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भारत के मध्यकालीन इतिहास को समझने के लिए सल्तनत काल में रचित साहित्य और ऐतिहासिक अभिलेख अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं। ये स्रोत न केवल दिल्ली सल्तनत के शासकों के शासन-कार्य, सैन्य गतिविधियों और प्रशासनिक नीतियों का विवरण देते हैं, बल्कि उस समय के सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक प्रवृत्तियों और आर्थिक ढांचे का भी विस्तृत परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
इसी संदर्भ में नीचे सल्तनत काल से जुड़े प्रमुख ऐतिहासिक स्रोतों की एक सरल, सुव्यवस्थित और परीक्षा-उपयोगी सूची उपलब्ध कराई जा रही है।

मध्यकालीन भारत के इतिहास को समझने में सल्तनत काल में लिखी गई ऐतिहासिक रचनाएँ एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करती हैं। ये ग्रंथ उस समय की राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ समाज की संरचना, प्रशासनिक व्यवस्था, संस्कृति और सैन्य प्रणाली का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करते हैं। इस लेख में दिल्ली सल्तनत से संबंधित प्रमुख ऐतिहासिक कृतियों को आसान भाषा, स्पष्ट क्रम और परीक्षा उन्मुख शैली में सम्मिलित किया गया है, ताकि विद्यार्थी और पाठक दोनों अवधि का अध्ययन सहज रूप से कर सकें।शुरुआती इस्लामी लेखन और सिंध विजय से जुड़ी कृतियाँ
चाचनामा —-अली अहमद द्वारा अरबी भाषा मे लिखित इस ग्रंथ में अरबो द्वारा सिंध विजय का वर्णन किया गया है।
तारीख-ए-सिंध या तारीख-ए-मासूमी—- –भक्खर के मीर मुहम्मद मासूम द्वारा रचित इस कृति में अरबो की विजय से लेकर अकबर के शासनकाल तक का इतिहास मिलता है।
गजनवी और गोर काल से संबंधित प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथ
महमूद गजनवी और सुबुक्तगीन के इतिहास से संबंधित कृतियाँ
किताबुल यामिनी (तारीख-ए-यामिनी)— अबू नस्र बिन मुहम्मद अल जबरुल उतबी द्वारा रचित इस पुस्तक में सुबुक्तगीन एवं महमूद गजनवी के शासनकाल का वर्णन मिलता है।
जैन-उल-अखबार—-अबू सईद द्वारा रचित इस ग्रंथ में ईरान के इतिहास एवं महमूद गजनवी के जीवन के विषय मे जानकारी मिलती है।
तारीख-ए-मसूदी— अबुल फजल मुहम्मद बिन हुसैन बहरी द्वारा रचित इस पुस्तक में महमूद गजनवी तथा मसूद के विषय मे ज्ञान प्राप्त होता है।
अलबरूनी की महान कृति

*तारीख-उल-हिन्द / तहक़ीक़-ए-हिन्द (किताबुल हिन्द)—– महमूद गजनवी के साथ भारत आये अलबरूनी की इस महत्वपूर्ण रचना में 11वी शताब्दी के भारत की राजनैतिक एवं सामाजिक दशा का उल्लेख मिलता है। यह पुस्तक मूल रूप से अरबी भाषा मे लिखी गई है। इसामें कुल 80 अध्याय है। 1888 ई0 में एडवर्ड सी सचाऊ ने “अलबरूनी इंडिया एन अकाउंट ऑफ रिलीजन” नाम से इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। अंग्रेजी से हिंदी में इसका अनुवाद रजनीकांत शर्मा ने किया और आदर्श हिंदी पुस्तकालय, इलाहाबाद से उसे प्रकाशित करवाया।
मध्य एशिया और फारसी साहित्य से जुड़ी कृतियाँ
कमिलुत तवारीख—— शेख अबुल हसन (इब्नुल असार) द्वारा 1230 ई0 में लिखा गया यह ग्रंथ मध्य एशिया के गोर शंसवानी राजवंश के इतिहास के बारे में ज्ञान प्राप्त कराता है।
