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मुगल साम्राज्य अपने समय का सबसे संगठित और मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था (ढांचा) पेश करता था। इस काल में शासन का तरीका काफी केंद्रीकृत था, यानी सारा प्रशासन एक केंद्र के माध्यम से नियंत्रित होता था। प्रांतों की व्यवस्था व्यवस्थित थी, राजस्व नीति कुशल और न्यायिक तंत्र भी प्रभावशाली था।
मुगल प्रशासन की ये विशेषताएँ न केवल इतिहास को समझने में मदद करती हैं, बल्कि UPSC, PCS, UGC-NET जैसी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। आगे हम इस पूरी व्यवस्था को सरल और स्पष्ट तरीके से समझेंगे।

परिचय
मुगल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था एक सुव्यवस्थित, केंद्रीकृत और नियंत्रण व संतुलन पर आधारित ढांचा था। इसकी जड़ें शरीयत सिद्धांतों, फारसी-तुर्क शासन परंपराओं और भारत में पहले से प्रचलित प्रशासनिक अनुभव— इन तीनों के सम्मिश्रण से बनी थीं। नीचे मुगल शासन के प्रमुख स्तरों— केंद्र, सूबा (प्रांत), जिला, परगना, ग्राम, न्यायिक व्यवस्था और सैन्य संगठन — का क्रमबद्ध व स्पष्ट विवरण प्रस्तुत है।
मुगल राजत्व का सिद्धांत
मुंगलो के राजत्व सिद्वान्त का मूल आधार शरीयत था। बाबर ने राजत्व सम्बन्धी विचार प्रकट करते हुए कहा था कि “बादशाही से बढ़कर कोई बंधन नही है। बादशाह के लिए एकान्तवास या आलसी जीवन उचित नही है।” बाबर ने ‘बादशाह’ की उपाधि धारण करके मुगल बादशाहों को खलीफा के नाममात्र के आधिपत्य से मुक्त कर दिया। अब वे किसी विदेशी सत्ता या व्यक्ति के अधीन नही रह गए। हुमायूँ बादशाह को ‘पृथ्वी पर खुदा का प्रतिनिधि’ मानता था। उसके अनुसार सम्राट अपनी प्रजा की उसी प्रकार रक्षा करता है जिस प्रकार ईश्वर पृथ्वी पर समस्त प्राणियों की रक्षा करता है। अबुल फजल ने अकबर कालीन राजत्व की विवेचना करते हुए लिखा है कि “राजत्व ईश्वर का अनुग्रह है यह उसी व्यक्ति को प्राप्त होता है, जिस व्यक्ति में हजारों गुण एक साथ विद्यमान हो।” अकबर राजतंत्र को धर्म एवं सम्प्रदाय से ऊपर मानता था और उसने रूढ़िवादी इस्लामी सिद्धांतो के आधार पर ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति अपनाई, जबकि औरंगजेब ने राजत्व को इस्लाम का अनुचर बना दिया। मुगल बादशाहो ने निःसंदेह बादशाह के दो कर्तव्य माने थे–जहाँबानी (राज्य की रक्षा) और जहांगीरी (अन्य राज्यो पर अधिकार)। मुगल कालीन प्रशासन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण कृतियों- आईने अकबरी, अकबरनामा, इकबालनामा, तबकाते अकबरी, पादशाहनामा, तुजुके जहांगीरी, मुन्तख़ब-उल-तवारीख आदि। इसके अतिरिक्त कुछ विदेशी पर्यटकों जैसे टामस रो, हॉकिन्स, बर्नियर, डिलेट एवं टेरी आदि से जानकारी मिलती है।
केंद्रीय प्रशासन (Central Administration)
मुगल प्रशासन केंद्रीय शक्ति पर आधारित एक केन्द्रीकृत व्यवस्था थी, जो नियंत्रण एवं सन्तुलन पर आधारित थी। मुगल प्रशासन भारतीय तथा गैर भारतीय (विदेशी) तत्वों का सम्मिश्रण था। दूसरे शब्दों में कहे तो यह भारतीय पृष्ठभूमि में अरबी-फारसी पद्वति थी। मुगल प्रशासन चूंकि केन्द्रीकृत था इसिलिए केन्द्रीय प्रशासन का प्रमुख बादशाह होता था। जो समस्त प्रकार की शक्तियों का प्रमुख होता था। बादशाह राज्य का अन्तिम कानून निर्माता, शासन व्यवस्थापक, न्यायाधीश और सेनापति होता था। केंद्रीय स्तर पर बादशाह की सहायता हेतु अनेक विभाग और केंद्रीय अधिकारी होते थे—
प्रमुख केंद्रीय अधिकारी
वकील या वजीर
