क्या अकबर राष्ट्रीय शासक था? सिद्ध कीजिए | Akbar as a National Monarch in India – History Notes (UPSC/NET/TGT/PGT)

अकबर भारतीय इतिहास का वह दूरदर्शी शासक था जिसने धर्म, समाज और संस्कृति के विविध स्वरूपों को एक साझा पहचान देने का प्रयास किया। उसने सत्ता के दायरे से आगे बढ़कर पूरे उपमहाद्वीप को एकीकृत करने की सोच विकसित की। इसी कारण उसे ऐसा सम्राट माना जाता है जिसने “भारत” को एक संयुक्त राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करने की नींव रखी। आइए समझते हैं कि अकबर को राष्ट्रीय शासक कहलाना क्यों सार्थक और ऐतिहासिक रूप से उचित माना जाता है।

 Introduction

 राष्ट्रीय शासक कौन होता है?

राष्ट्र निर्माता उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी जन समूह में राजनीतिक, सामाजिक,धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक एकता उत्पन्न कर उसे एकता के प्रबल सूत्र में  में बांध देता है,जो उनकी भिन्नता को दूर कर उनमे साम्य स्थापित करे और उन्हें एकता के प्रबल सूत्र में बांध दे। अकबर को राष्ट्रीय सम्राट माना जाता है क्योंकि उसने विपरीत परिस्थितियों में सत्ता की बागडोर संभालकर जिस तरह से मुगल साम्राज्य की नींव भारत मे डाली, उसी का परिणाम था कि मुगल साम्राज्य लगभग 300 वषो तक भारत मे अपनी रश्मियों को बिखेरता रहा और इन रश्मियों के पीछे केवल अकबर के राष्ट्रीय राज्य के स्वरूप की कल्पना ही थी। अतः उसने भारत मे राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने के लिए जो प्रयास किये उन्हें हम निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत देख सकते है।

1 राजनीतिक एकता – भारत को एक शासन सूत्र में बाँधना

अकबर ने प्रारम्भ से ही भारत मे राजनीतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया। उसने  तत्कालीन भारत को सर्वप्रथम विजय अभियान द्वारा एकता के सूत्र में बंधा और इसके लिए उसने सम्पूर्ण उत्तरी भारत, उत्तरी-पूर्वी भारत तथा दक्षिण के एक बड़े भू-भाग पर सैन्य अभियान किया और इस सैन्य अभियान से प्राप्त किये गए विशाल साम्राज्य पर अकबर ने एक समान प्रशासन,एक समान न्याय,एक समान मुद्रा तथा एक समान केंद्रीय शासन स्थापित किया और जनता के बीच मौन रूप से ही सही “हम एक है” की भावना को विकसित किया। इसके लिए उसने राजपूतो का सम्मान करके उनसे वफादारी को प्राप्त किया। तथा धर्म की छांव में बढ़ने वाले अफगानों, पठानों तथा तुर्को से युद्ध करके उनकी सत्ता को विनष्ट किया तथा स्वयं विदेशी होते हुए भी उसने अपने आप को इसी मात्र-भूमि का शिशु होने का तर्क दिया। इसीलिए उसने देश को विदेशी मुसलमानों की धन लोलुप निगाहों से रक्षा करके देशी मुसलमानों एवं देश की शेष जनता को महत्व दिया। इस प्रकार हिन्दू और मुस्लिम भेदभाव को काफी हद तक समाप्त करके उसने विदेशियों की आर्थिक दोहन की सोच को रोक दिया।

