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इक्तेदारी प्रणाली मध्यकालीन भारत के प्रशासन में एक अहम स्तंभ थी, जिसे इल्तुतमिश ने व्यवस्थित रूप से सुदृढ़ किया। इस व्यवस्था के ज़रिए न केवल राजस्व वसूली को अधिक संगठित बनाया गया, बल्कि स्थानीय क्षेत्रों पर केंद्रीय नियंत्रण भी मजबूत हुआ। दूरस्थ इलाकों में शासन की पकड़ बढ़ने से दिल्ली सल्तनत की सैन्य और आर्थिक संरचना को स्थिरता मिली और प्रशासन अपेक्षाकृत अधिक प्रभावी बन पाया।

इक्तेदारी व्यवस्था क्या है?/ Iqtadari System Meaning
इक्तेदारी व्यवस्था को सामयिक आवश्यकता के अनुरूप सुव्यवस्थित करने का श्रेय इल्तुतमिश को है। इल्तुतमिश द्वारा संशोधित इस व्यवस्था का ध्येय था- सामंतवाद की समाप्ति तथा साम्राज्य के सुदूर स्थित प्रदेशों को केन्द्र से निरन्तर रूप से जोड़े रहना। वास्तव में इक्तेदारी व्यवस्था का प्रारंभ मुहम्मद गोरी द्वारा सन 1192 ई0 में किया गया था,जब उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को प्रारम्भ में हांसी की इक्ता प्रदान किया था।
“इक्ता” शब्द अरबी भाषा का है। जिसका संबंध भूमि से होता है। इक्ता भू-राजस्व होता था। जिसका वर्णन निजाम-उल-मुल्क तूसी के ग्रंथ “सियासत नामा” में मिलता है। इल्तुतमिश के शासनकाल में मुल्तान से लेकर लखनौती तक के क्षेत्र को कई छोटे-छोटे क्षेत्रों में बाँटा गया था। इन क्षेत्रों को “इक्ता” की संज्ञा दी गई थी। इनके अधिकारी इक्तादार कहलाये। इक्तादारों की विभिन्न श्रेणियां थी। बड़े इक्तादार प्रांतीय गवर्नर के रूप में कार्य करते थे। उन्हें सैनिक, पुलिस और न्यायिक अधिकार प्राप्त थे। लगान वसूली का काम भी वे देखते थे। इक्तादारों को उनकी सेवा के बदले में अपने-अपने क्षेत्र से लगान वसूलने के अधिकार दिया गया था। जिसका कुछ भाग वे अपने खर्च के लिये रख सकते थे। इक्तेदारी व्यवस्था ने पहले की प्रचलित सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया। इक्तादारों पर केंद्रीय नियंत्रण स्थापित किया गया। समय-समय पर उनका स्थानांतरण भी होता था। यद्यपि इक्तेदारी व्यवस्था में बाद में अनेक दुर्बलताऐ प्रविष्ट कर गई। परन्तु आरम्भ में इस व्यवस्था द्वारा केन्द्रीय शक्ति को मजबूती प्रदान करने में सफलता मिली। इक्तेदारी व्यवस्था, सामंती व्यवस्था से कई अर्थो में भिन्न थी। जिसमे इक्तादारों के स्थानांतरण, पदावनति तथा पदच्युति की व्यवस्था थी। इक्तादारों को भू-स्वामित्व प्राप्त नही था,वंशानुगत अधिकार नही था और ये प्रान्तों में केंद्रीय कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे, जबकि सामंती व्यवस्था में बड़े सामंत क्षेत्रीय स्वामी होते थे। बरनी 200 इक्ताओ की चर्चा करता है।
इक्तादारी व्यवस्था के उद्देश्य (Objectives of Iqtadari System)

इक्तादारी व्यवस्था के निम्नलिखित उद्देश्य थे—
1. प्रशासनिक कुशलता और राजस्व वसूली
तुर्को के पास विस्तृत भू-क्षेत्र थे, किन्तु संसाधन सीमित थे। अतः प्रशासनिक कुशलता एवं पर्याप्त राजस्व वसूली के लिये इस व्यवस्था को लागू किया गया।
2. सामंतवाद पर नियंत्रण और केंद्रीकरण
तुर्को के आगमन के समय भारत मे सामन्ती संरचना मौजूद थी। जिसमे राजनीतिक विखंडनीकरण की प्रवृत्तिया थी। अतः इस प्रवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित करके सुदृढ केंद्रीय सत्ता की स्थापना करना जरूरी था। इस क्रम में इक्ता व्यवस्था को लागू किया गया।
3. स्थानीय समस्याओं का समाधान
स्थानीय समस्याओं का समाधान, स्थानीय स्तर पर करना और कृषक वर्ग से अधिशेष वसूल कर उसे केंद्रीय खजाने तक पहुँचने के लिए इस व्यवस्था को लागू किया गया।
4. दूरवर्ती क्षेत्रों को नियंत्रित करना
दूरवर्ती क्षेत्र को केन्द्र से जोड़ना तथा केन्द्र की सैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भी इस व्यवस्था को लागू किया गया।
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इक्तेदारी व्यवस्था के परिणाम (Results & Impact)

