सिकन्दर लोदी: लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक – चरित्र, शासन और उपलब्धियों का विश्लेषण/ Sikandar Lodi: An Analysis of His Character, Administration and Achievements as the Greatest Sultan of the Lodi Dynasty.

सिकंदर लोदी का शासन दिल्ली सल्तनत के इतिहास में एक उल्लेखनीय दौर माना जाता है। प्रशासन, सैन्य संगठन, आर्थिक नीतियों और साहित्यिक संरक्षण में उसके प्रयासों ने लोदी वंश को मजबूती प्रदान की। अपने पिता बहलोल लोदी की नीतियों को आगे बढ़ाते हुए उसने राज्य का विस्तार किया और शासन को अधिक सुव्यवस्थित रूप दिया। सामाजिक और धार्मिक मामलों में उसकी कठोरता की आलोचना भी हुई, फिर भी उसकी नीतियाँ यह दर्शाती हैं कि वह एक सक्षम शासक होने के साथ-साथ राज्य की स्थिरता और जनता की भलाई के प्रति समर्पित था।

सिकन्दर लोदी, लोदी वंश का सबसे योग्य शासक था। तत्कालीन एवं आधुनिक दोनो ही इतिहासकारो ने सिकन्दर लोदी की प्रशंसा की है। उसने बहलोल लोदी के कार्यो को पूरा किया और लोदी वंश की नींव पर एक इमारत खड़ी की। उसमे प्रशासकीय गुणों की कमी नहीं थी। वह कला, कौशल एवं विद्वानों का आश्रयदाता  भी था और जनहित के कार्यो में भी रुचि रखता था परन्तु उसकी धार्मिक असहिष्णुता की नीति की कटु आलोचना की जाती है। बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद अपने प्रतिद्वंद्वियों को अपनी कूटनीति के द्वारा परास्त करने के बाद 1489 ई0 में सिकन्दर लोदी दिल्ली के सिंहासन पर आसीन हुआ।

सिकन्दर लोदी की प्रमुख उपलब्धियाँ

सिकन्दर लोदी, बहलोल लोदी के पुत्रों में सबसे अधिक योग्य था। उसके शासन काल की घटना इस बात को सिद्ध करने के लिए उज्जवल उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है। जिसमे उसने अपनी योग्यता का परिचय दिया, जिसके लिए हमे उसकी निम्नलिखित उपलब्धियों का अध्ययन करना नितान्त अवशय है जो इस प्रकार है——

1. विद्रोहों पर नियंत्रण

सिकन्दर लोदी को सबसे पहले अपने चाचा आलम खां के विरोध का सामना करना पड़ा। उसने अपने चाचा आलम खां की शक्ति का दमन किया जो रापड़ी का शासक था। उसने रापड़ी पर आक्रमण किया। आलम खां उसका सामना नही कर सका और उसने पटियाला के शासक ईसा खां के यहाँ शरण ली। लेकिन कुछ समय बाद सिकन्दर लोदी ने आलम खां को अपनी ओर मिला लिया और उसको इटावा का शासक बना दिया। उसके बाद उसने ईसा खां की शक्ति का दमन किया। उसने कुछ अमीरों का भी दमन किया, जिससे उसकी शक्ति बहुत दृढ हो गयी।

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2. बारबक शाह से संघर्ष

प्रारम्भ में उसने बारबक शाह से भाईचारे का व्यवहार किया। प्रारंभिक कठिनाइयो एवं अमीरों का दमन करने के पश्चात उसने बारबक शाह की ओर ध्यान दिया। उसने उसके पास संदेश भेजा कि वह उसे सुल्तान स्वीकार कर ले। लेकिन वह नही माना बल्कि उसने युद्ध की तैयारी करनी प्रारम्भ कर दी, परिणाम यह हुआ कि कन्नौज के समीप दोनो सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, जिसमे बारबक शाह पराजित हुआ। अन्त में वह आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य हुआ। सिकंदर ने उसके साथ बड़ी उदारता का व्यवहार किया और उसे जौनपुर का सूबेदार बना दिया। परन्तु बारबक अयोग्य सिद्ध हुआ। अंत मे उसे पकडकर कारागार में डाल दिया गया।

3. कालपी, ग्वालियर और बयाना की विजय

इसके बाद सुल्तान ने कालपी की ओर प्रस्थान किया। उसने मुहम्मद खां लोदी को यहाँ का शासक नियुक्त किया। कालपी से निवृत होकर सिकन्दर लोदी ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वहाँ के शासक को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इसके बाद उसने बयाना के विद्रोह का दमन किया।

4. जौनपुर के विद्रोह का दमन

दिल्ली वापस आने पर उसे जौनपुर के जमीदारो के विद्रोह की सूचना मिली। बारबक शाह उनका दमन न कर सका। सुल्तान जौनपुर पहुंचा और विद्रोहियों का कठोरता से दमन किया। सुल्तान जौनपुर से अपनी पीठ मोड़ने भी न पाया था कि पुनः विद्रोह की अग्नि प्रज्ज्वलित हो गई। सिकन्दर लोदी ने विद्रोहियों को बनारस के पास पराजित किया।

