टिप्पणी: इस पेज पर नीचे भाषा बदलने का बटन मौजूद है। उस पर क्लिक करके आप इस आर्टिकल को अपनी पसंद की भाषा (20 भाषाओं) में पढ़ सकते हैं। |
Tip: The Language Switcher button is available at the bottom of this page. Click on it to read this article in your preferred language (20 languages).”
भारत का इतिहास अनेक संघर्षों, परिवर्तनों और सांस्कृतिक विकास की कड़ियों से बना है। इन्हीं महत्वपूर्ण चरणों में तुर्क आक्रमणों का दौर एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जिसने राजनीति, समाज और अर्थव्यवस्था तीनों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। यह संक्षिप्त विश्लेषण उसी समय की भारत की स्थिति को सरल और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करता है।

प्रस्तावना – भारत में तुर्कों की विजय का महत्व
भारत मे तुर्को की विजय मध्यकालीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस विजय के परिणामस्वरूप तुर्क भारत मे अपना राज्य स्थापित करने में सफल हुए और राजपूतो के हाथों से भारतीय सत्ता का पर्याप्त समय के लिए अंत हो गया। भारत मे तुर्को की सत्ता स्थापित होने से भारतीय स्थिति में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन घटित हुए।
तुर्को की विजय के कारकों को वेहतर ढंग से समंझने के लिए हम यहाँ उसे एक संक्षिप्त व्याख्या द्वारा निम्नलिखित रूप से प्रदर्शित कर सकते है—
1. राजनीतिक कारण

भारत मे हर्षवर्धन के पतन के बाद से विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी थी। अब भारत अनेक छोट-छोटे राज्यो में विभाजित हो गया था। इन राज्यो के शासक अपने-अपने राज्यो का विस्तार एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि के लिए संघर्ष करते रहते थे। इन संघर्षों के कारण इनमे आपसी द्वेष एवं ईर्ष्या की भावना प्रबल हुई तथा इनकी एकता समाप्त हो गयी। इसके साथ-साथ प्रशासन के उच्च पदों पर उच्च वर्णों के लोगो को स्थान मिला तथा उस ओर उनका वंशानुगत अधिकार कायम हुआ। जिसके परिणामस्वरूप अयोग्य व्यक्ति भी प्रशासन के उच्च पदों पर नियुक्त होने लगे। इससे देश की राजनीतिक स्थिति खराब होने लगी और राज्य में अशांति और अराजकता फैल गई। इसके अतिरिक्त इन राजपूत राज्यो ने विदेशों से सम्बंध स्थापित न करके अपने प्रभाव को कमजोर किया तथा जनकल्याणकारी कार्यो की उपेक्षा करके राजनीतिक कार्यो को शिथिल बना दिया।
2. आर्थिक कारण
राजपूतो की पराजय में आर्थिक कारण भी महत्वपूर्ण योगदान रखता है। राजपूतो ने व्यापार एवं व्यवसाय के विकास पर विशेष ध्यान नही दिया, जिस कारण इनका वैदेशिक व्यापार शिथिल पड़ गया जबकि तुर्को ने भारत मे तीव्र व्यापारिक गतिविधियां स्थापित करके यहां की अर्थव्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत की। इसके अतिरिक्त राजपूतो के निरंतर चलने वाले युद्धों ने उनकी सामरिक क्षमता के लिए अधिक व्यय किये जिससे इनकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई।
3. सामाजिक कारण
जहां तक राजपूतो की पराजय में सामाजिक कारण का सवाल है तो उसमें भी राजनीतिक विविधता के साथ-साथ सामाजिक विविधता के चिन्ह स्प्ष्ट झलकते है। भारत सामाजिक दृष्टि से दुर्बल था। सामाजिक व्यवस्था में जातीय संकीर्णता की भावना का प्रवेश हो गया था। इसमें छुआछूत, भेदभाव, अश्पृश्यता, सामाजिक शोषण आदि भावनाओ का संचार हुआ। एकता एवं समानता की भावना समाज मे नही थी। इस कारण शोषित वर्ग में देश या राज्य की सुरक्षा अथवा विदेशी आक्रमण से प्रतिरोध की भावना का ह्रास हुआ। इसके अतिरिक्त शराब खोरी, जुआ, बहुविवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों से समाज रूढ़ हो गया था। इसके कारण समाज के उच्च वर्ग एवं निम्न वर्ग में पृथकतावादी नीति आ गई थी। जिसने समाज को खोखला कर दिया।