इल्तुतमिश द्वारा लागू की गईं इक्तेदारी व्यवस्था के सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणाम सामने आए, जो इस प्रकार है—
सकारात्मक परिणाम
(i) दिल्ली सल्तनत का विस्तार हुआ तथा दूरस्थ क्षेत्रों पर सुल्तान का प्रभावी नियंत्रण स्थापित हुआ।
(ii) दूरस्थ क्षेत्रों से भी फवाजिल (राजस्व) के रूप में सुल्तान को राजस्व की प्राप्ति होने लगी।
(iii) सुल्तान को बिना धन ख़र्च किये एक बड़ी सेना प्राप्त हो सकी।
(iv) इक्तादारों के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर कृषि, वाणिज्य-व्यापार, कला, साहित्य एवं संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया।
नकारात्मक परिणाम
(i) सुल्तान तथा इक्तादार (मुक्ता) के सम्बंध सुल्तान की स्थिति पर निर्भर होते थे। दुर्बल शासको के समय इक्तादार साम्राज्य के विघटन का कारण बने।
(ii) इक्तादार के पास सैनिक और राजस्व शक्ति होने से स्थानीय शोषण की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला।
निष्कर्ष (Conclusion)
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि इक्तेदारी व्यवस्था से लाभ या हानि सुल्तान की स्थिति पर निर्भर थी। अगर देखा जाय तो इक्तेदारी व्यवस्था, राजपूत कालीन सामंतवादी व्यवस्था से अधिक प्रगतिशील थी। क्योंकि इसमें इक्तादार का पद वंशानुगत नही होता था। तथा सुल्तान द्वारा समय-समय पर उनका स्थानांतरण भी किया जाता रहता था। लेकिन जब परवर्ती काल मे इक्तादारों के पद वंशानुगत हो गये, तब यही व्यवस्था दिल्ली सल्तनत के पतन का प्रमुख कारण सिद्ध हुई।
FAQs – इक्तेदारी व्यवस्था
Q1. इक्तेदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत में शासन को सुचारू रखने के लिए राज्य को कई हिस्सों में बाँटा जाता था, जिनको इक्ता कहा जाता था। इन इक्ताओं की देखरेख इक्तादार नाम के अधिकारियों को सौंपी जाती थी। वे अपने क्षेत्र में प्रशासन चलाने, कर इकट्ठा करने और सैन्य बल तैयार रखने जैसे कामों का प्रबंधन करते थे। इस प्रकार यह व्यवस्था सल्तनत की प्रशासनिक और राजस्व प्रणाली का महत्वपूर्ण आधार थी।
Q2. इक्तेदारी व्यवस्था की शुरुआत किसने की?
उत्तर: भारत में इक्ता प्रथा का आरंभ मुहम्मद गोरी के समय माना जाता है। 1192 ईस्वी के बाद उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को हांसी का क्षेत्र इक्ता के रूप में दिया था। आगे चलकर सुल्तान इल्तुतमिश ने इस व्यवस्था को व्यवस्थित नियमों के साथ विकसित किया, जिससे यह सल्तनत की स्थिर प्रशासनिक नीति बन गई।
Q3. इक्तेदारी व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: इस प्रणाली का मकसद दूरस्थ इलाकों पर नियंत्रण बनाए रखना, कर वसूली को व्यवस्थित करना और स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक कामकाज को मजबूत बनाना था। साथ ही, यह तरीका सल्तनत में सामंती बिखराव रोकने और एक केंद्रीकृत शासन स्थापित करने में भी मदद करता था।
Q4. इक्तेदारी व्यवस्था और सामंती व्यवस्था में क्या अंतर था?
उत्तर: सामंती व्यवस्था में ज़मीन अक्सर वंशानुगत रूप से मिली होती थी और सामंत अपने क्षेत्रों पर स्थाई अधिकार रखते थे। इसके उलट, इक्ता प्रथा में इक्तादार केवल प्रशासनिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करता था, न कि भूमि का मालिक होता था। उसे सुल्तान की इच्छा के अनुसार कहीं भी बदला जा सकता था। इस कारण इक्तादारों की व्यक्तिगत शक्ति सीमित रहती थी।
Q5. इक्तेदारी व्यवस्था के प्रमुख परिणाम क्या थे?
उत्तर: इस व्यवस्था से सल्तनत की राजस्व व्यवस्था सुदृढ़ हुई, सेना के लिए आवश्यक साधन उपलब्ध हुए और दूरस्थ क्षेत्रों में शासन स्थापित करना आसान हो गया। हालांकि, कमजोर शासकों के दौर में कुछ इक्तादार अत्यधिक शक्तिशाली हो गए, जिससे विद्रोह और स्थानीय शोषण जैसी समस्याएँ भी सामने आईं।