5. बिहार पर अधिकार

सिकन्दर ने शीघ्र ही  बिहार को अपने अधिकार में कर लिया। जिसके कारण बंगाल का शासक अलाउद्दीन हुसैनशाह बड़ा क्रोधित हुआ। दोनो में एक संधि हो गई, जिसमे यह तय हो गया कि दोनो में से कोई भी एक दूसरे की सीमा पर अधिकार करने की चेष्टा नही करेगा।

6. अमीरों की शक्ति पर नियंत्रण

सिकन्दर लोदी ने अमीरों के साथ बड़ा कठोर व्यवहार किया क्योंकि अमीर सुल्तान के लिए सिरदर्द बने हुए थे वह उनकी विद्रोही प्रवृत्ति से घृणा करता था क्योकि अमीर सदैव उपद्रव और षड़यंत्र में लिप्त रहते थे। उनका दमन करने के लिए उसने आय-व्यय का हिसाब मांगा,जो अमीर आय-व्यय का हिसाब ठीक प्रकार से नही दे सके, उन्हें कठोर दण्ड दिया गया। सुल्तान ने अमीरों के लिए फरमान जारी करना प्रारंभ कर दिया। अब उसकी अनुपस्थिति में भी उसके आदेशो का सम्मान करना आवश्यक हो गया। सुल्तान के गुप्तचर राज्य की घटनाओं और अमीरो की गतिविधियों की सूचना सुल्तान को देते थे। इससे अमीरों पर सुल्तान का कड़ा नियंत्रण स्थापित हुआ। वस्तुतः सिकन्दर लोदी ने अफगाना रजत्व के सिद्धांत को एक नया स्वरूप प्रदान किया।

7. आगरा नगर की स्थापना

राजपूत राज्यो के विरुद्ध भी सिकंदर को कुछ सफलता मिली। उसने धौलपुर, मन्द्रायल, नटवर, नागौर, ग्वालियर, जौनपुर, इटावा आदि प्रदेशो के भूमिपतियों पर आतंक जमाने के लिए एक स्थान पर सैनिक छावनियां स्थापित की और सैनिको के लिए भवनों का निर्माण करवाया। यही स्थान वर्तमान में आगरा है। इसकी नीव 1504 ई0 में सुल्तान सिकन्दर लोदी ने डाली थी।

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8. प्रशासनिक और आर्थिक सुधार

राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था सुधारने के लिए सिकन्दर लोदी ने अनेक कार्य किये, उसने न्याय की समुचित व्यवस्था की। वह स्वयं न्याय प्रबंध में गहरी रुचि रखता था। न्यायिक मामलों में उलेमाओ की भी सहायता लेता था। यद्यपि न्यायिक व्यवस्था का वह स्वयं ही प्रधान था।
  राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उसने जमीन की माप करवाई एवं उपज के अनुसार लगान तय किया गया। जमीन की उचित माप के लिए उसने 30 इंच लम्बे गज की व्यवस्था की जो आगे चलकर सिकंदरी-गज के नाम से विख्यात हुई। अनाज पर से चुंगी हटा ली गई, इसके चलते अनाज काफी सस्ता हो गया और जनता को कष्ट नही उठाने पड़े।

सिकन्दर लोदी का चरित्र एवं मूल्यांकन

सिकन्दर लोदी, लोदी वंश का श्रेष्ठ शासकक था, डॉ0 के0 एस0 लाल ने लिखा है कि “सिकंदर शाह ने ऐश्वर्य और सफलता से 29 वर्ष शासन किया था। वह लोदी वंश का सर्वश्रेष्ठ शासक था और उसने अपने को अपने पिता बहलोल तथा अपने पुत्र इब्राहिम लोदी से अधिक सफल सिद्ध किया।” उसके चरित्र एवं उपलब्धियों का मूल्यांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत कियक जक सकता है—

योग्य एवं पराक्रमी शासक

सिकन्दर लोदी वास्तव में योग्य एवं पराक्रमी शासक था। वह साहसी और युद्ध प्रिय था। यह उसके सैनिक अभियानों से सिद्ध होता है। वह एक सफल सेनापति था यह उसके साम्राज्य विस्तार से स्पष्ट होता है। उसने साम्राज्य का विस्तार बिहार तक कर लिया था और दिल्ली के आस-पास के प्रदेशो पर पूरी तरह अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। उसने अपने गुप्तचर विभाग का भी अच्छी प्रकार से संगठन किया ताकि उसको साम्राज्य की घटनाओं की सूचना शीघ्र और प्रामाणिक रूप से मिलती रहे। उसने किसानों और व्यापारियों को भी अनेक सुविधाएं प्रदान की तथा एक ही प्रकार के बांट और तौल चलाये। इसका परिणाम यह निकला कि वस्तुओ के भाव बहुत सस्ते हो गए उसने ‘माल विभाग’ के प्रबंध को भी ठीक किया और जमीदारो के हिसाब की जाँच करवाई। वह निर्धनों और दुखियों की बहुत सहायता करता था।