2 धार्मिक एकता – धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय नीति

भारत को एक प्रबल राष्ट्र बनाने के लिए दूसरी आवश्यकता थी,धार्मिक एकता की। इसके लिए उसने भारत के विभन्न धर्मो में एकत्व का बीज उत्पन्न करने के लिए इस्लाम को राजधर्म मनाने से मन कर दिया और राज्य तथा धर्म को एक दूसरे का विरोधी बताया, वैसे तो इसके पूर्व मुहम्मद बिन तुगलक और अलाउद्दीन खिलजी ने सियासत एवं इमामत के प्रश्न को एक दूसरे से भिन्न आवश्यक बताया था। परन्तु वे इसे व्यवहारिक धरातल पर लाने में असफल रहे। परन्तु अकबर ने पूर्णतः तो नही अंशतः हकीकत की जमी पर लाकर धर्म एवं धर्म,व्यक्ति एवं व्यक्ति के बीच होने वाले संघर्ष को समाप्त कर दिया। और सब पर समान शासन लागू करने के लिए एक समान व्यवहार संहिता को लागू किया। जिसे आधुनिक भारतीय सरकार भी अभी तक लागू न कर सकी। इस प्रकार अकबर मुस्लिम तो आवश्य था परन्तु वह मुसलमानों का नही साम्राज्य के समस्त मानव के कल्याण की भवना से प्रेरित था। और इसी कारण उसने धर्म के आधार पर नही अपितु योग्यता के आधार ही पदों का वितरण किया। इसके अतिरिक्त मानव एवं मानव में अंतर उतपन्न करने वाले दो करो “तीर्थ यात्रा कर” एवं जजिया कर को वसूलने से मना कर दिया तथा जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने वालो को कठोर दण्ड दिए जाने का विधान भी लाया। जबकि इसके पूर्व के शासकों द्वारा इस्लाम धर्म का प्रचार कारना, विधर्मियो को इस्लाम मे परिवर्तित करना,कुरान एवं इस्लाम धर्म को सम्मानित करना आदि कार्यो को करना शासक का धर्म माना जाता था। लेकिन अकबर ने इसे अमानवीय एवं बर्बर कह कर छोड़ दिये जाने का निर्देश जारी किया। यही कारण था कि किसी भी राजकुमारी से विवाह उसकी स्वेच्छा प्राप्त करने के बाद ही किया। तथा हिन्दू रानियों के सम्मान को बनाये रखने के लिए अकबर ने उनके व्यक्तिगत जीवन में किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नही किया। तथा राजमहल के मन्दिर से पुजारियों एवं मस्जिद में मुल्ला की आवाज एक साथ सुनाई गई। इस प्रकार अकबर ने जिस सामंजस्य को स्थापित किया था उसी जे परिणामस्वरूप कल तक इस्लाम का कट्टर विरोधी राजपूत वर्ग  आज उसका वफादार बन गया। इसी वफादारी के परिणामस्वरूप अकबर ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया और इस विशाल साम्राज्य में शासन धर्मनिरपेक्षता के आधार पर संचालित किया था।

3 सामाजिक सुधार – मानवीय एकता का विकास

सामाजिक एकता एवं मानव के उत्थान के लिए उसने दोनो ही धर्मो की कुरीतियों पर कठोर प्रहार किए उसने हिन्दुओ में प्रचलित सती प्रथा, बाल विवाह,आदि पर प्रतिबंध आरोपित किये तथा हिन्दू धर्म के विद्वानों से इन्हे बनाये रखने की वास्तविकता पर बहस किया तथा अंतरजातीय विवाह एवं विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए अनुरोध किया। मुसलमानों के कर्मकांडो पर भी प्रहार करते हुए उसने दाड़ी रखने, गौ मांस भक्षण,हज यात्रा तथा खतना पर प्रतिबंध लगाने के लिए विचार विमर्श किये। खतना को छोड़कर उसने मुस्लिम प्रथाओं पर प्रतिबंध आरोपित कर दिए तथा खतना को स्वैच्छिक बनाने के लिये उसने उसकी निम्नतम आयु 12 वर्ष निर्धारित कर दिया।

 इस प्रकार हम देखते है की अकबर ने  किसी भी धर्म पर प्रहार किसी धार्मिक विचार से प्रेरित होकर नही अपितु उनके व्यवहारिक होने वाले कर्मकांडों के दृष्टिकोण से किये थे। यदि उसने ईद और मोहर्रम में समान रूप से भागीदारी किया तो दशहरा, होली,दीपावली,जन्माष्टमी, और रक्षा बंधन जैसे त्यौहार उसकी श्रद्धा और भक्ति के परिणाम थे।

