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भारत के इतिहास में औरंगज़ेब की राजपूत नीति को इतिहास में एक अहम परिवर्तन बिंदु माना जाता है। इस नीति ने मुगल–राजपूत संबंधों की दिशा को बदलने के साथ–साथ मुगल साम्राज्य की राजनीतिक स्थिरता, प्रशासनिक व्यवस्था और भविष्य की नीतियों पर भी गहरा प्रभाव डाला। विभिन्न विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों तथा TGT–PGT, NET, UPPSC, SSSC और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में इस विषय से संबंधित प्रश्न सामान्यतः शामिल किए जाते हैं। इसलिए इसका विस्तृत व गहन अध्ययन अत्यंत उपयोगी माना जाता है।

प्रस्तावना – मुगल–राजपूत संबंधों की पृष्ठभूमि
मुगल सम्राट बाबर, हुमायूँ, अकबर व जहाँगीर ने राजपूतो के साथ उदारता की नीति अपनाई थी। अकबर ने राजपूतों के सहयोग से ही विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी। जहाँगीर ने अपने पिता की ही नीति का अनुसरण किया था। शाहजहाँ के समय मे यह सम्बंध कुछ कटु हो चलें थे। लेकिन औरंगजेब के समय मे मुगल-राजपूत संबंध और खराब हो गये। सिंहासन पर बैठते ही उसने अपने पूर्वजों की राजपूत नीति को बिल्कुल बदल दिया।
औरंगजेब की राजपूत नीति में परिवर्तन के कारण
धार्मिक असहिष्णुता
औरंगजेब की राजपूत नीति में परिवर्तन का मुख्य कारण उसकी धार्मिक असहिष्णुता की नीति थी। इसके अतिरिक्त वह राजपूत राज्यो की आंतरिक स्वतंत्रता को समाप्त कर उन्हें पूर्ण रूप से मुगल साम्राज्य में मिलाना चाहता था।
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राजपूत नेतृत्व का अभाव
जब तक राजा जयसिंह और महाराजा जसवंतसिंह जीवित रहे, वह अपनी नीति को कार्यान्वित नही कर सका, किन्तु उनकी मृत्यु के उपरांत उसने राजपूतो के प्रति ऐसी संकीर्णता पूर्ण नीति अपनाई जिसके कारण राजपूतों से उसे युद्ध करना पड़ा। अपनी इस नीति के कारण उसे राजपूतो से अनेक संघर्ष करने पड़े, जिनका उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है—
मारवाड़ के साथ संघर्ष

जसवंत सिंह की मृत्यु और उत्तराधिकार विवाद
मारवाड़ पर औरंगजेब की निगाहें काफी दिनों से गड़ी थी। 20 दिसम्बर 1678 ई0 को जमरूद (अफगानिस्तान) में महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु हो गई। उत्तराधिकार के अभाव में मारवाड़ पर मुगल साम्राज्य का बहुत बड़ा कर्ज होने का आरोप लगाकर इसे खालसा के अंतर्गत कर लिया गया। कालांतर में जसवंत सिंह की विधवा के एक पुत्र हुआ जिसका नाम अजीत सिंह रखा गया। औरंगजेब की शर्त थी कि यदि अजीत सिंह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले तो उसे मारवाड़ के शासक के रुप में मान्यता दे दी जायेगी। लेकिन राजपूतो को यह स्वीकार नहीं था। इस कारण राठौरों और मुगलो के बीच 30 साल के युद्ध की शुरुआत हुई। औरंगजेब जसवंत सिंह के बेटे और उसकी विधवा को अपनी हिरासत में रखना चाहता था।
दुर्गादास का नेतृत्व