4. धार्मिक कारण
धार्मिक दृष्टि से अगर भारत की स्थिति देखी जाय तो यह विभिन्न सम्प्रदायों एवं उपसंप्रदयो में विभक्त था। धार्मिक क्षेत्र में समन्वय तथा उदारवादी प्रवृति के कारण विभिन्न प्रकार के धार्मिक विश्वास तथा मान्यताएं यहां पनप रही थी। दूसरे धर्म द्वारा पोषित कर्म तथा संसार के दर्शन ने अधिकांश भारतवासियों को दुःख तथा दमन सहने का अभ्यस्त बना दिया था। नियतिवाद तथा भाग्यवादी विश्वास के कारण वे विदेशी आक्रमणों तथा यातनाओ को पूर्व जन्मों का फल मानने लगे थे, जिसकी वजह से वे एकजुट होकर इसका विरोध नही किये। इनमे व्यापकता के कारण धार्मिक मतभेद भी पैदा हुए और वे कमजोर होते चले गये।
5. सैनिक कारण

भारत मे निरंतर चलने वाले युद्धों के कारण इनकी सामरिक क्षमता में ह्रास हुआ। वे इन युद्धों से थक चुके थे। इनकी सैनिक कुशलता, रणनीति, युद्ध प्रणाली तुर्को की अपेक्षा कमजोर थी। वे परम्परागत हथियारों पर ही निर्भर रहे तथा विदेशी सम्पर्क न होने के कारण आधुनिक हथियार तथा नवीन तकनीकी से अनजान रहे।
6. तुर्की विजय के प्रभाव
तुर्की विजय के प्रभावों को ठीक ढंग से समंझने के लिए उसे हम एक संक्षिप्त व्याख्या द्वारा निम्नलिखित रूप में व्यक्त कर सकते हैं—–
(A) राजनीतिक प्रभाव
भारत मे तुर्की विजय के पश्चात सामंतवाद का अंत हो गया। इसके स्थान पर सुदृढ़ केन्द्रीकृत राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हुई। इस केन्द्रीय शासन व्यवस्था में सुदूर प्रान्तों को जोड़ने एवं प्रशासनिक व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने के लिए इक्ता प्रणाली की नींव रखी गई। इस व्यवस्था में दिल्ली को राजधानी बनाया गया और वहां से सम्पूर्ण भारत मे शासन स्थापित किया गया।
(B) सामाजिक प्रभाव
तुर्की शासन की स्थापना के बाद भारतीय समाज मे सामाजिक ढांचा बदला और उसमें आधारभूत परिवर्तन हुए। समाज में उच्च एवं निम्न वर्गो की स्थिति में परिवर्तन आया और सभी वर्गों को समान अवसर प्राप्त हुए। इससे सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ और सभी वर्गों ने समान रूप से विकास किया।
(C) आर्थिक प्रभाव
इस प्रकार के परिवेश में नवीन नगरों का उदय हुआ। इन नगरों का विकास व्यावसायिक नगरों के रुप में हुआ। इस कारण व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिला। इसने वैदेशिक व्यापार को प्रोत्साहित किया। इसके फलस्वरूप भारत की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई।
(D) सैनिक प्रभाव

तुर्की शासन की स्थापना के बाद सैनिक क्षेत्र में भी अनेक प्रभाव देखे गये। तुर्की शासन में सैन्य स्वरूप, भर्ती, गठन, आदि में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। सेना में भर्ती के लिए योग्यता को मापदण्ड निर्धारित कर सभी जातियों के लिए समान रूप से अवसर प्राप्त हुए। इन सैनिको के लिये नकद वेतन की व्यवस्था की गई। तथा पैदल सेना के स्थान पर घुड़सवार सेना को प्राथमिकता दी गई।
(E) सांस्कृतिक प्रभाव
भारत मे तुर्की शासन की स्थापना के बाद शासन के अंतर्गत फ़ारसी भाषा को राजभाषा के रूप में मान्यता दी गई। हिन्दू और मुस्लिम संस्कृतियों के समन्वय से एक नई भाषा, उर्दू भाषा का विकास हुआ। साथ ही साथ भारतीय स्थापत्यकला में चूना मिश्रित मसालों एवं इमारतों में गुम्बदों और मेहराबो का निर्माण कर, एक नवीन शैली में भवन निर्मित होने लगे।
