औरंगज़ेब की धार्मिक नीति | हिन्दू विरोधी नीति और उसके परिणाम

मुगल इतिहास में औरंगज़ेब की धार्मिक नीति सबसे अधिक चर्चा और विवाद का विषय रही है। उसकी नीतियों में धार्मिक कठोरता, जज़िया कर की पुन: शुरुआत, कई मंदिरों का ध्वंस, तथा हिन्दू समुदाय पर लगाए गए कुछ सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंध शामिल थे। इन्हीं कारणों से उसकी नीति को अक्सर हिन्दू-विरोधी दृष्टिकोण के रूप में भी देखा जाता है। इन निर्णयों के परिणामस्वरूप जाटों, सतनामियों, सिखों, बुंदेलों और मराठों जैसे कई समूहों ने विद्रोह का झंडा उठाया, जिससे मुगल सत्ता क्रमशः कमजोर होती चली गई। प्रस्तुत लेख में इन नीतियों के उद्देश्यों, उनके क्रियान्वयन और प्रभावों को सरल तथा महत्वपूर्ण बिंदुओं में समझाया गया है।

भारतीय इतिहास में जहाँ अकबर अपनी धार्मिक उदारता तथा सहिष्णुता के लिए विख्यात है, वहीं औरंगजेब अपनी धार्मिक कट्टरता तथा असहिष्णुता के लिये विख्यात है। उसकी धार्मिक नीति इस्लामी आचार-विचारों पर आधारित थी। उसका व्यक्तिगत जीवन भी धार्मिकता से ओत-प्रोत था। वह धार्मिक कृत्यों का पूर्णता से पालन करता था। वह काफिरों (हिन्दुओ) के देश को मुस्लिम देश बनाना चाहता था। उसका राज्य एक धार्मिक राज्य था। उसने अपनी धार्मिक कट्टरता के लिए भीषण रक्तपात भी किये। उसने हिन्दुओ पर धार्मिक दृष्टि से अनेक अत्याचार भी किये। और उन पर अनुचित कर भी लगाए। वह हिंदुओं का कट्टर विरोधी था इसिलिए उसकी धार्मिक नीति को “हिन्दू विरोधी नीति” भी कहा जाता है। इस्लाम धर्म के विस्तार के लिए उसने अनेक कार्य किये और हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए कोई उपाय नही छोड़ा, जिसका वर्णन हम अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से निम्नलिखित सन्दर्भो के अंतर्गत कर सकते है—-

औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियाँ

1 कर नीति में परिवर्तन

उसने जजिया, जकात, खिराज, तथा ख़ुम्श नामक चार करो को छोड़कर लगभग सभी करो को बन्द कर दिया।

2 धार्मिक प्रतीकों पर नियंत्रण

उसने सिक्को पर से कलमा लिखने की प्रथा को बंद करवा दिया क्योंकि सिक्के, विधर्मियों के हाथ मे चले जाने से उसके अपवित्र हो जाने का भय था।

3 सामाजिक-धार्मिक प्रतिबंध

औरंगजेब मादक पदार्थो जैसे शराब, एवं भांग पर भी प्रतिबंध लगा दिया। उसने नौरोज उत्सव पर भी प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि यह शरीयत के अनुसार नही था। झरोखा दर्शन की प्रथा भी बंद कर दी गई। तुलादान की प्रथा बन्द कर दी गई। दरबार मे गाना-बजाना, नृत्य आदि पर प्रतिबंध लगा दिए गए और संगीत के प्रसार पर भी निषेध लागू कर दिया गया। दरबार से सभी संगीतज्ञ निकाल दिए गए क्योंकि संगीत भी शरीयत के विरूद्ध था। पुरानी मस्जिदों की मरमम्मत कराई गई। स्त्रियों को मजारो और पीरो की पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वैश्यावृत्ति पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन इसके लिए कोई कठोर नियम न बनाया जा सका। उसने इस्लाम के प्रचार के लिए मुहतसिब नामक पदाधिकारी नियुक्त किये। उनका कार्य लोगो के नैतिक जीवन को ऊचां उठाना तथा उन्हें कुरान के नियमो के अनुसार बनाना था। उसने रेशमी व सुनहले कपड़ो को पहनने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। वह स्वयं फकीरो की भांति जीवन-यापन करता था।

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हिन्दू समाज के प्रति औरंगज़ेब की नीतियाँ

