शेरशाह सूरी का जीवन परिचय और सैनिक सुधार (Sher Shah Suri Biography & Military Reforms in Hindi)

भारतीय इतिहास में शेरशाह सूरी का नाम एक ऐसे शासक के रूप में दर्ज है, जो अपनी अद्भुत नेतृत्व क्षमता, सैन्य दक्षता और प्रशासनिक सुधारों के लिए सदैव याद किया जाता है। अपने अपेक्षाकृत छोटे शासनकाल के बावजूद उन्होंने भारत में एक संगठित प्रशासन, सक्षम सेना और प्रभावी व्यापार व्यवस्था की मजबूत नींव रखी। यही कारण है कि कई इतिहासकार उन्हें “अकबर से पहले अकबर” या “अकबर का अग्रदूत” कहकर सम्मानित करते हैं।

नीचे शेरशाह सूरी का संक्षिप्त जीवन परिचय और उनके प्रमुख सैनिक सुधार परीक्षा-उपयोगी, सरल तरीके से प्रस्तुत किए गए हैं।

शेरशाह सूरी का जीवन परिचय (Biography of Sher Shah Suri)

शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। उसके पूर्वज अफगानिस्तान के निवासी थे। उसका पितामह इब्राहीम खां सूर अपने पुत्र हसन खां के साथ भारत चला आया। यहाँ  उसने हिसार-फिरोजा के अफगान सरदार जमाल खां के यहाँ सैनिक नौकरी की और यही पर हसन की अफगान पत्नी से बजवाड़ा (होशियारपुर) नामक स्थान पर 1472 ई0 (डॉ0 कानूनगो के अनुसार 1486 ई0) में फरीद का जन्म हुआ। इसने पहले बाबर के लिए एक सैनिक के रूप में कार्य किया था। बाबर ने इसे पदोन्नत कर सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था। 1537-38 ई0 में शेरशाह ने बिहार और बंगाल पर अधिकार कर सूर वंश की स्थापना की।

 शेरशाह ने 1539 ई0 में चौसा व 1540 ई0 में विलग्राम (कन्नौज) के युद्ध मे हुमायूँ को पराजित करके  भारत छोड़ने पर मजबूर किया। और सम्पूर्ण उत्तर भारत मे  अपना साम्राज्य स्थापित किया।

 बाबर ने जिस प्रकार की शासन व्यवस्था स्थापित की थी, उसका अंत तो हुमायूँ के साथ ही हो गया था। आगे चलकर अकबर ने जिस अखण्ड भारत का निर्माण किया, उसकी नीव तो शेरशाह सूरी द्वारा ही रखी गई थी। इसिलिए इतिहासकारो ने शेरशाह को अकबर का अग्रगामी अथवा पथ प्रदर्शक कहा है।

शेरशाह सूरी के सैनिक सुधार (Military Reforms of Sher Shah Suri)

शेरशाह द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य को ठीक प्रकार से संचालित करने के लिए सैनिक सुधरो की महत्वपूर्ण आवश्यकता थी। इसिलिए उसने  अपने इस विशाल साम्राज्य को बनाये रखने और साम्राज्य विस्तार के लिए सैनिक सुधार पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उसके द्वारा किये गए सैनिक सुधरो को हम निम्नलिखित सन्दर्भो के अन्तर्गत वर्णन कर सकते है—-

1. सेना की संख्या और संगठन

शेरशाह ने  एक विशाल और शक्तिशाली सेना का गठन अलाउद्दीन खिलजी से प्रभावित होकर व्यवहारिक एवं स्थाई रूप में किया। सेना के चार अंग थे — घुड़सवार, पैदल, हाथी, तोपखाना। इस विशाल सेना में  1,50,000 घुड़सवार, 25,000 पैदल सैनिक, तथा 5,000 हाथी थे। उसका सैन्य-संगठन खासरवैल या हश्म-ए-कल्व के नाम से जाना जाता था

2. सैनिकों की भर्ती प्रणाली

शेरशाह ने सैनिको के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध बनाने के लिए उसने व्यक्तिगत रूप से सैनिको की नियुक्ति, वेतन इत्यादि में रुचि ली। सेना में योग्य व्यक्तियो को ही स्थान दिया जाता था।  सेना में समन्वय एवं संतुलन लाने के लिए अफगानों की भावनाओ का आदर किया और अफगान नेताओं के मध्य उनकी जाति के अनुसार जनजातीय संगठन स्थापित किया गया, यथा-लोदी के नेतृत्व में लोदियों का समूह।

3. वेतन एवं पदोन्नति

शेरशाह ने अपने सैनिकों को नकद वेतन देने की व्यवस्था की। उच्च सेनापतियो और अधिकारियों को जागीरे दी जाती थी। सैनिको की पदोन्नति उनकी योग्यता के आधार पर की जाती थी।

4. दाग एवं हुलिया प्रणाली

शेरशाह ने कुछ ऐसी प्रथाओं को मान्यता दी, जिन्हें खिलजियों ने प्रारम्भ किया था। सेना में बेईमानी और भ्रष्टाचार रोकने के लिए घोड़ा दागने की प्रथा शुरू की जिसे दाग-और-हुलिया कहते थे।  ताकि अश्वारोही सैनिक दूसरे घोड़े दिखाकर उसे धोखा न दे सके। इस प्रथा के पीछे उसका उद्देश्य यह था ताकि सैनिक अच्छे किस्म के घोडे बेचकर उनके स्थान पर घटिया किस्म के घोडे सेना में डाल दिया करते थे।  इसी प्रकार सैनिको का खाता (चेहरा) दर्ज होता था।