(F) धार्मिक प्रभाव
भारत मे तुर्को की विजय का प्रभाव धर्म के क्षेत्र पर भी पड़ा। भारत मे इस्लाम धर्म का तेजी से विकास हुआ। तुर्को ने इस्लाम धर्म को स्वीकार कराने के लिए अनेक प्रकार के प्रलोभन भी दिये। जिसका प्रभाव निम्न वर्गो पर अत्यधिक पड़ा तथा भारत मे इस्लाम धर्म काफी मजबूत हुआ।
निष्कर्ष
इस प्रकार उपरोक्त अध्ययनों से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि राजपूतो में साहस और शौर्य की कोई कमी नही थी, इसके बावजूद इनकी अपनी कमजोरियों ने इनकी पराजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजपूतो ने पूरी ताकत से तुर्को का सामना किया परन्तु आंतरिक खोखलेपन के कारण वे पराजित हुए। इस पराजय का व्यापक प्रभाव भारतीय जनजीवन एवं अवस्थाओं पर पड़ा। इससे जहां एक ओर सामाजिक संकीर्णता समाप्त हुई तथा व्यापार-वाणिज्य का विकास हुआ वही दूसरी ओर इस्लाम के प्रभुत्व में वृद्धि तथा राजनीतिक सत्ता की स्थापना ने आने वाले वर्षो में भारत की एक नई रूपरेखा तैयार कर दी।
FAQ / PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: भारत में तुर्कों की सफलता के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर: तुर्कों की विजय के पीछे उनका अनुशासित अश्वदल, तीव्र गति से युद्ध छेड़ने की क्षमता और प्रभावशाली नेतृत्व प्रमुख कारण थे। वे लोहे की रकाब, उन्नत धनुर्विद्या और अन्य सैन्य साधनों का दक्षता से उपयोग करते थे। इसके विपरीत, कई भारतीय राज्यों में पारस्परिक समन्वय की कमी थी, जिससे तुर्क सैन्य अभियान अपेक्षाकृत आसानी से आगे बढ़ पाए।
प्रश्न 2: राजपूत तुर्कों से क्यों हारते गए?
उत्तर: यद्यपि राजपूत अत्यंत साहसी और योद्धा परंपरा वाले थे, उनकी युद्ध पद्धति धीरे–धीरे पुरानी पड़ती चली गई। वे संगठित युद्धनीति की तुलना में व्यक्तिगत शौर्य को अधिक महत्व देते थे। इसके अलावा, राजपूत रियासतों में आपसी संघर्ष और सत्ता की होड़ ने उन्हें बाहरी आक्रमणों के विरुद्ध एकजुट होने से रोक दिया।
प्रश्न 3: तुर्क आक्रमणों का भारत की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: तुर्कों की सफल अभियानों ने उत्तर भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। अनेक स्थानीय शक्तियाँ कमजोर हुईं और उनकी जगह दिल्ली सल्तनत का केंद्रीय शासन उभरकर सामने आया। प्रशासनिक ढाँचे में केंद्रीकरण बढ़ा तथा शासन व्यवस्था में कई नए प्रयोग किए गए।
प्रश्न 4: क्या राजपूत वास्तव में कमजोर थे?
उत्तर: राजपूत स्वभावतः निर्बल नहीं थे, किंतु उनकी सैन्य तैयारियों में समय के अनुरूप बदलाव की गति धीमी थी। वे पारंपरिक हथियारों, भारी कवचों और निकट संघर्ष पर अधिक निर्भर रहते थे। बदलते सैन्य ढाँचों को अपनाने में यही विलंब उनके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।
प्रश्न 5: तुर्क–राजपूत संघर्ष का भारतीय समाज पर क्या असर पड़ा?
उत्तर: इन संघर्षों के बाद भारतीय समाज में सांस्कृतिक, धार्मिक तथा स्थापत्य क्षेत्रों में नई विशेषताएँ दिखाई देने लगीं। व्यापारिक ढाँचों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भी परिवर्तन आए और कई क्षेत्रों में शहरीकरण की प्रक्रिया तेज हुई।
प्रश्न 6: क्या राजपूतों की एकता होती तो इतिहास बदल सकता था?
उत्तर: यदि प्रमुख राजपूत राज्यों के बीच व्यापक सहयोग और सामूहिक रणनीति विकसित हो पाती, तो तुर्कों की प्रारंभिक प्रगति को कुछ हद तक रोका जा सकता था। लेकिन रियासतों के बीच प्रतिस्पर्धा और क्षेत्रीय विभाजन ने उनकी संयुक्त प्रतिरोध क्षमता को कमज़ोर कर दिया।
