अकबर की राजपूत नीति: कारण, क्रियान्वयन एवं परिणाम(UPSC, NET, TGT, PGT, University Exams हेतु उपयोगी नोट्स)

अकबर की राजपूत नीति मुगल शासन की सबसे प्रभावशाली और सफल नीतियों में गिनी जाती है। इस नीति ने न केवल साम्राज्य को स्थिरता दी, बल्कि हिंदू-मुस्लिम संबंधों में नई सांस्कृतिक सौहार्द की राह भी खोली।

परिचय (Introduction)

अकबर एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। वह भारत को एक विशाल साम्राज्य के रूप में संगठित करना चाहता था। उसने आरम्भ से ही समंझ लिया था कि बिना हिन्दुओ का सहयोग लिए अपने राज्याधिकार को सुरक्षित रखना तथा अपने राजवंश को आगे बढ़ाना कठिन है। हिन्दुओ में से विशेषतः राजपूत जाति का सहयोग प्राप्त करना उसके लिए आवश्यक था, क्योकि उसको यह मालूम था कि राजपूतो के सहयोग के अभाव में ही उसके पिता हुमायूँ को भारत छोड़कर भागना पड़ा था। अतः अकबर ने अपनी दूरदर्शिता से इस तथ्य को अपने ह्र्दय में समाहित किया जिसे समंझने में उसके पूर्वजो ने भूल की थी। उसने यह भली भांति समंझ लिया था कि राजपूतो के ऊपर जिनके अधिकार में विस्तृत भू-प्रदेश है, असंख्य सैनिक दल है, जो अपनी बात के पक्के है तथा अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध है, विश्वास किया जा सकता है और उन्हें मित्र बनाया जा सकता है। फलतः उसने राजपूतो का सहयोग प्राप्त करने का निश्चय किया। इस प्रकार अकबर की राजपूत नीति निर्माण के लिए निम्नलिखित कारणों को देखा जा सकता है।

अकबर की राजपूत नीति अपनाने के प्रमुख कारण

(1) अकबर का विश्वास था कि हिन्दू प्रधान देश में बिना राजपूतो के सहयोग से स्थाई राज्य स्थापित करना सम्भव नही है।

(2) अकबर अपने स्वार्थी मुस्लिम सरदारों के विद्रोह से चिन्तित था अतः वह साम्राज्य को सुरक्षित रखने हेतु राजपूतो का सहयोग प्राप्त करना चाहता था।

(3)  राजपूत एक साहसी, पराक्रमी और सूरवीर जाति थी। अतः अकबर इस जाति का सहयोग प्राप्त करना चाहता था।

(4) अकबर अफगानों के बढ़ते प्रभाव से भी चिन्तित था।

(5)  अकबर साम्राज्यवादी नीति की सफलता के लिये राजपूत-मैत्री संबंध अनिर्वाय मानता था।

(6)  अकबर भारत मे राष्ट्रीय राज्य की स्थापना करना चाहता था, जो हिन्दू-मुस्लिम हितो पर आधारित हो।

अकबर की राजपूत नीति के मुख्य तत्व (Implementation)

राजपूत नीति को क्रियान्वित करने के अकबर के कार्य—  अकबर की राजपूत नीति को स्पष्ट रूप से समंझने के लिए उसे निम्नलिखित सन्दर्भो के अंतर्गत देखा जा सकता है–

(a) वैवाहिक संबंध स्थापित करना

राजपूतो से घनिष्ठ संबंध स्थापित करने के लिए अकबर ने अनेक राजपूत वंशो की राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध स्थापित किये। सर्वप्रथम अकबर ने आमेर के राजा भारमल की पुत्री से 1561 में विवाह किया। उसके पश्चात जैसलमेर तथा बीकानेर के राजवंशो के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये।

(b)  उच्च प्रशासनिक पद प्रदान करना

अकबर ने राजपूतो को तथा अन्य हिन्दुओ को प्रत्येक विभाग में उच्च तथा विश्वसनीय पद प्रदान किये। भारमल, भगवानदास, मानसिंह, कल्याणमल आदि को उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। आईने अकबरी के अनुसार अकबर कालीन 51 मनसबदारों में 17 राजपूत थे।

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(c)  धार्मिक सहिष्णुता और सम्मान

पूर्व मध्यकालीन सुल्तानों की भांति अकबर ने हिन्दुओ के प्रति संकीर्ण तथा अनुदार नीति नही अपनाई, बल्कि उसने हिन्दुओ को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान कर दी। उसने अपनी हिन्दू रानियों को भी हिन्दू जीवन बिताने तथा पूजा-पाठ करने की स्वतंत्रता दे दी। हिन्दुओ पर लगाने वाले जजिया कर (1564 ई0) तथा तीर्थ यात्रा कर (1563 ई0) व अन्य धार्मिक करो को समाप्त कर दिया गया। मन्दिरो को नष्ट किया जाना बंद कर दिया गया। सम्राट ने अनेक हिन्दू रीति-रिवाजों को ग्रहण कर लिया। उसने हिन्दुओ के त्यौहारों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार हिन्दू परम्पराओ को अपनाकर वह हिन्दुओ को ओर निकट लाने में सफल हुआ।