राठौर नेता दुर्गादास किसी तरह से अजीत सिंह और जसवंत सिंह की विधवा को साथ लेकर जोधपुर आने में सफल रहा। मारवाड़ के लोगो ने अजीत सिंह को अपना शासक स्वीकार किया। इस पर नाराज होकर औरंगजेब ने राजपूतों को अधीन करने के लिये अपनी शाही सेना भेज दी। औरंगजेब ने खुद अजमेर में डेरा डाला। मुगल सेना ने मारवाड़ की राजधानी जोधपुर पर कब्जा कर लिया और कई मंदिरों को नष्ट कर दिया। दुर्गादास ने संघर्ष जारी रखा और राजपूत अपने कई खोये हुए प्रदेशो को पुनः प्राप्त करने में सफल रहे। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, उसके उत्तराधिकारी बहादुरशाह ने अजीत सिंह को मारवाड़ के एक स्वतंत्र शासक के रूप में मान्यता दी। राजपूत आज भी दुर्गादास के साहस और वीरता का गुणगान करते हुए कहते है “हे माँ दुर्गादास की तरह बेटा पैदा करो।”
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मेवाड़ के साथ संघर्ष

जज़िया कर और राणा राजसिंह
औरंगजेब का मेवाड़ के शासक राणा राज सिंह के साथ भी युद्ध हुआ। औरंगजेब ने उससे जजिया कर देने को कहा। राजसिंह ने जजिया कर देने से मना कर दिया और युद्ध की तैयारी प्रारम्भ कर दी। औरंगजेब ने 1679 ई0 में हसन अली के नेतृत्व में मेवाड़ पर आक्रमण करने का आदेश दिया। इस संघर्ष में दुर्गादास तथा राठौर के सैनिक भी राणा के साथ थे फिर भी राणा पराजित हो गये। मेवाड़ मुगलो के अधिकार में आ गया। शहजादा अकबर को वहां का शासन सौंपा गया। लेकिन कुछ समय बाद राणा राज सिंह ने अकबर को पराजित करने में सफलता प्राप्त कर ली। इसके बाद औरंगजेब ने अपने तीन पुत्रो अकबर, आजम एवं मुअज्जम को मेवाड़ पर तीन ओर से आक्रमण करने का आदेश दिया लेकिन उन्हें आंशिक सफलता ही मिली।
शहज़ादा अकबर का विद्रोह
इस बीच औरंगजेब के पुत्र अकबर ने दुर्गादास के बहकावे में आकर अपने पिता के खिलाफ विद्रोह कर दिया और 11 जनवरी 1681 ई0 में अपने आप को भारत का सम्राट घोषित कर दिया। उस समय अजमेर में औरंगजेब के पास इतने भी सैनिक नही थे कि वह विद्रोही शहजादे को दण्ड दे सके। परन्तु सौभाग्य ही था कि राणा राज सिंह की मृत्यु के कारण अकबर को वह सहयोग प्राप्त नही हो सका जिसकी अपेक्षा से उसने विद्रोह किया था। और औरंगजेब कूटनीति के सहारे दुर्गादास को अकबर से अलग करने में सफल हुआ। राजपूतों के सहयोग के अभाव में अन्ततः अकबर के समर्थक मुगल सम्राट की सेना में मिल गये। अकबर निराश होकर राजपूतो की सहायता से अन्ततः शिवजी के पुत्र शम्भाजी के पास चला गया। यहां से कुछ समय बाद फारस चला गया, जहाँ पर 1704 ई0 में इसकी मृत्यु हो गयी। राणा राजसिंह की मृत्यु के बाद राणा जयसिंह मेवाड़ के शासक हुआ।
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संधि और संघर्ष की निरंतरता
24 जून 1681 ई0 में जयसिंह और औरंगजेब के मध्य संधि सम्पन्न हुई। संधि होने के बावजूद भी मेवाड़ के लोगो ने अगले 30 वर्षो तक संघर्ष जारी रखा। औरंगजेब एक विशाल सेना के साथ दक्षिण चला गया।
औरंगजेब की राजपूत नीति के परिणाम
औरंगजेब की राजपूत नीति मुगल साम्राज्य के लिए अहितकारी सिद्ध हुई। इस नीति के निम्नलिखित परिणाम हुए जो इस प्रकार से है—
(i) मुगल–राजपूत सहयोग का अंत
मुगलो को राजपूतो से कोई सहयोग नही मिला। जो राजपूत अकबर के काल मे मुगल साम्राज्य के सहायक थे, इस काल मे सबसे प्रबल शत्रु बन गये।
