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मुगल युग में चित्रकला का विकास भारतीय कला इतिहास में एक अत्यंत उल्लेखनीय परिवर्तन के रूप में सामने आया। मुगल शासकों ने इस कला को केवल राजदरबार के मनोरंजन का साधन न मानकर, उसे एक सशक्त, सजीव और सुव्यवस्थित कला परंपरा का रूप दिया। मुगल चित्रों में दरबारी जीवन, शिकार और युद्ध के दृश्य, प्राकृतिक सौंदर्य तथा मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति को विशेष महत्व दिया गया, जिससे इस शैली को एक अलग पहचान मिली। इसी व्यापक दृष्टिकोण के कारण मुगल साम्राज्य के अंत के बाद भी यह चित्रकला परंपरा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में निरंतर विकसित होती रही और जीवित बनी रही।

मुगल काल में चित्रकला का उदय और विकास
चित्रकला के क्षेत्र में मुंगलो का अपना विशेष योगदान रहा है। उन्होंने राजदरबार,शिकार,तथा युद्ध के दृश्यों से संबंधित नये विषयो को आरम्भ किया तथा नये रंगों और आकारों की शुरुआत की। उन्होंने चित्रकला की ऐसी जीवंत परम्परा की नींव डाली, जो मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भी देश के विभिन्न भागों में जीवित रही। इस शैली की समृद्धि का एक मुख्य कारण यह भी था कि भारत मे चित्रकला की बहुत पुरानी परंपरा थी।
प्रारंभिक चरण: बाबर और मुगल चित्रकला
मुंगलो ने चित्रकला की जिस शैली की नीव भारत मे डाली,वह एक ऐसी उन्नतशील और शक्तिशाली कला आंदोलन के रूप में विकसित हुई, जिसने उत्तरवर्ती मध्यकालीन युग मे भरतीय कला के इतिहास की धारा को ही बदल दिया। बाबर भारत मे मुगल साम्राज्य का संस्थापक था, और वह स्वंय कलात्मक रुचि सम्पन्न व्यक्ति था, फिर भी इस बात के साक्ष्य उपलब्ध नही है कि वह मुगल चित्रकला का जन्मदाता भी था।अल्प शासन काल के कारण संभव है कि चित्रकला की ओर ध्यान देने का उसे समय ही न मिला हो। फारस का प्रसिद्ध चित्रकार बिहजात सम्भवतः बाबर के समय भारत आया था। क्योंकि “तुजुक-ए-बाबरी” में एक मात्र चित्रकार बिहजात का ही नाम मिलता है। इसे बाबर ने अग्रणी चित्रकार कहा है।
हुमायूँ और मुगल चित्रकला की नींव

चित्रकला की एक विशिष्ट शैली को जन्म देने का श्रेय बाबर के पुत्र हुमायूँ को दिया जा सकता है। जब हुमायूँ फारस और अफगानिस्तान में कुछ वर्षों के लिए निर्वासित जीवन जी रहा था तब उसने मुगलकालीन चित्रकला की नींव रखी थी। फारस में ही हुमायूँ की मुलाकात वहाँ के दो महानतम कलाकार मीर सैय्यद अली एवं ख्वाजा अब्दुर समद से हुई। हुमायूँ ने अपनी अस्थायी राजधानी काबुल में इन दोनों कलाकारों की सेवाएं ली। इस समय अब्दुर समद द्वारा बनाई गई कुछ कृतियो का संकलन जहाँगीर की “गुलशन” चित्रावली में किया गया है। 1555-56 ई0 में भारत वापस आते समय हुमायूँ इन दोनों कलाकारों को दिल्ली लाया। इन दोनों ने मिलकर अकाबर के लिए एक उन्नत कला संगठन की स्थापना की।
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अकबर के काल में मुगल चित्रकला का विकास
अकबर यद्यपि अधिक शिक्षित नही था किन्तु कला एवं साहित्य के क्षेत्र में उसकी विशेष रुचि थी। अकबर ने योग्य एव कुशल चित्रकारों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन दिया। अकबर ने अनेक ग्रंथो को चित्रित करवाया था। अकबर काल की प्रमुख कृतियाँ