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(d) अधीनता न मानने वाले राजपूतों के विरुद्ध युद्ध

जिन राजपूत राजाओं ने अकबर की अधीनता स्वीकार नही की, उन राजपूत राजाओं के साथ उसने आक्रमणात्मक नीति अपनाई। सर्वप्रथम अकबर ने 1562 ई0 में मेड़ता, 1569 ई0 में रणथम्भौर का दमन किया। 1568 ई0 को चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।  21जून 1576 ई0 में लड़े गये प्रसिद्ध हल्दी घाटी के युद्ध के बाद भी वह मेवाड़ शासक महाराणा प्रताप की शक्ति को नही कुचल सका।

(e) अभयदान और आंतरिक स्वायत्तता

यद्यपि अकबर ने राजपूत शासको को आंतरिक दृष्टि से अधीन बनाया। ये वे शासक थे जिन्होंने अपने को निर्बल समंझकर बिना युद्ध किये मुगल सम्राट की अधीनता स्वीकार कर ली। इन शासको के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया गया। उसने अधीनस्थ राजपूत शसको की सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परम्पराओ को नष्ट करने का प्रयास नही किया।

राजपूत नीति के सकारात्मक परिणाम

अकबर की राजपूत नीति के परिणाम बड़े ही व्यापक एवं महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। अकबर के शासनकाल में जो राजनीतिक, प्रशासनिक, सैनिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा कलात्मक उन्नति हुई, उसमे इन्होंने यथेष्ठ योगदान दिया। संक्षेप में अकबर की राजपूत नीति के परिणामो को निम्नलिखित सन्दर्भो के अंतर्गत देखा जा सकता है—-

(1)  राजपूत मुगल राज्य के दृढ़ स्तम्भ

राजपूत वर्ग जो आज तक मध्यकालीन मुसलमानों का सबसे प्रबल शत्रु एवं विरोधी था। अब यही वर्ग मुगल साम्राज्य के दृढ़ स्तम्भ बन गये। वे मुगल साम्राज्य के शुभ चिंतक और हितैषी बन गये।

(2)  अकबर की सैनिक शक्ति में वृद्धि

राजपूतो के सेना में भर्ती होने से मुगल साम्राज्य की सैनिक शक्ति में अत्यधिक वृद्धि हो गई और मुंगलो को पूर्व तथा सुदूर दक्षिण तक अपना साम्राज्य विस्तार करने में सफलता प्राप्त हुई। उसने अनेक मुसलमान राजाओ के विरुद्ध तथा राजपूत राज्यो के विरुद्ध भी राजपूत राजाओं का प्रयोग किया। इस प्रकार अकबर ने राजपूतो की तलवार से ही राजपूत राजाओं को परास्त किया। राजपूतो की शक्ति के द्वारा वह विदेशी अमीरो पर भी नियंत्रण रखने में सफल हुआ।

(3)  हिन्दू,-मुस्लिम संस्कृति का समन्वय

अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति के फलस्वरूप हिन्दू और मुस्लिम दोनो ही वर्गो के लोग एक दूसरे के निकट आये और उनमे व्याप्त कटुता दूर हुई। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम संस्कृतियों का समन्वय स्थापित हुआ।

(4)  सांस्कृतिक परिणाम

अकबर को हिन्दुओ का सहयोग और समर्थन प्राप्त होने के कारण साम्राज्य में शांति व्यवस्था स्थापित हुई। जिससे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में बहुमुखी विकास हुआ।

राजपूत नीति के साकारात्मक पक्ष

 अगर अकबर की राजपूत नीति का ठीक प्रकार से अवलोकन किया जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि मुगल-राजपूत संबंध दोनो पक्षो के दृष्टिकोण से लाभदायक रहे। जहाँ एक ओर अकबर को ईमानदार और साहसी राजपूत योद्धाओं की सेवाएं प्राप्त हुई, जिससे अकबर आन्तरिक विद्रोह को कुचलने तथा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल रहा। वही दूसरी ओर राजपूतो को भी कई लाभ हुए। उन्हें महत्वपूर्ण प्रशासनिक व सैनिक पदों पर नियुक्त किया गया, तथा उनके आंतरिक मामलों में स्वायत्तता (स्वतंत्रता) भी दी गई। मुगल-राजपूत संबंधों की प्रगाढता (मजबूती) ने हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के एकीकरण का मार्ग भी प्रशस्त कर दिया। परिणामस्वरूप वेश-भूषा, खान-पान, रीति-रिवाज, स्थापत्य कला, चित्रकला एवं संगीत कला के क्षेत्र में समन्वित संस्कृति का विकास हुआ।