शाहनामा– इसकी रचना फिरदौसी द्वारा की गई है, जो महमूद गजनवी के दरबार का प्रसिद्ध विद्वान कवि था। इसे “पूर्व के होमर” की उपाधि दी जाती है।
बीजापुर, गोरी और तुर्की सल्तनत से संबंधित कृतियाँ
तारीख-ए-फरिश्ता या गुलशन-ए-इब्राहिमी—- इसकी रचना फरिश्ता द्वारा की गई है। फरिश्ता का पूरा नाम मुहम्मद कासिम हिन्दू शाह था। यह पुस्तक बीजापुर के सुल्तान इब्राहिम आदिलशाह जो समर्पित है।
ताजुल मासीर—- हसन निजामी का पूरा नाम रुद्रउद्दी मुहम्मद हसन निजामी था, के द्वारा लिखित इस पुस्तक में मुहम्मद गोरी के भारत परआक्रमण के समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है। फ़ारसी में लिखे गए इस ग्रंथ का अंग्रेजी में अनुवाद एलियट और डाउसन ने अपनी पुस्तक भारत के इतिहासकारो द्वारा लिखित भारत का इतिहास के द्वितीय भाग में किया है।
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दिल्ली सल्तनत को समझने का सबसे विश्वसनीय स्रोत (सबसे महत्वपूर्ण सेक्शन)
तबकात-ए-नासिरी— मिन्हाज-उस-सिराज (मिन्हाजुद्दीन अबू-उमर बिन सिराजुद्दीन अल जुजयानी) द्वारा रचित इस पुस्तक में मुहम्मद के भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत का आरम्भिक इतिहास लगभग 1260 ई0 तक की जानकारी मिलती है मिनहाज ने अपनी इस कृति गुलाम वंश के शासक नासिरुद्दीन महमूद को समर्पित की थी। उस समय मिनहाज दिल्ली का मुख्य काजी था।
तारीख-ए-फ़िरोजशाही—- जियाउद्दीन बरनी द्वारा रचित इस रचना में बलबन के राज्याभिषेक से लेकर फ़िरोजतुग़लक के शासनकाल के छठे वर्ष तक कि जानकारी मिलती है।
फतबा-ए-जहाँदारी—– जियाउद्दीन बरनी द्वारा रचित इस रचना में सल्तनत कालीन राजनीतिक विचारधारा की सही तस्वीर प्रस्तुत की गई है। इसकके अतिरिक्त जियाउद्दीन बरनी की कुछ अन्य कृतियाँ सनाए मुहमदी, सलाते, कबीर, इनायत नामाए इलाही, मासीर सादात, हसरत नामा, तारीखे वमलियान है।
अमीर खुसरो की प्रमुख रचनाएँ (अत्यंत परीक्षा-उपयोगी)

खजाईन-उल-फतुह, किरान-उस-सादेन, मिफता-उस-फुतुह, आशका-उल-अनवर, सिरी व फरहाद, लैला व मजनू, आईने सिकंदरी, वृश्तविहिश्त, देवकरानी व खिज्र खां, रसै इजाज अफहल, उल-फरायद, तारीखे दिल्ली आदि है।
1. खजाइन-उल-फुतुह अथवा तारीख-ए-अलाई— अमीर खुसरो द्वारा रचित इस कृति में अलाउद्दीन खिलजी शासनलाल के पूर्व के पंद्रह वर्षो की घटनाओं का वर्णन मिलता है। इसकी रचना गद्य में कई गई थी।
2. किरान-उस-सादेन—- अमीर खुसरो द्वारा 1289 ई0 में रचित इस पुस्तक में बुगरा खां और उसके बेटे कैकुबाद के मिलन का वर्णन है। इसकी रचना पद्य में कई गई थी।
3. मिफ़ताह-उल-फुतुह— 1291 ई0 में रचित अमीर खुसरो की इस कृति में जलालुद्दीन खिलजी के सैन्य अभियानों मालिक छज्जू का विद्रोह एवं उसका दमन, रणथंभौर पर सुल्तान की चढ़ाई, और झाईन (झायन) की विजयो का वर्णन है। इसकी रचना पद्य में कई गई थी।