“हम्जनामा” मुगल चित्रशाला की प्रथम महत्वपूर्ण कृति है, इसे “दस्ताने-अमीर-हम्जनाम” भी कहा जाता है। हम्जनामा में कुल 1200 चित्रों का संग्रह है। मीर सैय्यद अली और अब्दुर समद के अतिरिक्त “आईने-अकबरी” में अबुल फजल ने 15 चित्रकारों का उल्लेख किया है। जिनका संबध अकबर के राजदरबार से था। अकबर काल के प्रमुख चित्रकार
अकबर के दरबार के कुछ मुख्य चित्रकार यथा—दसवंत, बसावन, केशव, मुकुंद, फारुख, कलमक, मिशिकिन, माधोजगन, महेश खेमकरण, तारा, सांवल, हरिवंश,एवं राम। दसवंत को अकबर ने साम्राज्य का प्रथम अग्रणी चित्रकार बनाया। दसवंत द्वारा बनाये गए चित्र “राज्मनामा” नामक पाण्डुलिपि में मिलते है। इसकी दो अन्य कृतियां है “खान-दाने-तैमूरिया” एवं “तूतिनामा”। राज्मनामा पाण्डुलिपि को मुगल चित्रकला के इतिहास में एक मील का पत्थर मन जाता है।
बसावन को चित्रकला के सभी क्षेत्रों मे रेखांकन,रंगों का प्रयोग, छवि चित्रकारी,भू-दृश्यों का चित्रण आदि में महारत प्राप्त था। इसलिए इसे अकबर के समय का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार मन जाता है। बसावन की सर्वोत्कृष्ट कृति “ एक दुबले पतले घोड़े के साथ मजनू का निर्जन एवं उजाड़ क्षेत्र में भटकता हुआ चित्र” था। अकबर के समय मे पहली बार भित्ति चित्रकारी की शुरुआत हुई।
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जहाँगीर का काल: मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग

जहाँगीर की चित्रकला के प्रति केवल रुचि ही नही थी,वरन वह यह कुशल चित्रकार भी था। उसने चित्रकला के विकास के लिए हेरात के आगारजा के नेतृत्व में एक चित्रशाला की स्थापना की। और अनेक चित्रकारों को प्रश्रय दिया।
जहाँगीर काल के प्रमुख चित्रकार
जहाँगीर के समय प्रमुख चित्रकारों में फरुख वेग, दौलत, मनोहर, बिसनदास, मंसूर, अबुल हसन आदि थे। पर्सी ब्राउन के अनुसार “अकबर के मस्तिष्क में मुगल चित्रकला की स्थापना का विचार आया तथा जहाँगीर ने इसे एक रूप में लाने के लिए सामग्री एकत्रित की”
जहाँगीर काल की विशेषताएँ
जहाँगीर ने कुशल चित्रकारो को प्रोत्साहन प्रदान कर चित्रकला को समुन्नतिशील बनाया। उसमे अब वास्तविकता के दर्शन होने लगे। इस काल की चित्रकला शैली सूक्ष्मता में अकबर के काल की शैली से कही अधिक बढ़ गई। इस काल के चित्रो में शिकार एवं छवि चित्रो और प्राकृतिक दृश्यों आदि विभन्न प्रकार के दृश्यों को दर्शाया जाने लगा। जहाँगीर एक सौंदर्य प्रेमी बादशाह था अतः उसने प्रकृति के विभिन्न रुपो का चित्रण करवाया। जिसे उसके कुशल चित्रकारों ने अत्यंत स्वाभाविक चित्रण प्रस्तुत किया। इस काल के चित्रों में यथार्थता के साथ-साथ सजीवता भी स्प्ष्ट दृष्टिगोचर होती है। चित्रकारों ने अपने चित्रों में प्रकाश एवं छाया को भी दिखाने की चेष्टा की है। जो उन चित्रकारों की सूक्ष्म दृष्टि का परिचय कराती है। इन चित्रों को सुसज्जित एवं अलंकृत करने के लिए विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग बड़ी सावधानी एवं कुशलता के साथ किया गया है। इस प्रकार जहाँगीर के काल में मुगल चित्रकला अपनी पराकाष्ठा को पहुँच गई। जिसके कारण जहाँगीर के काल को “मुग़ल चित्रकला” का स्वर्ण युग कहा जाता है।