हिन्दू समाज के प्रति औरंगज़ेब की नीति का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है—–

1. मंदिर विध्वंस

औरंगजेब ने अपनी धार्मिक नीति के अंतर्गत हिन्दुओ के मंदिरों को नष्ट करने की नीति को अपनाया, जो उसकी हिन्दू विरोधी नीति का एक अंग थी। उसने 1669 ई0 में आदेश जारी किया कि हिन्दुओ के सभी मन्दिरो को नष्ट कर दिया जाय। उसके इस आदेश के अनुसार सोमनाथ मन्दिर (गुजरात), बनारस के विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा का केशवराय मन्दिर आदि नष्ट कर दिए गए और उनके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण किया गया। इतना ही नही अब हिन्दुओ को नये मन्दिरो के निर्माण की भी आज्ञा नही थी।

2. जज़िया कर

हिन्दुओ और मुसलमानों के मध्य भेदभाव उत्पन्न करने वाले इस कर को अकबर ने घृणित कर समंझकर बन्द कर दिया था। औरंगजेब ने इस कर को पुनः लागू कर दिया। यह कर मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओ से वसूल किया जाता था। जब हिन्दुओ ने इसका विरोध किया तो उन्हें हाथी के पैरों के तले कुचलवा दिया अर्थात उन पर अत्याचार किया जाता था। इसकी वसूली कठोरता से की जाती थी, जो हिन्दू इसे चुकाने में असमर्थ होते थे वे मजबूरन इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेते थे। समकालीन इतिहासकार मनूची के अनुसार “ऐसे अनेको हिन्दू जो यह कर नही दे सकते थे, इस कार के वसूल करने वालो द्वारा किये गए अपमानों से छुटकारा पाने के लिये मुसलमान हो गए।”

3. सरकारी नौकरियों से हटाना

1679 ई0 में औरंगजेब के आदेशानुसार हिन्दुओ को नौकरी से निकल दिया गया। उसने उनके स्थान पर मुसलमानों को नियुक्त किया, उन्ही पदों पर हिन्दुओ को रहने दिया गया जिनके लिए मुसलमान उपलब्ध नही थे। उसके शासन काल मे कानूनगो बनने लिये मुसलमान बनाना एक लोकप्रिय कहावत हो गई थी।

4. सामाजिक भेदभाव

औरंगजेब ने अपनी हिन्दू विरोधी नीति का विस्तार करते हुए उन्हें सामाजिक समानता के अधिकार से भी वंचित कर दिया। उसने हिन्दुओ के त्यौहारों जैसे दशहरा, होली तथा दीवाली आदि पर भी प्रतिबंध लगा दिए, इसके साथ ही साथ तीर्थ स्थानों पर मेला लगाने, हिन्दुओ को हाथी, घोड़ा और पालकी पर बैठने आदि अधिकरो से भी वंचित कर दिया गया।

औरंगजेब ने हिन्दुओ के साथ आर्थिक रूप सभी भेदभाव की नीति लागू की, उसने मुसलमानों से चुंगी कर विल्कुल समाप्त कर दिया जबकि हिन्दुओ से 5% कर लिया जाता था।

5. इस्लाम स्वीकार करने को प्रोत्साहन

उसने हिन्दुओ को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिये उन्हें अनेक प्रकार से प्रोत्साहित किया गया। इस्लाम धर्म स्वीकार करने वाले को उच्च पद प्रदान किया जाना, कैदी को छोड़ देना और जो इस्लाम स्वीकार करता था उसे राज्य की ओर से अनेक सुविधाएं दी जाती थी।

औरंगजेब ने बहुत से हिन्दुओ को बलपूर्वक मुसलमान बनाया। गोकुल के जाट के सम्पूर्ण परिवार को बलपूर्वक मुसलमान बना लिया  गया था।

औरंगज़ेब की धार्मिक नीति के परिणाम

औरंगजेब द्वारा किये गए उपर्युक्त सभी कार्य इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये किये गए थे क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य भारत को दारुल इस्लाम बनाने का था।औरंगजेब की धार्मिक नीति का परिणाम मुगल साम्राज्य के लिए अहितकारी सिद्ध हुआ।  औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणामो को हम निम्नलिखित शीर्षकों में उल्लेखित कर सकते हैं—-