4.आशिका— अमीर खुसरो की इस कृति में गुजरात के राजा कारन की पुत्री देवलरानी और अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खां के बीच प्रेम का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक अलाउद्दीन की गुजरात तथा मालवा पर विजय तथा मंगोलो द्वारा स्वयं अपने कैद किये जाने की जानकारी भी देती है। इसकी रचना पद्य में कई गई थी।
5.नूर-सिपेहर—— अमीर खुसरो की इस कृति में मुबारक खिलजी के समय की सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। इसकी रचना पद्य में कई गई थी।
6. तुग़लकनामा—— अमीर खुसरो की इस अंतिम एवं ऐतिहासिक कृति में खुसरो शाह के विरूद्ध गयासुद्दीन तुगलक की विजय का उल्लेख है। इसकी रचना पद्य में कई गई थी।
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तुगलक, सैय्यद और लोदी काल से संबंधित कृतियाँ
फुतुह-उस सलातीन— ख्वाजा अबूबक्र इसामी द्वारा रचित इस पुस्तक में गजनवी वंश के समय से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक के समय तक का इतिहास मिलता है। यह पुस्तक बहमनी वंश के प्रथम शासक अलाउद्दीन को समर्पित है।
किताब-उल-रेहला— मोरक्को निवासी यात्री इब्न बतूता जो 1333ई0 (मुहम्मद तुगलक) में भारत आया था का यात्रा वृतांत है। 1333 से 1342 ई0 तक के भारत की राजनीतिक गतिविधियों एवं सामाजिक हालातो का इस पुस्तक में वर्णन है। इसे मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली का काजी नियुक्त किया था। कालान्तर में इसे दूत बनाकर चीन भेजा गया था।
तारीख-ए-फ़िरोजशाही—– शम्स-ए-सिराज अफीफ द्वारा रचित इस ग्रंथ में फ़िरोजतुग़लक के शासनकाल एवं तुगलक वश के पतन के बारे में जानकारी मिलती है। इसकी अन्य कृतियां मन की बे अलाई, मना की बे सुल्तान मुहम्मद व जिक्रे खराबीये देहली है।
सिराते फ़िरोजशाही—- किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखत इस कृति से फ़िरोजतुग़लक के शासनकाल के बारे में जानकारी मिलती है।
फतुहात-ए फ़िरोजशाही—– फ़िरोजतुग़लक के अध्यादेशों का संग्रह एवं उसकी आत्मकथा हैं।
तारीख-ए-मुबारक शाही—- याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा रचित इस ग्रंथ में तुगलक काल के बाद सैय्यद वंश के विषय मे जानकारी मिलती है। इस काल के इतिहास को जानने का एक मात्र स्रोत है।
गुलरुखी—– लोदी सुल्तान सिकंदर लोदी ने गुलरुखी शीर्षक से फ़ारसी में कविताए लिखी।
दलायते फ़िरोजशाही—- ऐजुद्दीन खालिद किरमानी द्वारा संस्कृत से फ़ारसी में अनुदित यह पुस्तक नक्षत्र-शास्त्र से सम्बंधित है।
याद नुसशाफ़ियाये सिकंदरी या तिब्बते सिकंदरी—— सिकंदर लोदी के वजीर मियाँ भुआ द्वारा संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद की गई यह पुस्तक चिकित्साशास्त्र से संबंधित है।
तैमूर से संबंधित विश्वसनीय ऐतिहासिक स्रोत
मलफूजात-तैमूरी—- यह तैमूर लंग की आत्मकथा है। इसे तैमूर ने तुर्की भाषा मे लिखवाया था। अबू तालिब हुसैनी ने सर्वप्रथम इसका फ़ारसी मे अनुवाद किया औए उसे बादशाह शाहजहाँ को भेटस्वरूप वरदान किया। इसमे अमीर तिमूर के विचारो और कार्यो का वर्णन किया गया हैं। यह ग्रंथ तुगलक वंश के अंतिम शासको के इतिहास को जानने में भी सहायता करता है। इस ग्रंथ को प्रामाणिक और सत्य के बहुत निकट स्वीकार किया गया है।