शाहजहाँ के काल में चित्रकला
शाहजहाँ की रुचि स्थापत्यकला के क्षेत्र में अधिक थी। किन्तु फिर भी चित्रकला के क्षेत्र में अपने पिता की परम्पराओ को जरी रखा। उसके दरबार मे अनेक कुशल चित्रकार थे, जो चित्रकला के विभिन्न क्षेत्रों में निपुण रहे। इनमे मुहम्मद फ़कीरूउल्ला सर्वप्रमुख चित्रकार था। जिसके हाथ मे चित्रकला संस्था का कार्यभार था तथा मीर हाशिम इसका सहायक था। यह भी इस काल का प्रमुख चित्रकार था। बादशाह के अतिरिक्त चित्रकला के अन्य पोषकों में शहजादा दाराशिकोह तथा वकील आसफखां के नाम विशेष उल्लेखनीय है ।
शाहजहाँ काल की विशेषताएँ
इस काल की चित्रकला में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। प्रथम इसमे स्वाभाविकता तथा स्वच्छन्दता का अभाव है। जहाँगीर के काल के चित्रों में स्वाभाविकता थी,किन्तु इस काल के चित्रों में स्वाभाविकता के स्थान पर सादृश्यता थी। दूसरे इन चित्रों में अधिक तड़क-भड़क के कारण कृत्रिमता आ गई। तीसरे इस काल मे किनारे (बार्डर) की सुंदर चित्रकला का विकास हुआ,जिसके बिना इस काल मे चित्र को पूर्ण नही समझा जाता था। कभी-कभी इन मीनारों पर पुष्प संबधी सुंदर चित्रो की योजना प्रस्तुत की गई,किन्तु दूसरे छोटे पशु-पक्षियों की आकृतियों का भी सुंदर चित्रण किया गया है।
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औरंगज़ेब और मुगल चित्रकला का ह्रास
औरंगजेब की चित्रकला में कोई रुचि न होने के कारण उसके समय मे चित्रकारो को राजकीय संरक्षण एवं प्रोत्साहन मिलना बन्द हो गया। अतः बहुत से दरबारी चित्रकारों ने अब या तो अमीरों के यहाँ शरण ली या बाजारों में चले गए। वे अब जनता की रुचि के चित्र बनाते और उन्हें बाजारों में बेचते थे। अतः चित्रकला अब दरबार से निकलकर सामान्य जनता तक पहुंच गई। इसके अतिरिक्त बहुत से चित्रकारों ने अन्य राज्यो में शरण ले ली। इस प्रकार औरंगजेब के शासनकाल में मुगल चित्रकला का ह्रास आरम्भ हो गया तथा उसमें न तो अब जहाँगीर के राज्यकाल की सूक्ष्मता रह गई और न ही शाहजहाँ कालीन वैभव।
मुगल चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ
मुगल चित्रकला का उद्भव भारत में एक विशिष्ट और स्वतंत्र कला शैली के रूप में हुआ। इस कला परंपरा में ईरानी (फारसी) चित्रकला की सूक्ष्मता तथा राजपूत शैली की रंगीन अभिव्यक्ति का सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। भारतीय प्राकृतिक और सांस्कृतिक वातावरण को अपनाने के कारण यह कला धीरे-धीरे भारत की अपनी पहचान बन गई।
ईरानी चित्रकला की अपेक्षा मुगल चित्रकला में रंग अधिक सजीव, चमकीले और आकर्षक दिखाई देते हैं। इस शैली की एक प्रमुख विशेषता लघु चित्रों का विकास है, जिनमें प्रकाश और छाया का संतुलित प्रयोग किया गया है। चित्रों की संरचना सुव्यवस्थित होती है तथा पृष्ठभूमि में वृक्षों, भूमि, आकाश और प्राकृतिक दृश्यों का यथार्थ और सूक्ष्म चित्रण किया गया है।
मुगल चित्रकार प्रकृति के गहरे प्रेमी थे। उनके चित्रों में पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, नदियाँ और पर्वत अत्यंत स्वाभाविक और जीवंत रूप में अंकित किए गए हैं। इसी कारण मुगल चित्रकला केवल राजदरबार तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसमें जीवन की वास्तविकता और सजीवता भी स्पष्ट रूप से झलकती है।