बाबर और हुमायूँ के समय मे वजीर का पद बहुत महत्वपूर्ण था। यह साम्राज्य का प्रधानमंत्री होता था। इसे सैनिक तथा असैनिक दोनो मामलों में असीमित अधिकार प्राप्त थे। अकबर के काल मे मुगल प्रधानमंत्री को वकील कहा जाने लगा। अकबर के शासन काल के आरम्भिक वर्षो में बैरम खां ने वकील के रूप में अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया था। इसिलिए अकबर ने बैरम खां के पतन के बाद अपने शासन के 8 वें वर्ष एक नया पद ‘दीवान-ए-कुल’ का सृजन किया और वकील से वित्तीय अधिकार छीनकर ‘दीवान-ए-कुल’ नामक पदाधिकारी को सौंप दिये। उसके बाद से यह पद केवल सम्मान का पद रह गया, जो शाहजहॉ के समय तक चलता रह गया।
दीवान-ए-कुल
वकील (वजीर) से वित्तीय शक्तियां लेकर इस विभाग की स्थापना की गई थी। यह वित्त विभाग का प्रमुख होता था। यह राजस्व का आकलन, उसकी वसूली का निरीक्षण तथा उससे संबंधित हिसाब की जांच करता था।
मीर बख्शी
यह सैनिक विभाग का प्रमुख होता था। इसके मुख्य कार्यो में सैनिकों की भर्ती, उसका हुलिया रखना, रसद प्रबन्ध, सेना में अनुशासन रखना, सैनिको के लिए हथियारों तथा हाथी, घोड़ो का प्रबंध करना था।
दीवान-ए-समां/ खान-ए-समां
घरेलू मामलों का प्रधान होता था। यह राजकीय आवश्यकताओं की वस्तुओं, युद्धस्त्रो आदि के उत्पादन का निरीक्षण करता था। यह राजकीय कारखानों का भी प्रधान था।
सद्र-उस-सुदूर (सद्र-ए-कुल)
यह बादशाह का मुख्य धार्मिक परामर्शदाता होता था। इसका मुख्य कार्य शरीयत के कानून का संरक्षण था। यह धार्मिक अनुदान देने के साथ धार्मिक मुकदमो की सुनवाई भी करता था।
काजी-उल-कुजात
यह न्याय विभाग का प्रधान होता था। इसका प्रमुख कार्य दीवानी और फौजदारी दोनो मामलों में शरीयत को लागू करना था।
मुहतसिब
यह जनता के नैतिक आचरणों का निरीक्षण करता था। और यह देखता था कि शरीयत के अनुसार कार्य हो रहा है या नही। साथ ही साथ माप-तौल का निरीक्षण, मूल्य नियंत्रण आदि कि देख-रेख भी करता था।
मीर-ए- आतिश/ दरोगा-ए-तोपखाना
यह पद मंत्री स्तर का न होते हुए भी महत्वपूर्ण था। यह शाही तोपखाने का प्रमुख होता था। यह पद किसी तुर्क या ईरानी की दिया जाता था।
दरोगा-ए-डाक चौकी
यह सूचना विभाग का प्रमुख होता था, जिसके अधीन अनेक गुप्तचर और संवादवाहक थे। इसका प्रमुख कार्य सूचनाएं प्राप्त करना था।
प्रांतीय प्रशासन (Provincial Administration)

मुंगलो का प्रान्तीय प्रशासन, केंद्रीय शासन का ही प्रतिरूप था। सबसे पहले मानक रूप से प्रान्तों का निर्माण अकबर के काल मे हुआ। इसका प्रमुख नजीम अथवा सूबेदार होता था। सूबेदार की सहायता के लिए प्रान्तीय स्तर पर अन्य महत्वपूर्ण अधिकारी भी होते थे। जैसे प्रान्तीय दीवान, प्रान्तीय बख्शी, प्रान्तीय सद्र तथा प्रान्तीय काजी आदि।
जिला प्रशासन (सरकार)
सरकारी अधिकारी
प्रान्तों का विभाजन सरकार में होता था। सरकार के प्रशासन को संचालित करने के लिए अनेक अधिकारी होते थे—
1* फौजदार
यह सैन्य अधिकारी था। सरकार में कानून व्यवस्था का रक्षक होता था। यह अमलगुजार को भू-राजस्व प्रशासन में मदद करता था।
2* अमलगुजार
यह सरकार के भू-राजस्व से जुड़ा हुआ अधिकारी होता था। इसके अंतर्गत दो अन्य अधिकारी, वित्तकची तथा खजांदार होते थे। खजांदार का मुख्य कार्य खजाने की देख भाल करना था, जबकि वित्तकची के पास भूमि संबंधी रिकार्ड होते थे।
परगना (तहसील) प्रशासन
सरकार का विभाजन परगनो में होता था। परगनो से जुड़े निम्नलिखित अधिकारी थे-
1* शिकदारा
यह कानून व्यवस्था का संरक्षक था तथा भू-राजस्व संग्रह में आमिल की सहयता करता था।
2*आमिल
यह भू-राजस्व से संबंधी था।
3* फोतदार
खजांची
4* कानूनगो
ग्राम के पटवारियों का मुखिया तथा स्वयं कृषि भूमि का पर्यवेक्षक होता था।
नगरीय प्रशासन
नगरीय प्रशासन का प्रमुख अधिकारी कोतवाल होता था। इसका कार्य नगरों में कानून व्यवस्था की देख रेख करना तथा नगर में आने-जाने वाले विदेशियों का विवरण रखना।
ग्राम प्रशासन (Village Administration)