Must Read It: अकबर की मनसबदारी व्यवस्था – विशेषताएँ, दोष और आलोचनात्मक मूल्यांकन /Akbar’s Mansabdari System – Features, Drawbacks, and Critical Evaluation

4 सांस्कृतिक एकता – भारतीय संस्कृति का संगम

 साहित्य के क्षेत्र में फ़ारसी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया तथा फ़ारसी को सांप्रदायिकता के कुहासे (प्रभाव) से बहार निकालकर इसी भाषा मे महाभारत, रामायण, गीता, बाइबिल, कुरान, अथर्ववेद, उपनिषद, आदि अनेक साहित्यों का अनुवाद करवाया। कुरान एवं बाइबिल सबके लिए सुलभ हो सके और सभी उसके सत्य को जान सके। इसिलिए उसने कुरान को संस्कृत भाषा मे भी अनुवाद करवाया। बहुसंख्यक समाज की भाषा हिंदी का विकास हो सके और सामान्य जन इससे लाभान्वित हो सके,इसिलिए हिंदी में इतिहास एवं गजल तथा कविताओं की रचना की गई, जिसके कारण यह काल हिंदी भाषा के स्वर्ण युग के नाम से जाना जाता है।

इस्लाम के प्रतिबंध के बावजूद भी उसने  चित्रकारिता को प्रश्रय दिया और तर्क दिया कि चित्रकार और कलाकार ईश्वर के सबसे अधिक करीब होते है। स्थापत्यकला में अकबर का दृष्टिकोण अलाउद्दीन खिलजी की वेदाग इस्लामिक रचनाओ को करने में नही रहा। उसने अपने स्थापत्य में गुजरात, बंगाल, दक्षिण भारत, (विजयनगर एवं बहमनी राज्यो), ईरान,इराक, यूरोप तथा हिन्दू कला कृतियों की विशेषताओं को समाहित किया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय स्थापत्य कला अत्यधिक विकसित हो सकी।

5 आर्थिक एकता – मजबूत राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था

भारत को प्रबल राष्ट्र बनाने के लिए पांचवी आवश्यकता आर्थिक एकता की थी। अकबर ने इस दिशा में भी मत्वपूर्ण प्रयास किये। व्यवसाय और व्यापार को नियंत्रित कर उसने देश की आर्थिक समृद्धि का मार्ग खोल दिया। उसने राजा टोडरमल से देश की समस्त भूमि की माप कराकर एक निश्चित लगान निर्धारित किया। उद्योग-धंधों को भी उसने प्रोत्साहित किया। जिसके फलस्वरूप देश विकास और समृद्धि की चरम सीमा पर पहुँचकर विदेशी यात्रियों और दूतो की आँखों मे चकाचौंध पैदा करने लगा।

 निष्कर्ष

 उपर्युक्त योगदान के कारण ही अकबर को राष्ट्रीय शासक कहा जाता है। परन्तु उसे अपने प्रयत्न में पूर्णतः सफलता न मिल सकी,जिसकी भारत अपेक्षा कर रहा था। परन्तु यह आवश्यक है कि अपने युग मे उसने हिन्दू और मुसलमानों को  एक करने में अवश्य ही सफलता प्राप्त किया था। अतः राष्ट पितामाह कहकर अकबर महान के प्रति एक सच्ची आस्था को अर्पित किया जा सकता है. एच0 जी0 वेल्स ने एक राष्ट्र निर्माता के रूप में अकबर की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि “यह भारत का प्रथम सम्राट था, जिसने सबसे पहले यह निश्चय किया कि मेरा साम्राज्य न मुसलमानों का होगा,न हिन्दुओ का,न द्रविड़ों का,मेरा साम्राज्य भारतीय होगा।”

FAQ / PAQ (People Also Ask)/ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. क्या अकबर को राष्ट्रीय शासक कहना उचित है?