जफरनामा—- यह अमीर तिमूर की जीवनी है और मलफूजात-ए- तीमुरी का ही एक दूसरा स्वरूप है। तिमूर की मृत्यु तीस वर्ष पश्चात उसके पोते के संरक्षण में सिराजुद्दीन अली याजदी ने इस ग्रंथ की रचना की।
महत्वपूर्ण अतिरिक्त जानकारी (Exam Booster)
- सल्तनत काल की राजकीय भाषा — फ़ारसी
- हिंदी में “मसनवी” लिखने की परंपरा — तुगलक काल से आरंभ
- अधिकतर ऐतिहासिक ग्रंथ — पद्य/फ़ारसी भाषा में
प्रतियोगी छात्रों के लिए प्रेरणादायक संक्षिप्त संदेश
इतिहास केवल घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि स्रोतों को समझने की कला है। जो विद्यार्थी यह जानता है कि किस काल में कौन-सा ग्रंथ लिखा गया, उसका लेखक कौन था और उसमें क्या जानकारी मिलती है—वही उत्तर पुस्तिका में सबसे प्रभावशाली उत्तर लिख पाता है। यही समझ चयन तक पहुँचने में निर्णायक भूमिका निभाती है।
यह लेख इसलिए उपयोगी है क्योंकि इसमें सल्तनत काल की प्रमुख ऐतिहासिक रचनाओं—तबकात-ए-नासिरी, तारीख-ए-फिरोजशाही, किताब-उल-हिंद, खजाइन-उल-फुतुह, फतह-उस-सलातीन, जफ़रनामा आदि—को एक ही स्थान पर सरल और क्रमबद्ध रूप में समझाया गया है। इससे न केवल नाम याद रहेंगे, बल्कि यह भी पता चलेगा कि किस ग्रंथ में क्या लिखा है और परीक्षा में उनसे कैसे प्रश्न पूछे जाते हैं।
याद रखें—सफलता उन्हें मिलती है जो कठिन विषयों को बोझ नहीं, बल्कि अपनी ताकत बना लेते हैं। इतिहास में जीत याददाश्त से नहीं, बल्कि समझ और आत्मविश्वास से मिलती है। आपमें क्षमता है—बस सीखने की निरंतरता बनाए रखें।
PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: सल्तनतकालीन ऐतिहासिक कृतियाँ पढ़ना क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: सल्तनतकालीन ग्रंथ उस दौर की राजनीतिक गतिविधियों, प्रशासनिक ढाँचे, सैन्य नीतियों, सामाजिक जीवन और सांस्कृतिक परिवेश का सीधा व विस्तृत चित्र प्रस्तुत करते हैं। ये स्रोत हमें मध्यकालीन भारत की वास्तविक परिस्थितियों को समझने में मदद करते हैं, इसलिए इतिहास लेखन में इनका विशेष महत्व माना जाता है।
प्रश्न 2: दिल्ली सल्तनत के इतिहास के लिए सबसे भरोसेमंद स्रोत कौन-सी पुस्तक मानी जाती है?
उत्तर: दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दौर का अध्ययन करते समय ‘तबकात-ए-नासिरी’ को अत्यंत विश्वसनीय दस्तावेज माना जाता है। वहीं, तुगलक शासन से जुड़ी घटनाओं और प्रशासनिक पहलुओं को समझने के लिए ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है।
प्रश्न 3: अमीर खुसरो की कौन-सी कृति अलाउद्दीन खिलजी के शासन से संबंधित है?
उत्तर: अमीर खुसरो द्वारा रचित ‘खजाइन-उल-फुतुह’, जिसे ‘तारीख-ए-अलाई’ भी कहा जाता है, अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में हुई प्रमुख घटनाओं और नीतियों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 4: अलबरूनी की ‘किताब-उल-हिंद’ किस भाषा में लिखी गई थी?
उत्तर: अलबरूनी ने ‘किताब-उल-हिंद’ को अरबी भाषा में लिखा था। यह ग्रंथ 11वीं शताब्दी के भारतीय समाज, धार्मिक मान्यताओं, राजनीति, विज्ञान और सांस्कृतिक जीवन के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है।