1. आर्थिक परिणाम

औरंगजेब की धार्मिक नीति का अर्थिक क्षेत्र में यह परिणाम हुआ कि राज्य की आय बहुत कम हो गई। क्योंकि मुसलमान करो से मुक्त कर दिये गये थे। हिन्दुओ को सरकारी नौकरियो से वंचित करने के कारण उनमे बेकारी फैल गयी थी। अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण बहुत से हिन्दू दक्षिणी भारत चले गये, इससे भी राज्य की आर्थिक अवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। 

2. राजनीतिक परिणाम

औरंगजेब ने अपनी हिन्दू-विरोधी नीति के कारण उनको अपना कट्टर शत्रु बना लिया, जिसके परिणामस्वरूप साम्राज्य में चारो ओर विद्रोह हुए। संक्षेप में इन विद्रोह का वर्णन इस प्रकार से किया जा सकता है—-

(a)  मथुरा के जाट कृषको का विद्रोह: औरंगजेब की धार्मिक कट्टर नीति के कारण पहले मथुरा के जाटो ने विद्रोह किया और उन्होंने गोकुल के नेतृत्व में मुगल अधिकारी अब्दुल नवी की हत्या कर दी,क्योकि उसने अनेक मन्दिरो को नष्ट कर दिया था, हिन्दू कन्याओं का अपहरण करता था। गोकुल के विद्रोह को दबाने के लिए औरंगजेब ने सेना भेजी, गोकुल पराजित और मारा गया। फिर भी जाट विद्रोह चलता रहा, जिसका नेतृत्व राजाराम ने किया। उसकी भी हत्या कर दी गई। राजाराम के बाद उसके भतीजे चूड़ामन ने जाट विद्रोह का नेतृत्व किया और संघर्ष चलता रहा। औरंगजेब इस विद्रोह को दबा न सका।
(b)  सतनामी विद्रोह:  सतनामी सम्प्रदाय के अनुयायी नारनौल में निवास करते थे। यह शांति प्रिय तथा धार्मिक सम्प्रदाय था। एक सतनामी कृषक के प्रति एक मुस्लिम सिपाही ने दुर्व्यवहार किया जिससे पूरा सम्प्रदाय धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गया। उन्होंने मुंगलो के विरुद्ध कई विजय प्राप्त की लेकिन औरंगजेब बड़ी कठिनाई से उनके विद्रोह को दबा सका।

(c)  सिक्खों के संघर्ष: औरंगजेब की धार्मिक नीति का सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर ने प्रबल विरोध किया। जिसे गिरफ्तार करके दिल्ली लाया गया। इस्लाम धर्म न स्वीकार करने के कारण उसका वध कर दिया गया। उसके पुत्र गुरु गोविंद सिंह ने सिक्खों के संघर्ष को जारी रखा। उन्होंने खालसा सम्प्रदाय की नींव डाली। ये मुगलो को जीवन भर टक्कर देते रहे। कालान्तर में किसी अफगान ने उनकी हत्या कर दीं।
(d)  बुन्देलों का विद्रोह: औरंगजेब की धार्मिक नीति से अप्रसन्न बुन्देलों के नेता चम्पतराय ने विद्रोह कर दिया। परन्तु इसका दमन कर दिया गया। बाद में इसने आत्महत्या कर ली। बाद में इसके पुत्र छत्रसाल ने मुगलो से संघर्ष जारी रखा। उसने मुंगलो को कई युद्धों में पराजित किया और पूर्वी मालवा में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 1731 ई0 में उसकी मृत्यु हो गई।

(e) राजपूतो से संघर्ष:  औरंगजेब को अपनी धार्मिक नीति के कारण राजपूतो से भी युद्ध करने पड़े। इसका प्रथम कारण तो जजिया कर का लगाना था और मन्दिरो को तोड़ने से राजपूतो में जो क्रोध फैल रहा था उसे जजिया कर ने विद्रोह का रूप प्रदान कर दिया। इसके साथ ही औरंगजेब मारवाड़ को हड़प कर उसे मुगल साम्राज्य में मिलाने की आशंका भी रखता था। जिससे सभी राजपूतो में सम्राट के प्रति संदेह उत्पन्न हो गया, जिससे राजपूतो ने व्यापक विद्रोह का रूप धारण कर लिया।

