी उस समय एक स्वतंत्र राज्य था। यहाँ सत्ता प्राप्ति के लिए आंतरिक संघर्ष चल रहा था। यहां के प्रधान बजीर ने सुल्तान मोहम्मद शाह को बाबर की सहायता से अपदस्त कर स्वयं सत्ता हथिया ली थी।

खानदेश

ताप्ती नदी घाटी में स्थित खान देश राज्य की स्थापना मलिक राजा फारूकी ने की थी। किन्तु आरंभ से ही खानदेश तथा गुजरात के शासको के मध्य संबंध अच्छे नहीं रहे। इसका कारण  गुजरात के शासको  का खानदेश पर अधिकार करने की महत्वकांक्षा थी। सन 1508 ई0 में खानदेश के सुल्तान दाऊद के पश्चात वहाँ उत्तराधिकार का युद्ध आरंभ हो गया और सिंहासन के प्रतिद्वंदी दावेदारों ने गुजरात और बहमनी शासको की सहायता से सिंहासन पर अधिकार करने का प्रयास किया, अंत मे गुजरात सुल्तान महमूद बेगड़ा का उम्मीदवार आदिल शाह तृतीय खानदेश के सिन्हासन पर बैठा। सन 1520 ई0 में उसकी मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र मोहम्मद प्रथम गद्दी पर बैठा, जो बाबर के आक्रमण के समय खानदेश का शासक था। उसकी सत्ता नाममात्र की थी और वह गुजरात की अधीनता स्वीकार करता था।

विजयनगर

 भारतवर्ष में हिंदू राजों में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य विजयनगर था।  राज्य की स्थापना 1336 ई0 में हरिहर और बुक्का ने की। यह राज्य दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए बहमनी राज्य से बराबर संघर्षरत रहा। बाबर के आक्रमण के समय विजयनगर राज्य का शासक कृष्ण देवराय था, जो अपने वंश का महानतम शासक था। वह  बहुत वीर, साहसी, विजेता और योग्य शासक था। उसके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, सांकृतिक दृष्टि से प्रगति की चरम सीमा पर था। यह राज्य उत्तरी भारत से दूर स्थित था इसीलिए उत्तरी भारत की राजनीति को इसने प्रभावित नहीं किया। किंतु दक्षिण में मुसलमान आक्रमणकारियो को आगे बढ़ने से रोका और दक्षिण भारत में हिंदू धर्म और संस्कृति की रक्षा करने में भी सफलता प्राप्त की।

बहमनी राज्य

 सन 1347 ई0 मे अलाउद्दीन बहमनशाह ने इस राज्य की स्थापना की थी। शुरुआत में बहमनी साम्राज्य दक्षिण भारत का एक प्रमुख राज्य था,पर सन 1481 ई0 में महमूद गवां की मृत्यु के बाद बहमनी राज्य की हालत पतली हो गई। विजयनगर के हिंदू शासको के  निरंतर प्रहार से बहमनी राज्य की शक्ति क्षीण हो गई और विशाल साम्राज्य विघटित होकर 5 खंडो में बट गया यथा- बरार में इमादशाही वंश, अहमदनगर में निजामशाही वंश, बीजापुर में आदिलशाही वंश,गोलकुण्डा में कुतुबशाही वंश बीदर में बरीदशाही  राजवंश की स्थापना हुई। इन राज्यों में आपस मे भी शत्रुता थी और वह एक दूसरे के राज्य में लूट-पाट करते रहते थे। मुसलमानों के आपसी  मतभेद ने  दक्षिण भारत में उनके विस्तार के काम को ठप्प कर दिया था। इस प्रकार बाबर के आक्रमण के समय इस राज्य की शक्ति भी समाप्त हो गई थी।

निश्कर्ष

 उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बाबर के आक्रमण के समय भारत में कोई केंद्रीय शक्ति नहीं थी। उस समय भारत में कई छोटे- छोटे राज्य स्थापित हो चुके थे और ये राज्य अपनी  सीमा का विस्तार करने के लिए आपस में लड़ते  रहते थे। उन्हें विदेशी आक्रमणकारियो से मुकाबाला करने की तनिक भी चिंता नहीं थी। भारत के उत्तरी-पश्चिम सीमा पर विदेशी आक्रमणकारियो को रोकाने का कोई सुदृढ़ प्रबंध नहीं किया गया था। इतना ही नहीं पंजाब का शासक दौलत खां लोदी बाबर से मिला हुआ था। इसिलिए बाबर जैसे शक्तिशाली विदेशी आक्रमणकारी का कार्य बहुत सरल हो गया और भारत मे मुगल साम्रज्य की स्थापना करने मे सफल हुआ.

FAQ / PAQ (People Also Ask)/ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1: बाबर के आक्रमण के समय उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति अस्थिर क्यों मानी जाती है?

उत्तर: उस दौर में शासक वर्ग एक मजबूत केंद्रीय नेतृत्व खड़ा करने में असफल रहा था। कई क्षेत्रीय शक्तियाँ अपने-अपने हितों में उलझकर लगातार संघर्ष कर रही थीं। इब्राहिम लोदी का प्रशासन भी सभी गुटों को साथ रखने में कमजोर साबित हुआ, जिससे बाहरी आक्रमणकारियों के खिलाफ व्यापक प्रतिरोध तैयार नहीं हो सका।

प्रश्न 2: क्या अफगान सरदारों की आंतरिक खींचतान बाबर की सफलता का कारण बनी?

उत्तर: हाँ। अफगान सरदारों के बीच अविश्वास और सत्ता की होड़ इतनी बढ़ गई थी कि वे एक-दूसरे को कमजोर करने के लिए बाहरी सहायता लेने लगे। इस आपसी विघटन ने क्षेत्र की राजनीतिक मजबूती को और गिरा दिया, जिसका लाभ बाबर को आसानी से मिला।

प्रश्न 3: राजपूत राज्यों की असंगठित स्थिति ने बाबर के लिए परिस्थितियाँ कैसे आसान कीं?

उत्तर: राजपूत राज्यों में सामूहिक नेतृत्व और साझा रणनीति का अभाव था। यदि वे एक मंच पर आ जाते तो उनकी संयुक्त शक्ति बाबर की सेना को कड़ी चुनौती दे सकती थी। लेकिन पारस्परिक प्रतिद्वंद्विता ने उन्हें एक संगठित सैन्य शक्ति के रूप में उभरने नहीं दिया।

प्रश्न 4: क्या भारतीय सैन्य व्यवस्था बाबर की सेना से कमजोर थी?

उत्तर: भारतीय सेनाएँ परंपरागत युद्ध-शैली और पुराने हथियारों पर निर्भर थीं। इसके विपरीत, बाबर की सेना आधुनिक तोपखाने, बारूद आधारित तकनीकों और सुनियोजित युद्ध रणनीतियों से सुसज्जित थी। यह तकनीकी असमानता निर्णायक साबित हुई।

प्रश्न 5: क्या बाबर का आक्रमण केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित था?

उत्तर: राजनीतिक अस्थिरता तो मुख्य कारण थी ही, लेकिन इसके साथ-साथ आर्थिक अवसर, उत्तर भारत की उपजाऊ भूमि, व्यापारिक मार्गों पर नियंत्रण और दिल्ली की सत्ता प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा भी बाबर को भारत की ओर आकर्षित करती थी।

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