प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होता था। इसके मुख्य अधिकारी खुत, मकद्दम, चौधरी तथा पटवारी थे। ग्राम पंचायत मुगल प्रशासनिक व्यवस्था से स्वतंत्र इकाई थी, आवश्यकता पड़ने पर ही सरकारी कर्मचारी यहाँ हस्तक्षेप करते थे।
न्यायिक प्रशासन
साम्राज्य का सर्वोच्च न्यायाधीश बादशाह होता था। बादशाह के अतिरिक्त मुख्य न्यायाधीश काजी-उल-कुजात होता था। दीवानी मुकदमो का निर्णय मुसलमनो के संबंध में मुस्लिम कानून के आधार पर तथा हिन्दुओ के मुकदमो का निर्णय हिन्दू कानून के आधार पर तथा फौजदारी मामलों में मुस्लिम कानून लागू होता था। सभी मुगल बादशाओ ने निष्पक्ष एवं त्वरित न्याय पर बल दिया।
सैन्य प्रशासन

मुगल काल की शक्ति का प्रमुख स्रोत उसकी सेना ही थी। मुगल सैन्य व्यवस्था को सुचारू रूप से संगठित करने का श्रेय अकबर को प्राप्त है। 1567 ई0 में अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था के आधार पर सैन्य संगठन किया।
मुगल कालीन सैन्य संगठन का मुख्य अधिकारी मीर बख्शी था, इसकी नियुक्ति बादशाह द्वारा होती थी तथा उसकी सहायता के लिए अन्य बख्शी भी होते थे। मुगल सेना को सैनिक दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था।
सैनिक वर्ग
मनसबदारों के सैनिक, अहदी सैनिक (सम्राट द्वारा नियुक्त सैनिक), दाख़िली सैनिक।
सेना के पाँच भाग
पैदल सेना, अश्वारोही सेना, हस्ति सेना, जल सेना, एवं तोपखाना। संख्या बल की दृष्टि से पैदल सेना युद्ध मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। पैदल सेना को भी दो भागों में विभाजित किया गया था- अहशाम और सेहबन्दी। मुगलकालीन सेना में सर्वाधिक शक्तिशाली अश्वारोही सेना थी। अकबर ने नौसेना के प्रबंध के लिए अलग विभाग की स्थापना की थी। जिसे नबाड़ा कहा जाता था, जो मीरबहर के अधीन होती था। हस्ति सेना पीलखाना विभाग के अधीन थी और तोपखाने का प्रमुख मीर-ए-आतिश होता था। सैनिको के लिए नियमित वेतन की व्यवस्था नही थी। सैनिको को नकद वेतन के स्थान पर जागीरे प्रदान की जाती थी।
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निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मुगल प्रशासन एक विस्तृत संरचना एवं केन्द्रीकृत स्वरूप लिए हुआ था। प्रशासन में शक्ति, पारदर्शिता एवं निष्पक्षता पर विशेष बल दिया जाता था। यधपि इतनी विस्तृत नौकरशाही एवं केन्द्रीकृत प्रशासन के कुछ दोष भी थे जैसे– इसके संचालन के हेतु अत्यधिक धन की आवश्यकता होती थी। साथ ही साथ विस्तृत एवं केन्द्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था ने परवर्ती कमजोर उत्तराधिकारियों के सामने अनेक चुनौतियां उपस्थित कर दी। किन्तु इन सीमाओं के बावजूद मुगलकालीन प्रशासन सुरक्षा, साम्राज्य विस्तार एवं जनकल्याण जैसी भावनाओ पर आधारित था।
FAQs: मुगल कालीन प्रशासनिक व्यवस्था
Q1. मुगल कालीन प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर: मुगल प्रशासन की बुनियाद एक मजबूत केंद्रीकृत संरचना पर रखी गई थी, जहाँ सत्ता का केंद्र बादशाह था। उनकी शासन-व्यवस्था कई स्तंभों के मिश्रण से बनी थी। एक ओर शरीयत के सिद्धांतों से प्रेरित कानूनी ढांचा था, तो दूसरी ओर फारसी और तुर्क परंपराओं पर आधारित प्रशासनिक तौर-तरीके। इसके साथ ही, मुगलों ने भारत की प्रचलित स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्थाओं— जैसे भूमि व्यवस्था, राजस्व संग्रह की पद्धति, और पंचायती ढांचे— को भी अपने तंत्र में शामिल किया। इन सभी तत्वों के संयोजन ने मुगल प्रशासन को संगठित, व्यावहारिक और नियंत्रित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
Q2. मुगल प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता था?