(f)  मराठो से संघर्ष:  औरंगजेब की धार्मिक नीति से प्रभावित हुए बिना मराठे भी नही रहे। उन्होंने मराठा सरदार शिवजी के नेतृत्व में मुगलो से संघर्ष जारी रखा। शिवजी की मृत्यु के बाद उनका बेटा शम्भाजी सिंहासन पर बैठा। कालान्तर में औरंगजेब ने उसका वध कर दिया। अन्तिम 25 वर्षो तक औरंगजेब मराठो से बराबर टक्कर लेता रहा। परन्तु स्थाई सफलता न प्राप्त हो सकी और अंत मे मार्च 1707 ई0 को औरंगजेब की मृत्यु हो गया

निष्कर्ष

 उपर्युक्त विवरणों का विश्लेषण करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उसकी हिन्दू-विरोधी नीति के कारण ही जाटों, सतनामियों, सिक्खों, बुन्देलों, राजपूतो तथा मराठों ने विद्रोह किये। सारांश में उसकी हिन्दू-विरोधी नीति उसके तथा मुगल साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण सिद्ध हुई।

FAQs औरंगज़ेब की धार्मिक नीति

Q1. औरंगज़ेब की धार्मिक नीति क्या थी?

उत्तर: औरंगज़ेब की धार्मिक नीति मुख्य रूप से कठोर इस्लामी सिद्धांतों के पालन पर आधारित थी। उसके शासन में गैर-मुस्लिम समुदायों, विशेषकर हिन्दुओं, की धार्मिक गतिविधियों और सामाजिक स्वतंत्रताओं पर कई प्रकार की सीमाएँ लगाई गईं। उसने शरिया-आधारित शासन को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप कर-व्यवस्था, प्रशासनिक फैसलों और सांस्कृतिक जीवन पर धार्मिक कठोरता का सीधा प्रभाव दिखाई देता है।

Q2. औरंगज़ेब ने जज़िया कर क्यों लगाया?

उत्तर: जज़िया कर को औरंगज़ेब ने इस्लामी शासन के पारंपरिक नियमों के तहत पुनः लागू किया था। उसका मानना था कि गैर-मुस्लिम पर यह कर लगाना धार्मिक कर्तव्य का हिस्सा है। हालांकि व्यवहारिक रूप से यह कर हिन्दू प्रजा पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बन गया और इसे शासन द्वारा धार्मिक दबाव के रूप में भी देखा गया, जिससे व्यापक असंतोष फैलने लगा।

Q3. क्या औरंगज़ेब ने सभी मंदिर नष्ट करवाए थे?

उत्तर: ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, औरंगज़ेब द्वारा उसने सभी मंदिरों को ध्वस्त करने का कोई सार्वभौमिक आदेश जारी नहीं किया था लेकिन कुछ प्रमुख और प्रभावशाली मंदिर—जैसे वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा का केशव राय मंदिर—उसकी नीतियों के कारण ध्वस्त किए गए। उसने कुछ मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में भी लिया, जिससे उसकी धार्मिक नीति और अधिक विवादित बन गई।

Q4. औरंगज़ेब की धार्मिक नीति से विद्रोह क्यों बढ़े?

उत्तर: औरंगज़ेब की कठोर धार्मिक नीतियों ने कई राजनैतिक और सामाजिक समुदायों में असंतोष पैदा किया। राजपूत, जाट, सिख, बुंदेला और मराठा जैसे समूहों को लगा कि उनकी पारंपरिक स्वायत्तता, धार्मिक स्वतंत्रता और राजनैतिक अधिकारों को सीमित किया जा रहा है। परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में विद्रोह भड़के, जिन्होंने मुगल शासन की स्थिरता को गंभीर रूप से चुनौती दी।

Q5. औरंगज़ेब की धार्मिक नीति का मुगल साम्राज्य पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: इन नीतियों के दीर्घकालिक प्रभाव मुगल साम्राज्य के लिए अत्यंत हानिकारक साबित हुए। धार्मिक कठोरता और बढ़ते विद्रोहों ने आंतरिक एकता को कमजोर किया, प्रांतीय शक्तियाँ पहले से अधिक स्वतंत्र होती गईं और साम्राज्य की सैन्य एवं प्रशासनिक क्षमता धीरे-धीरे गिरने लगी। अंततः ये सभी कारक मिलकर मुगल साम्राज्य के पतन की दिशा तय करने में निर्णायक सिद्ध हुए।

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