उत्तर: हाँ, अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार अकबर को राष्ट्रीय शासक कहना बिल्कुल उचित है। उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि भारत के विविध धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समूहों को एक साझा पहचान देने का प्रयास भी किया। उसके शासनकाल में एक ऐसी प्रशासनिक और सांस्कृतिक नीति विकसित हुई जिसने साम्राज्य की सीमाओं से आगे जाकर “राष्ट्र” की भावना को जन्म दिया। धार्मिक सहिष्णुता, सबको साथ लेकर चलने की नीति, एकसमान प्रशासनिक तंत्र और सांस्कृतिक एकता—इन सब पहलुओं ने उसे एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाला सम्राट सिद्ध किया।

Q2. अकबर की वह कौन-सी नीति थी जिसने राष्ट्रीय एकता की मजबूत नींव रखी?

उत्तर: अकबर की सुलह-ए-कुल नीति उसकी राष्ट्रीय विचारधारा का केंद्रीय आधार थी। यह नीति सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और सहिष्णुता की भावना पर आधारित थी। इसके अतिरिक्त उसकी राजपूत नीति—जिसमें सम्मान, विवाह-संबंध और प्रशासन में सहभागिता को बढ़ावा दिया गया—ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की। इन दोनों नीतियों ने मिलकर उसके शासन को एक बहुसांस्कृतिक और समावेशी स्वरूप दिया, जिससे भारत में राष्ट्रीय एकता की मजबूती स्थापित हुई।

Q3. अकबर ने जज़िया कर समाप्त क्यों किया?

उत्तर: जज़िया कर को समाप्त करने का अकबर का निर्णय उसकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति का स्पष्ट उदाहरण था। जज़िया केवल गैर-मुसलमानों पर लगाया जाने वाला कर था, जो सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देता था। अकबर ने इसे खत्म करके सभी धार्मिक समुदायों को समान अधिकार और सम्मान देने का संदेश दिया। इस निर्णय से न केवल हिंदू-मुस्लिम संबंध बेहतर हुए, बल्कि जन समर्थन और राज्य की आंतरिक एकता भी मजबूत हुई।

Q4. अकबर की आर्थिक एकता का प्रमुख आधार क्या था?

उत्तर: अकबर की आर्थिक एकता का आधार राजा टोडरमल द्वारा लागू की गई मानक एवं वैज्ञानिक लगान व्यवस्था थी। इस व्यवस्था के तहत भूमि का सर्वेक्षण, फसल के औसत उत्पादन का आकलन और उचित कर निर्धारण की प्रक्रिया शुरू हुई। पूरे साम्राज्य में एक समान कर प्रणाली लागू होने से आर्थिक स्थिरता, राजस्व वृद्धि और प्रशासनिक सुगमता बढ़ी। इस सुधार ने जनजीवन को भी प्रभावित किया और आर्थिक रूप से पूरे साम्राज्य को एकीकृत किया।

Q5. राष्ट्रीय शासक के रूप में अकबर कितना सफल रहा?

उत्तर: राष्ट्रीय दृष्टि से अकबर काफी हद तक सफल रहा। उसने न केवल साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि विविध समुदायों को एक साझा ढाँचे में जोड़ने में भी अहम भूमिका निभाई। उसकी नीतियाँ—चाहे धार्मिक हों, सामाजिक, सांस्कृतिक या प्रशासनिक—सभी का लक्ष्य स्थायी शांति, एकता और सहयोग था।
हालाँकि, यह भी सच है कि उसकी मृत्यु के बाद कई नीतियाँ कमजोर पड़ गईं, जिससे यह राष्ट्रीय एकता लंबे समय तक स्थायी रूप में कायम नहीं रह सकी। फिर भी उसके प्रयासों ने भारतीय उपमहाद्वीप की राष्ट्रीय चेतना को एक नई दिशा दी, जो इतिहास में हमेशा याद की जाती है।

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