उत्तर: मुगल राज्य में सर्वोच्च अधिकार बादशाह के पास होता था। वह केवल राजनीतिक प्रमुख ही नहीं, बल्कि सैन्य, न्यायिक और प्रशासनिक सभी क्षेत्रों का अंतिम निर्णयकर्ता भी था। कानूनों को लागू करना, अधिकारियों की नियुक्ति करना, दंड देना, युद्ध और कूटनीति से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले लेना— यह सब बादशाह के अधिकार क्षेत्र में आता था। बादशाह की सत्ता को धार्मिक वैधता भी प्राप्त थी, जिससे उसकी स्थिति और अधिक सुदृढ़ मानी जाती थी।
Q3. मुगलों के प्रांतीय प्रशासन का प्रमुख कौन था?
उत्तर: मुगल साम्राज्य में प्रांतों को ‘सूबा’ कहा जाता था, और प्रत्येक सूबे का संचालन सूबेदार या नाज़िम करता था। सूबेदार प्रांत में बादशाह का प्रतिनिधि माना जाता था और शांति, सुरक्षा, कानून-व्यवस्था तथा प्रशासनिक नियंत्रण उसकी ज़िम्मेदारी होती थी। उसके साथ कई उच्च अधिकारी कार्य करते थे— जैसे प्रांतीय दीवान, जो राजस्व व आर्थिक मामलों की देखरेख करता था; बख्शी, जो सैनिकों और मनसबदारों से जुड़े कार्य संभालता था; काजी, जो न्यायिक कार्य देखता था; और सद्र, जो धार्मिक मामलों और वक्फ़ संपत्तियों की निगरानी करता था। सामूहिक रूप से यह टीम प्रांत के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाती थी।
Q4. मनसबदारी व्यवस्था क्या थी?
उत्तर: मनसबदारी वह विशिष्ट प्रणाली थी जिसे अकबर ने अपने विशाल साम्राज्य को नियंत्रित करने और सेना को व्यवस्थित रूप से संगठित रखने के लिए विकसित किया था। इस व्यवस्था के तहत अधिकारियों को एक ‘मनसब’ या पद दिया जाता था, जो उनकी स्थिति, दायित्व, वेतन और सम्मान का सूचक होता था। मनसबदारों को दो संख्याएँ दी जाती थीं— जात और सवार । ‘जात’ से अधिकारी का रैंक व प्रतिष्ठा तय होती थी, जबकि ‘सवार’ यह दर्शाता था कि अधिकारी के अधीन कितने घुड़सवार सैनिक होंगे। इस प्रणाली ने सैनिक और प्रशासनिक दोनों प्रकार के अधिकारियों को एक ही ढांचे में जोड़कर मुगल शासन को अत्यंत प्रभावी बना दिया।
Q5. मुगल काल के प्रशासन की जानकारी किन स्रोतों से मिलती है?
उत्तर: मुगल प्रशासन के बारे में हमें अनेक ऐतिहासिक, साहित्यिक और विदेशी स्रोतों से विस्तृत जानकारी मिलती है। अबुल फ़ज़्ल द्वारा रचित अकबरनामा और उसका तीसरा भाग आइने-अकबरी मुगल प्रशासन की संरचना, राजस्व व्यवस्था, सेना, पदानुक्रम और सामाजिक-आर्थिक नीतियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा पादशाहनामा और तुजुके-जहाँगीरी जैसे ग्रंथों से विभिन्न शासकों की नीतियों का ज्ञान मिलता है। विदेशी यात्रियों— जैसे सर टॉमस रो, बर्नियर, निकोलाओ मैनूची, और विलियम हॉकिन्स— के यात्रा-वृत्तांतों में भी मुगल शासन की कार्यप्रणाली, दरबारी संस्कृति और आम जनता के जीवन का प्रत्यक्ष विवरण मिलता है। इन सभी स्रोतों को मिलाकर हमें मुगल प्रशासन की समग्र तस्वीर प्राप्त होती है।