5. कठोर अनुशासन

शेरशाह ने अपनी सेना को ठीक प्रकार से व्यवस्थित करने के लिए अनेक विभगो की स्थापना की, सेना के नियम बड़े ही कठोर थे। नियमो का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड की व्यवस्था की गई थी।

6. सेना का विभाजन

शेरशाह ने अपनी सेना को कई भागों में विभाजित कर, प्रत्येक भाग को योग्य सेनापति के अधीन कर दिया गया। उनकी सेना छावनियों में रहती थी, जो राज्य के विभिन्न स्थानों पर स्थापित की गई थी। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि शेरशाह ने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह अफगान भावना के विरुद्ध थी। शेरशाह सूरी ने इसी भावना का आदर करते हुए मनसबदारी प्रथा को भी लागू नही किया।

निष्कर्ष

इस प्रकार कहा जा सकता है कि मध्यकालीन शासको की तरह शेरशाह सूरी के साम्राज्य की स्थापना का मुख्य आधार भी उसकी शक्तिशाली और सुव्यवस्थित सेना ही थी। इसी सैनिक शक्ति के बल पर ही उसने भारत मे द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना किया और इस साम्राज्य को एक नवीन स्वरूप प्रदान किया। यह उसकी शक्तिशाली सेना का ही परिणाम था जिसके कारण वह अपने विरोधी शत्रुओ का दमन करके साम्राज्य में शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित किया, और इसी शांति व्यवस्था के कारण ही वह अपने  साम्राज्य के प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र में सुधार करने में सफल रहा। इसी कारण इतिहासकारो ने शेरशाह को मध्यकालीन  सुधारक की संज्ञा प्रदान की है। अतः उसके साम्राज्य को देखकर यही कहा जा सकता है कि उसने सैनिक और असैनिक दोनो प्रकार की शासन व्यवस्था में बहुत अच्छी प्रकार से सामंजस्य स्थापित कर रखा था।  इस प्रकार उसका सैन्य-संगठन  प्रशंसनीय एवं प्रभवशाली था। इन सभी विशेषताओ के कारण उसे अकबर का अग्रगामी या पथ प्रदर्शक कहा जाता है। 

FAQs: शेरशाह सूरी से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न–उत्तर

Q1. शेरशाह सूरी का असली नाम क्या था?

उत्तर: शेरशाह सूरी का वास्तविक नाम फरीद खाँ था। युवावस्था में ही उनकी असाधारण बहादुरी, युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता के कारण स्थानीय शासक ने उन्हें “शेरशाह” की उपाधि से सम्मानित किया। यही उपाधि आगे चलकर उनकी पहचान बन गई और इतिहास में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।

Q2. शेरशाह ने किन दो प्रमुख युद्धों में हुमायूँ को पराजित किया?

उत्तर: शेरशाह सूरी ने मुगल सम्राट हुमायूँ को दो महत्वपूर्ण युद्धों में हराया, जिनके बाद वह उत्तर भारत का निर्विवाद शासक बन गया।

  1. चौसा का युद्ध (1539 ई.) – इस युद्ध में शेरशाह ने रणनीतिक चालों और बेहतर तैयारी के बल पर हुमायूँ को भारी हार दी।
  2. कन्नौज/बिलग्राम का युद्ध (1540 ई.) – इस निर्णायक युद्ध के बाद हुमायूँ को भारत छोड़कर भागना पड़ा और शेरशाह दिल्ली की सत्ता पर पूरी तरह काबिज हो गया।

ये दोनों युद्ध शेरशाह की सैन्य क्षमता और नेतृत्व कौशल के उत्कृष्ट उदाहरण माने जाते हैं।

Q3. शेरशाह ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए कौन सी प्रसिद्ध व्यवस्था लागू की?

उत्तर: भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और सेना की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शेरशाह ने “दाग-हुलिया प्रणाली” लागू की।

  • दाग: घोड़ों पर विशेष निशान (Branding) लगाया जाता था ताकि उनकी अदला-बदली या धोखाधड़ी न हो सके।
  • हुलिया: सैनिकों का पूरा विवरण, पहचान और शारीरिक विशेषताएँ दर्ज की जाती थीं।

इस व्यवस्था ने पारदर्शिता बढ़ाई और सेना को अधिक अनुशासित एवं विश्वसनीय बनाया।

Q4. शेरशाह सूरी की सेना के प्रमुख चार अंग कौन-कौन से थे?

उत्तर: शेरशाह की सेना अत्यंत संगठित और बहु-आयामी थी। इसके चार प्रमुख अंग निम्न थे:

  1. घुड़सवार सेना (Cavalry)
  2. पैदल सेना (Infantry)
  3. हाथी दस्ता (Elephant Corps)
  4. तोपखाना (Artillery)

इन चारों अंगों के बीच बेहतर समन्वय ही युद्धक्षेत्र में शेरशाह की सफलता का आधार बना।

Q5. शेरशाह सूरी को “अकबर का अग्रदूत” क्यों कहा जाता है?

उत्तर: इतिहासकार शेरशाह सूरी को “अकबर का अग्रदूत” इसलिए कहते हैं क्योंकि:

  • उन्होंने भूमि व्यवस्था, प्रशासन, कर प्रणाली एवं सड़क निर्माण जैसे कई महत्वपूर्ण सुधार किए।
  • इन सुधारों ने मुगल शासन की नींव को मजबूत किया।
  • बाद में अकबर ने इन्हीं नीतियों को और विकसित कर एक विशाल और संगठित साम्राज्य की स्थापना की।

इस प्रकार शेरशाह के प्रशासनिक विचार अकबर के शासन की आधारशिला साबित हुए।

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