(ii) अपार जन–धन की हानि
इन युद्धों में अपार जन–धन की की बहुत हानि हुई।
(iii) शहज़ादा अकबर का विद्रोह
राजपूतो के सहयोग से शहजादा अकबर ने विद्रोह किया, जो औरंगजेब के लिए एक विकेट समस्या बन गई।
(iv) दक्षिण भारत में कठिनाइयाँ
राजपूतों के अभाव मे औरंगजेब को दक्षिण भारत मे बड़ा कष्ट उठाना पड़ा। लेनपूल ने ठीक ही कहा है कि “औरंगजेब को अपनी दाहिनी भुजा खोकर दक्षिण के शत्रुओं के साथ युद्ध करना पड़ा।”
(v) मुगल शक्ति की दुर्बलता उजागर
राजपूतो से निरंतर युद्ध करने में मुगलो की सैनिक शक्ति की दुर्बलता का पता चल गया। एक लेखक के अनुसार “मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए किए गये युद्ध और दुर्गादास के शौर्य ने मुगल शक्ति की क्षीणता को स्पष्ट कर दिया।
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निष्कर्षत
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि औरंगजेब मारवाड़ और मेवाड़ को अधीनता में लाने असफल हुआ। उसकी राजपूत नीति साम्राज्य के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हुई। युद्धों में अपार जान-धन की हानि हुई और सम्राट को राजपूतो का समर्थन मिलना बंद हो गया। इसका प्रभाव अन्य राजपूत राज्यो पर भी पड़ा। इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी मृत्यु के समय राजस्थान के अन्य राजा भी स्वतंत्र हो चुके थे। मुगल साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण औरंगजेब की राजपूत नीति को माना जाता है।
FAQs Related to Aurangzeb ki Rajput Neeti
Q1. औरंगज़ेब की राजपूत नीति क्या थी?
उत्तर: औरंगज़ेब की नीति का उद्देश्य राजपूत राज्यों की स्वायत्तता को सीमित कर उन्हें मुगल सत्ता के अधिक प्रत्यक्ष नियंत्रण में लाना था। उसकी धार्मिक नीतियों ने इस दृष्टिकोण को और कठोर बना दिया, जिससे पारंपरिक मुगल–राजपूत सहयोग कमजोर पड़ गया।
Q2. मारवाड़ संघर्ष क्यों हुआ?
उत्तर: मारवाड़ में जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद अजीत सिंह के उत्तराधिकार को लेकर उत्पन्न राजनीतिक संकट ने मुगलों और मारवाड़ के बीच लम्बे संघर्ष का रूप ले लिया। इस विवाद ने दोनों पक्षों के संबंधों में तनाव बढ़ा दिया।
Q3. क्या मेवाड़ ने जज़िया कर स्वीकार किया था?
उत्तर: नहीं, मेवाड़ के शासक राणा राजसिंह ने जज़िया कर देने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया था। यह असहमति आगे चलकर मेवाड़ और मुगल सत्ता के बीच टकराव का कारण बनी।
Q4. औरंगज़ेब की राजपूत नीति के मुख्य परिणाम क्या थे?
उत्तर: इस नीति के चलते राजपूतों का मुगलों के प्रति सहयोग घटने लगा, कई क्षेत्रों में लम्बे युद्ध हुए, सैन्य शक्तियाँ बिखरीं और साम्राज्य की प्रशासनिक स्थिरता धीरे-धीरे प्रभावित होने लगी।
Q5. क्या औरंगज़ेब की राजपूत नीति मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बनी?
उत्तर: अनेक इतिहासकारों का मत है कि राजपूतों के साथ बिगड़े संबंधों और निरंतर संघर्षों ने मुगल शासन को कमजोर किया, जिससे यह नीति साम्राज्य के पतन में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कारकों में शामिल हुई।