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राजपूत नीति के नाकारात्मक पक्ष

 अकबर की राजपूत नीति में एकतफ़ा वैवाहिक संबंधों पर ही बल दिया गया था। अकबर ने तो कई राजपूत कन्याओं से विवाह किए, किन्तु राजपूतो के यहाँ मुस्लिम कन्याओं का विवाह नही किया गया। साथ ही मुगल-राजपूत संबंध सूक्ष्म संतुलन पर आधारित था, जिसमे किसी भी पक्ष के स्वाभिमान या प्रतिष्ठा पर जरा सी भी चोट लगने पर संबंधों में कड़वाहट आ जाती थी।

निष्कर्ष (Conclusion)

अकबर की उदार और व्यवहारिक राजपूत नीति ने भारत की राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक सामंजस्य और सांस्कृतिक विकास को नई दिशा दी। राजपूत शक्तियों को शत्रु मानकर दबाने की बजाय, उसने सम्मान और सहयोग के आधार पर उन्हें अपना विश्वसनीय साथी बनाया। इस सहयोग ने मुगल शासन को न केवल मजबूती प्रदान की, बल्कि विशाल क्षेत्रों में विस्तार तथा व्यापक राष्ट्रीय एकता की भावना को भी बढ़ावा दिया। इसी कारण अकबर की यह नीति उसके शासनकाल की सबसे प्रभावशाली और ऐतिहासिक उपलब्धियों में गिनी जाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. अकबर की राजपूत नीति का मुख्य उद्देश्य क्या था?

उत्तर: अकबर की राजपूत नीति का सबसे बड़ा लक्ष्य यह था कि वह राजपूत राज्यों का विश्वास और सहयोग प्राप्त करके पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में एक स्थिर, शांतिपूर्ण और दीर्घकालिक साम्राज्य स्थापित कर सके। अकबर समझता था कि राजपूत शक्तियों को साथ लिए बिना प्रशासनिक और सैन्य स्तर पर मजबूत आधार बनाना संभव नहीं है। इसलिए उसने कूटनीति, वैवाहिक संबंधों और सम्मानजनक व्यवहार के माध्यम से उन्हें अपने शासन का अभिन्न हिस्सा बनाया।

Q2. अकबर ने सबसे पहले किस राजपूत राजकुमारी से विवाह किया?

उत्तर: अकबर ने अपना पहला राजपूत वैवाहिक संबंध 1561 ई. में आमेर के राजा भारमल की पुत्री से स्थापित किया। यह विवाह केवल व्यक्तिगत संबंध नहीं था, बल्कि मुगल और राजपूतों के बीच विश्वास, सम्मान और राजनीतिक सहयोग की एक नई शुरुआत भी था। इस रिश्ते ने आगे चलकर कई अन्य राजपूत घरानों को भी अकबर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

Q3. हल्दीघाटी का युद्ध कब और किसके बीच हुआ?

उत्तर: प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 ई. को लड़ा गया था। यह संघर्ष मेवाड़ के वीर शासक महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर की सेना के बीच हुआ, जिसका नेतृत्व उनके विश्वसनीय सेनापति राजा मानसिंह कर रहे थे। यह युद्ध भले ही निर्णायक परिणाम न दे सका हो, लेकिन वीरता, स्वाभिमान और संघर्ष की भावना के कारण इतिहास में विशेष स्थान रखता है।

Q4. जज़िया कर कब और किसने हटाया?

उत्तर: अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता और समानता की अपनी नीति को आगे बढ़ाते हुए 1564 ई. में जज़िया कर को समाप्त कर दिया। यह कर गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था। इसे हटाने से अकबर ने यह संदेश दिया कि उसके शासन में सभी प्रजा—चाहे किसी भी धर्म की हो—समान रूप से सुरक्षित और सम्मानित है। इस कदम ने उसकी लोकप्रियता को और बढ़ाया।

Q5. अकबर की राजपूत नीति का प्रमुख परिणाम क्या रहा?

उत्तर: अकबर की राजपूत नीति का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह रहा कि राजपूत मुगल साम्राज्य के मजबूत सहयोगी और आधार स्तंभ बनकर उभरे। उनके सहयोग से साम्राज्य का विस्तार, प्रशासनिक स्थिरता और सैन्य शक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। साथ ही, इस नीति ने हिंदू-मुस्लिम संस्कृति के बीच समन्वय, सह-अस्तित्व और आपसी सम्मान की नई परंपरा को जन्म दिया, जिसने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा।

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