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धार्मिक असहिष्णुता

धार्मिक दृष्टि से सिकन्दर लोदी असहिष्णु सिद्ध हुआ। तत्कालीन इतिहासकारो ने भी उसकी नीति को धर्मान्धता की बताया। निजामुद्दीन अहमद ने लिखा है कि “इस्लाम मे उसकी धर्मान्धता इतनी अधिक थी कि वह इस क्षेत्र में अतिशय की सीमा को भी पर कर गया था।” उसने अपने विजय अभियान के दौरान हिन्दू धर्म के धौलपुर, चंबेरी, मंदरेल आदि मन्दिरो को नष्ट कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने इस्लाम मे महिलाओं को पीरो और संतो की मजार पर जाने से रोक लगा दी। इतना ही नही उसने अपने शासन काल में मुसलमानों के मोहर्रम मनाने एवं ताजिया निकलने पर भी रोक लगा दी थी। वही सिकन्दर लोदी ने अपनी सुंदरता को बरकरार रखने के लिये कभी दाड़ी नही रखता था।

साहित्य और विद्वानों का संरक्षक

सिकन्दर लोदी एक कुशल शासक होने के साथ-साथ एक शिक्षित एवं महान विद्वान शासक भी था। उसके दरबार मे कई उच्च कोटि के विद्वान भी संरक्षण के लिए आते थे। इतिहासकारो के अनुसार उसके दरबार मे हर रात 70 सुसंस्कृत विद्वान अलग-अलग विषयो पर अपनी राय देते थे। वह स्वयं एक अच्छा लेखक भी था और “गुलरुखी” उपनाम से कविताएं भी लिखता था। इसकके समय मे संस्कृत के कई ग्रंथो का फ़ारसी में अनुवाद भी किया गया। उसके स्वयं के आदेश पर एक आयुर्वेदिक ग्रंथ का फ़ारसी में अनुवाद किया गया। जिसका नाम “फरहंगे सिकंदरी” रखा गया। अनेक प्राचीन ग्रंथो का संग्रह और नवीन ग्रंथो की रचना उसके समय की विशेषता रही।

निष्कर्षत

उपर्युक्त विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि सिकन्दर लोदी एक सफल सुल्तान था। उसने अपने पिता द्वारा आरम्भ किये गए कार्यो को आगे बढ़ने में सफलता प्राप्त की। यदि बहलोल लोदी ने दिल्ली राज्य में लोदी वंश की स्थापना की थी तो सिकन्दर लोदी ने उसे पहले की तुलना में अधिक विस्तृत और दृढ़ किया था। धार्मिक असहिष्णुता उसकी सबसे बड़ी कमजोरी रही, फिर भी उसके शासनकाल को लोदी वंश का स्वर्णिम काल माना जाता है।

FAQs – सिकन्दर लोदी से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न

 Q1. सिकन्दर लोदी को लोदी वंश का सबसे प्रभावशाली शासक क्यों माना जाता है?

उत्तर:  इतिहासकार उसे इसलिए श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि उसने अपने राज्य की सीमाएँ बढ़ाईं, प्रशासनिक ढाँचे को मज़बूती दी और अमीरों की शक्ति को नियंत्रित करते हुए शासन को अधिक केंद्रीकृत बनाया। उसकी आर्थिक नीतियों ने भी राज्य की स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

Q2. सिकन्दर लोदी के प्रमुख सैन्य अभियान कौन–कौन से थे?

उत्तर:  उसके शासनकाल में कालपी, ग्वालियर, बयाना और बिहार जैसे क्षेत्रों पर सफल अभियान चलाए गए। इसके साथ ही उसने जौनपुर में हुए विद्रोहों का कठोर दमन करके अपने नियंत्रण को दृढ़ किया।

Q3. उसकी नीतियों में कौन-सी बात सबसे अधिक आलोचना का विषय बनी?

उत्तर:  उसकी धार्मिक कठोरता सबसे अधिक विवादित रही। मंदिरों के विनाश, सामाजिक नियमों में सख़्ती और धार्मिक असहिष्णुता जैसी नीतियों के कारण उसे आलोचना का सामना करना पड़ा।

Q4. साहित्य और विद्वानों के संरक्षण में सिकन्दर लोदी का योगदान क्या था?

उत्तर:  वह स्वयं विद्वानों का संरक्षक था और “गुलरुखी” उपनाम से काव्य भी रचता था। उसके संरक्षण में संस्कृत साहित्य का फ़ारसी में अनुवाद हुआ, जिनमें “फ़रहंगे-सिकंदरी” प्रमुख है। उसके शासन में बौद्धिक गतिविधियों को विशेष प्रोत्साहन मिला।

Q5. आगरा के विकास में सिकन्दर लोदी की भूमिका क्या थी?

उत्तर:  1504 ई. में आगरा की स्थापना का श्रेय उसी को दिया जाता है। उसने इसे सैन्य और प्रशासनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में विकसित किया। आगे चलकर यही नगर मुगल साम्राज्य की प्रमुख राजधानी बना।

 

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