संक्षेप में प्रमुख विशेषताएँ
• फारसी और भारतीय कला शैलियों का समन्वय
• चमकीले एवं सजीव रंगों का प्रभावी प्रयोग
• प्रकृति और जीवन का यथार्थ चित्रण
• लघु चित्रकला की समृद्ध और विकसित परंपरा
निष्कर्ष
मुगल काल की चित्रकला भारतीय कला इतिहास का एक महत्वपूर्ण और स्वर्णिम अध्याय मानी जाती है। ईरानी, राजपूत और भारतीय तत्वों के सम्मिलन से विकसित यह कला शैली प्रारंभ में दरबारी थी, किंतु समय के साथ यह भारतीय समाज और जन-जीवन का अभिन्न अंग बन गई। इसकी सौंदर्यात्मक विशेषताएँ आज भी भारतीय कला को समृद्ध करती हैं।
FAQ / PAQ (People Also Ask)
प्रश्न 1: मुगल चित्रकला का वास्तविक संस्थापक कौन था?
उत्तर: मुगल चित्रकला की संगठित नींव हुमायूँ ने रखी। हुमायूँ के निर्वासन के दौरान फारस में उसे दो प्रमुख चित्रकारों—मीर सैय्यद अली और ख्वाजा अब्दुर समद—से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। भारत लौटने के बाद हुमायूँ ने इन कलाकारों की कला और तकनीक को दरबार में स्थापित किया। इस प्रकार हुमायूँ ने मुगल चित्रकला को एक संगठित रूप दिया और अकबर तथा बाद के बादशाहों के लिए कला का मजबूत आधार तैयार किया। हुमायूँ को इसलिए मुगल चित्रकला का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
प्रश्न 2: मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग किसे कहा जाता है?
उत्तर: मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग जहाँगीर के शासनकाल को माना जाता है। जहाँगीर स्वयं कला-प्रेमी और कुशल चित्रकार थे। उन्होंने हेरात के अनुभवी चित्रकारों की सहायता ली और दरबार में प्रतिभाशाली कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया। इस काल में चित्रों में यथार्थवाद, प्राकृतिक दृश्यों का सजीव चित्रण और प्रकाश-छाया का कुशल प्रयोग देखने को मिला। इन कारणों से जहाँगीर के समय को मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
प्रश्न 3: अकबर काल की सबसे प्रसिद्ध चित्रकला कृति कौन-सी है?
उत्तर: अकबर काल की प्रमुख और प्रसिद्ध चित्रकला कृति हम्ज़नामा है। यह ग्रंथ लगभग 1200 चित्रों का संग्रह है, जिसमें अमीर हम्ज़ा की वीरता और साहसिक कार्यों का चित्रण किया गया है। इसके अतिरिक्त राज़मनामा और तूतिनामा जैसी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ भी अकबर के शासनकाल में तैयार हुईं। अकबर ने इन कृतियों के माध्यम से चित्रकला को संगठित रूप दिया और कलाकारों को प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन प्रदान किया।
प्रश्न 4: मुगल चित्रकला के पतन का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर: मुगल चित्रकला का पतन मुख्यतः औरंगज़ेब के शासनकाल में शुरू हुआ। औरंगज़ेब की कला और चित्रकला में रुचि नहीं थी और उन्होंने चित्रकारों को राजकीय संरक्षण देना बंद कर दिया। परिणामस्वरूप अनेक कलाकार दरबार छोड़कर अमीरों, स्थानीय शासकों या आम जनता के लिए चित्र बनाने लगे। इससे मुगल चित्रकला में यथार्थवाद और सौंदर्य की प्रधानता धीरे-धीरे कम होने लगी और यह अपनी पूर्व महत्ता खोने लगी।
